Sunday 25 July 2010

क़ुरआन रूरह ताहा २०


रूरह ताहा २०

(दूसरी किस्त)



सब रवाँ मिर्रीख पर और आप का यह दरसे-दीन ,
कफिरीनो-मुशरिकीनो-मुनकिरीनो-मोमनीन3
रौशनी कुछ सर पे कर लो, ताकि परछाईं का क़द,
छोटा हो जाए तुम्हें कुछ अपने क़द पर हो यकीन।
सीखते क्या हो इबादत और शरीअत के उसूल,
है खुदा तो चाहता होगा क़तारे गाफ़िलीन।
तलिबाने अफ्गनी और कार सेवक हैं अडे,
वह बजाएं, अपनी ढपली, यह बजाएं अपनी बीन।
जाने कितने काम बाकी हैं जहाँ में और भी,
थोडी सी फुर्सत उसे देदे ख्याल नाजनीन।
साहबे ईमाँ तुम्हारे हक में है ''मोमिन''की राह,
सैकडों सालों से गालिब हैं ये तुम पर फ़ास्क़ीन4
१-मंगल ग्रह पर २-धर्म-शास्त्र दर्शन ३-शास्त्र-शीर्षक ४-झूठे

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चलिए कफिरीनो-मुशरिकीनो-मुनकिरीनो-मोमनीन की दुन्या में चलते हैं - - -


''मूसा जब अल्लाह के हुज़ूर में हाज़िर होते हैं तो अल्लाह उनसे पूछता है कि ''ऐ मूसा आपको अपनी कौम से जल्दी आने का क्या सबब हुवा ? उन्हों ने जवाब दिया वह लोग यहीं तो हैं, मेरे पीछे और मैं आपके पास जल्दी से चला आया कि आप खुश होंगे. इरशाद हुवा कि हमने तो तुम्हारी कौम को तुम्हारे बाद मुब्तिला कर दिया और उनको सामरी ने गुमराह कर दिया, ग़रज़ मूसा ग़ुस्से और रंज से भरे हुए अपनी कौम की तरफ वापस आए, फरमाने लगे, ऐ मेरी कौम ! क्या तुम्हारे रब ने तुमसे एक अच्छा वादा नहीं क्या था? क्या तुम पर ज़्यादा ज़माना गुज़र गया? या तुमको ये मंज़ूर हुवा कि तुम पर तुम्हारे रब का गज़ब नाज़िल हो? इस लिए तुमने मुझ से जो वादा किया था, उसको खिलाफ किया था. - - - लेकिन कौम के ज़ेवर में से हम पर बोझ लद रहा था. सो हमने उसको आग में डाल दिया, फिर सामरी ने डाल दिया, फिर उसने उन लोगों के लिए एक बछड़ा ज़ाहिर किया कि वह एक क़ालिब था जिसमे एक आवाज़ आई थी. फिर वह कहने लगे तुम्हारे और मूसा का भी तो माबूद यही है - - - ''
रूरह ताहा २० _ आयत (८१-१००)
आप कुच्छ समझे? मैं भी कुछ नहीं समझ सका. तहरीर हूबहू क़ुरआनी है. यह ऊट पटांग न समझ में आने वाली आयतें मुहम्मद उम्मी की हैं, न कि किसी खुदा की. इनमें दारोग गो, मुतफ़न्नी आलिमों ने सर मगजी करके तहरीर को बामअने ओ मतलब बनाने की नाकाम कोशिश की है. सवाल उठता है कि अगर इसमें मअने ओ मतलब पैदा भी हो जाएँ तो पैगाम क्या मिलता है इन्सान को ?यह सब तौरेती वक़ेआत का नाटकीय रूप है.
मेरे भाई क्या कभी आप ने इस कुरआन की हकीक़त जानने की कोशिश की है? जो आप को गुमराह किए हुए है. इसमें कोई भी बात आपको फ़ायदा पहुचने वाली नहीं है, अलावा इसके कि ज़िल्लत को गले लगाने का इलज़ाम तुम पर आयद हो. आखिर ये ओलिमा इसे किस बुन्याद पर कुरआनऐ-हकीम कहते हैं, कोई हिकमत की बात है इसमें? ज़ाती तौर पर हमें कोई ज़िल्लत हो तो काबिले बर्दाश्त है मगर क़ौमी तौर की बे आब्रूई किन आँखों से देखा जाय. जागो, देखो कि ज़माना कहाँ जा रहा हैऔर मुसलमान दिन बदिन पिछड़ता जा रहा है. आज के युग में इसका दोष इस्लाम फरोशों पर जाता है जो आप के पुराने मुजरिम हैं.

''जो लोग कुरआन से मुंह फेरेंगे सो वह क़यामत के रोज़ बड़ा बोझ लादेंगे, वह इस अज़ाब में हमेशा रहेगे. बोझ क़यामत के रोज़ उनके लिए बुरा होगा. जिस रोज़ सूर में फूंक मारी जायगी और हम उस रोज़ मुजरिम को मैदान हश्र में इस हालत में जमा करेंगे कि अंधे होंगे, चुपके चुपके आपस में बातें करेंगे कि तुम लोग सिर्फ दस रोज़ रहे होगे, जिस की निस्बत वह बात चीत करेंगे, उनको हम खूब जानते हैं. जबकि उन सब में का सैबुल राय यूं कहता होगा, नहीं तुम तो एक ही रोज़ में रहे और लोग आप से पहाड़ों के निस्बत पूछते हैं, आप फरमा दीजिए कि मेरा रब इनको बिलकुल उदा देगा, फिर इसको इसको मैदान हमवार कर देगा.जिसमें तू न हम्वारी देखेगा न कोई बुलंदी देखेगा. - - - और उस वक़्त तमाम चेहरे हय्युल क़य्यूम के सामने झुके होंगे. ''
इसके बाद मुहम्मद इसी टेढ़ी मेढ़ी भाषा में क़यामत बपा करते हैं, फरिश्तों की तैनाती और सूर की घन गरज भी होती है और ख़ामोशी का यह आलम होता है कि सिर्फ़ पैरों की आहट ही सुनाई देती है, बेसुर तन की गप जो उनके जी में आता है बकते जाते हैं और वह गप कुरआन बनती जाती है.''
ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया.
रूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)
इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म अज़म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.
 
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क़ुरआन सूरह ताहा _ २०


झूट का एलान है - - -
ये अज़ान
 
 मुसलामानों क़ौम की अक़ल पर हैरत होती है कि वह अपने किसी अमल पर दोबारा एक बार नज़र नहीं डालती कि वह अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर चल कर किस दिशा में जा रही है. जब कि दूसरी कौमें वक़्त के साथ बदलते हुए किसी से पीछे नहीं रहतीं. अज़ान की सुब्ह से शाम तक की आवाज़ें सिर्फ मुसलमान ही नहीं सारी दुन्या सुनती है और उस से आशना है, दुन्या में हज़ारों मस्जिदें होंगी, उन पर लाखों मुअज़्ज़िन(अजान देने वाले) होंगे, दिन में पॉँच बार कम से कम ये बावाज़ बुलंद दोहराई जाती है. अज़ान, नमाजों से पहले भी नमाज़ी, नमाज़ की नियत बांधने से पेश्तर पढता है. ग़रज़ हर मुअज़्ज़िन जितनी बार अज़ान देता है उसके चार गुना बार एलानिया झूट चीख चीख कर बोलता है और हर नमाज़ी जितनी बार नमाज़ की नियत बाँधता है उसके चार गुना बार बुदबुदाते हुए झूट बोलता है, जो अनजाने में हर नमाज़ी पढता है.
देखिए अज़ान में सबसे बड़ा पहला झूट _
१-अश हदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ की मुहम्मद अल्लाह के रसूल{दूत} हैं) बोल नंबर 3
गवाही का मतलब क्या होता है ? कोई अदना मुस्लमान से लेकर आलिम, फ़ज़िल, दानिशवर, मुस्लिम बुद्धि जीवी बतलाएं कि एक साधारण मस्जिद का मुलाज़िम किस अख्तियार को लेकर या कौन से सुबूत उसके पास हैं कि वह अल्लाह और मुहम्मादुर्रूसूलिल्लाह का चश्म दीद गवाह बना हुवा है? क्या उसने सदियों पहले अल्लाह को देखा था? और क्या उसे मुहम्मद के साथ देखा था?, सिर्फ देखा ही नहीं, बल्कि अल्लाह को इस अमल के साथ देख था कि वह मुहम्मद को रसूल बना रहा है? क्या अल्लाह की भाषा उस के समझ में आई थी? क्या हर अज़ान देने वाले की उम्र १५०० साल के आस पास की है, जब कि मुहम्मद को ये नबूवत मिली थी.
याद रखें गवाही का मतलब शहादत होता है, अकीदत नहीं, आस्था नहीं, यकीन नहीं, कोई अय्यार आलिम शहादत से चश्म पोशी नहीं कर सकता. गवाही के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता. न ही राम चन्द्र परम हंस की तरह झूटी गवाही दे सकता है कि जैसा उसने गवाही के संसार में एक मिथ्य की नज़ीर क़ायम किया "गीता पर हाथ रख कर कहा कि उसने राम लला को बाबरी मस्जिद में जन्मते देखा"
इसलाम आलमी मज़हब और उसकी बुनियाद इतनी खोखली? हैरत है जेहालत के मेराज पर और इस क़ौम के जुमूद पर.
थोडा सा अज़ान का परिचय दे दूं तो आगे बढूँ - - -
"जब महाजरीन मक्का से मदीना आए, तो एक रोज़ इकठ्ठा होके सलाह मशविरा किया कि नमाज़ियों को इत्तेला करने के लिए कि नमाज़ का वक्त हो गया है, क्या तरीक़ए कार अख्तियार किया जाए. सभी ने अपनी अपनी राय पेश कीं, किसी ने राय दी कि यहूद की तर्ज़ पर सींग बजाई जाए, किसी ने अंसार की तर्ज़ पर नाक़ूश (शंख) फूकने की राए दी. किसी ने कुछ किसी ने कुछ. मुहम्मद सब की राय को सुनते रहे मगर उनको उमर की राय पसंद आई कि अज़ान के बोल बनाए जाएँ, जिस को बाआवाज़ बुलंद पुकारा जाए. मुहम्मद ने बिलाल को हुक्म दिया उठो बिलाल अज़ान दो।"
(बुखारी ३५३)
चन्द लोगों के बीच किया गया एक फैसला था जिस में मुहम्मद के जेहनी गुलामों की सियासी टोली थी. अनपढों के बनाए हुए बोल थे महज़ , यहाँ तक कि मुहम्मद के मफरूज़ा इल्हामी वहियाँ भी न थीं जो बदली न जा सकतीं. हाँ उमर की अज़ान होने के बाईस बाद में शियों ने इस में कुछ रद्दो बदल कर दिया मगर इसे और भी दकयानूसी बना दिया. अज़ान मुसलमानों में इस क़द्र मुक़द्दस है कि बच्चे के पैदा होते ही इस झूट को उस के कानों में फूँक दिया जाता है.
अब आगे देखिए कि पंचों का ये फैसला मुहम्मद अपनी फरमूदत में कैसे ढालते हैं - - -
" मुहम्मद कहते हैं कि जब नमाज़ के लिए अज़ान दी जाती है तो शैतान पादता हुवा इतनी दूर भागता है कि जहाँ तक अज़ान की आवाज़ जाती है. जब अज़ान ख़त्म हो जाती है तो फिर वापस आ जाता है और तकबीर नमाज़ बा जमाअत के बाद फिर भाग जाता है. उसके बाद फिर आ जाता है और नमाजियों को वस्वसे में डाल देता है ----
(बुखारी ३५५)
इस झूटी गवाही की झूट अज़ान की इस तरह की बहुत सी बरकतों की एक तवील फेहरिस्त आप को मिलेगी.
२-अश हदोअन ला इलाहा इल्लिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.) बोल नंबर २
यहाँ पर भी गवाही तो बहरहाल काबिले एतराज़ है चाहे इस्लामी अल्लाह हो, या आलमी अल्लाह हो या गाड हो. लायके इबादत भी मुनासिब नहीं. काबिले सताइश तो हो सकता है. कोई कुदरत अपनी इबादत की न ज़रुरत रखती है, न ही उसकी ऐसी समझ बूझ होती है. उसकी तलाश में खुद उससे जूझते रहना उसकी दावत है और यही इन्सान के हक में है.
३- अल्ला हुअक्बर अल्लाह हुअक्बर
(अल्लाह बहुत बड़ा है) बोल नंबर १
बहुत बड़ी चीजें तभी होती हैं जब कोई दूसरी चीज़ उसके मुकाबले में छोटी हो. कुरआन का एलान है कि अल्लाह सिर्फ़ एक है तो उसका अज़ानी एलान बेमानी है कि अल्ला बहुत बड़ा है. मगर चूंकि इस्लाम एक उम्मी की रक्खी हुई बुन्याद है, इस लिए इस मे ऐसी खामियां रहना फितरी बात है. सच्चाई ये है की मुहम्मद ने एक तरफ़ दूसरा खुदा शैतान को बनाया है, तो दूसरी तरफ ३६० काबा के बुतों को तोड़ कर एक बड़े हवाई अल्लाह के बुत को कायम किया, बाद में उसके रसूल बन कर खुद अल्लाह बन गए हैं. कलिमाए शहादत इसी बात की तिकड़म है. शैतन को छोटा अल्लाह उन खुदाई ताक़तों से नफरत के लिए जो कहीं पर कुछ मुक़ाम रखती हों, मगर यहाँ पर भी उम्मी मुहम्मद से भूल चूक हुई है, जिस से शैतान बाज़ी मार ले गया है. कुरआन में शैतान का नाम पहले आता है, इसके मुक़ाबला में अल्लाह सिर्फ रहमान और रहीम होता है. मुक़ाबला शुरू होता है कुरआन की कोई भी सूरह पढने से पहले, देखें - - -
आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर रजीम, बिस्मिल्ला हिरर रहमा निर रहीम.
नाम पहले शैतान का आता है.
४- हैइया लस सला, हैइया लस सला.
(आओ नमाज़ की तरफ़ आओ नमाज़ की तरफ़) बोल नंबर ४
नमाजों में यही कुरानी इबारतें आंख मूँद कर पढ़ी जाती हैं जो हर्फे गलत में आप पढ़ रहे हैं. मनन, मगन, चिंतन, ध्यान या नानक की तरह यादे इलाही में ग़र्क़ हो जाना नमाज़ नहीं है, कुरानी आयातों के पाठ्य में ज़ेर ज़बर का फर्क हुवा तो नमाज़ अल्लाह ताला तुम्हारे मुँह पर वापस मार देगा, बोर्ड इक्जाम की कापियों की तरह चेक होती है नमाजें. मैं इन नमाजों को पंज वक्ता खुराफ़ात कहता हूँ. जोश मलीहाबादी कहते हैं - - -

जिस को अल्लाह हिमाक़त की सज़ा देता है,

उसको बे रूह नमाज़ों में लगा देता है।

५- हैइया लल फला, हैइया लल फला
(आओ भलाई की तरफ ,आओ भलाई की तरफ) बोल नंबर ५
नमाज़ पढना किसी भी हालत में भलाई का काम नहीं कहा जा सकता. इंसानी या मख्लूकी फलाह ओ बहबूद के काम ही भलाई के काम कहे जा सकते हैं. मस्जिद में दाखला ही इस वक़्त सोच समझ कर करने की ज़रुरत है. नव जवानो को खास कर आगाही है कि वह मुल्लाओं के शिकार न बन जाए, मुसलामानों में तरके मस्जिद कि तहरीक चलनी चाहिए जैसे कि तरके मीलादुन नबी खुद बखुद वजूद में आगे है।


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सूरह ताहा _ २०


''ताहा''
सूरह ताहा _ २० -१६ वां पारा (१)
तर्जुमान लिखता है इसके मअने तो अल्लाह को ही मालूम हैं.
जिनके शब्दों के मअने पाठक न जान सकें तो ऐसे अर्थ हीन शब्द को लिखना और पढ़ते रहना और पढ़ाते रहना का क्या मकसद है?
'' हमने क़ुरआन आप पर इस लिए नहीं उतारी कि तकलीफ उठाएं, बल्कि ऐसे शख्स की नसीहत के लिए जो डरता हो. ये उस की तरफ से नाजिल किया गया है जिसने ज़मीन को और बुलंद आसमानों को पैदा किया. बड़ी रहमत वाला अर्श पर कायम है. उसी की हैं जो चीजें आसमानों में हैं और ज़मीन में हैं. और जो इन दोनों के दरमियान में हैं. और जो चीज़ें तःतुत सरा में हैं.
सूरह ताहा _ २० -१६ वां पारा (२-६)
मुहम्मद तकलीफ नहीं उठा रहे बल्कि दूसरों को तकलीफ़ ऐ जारिया दे रहे हैं.
यह तह्तुत्सरा क्या ज़मीन और आसमान से बाहर है? इन दोनों के दरमियाँ तो नहीं ही है, उम्मी ने लफ्ज़ को किसी से सुन लिया होगा और इस्तेमाल करने की कोशिश की . अगर यह अल्लाह का कलाम होता तो ऐसी लग्ज़िश के इमकान ही न होते. या काश की उम्मी इस क़दर के उम्मी न होते.
''और अगर तुम पुकार के बात करो तो वह चुपके से कही गई बात को और इस भी ख़फ़ी बात को जानता है - - - उसके अच्छे अच्छे नाम हैं .
हजारों बार दोहराया है कुरआन में इस बात को, अगर इस कायनात का बनी वह है तो उसी की तख्लीक़ हम सब है, ख्वाह कुछ भी और कैसे भी हों. अल्लाह के बहुत से नाम ओलिमा नामुरादों रक्खा हुवा है, खुद अल्लाह ने अपने नाम नहीं बतलाए , अभी तो वह किसी को दिखा भी नहीं.
सूरह ताहा _ २० -१६ वां पारा (७-८)
 
आयत ७ से ७५ तक मूसा और फिरौन सुने सुनाए को किस्से को मुहम्मद अपने बेढंगे तरीके से दोहराया हैं, मूसा यहूदी से नमाज़ें पढवाते हैं, ये कहना नहीं भूलते कि क़यामत ज़रूर आएगी और बागों नहरों वाली जन्नत मुसलामानों के लिए, चंद नमूने पेश हैं - - -
''मूसा ने उन लोगों से फरमाया ऐ कमबख्ती मारो अल्लाह तअला पर झूट इफतरा मत करो ''
फिरौन के जादूगरों से मूसा की लफज़ी जंग होती है बहुत बचकाना संवाद मुहम्मद ने अपने ही स्तर के बके हैं, अल्लाह भाषा पर गौर करें.
''फिर उन्हों ने कहा आप अपना पहले डालेंगे या हम पहले डालने वाले नहीं, आप ने फरमाया नहीं तुम ही पहले डालोगे,पस यका यक उनकी रस्सियाँ और लाठियां उनकी नज़र बंदी से उनके ख़याल में ऐसे मालूम होने लगीं जैसे दौड़ती हों.''
''और तुम्हारे दाहिने हाथ में जो है इसको डाल दो, उन लोगों ने जो कुछ बनाया है, ये सब को निंगल जायगा.''
''सो जादूगर सजदे में गिर पड़े और ईमान लाए.''
फिरौन अपने जादूगरों से कहता है ''मैं तुम्हारे हाथ पाँव कटवाता हूँ, एक तरफ़ का हाथ और एक तरफ़ का पाँव और तुम सब को खजूरों के दरख़्त पर लटकुवाऊँगा और ये भी तुम्हें मालूम हुवा जाता है कि किसका अज़ाब ज्यादा सख्त और देर पा है,''
मुसलामानों गौर करो कि तुम अपने नमाज़ों में क्या इन्हीं वाहियात बातों को दोहराते हो, इसी को अल्लाह का कलाम मानते हो?
जागो ! ऐसे कलाम-ए-नापाक से नफ़रत किए बिना तुम्हारा मुस्तकबिल रौशन नहीं हो सकता, अभी तक जिस गुनहगारी के अंधरे में थे ,उस का कफ्फारह यही है कि सिर्फ सच्चा ईमान अख्तियार करो और मोमिन बन जाओ

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जीम 'मोमिन' निसारुल -ईमान
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Tuesday 13 July 2010

क़ुरआन सूरह मरियम १९


मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)

मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है

ऐ खुदा!


(तीसरी किस्त)
ऐ खुदा! तू खुद से पैदा हुवा,

ऐसा बुजुर्गों का कहना है।

तू है भी या नहीं? ये मेरा जेहनी तजस्सुस और कशमकश है।

दिल कहता है तू है ज़रूर कुछ न कुछ. ब्रहमांड को भेदने वाला,

हमारी ज़मीन की ही तरह लाखों असंख्य ज़मीनों को पैदा करके उनका संचालन करने वाला,

क्या तू इस ज़मीन पर बसने वाले मानव जाति की खबर भी रखता है?

तेरे पास दिल, दिमाग, हाथ पाँव, कान नाक, पर,सींग और एहसासात हैं क्या?

या इन तमाम बातों से तू लातअल्लुक़ है?

तेरे नाम के मंदिर, मस्जिद,गिरजे और तीरथ बना लिए गए हैं,

धार्मों का माया जाल फैला हुवा है, सब दावा करते हैं कि वह तुझसे मुस्तनद हैं,

इंसानी फ़ितरत ने अपने स्वार्थ के लिए मानव को जातियों में बाँट रख्खा है,

तेरी धरती से निकलने वाले धन दौलत को अपनी आर्थिक तिकड़में भिड़ा कर ज़हीन लोग अपने कब्जे में किए हुवे हैं।

दूसरी तरफ मानव दाने दाने का मोहताज हो रहा है।

कहते हैं सब भाग्य लिखा हुआ है जिसको भगवान ने लिखा है।

क्या तू ऐसा ही कोई खुदा है?

सबसे ज्यादह भारत भूमि इन हाथ कंडों का शिकार है।

इन पाखंडियों द्वरा गढ़े गए तेरे अस्तित्व को मैं नकारता हूँ.
तेरी तरह ही हम और इस धरती के सभी जीव भी अगर खुद से पैदा हुए हें,

तो सब खुदा हुए?

त्तभी तो तेरे कुछ जिज्ञासू कहते हैं,

''कण कण में भगवन ''

मैं ने जो महसूस किया है, वह ये कि तू बड़ा कारीगर है।

तूने कायनात को एक सिस्टम दे दिया है,

एक फार्मूला सच्चाई का २+२=४ का सदाक़त और सत्य,

कर्म और कर्म फल,

इसी धुरी पर संसार को नचा दिया है कि धरती अपने मदार पर घूम रही है।

तू ऐसा बाप है जो अपने बेटे को कुश्ती के दाँव पेंच सिखलाता है,

खुद उससे लड़ कर,

चाहता है कि मेरा बेटा मुझे परास्त कर दे।

तू अपने बेटे को गाली भी दे देता है,

ये कहते हुए कि ''अगर मेरी औलाद है तो मुझे चित करके दिखला'',

बेटा जब गैरत में आकर बाप को चित कर देता है,

तब तू मुस्कुराता है और शाबाश कहता है।

प्रकृति पर विजय पाना ही मानव का लक्ष है,

उसको पूजना नहीं.
मेरा खुदा कहता है तुम मुझे हल हथौड़ा लेकर तलाश करो,

माला लेकर नहीं।

तुम खोजी हो तो एक दिन वह सब पा जाओगे जिसकी तुम कल्पना करते हो,

तुम एक एक इंच ज़मीन के लिए लड़ते हो,

मैं तुम को एक एक नक्षत्र रहने के लिए दूँगा।

तुम लम्बी उम्र की तमन्ना करते हो,

मैं तुमको मरने ही नहीं दूँगा जब तक तुम न,

तुम तंदुरस्ती की आरज़ू करते हो,

मैं तुमको सदा जवान रहने का वरदान दूंगा,

शर्त है कि,

मेरे छुपे हुए राज़ो-नियाज़ को तलाशने की जद्दो-जेहाद करो,

मुझे मत तलाशो,

मेरी लगी हुई इन रूहानी दूकानों पर तुम को अफीमी नशा के सिवा कुछ न मिलेगा।

तुम जा रहे हो किधर ? सोचो,

पश्चिम जागृत हो चुका है. वह आन्तरिक्ष में आशियाना बना रहा है,

तुम आध्यात्म के बरगद के साए में बैठे पूजा पाठ और नमाज़ों में मग्न हो।

जागृत लोग नक्षर में चले जाएँगे तुम तकते रह जाओगे,

तुमको बनी ले जाएंगे साथ साथ,

मगर अपना गुलाम बना कर,

जागो, मोमिन सभी को जगा रहा है।

सूरह मरियम १९


'इस किताब में मूसा का भी ज़िक्र करिए. वह बिला शुबहा अल्लाह के खास किए हुए थे. और वह रसूल भी थे और नबी भी थे और हमने उनको तूर की दाहिनी जानिब से आवाज़ दी और हमने उनको राज़ की बातें करने के लिए मुक़र्रिब बनाया और उनको हमने अपनी रहमत से उनके भाई हारुन को नबी बना कर अता किया''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(५०-५३)
''और इस किताब में इस्माईल का ज़िक्र कीजिए, बिला शुबहा वह बड़े सच्चे थे, वह रसूल भी थे और नबी भी और अपने मुतअलिकीन को नमाज़ और ज़कात का हुक्म किया करते थे और वह अपने परवर दिगार के नजदीक पसंद दीदा थे.''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(५४-५५)
''और इस किताब में इदरीस का भी ज़िक्र कर दीजिए. बेशक वह बड़े रास्ती वाले थे और हमने उनको बुलंद मर्तबा तक पहुँचाया. ये वह लोग हैं जिन को अल्लाह ने खास इनआम अता फ़रमाया. . . .जब उनके सामने रहमान की आयतें पढ़ी जातीं तो सजदा करते हुए और रोते हुए गिर जाते थे - - -''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(५७-६०)
मुसलमानों ! इन आयतों को बार बार पढ़िए. ये हिंदी में हैं अक़ीदत की ऐनक उतर कर, कोई गुनाह नहीं पड़ेगा. मुझ से नहीं, अपने आप से लड़िये अपने तह्तुत ज़मीर को जगाइए, अपने बच्चों के मुस्तकबिल को पेशे नज़र रख कर, फिर तय कीजिए कि क्या यह हक बजानिब बातें हैं? अगर आप जग गए हों तो दूसरों को जगाइए, खुद पार हुए तो ये काफी नहीं, औरों को पार जगाइए. यही बड़ा कारे ख़ैर है. इसलाम यहूदियत का उतरन है जिनसे आप नफ़रत करते हैं, मगर उसी से लैस हैं. वाकई यहूदी नस्ली तौर पर खुद को बरतर मानते हैं. दीगरों के लिए कोई बुरा फेल उनके लिए गुनाह नहीं होता. मूसा इंसानी तारीख में अपने ज़माने का हिटलर हुआ करता था. शायद हिटलर ने मूसा को अच्छी तरह समझा और यहूदियों को नेस्त नाबूद करना नेस्त नाबूद करना चाहा । मुसलमानों के लिए इन्तेकामन कई हिटलर पैदा हो चुके हैं मगर नई क़द्रें उनके पैरों में human right की ज़ंजीर डाले हुए हैं, अगर कहीं इस कौम में ज़्यादः तालिबानियत का उबाल आया तो यह जंजीरें पिघल जाएँगी. कहर ए हिटलर इस बार क़ुरआनी आयतों पर और इनके मानने वालों पर टूटेगा. यह हराम जादे ओलिमा ऐंड कंपनी आपको आज भी गुमराह किए हुए हैं कि इस्लाम अमरीका और योरोप में सुर्खुरू हो रहा है. एक ही रास्ता है कि इस्लाम से तौबा करके एलान के साथ एक सच्चे मोमिन बन जाओ. मोमिन बनना ज़रा मुश्किक अमल है मगर जिस दिन आप मोमिन बन जाएँगे जिंदगी बहुत बे बोझ हो जाएगी.


''इस जन्नत में वह लोग कोई फुजूल बात न सुन पाएँगे, बजुज़ सलाम के. और उनको उनका खाना सुब्ह शाम मिला करेगा। ये जन्नत ऐसी है कि हम अपने बन्दों में से इस का मालिक ऐसे लोगों को बना देंगे जो खुदा से डरने वाले हों. और हम बगैर आप के रब हुक्म वक्तन फवक्तन नहीं आ सकते. उसी की हैं हमारे आगे की सब चीजें और हमारे पीछे की सब चीजें और जो चीजें उनके दरमियान में हैं. और आप का रब भूलने वाला नहीं. वह रब है आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ इन के दरमियान में हैं सो ऐ ! तू इसकी इबादत किया कर और उसकी इबादत पर कायम रह. भला तू किसी को इसका हम सिफ़त मानता है?
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(६१-६५)
ऐसी जन्नत पर फिटकर है जहाँ बात चीत न हो, कोई मशगला न हो, फ़न ए लतीफा न हो, शेरो शाइरी न हो, बस सलाम ओ वालेकुम सलाम, सलाम ओ वालेकुम सलाम? कैदियों की तरह सुब्ह शाम खाने की मोहताजी, वहां भी हमीं में से दरोगा बनाया जायगा, गोया वहां भी मातहती ? कौन किसके हुक्म से वक्तन फवक्तन नहीं आ सकेगा? अल्लाह ने मुल्लाओं को समझ दी है कि इन बातों का मतलब समझाएं. भला कौन सी चीजें होती है '' आगे की सब चीजें और हमारे पीछे की सब चीजें और जो चीजें उनके दरमियान में हैं.'' जिसको अल्लाह भूलने वाला नहीं?
है न दीवानगी के आलम में हादी बाबा की बडबड जिनका ज़िक्र मैं कर चूका हूँ. मोहम्मद को कुरआन का पेट भरना था, सो भर दिया और एलान कर दिया कि यह अल्लाह का कलाम है. मुसलमानों क्या यह आपकी बदनसीबी नहीं कि इस पागल कि बातों को अपना सलीका मानते हो, अपनी तमाज़त तस्लीम करते हो?
 
''क्या आप को मालूम नहीं कि हमने शयातीन को कुफ्फ़र पर छोड़ रक्खा है कि वह उनको खूब उभारते रहते हैं, सो आप उनके लिए जल्दी न करें, हम उनकी बातें खुद शुमार करते हैं, जिस रोज़ हम मुत्ताकियों को रहमान की तरफ मेहमान बना कर जमा करेंगे और मुजरिमों को दोज़ख की तरफ हाकेंगे, कोई सिफारिश का अख्तियार न रखेगा. मगर हाँ जिसने रहमान से इजाज़त ली. और ये लोग कहते हैं अल्लाह तअला ने औलाद अख्तियार कर रखी है. ये ऐसी सख्त हरकत है कि जिसके सबब कुछ बईद नहीं कि आसमान फट पड़ें और ज़मीन के टुकड़े हो जाएँ और पहाड़ गिर पड़ें. इस बात से कि ये लोग रहमान की तरफ औलाद निस्बत करते हैं, हालांकि रहमान की शान नहीं कि वह औलाद अख्तियार करें. जितने भी कुछ हैं आसमानों और ज़मीन में हैं, वह सब रहमान की तरफ गुलाम बन कर हाज़िर होते हैं. रहमान - - - रहमान - - -रहमान - - -
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(८३-९८)
और लीजिए अल्लाह कहता है अपने रसूल से कि उसने अपने बन्दों पर शैतान छोड़ दिए है. हे अल्लाह के बन्दों! क्या अल्लाह ऐसा भी होता है? यह तो खुद शैतानो का बाप लग रहा है. और आप के रसूल लिल्लाह जल्दी मचा रहे हैं कि उनको पैगम्बर न मानने वाले कुफ्फारों को सज़ा जल्दी क्यूं नहीं उतरती? इसी तरह की बातें हैं इस पोथी में. मुझे तअज्जुब हो रहा है कि इतनी बड़ी आबादी और इतनी खोखली कि इस पोथी को निज़ामे-हयात मान कर इसको अपना रहबर बनाए हुए है? मुसलमानों ! क्यूं अपनी जग हसाई करवा रहे हो?
ईसा खुदा का बेटा है, इस अक़ीदत को लेकर मुहम्मद बार बार ईसाइयों को चिढ़ा रहे हैं, और ईसाई हर बार मुसलमानों की धुलाई करते हैं, स्पेन से लेकर ईराक तक इसके लाखों शैदाई मौत का मज़ा चखते आ रहे हैं मगर अक्ल नहीं आती, बद्ज़ाद ओलिमा आप के अन्दर शैतान पेवश्त किए हुए हैं।

मुहम्मद ने ज़ैद बिन हरसा को भरी महफ़िल में अल्लाह को गवाह बनाते हुए गोद लेकर अपनी औलाद बनाया था, उसकी बीवी के साथ ज़िना करते हुए जब ज़ैद ने हज़रात को पकड़ा तो उसने मुहम्मद को ऊपर से नीचे तक देखा, गोया पूछ रहा हो अब्बा हुज़ूर! ये आप अपनी बहू के साथ पैगम्बरी कर रहे हैं? मुहम्मद ने हज़ार समझाया की मन जा, हम दोनों का काम चलता रहेगा, आखिर तेरी पहली बीवी ऐमन भी तो मेरी लौंडी हुवा करती थी, पर वह नहीं माना, तभी से गैर के बच्चे को औलाद बनाना हराम कर दिया. उसी का रद्दे अमल है कि इस बंदे नामुराद ने अल्लाह तक पर ईसा को औलाद बनाना हराम कर दिया.

इस पूरी सूरह में अल्लाह का नाम बदल कर मुहम्मद ने रहमान कर दिया है, ये भी पागलों की अलामत है, जाहिलों की खू.



Sunday 11 July 2010

क़ुरआन

दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


प्रिय दोस्तों और दुश्मनों मेरे!
पिछले ब्लॉग पर आप लोगों के कोई कमेंन्ट्स नहीं आए मायूसी हो रही है।




बे तअल्लुकी उनकी कितनी जान लेवा है,
आज हाथ में उनके फूल है पत्थर है।



मोमिन अपने लिए तो नहीं लिखता मगर शायद आप को ये अच्छा नहीं लगता कि मैं हिदू वादी हूँ, इस्लाम वादी, मैं इस्लाम विरोधी हूँ तो मुझे हिदू समर्थक होना चाहिए - - -


हिन्दू के लिए मैं इक मुलिम ही हूँ, आख़िर,
मुलिम ये समझते हैं गुमराह है काफ़िर.
इंसान भी होते हैं कुछ लोग जहाँ में,
गफ़लत में हैं ये दोनों समझेगा मुनकिर.



विडम्बना ये है कि हमारे समाज में ज्यादाः तर लोग आपस सीगें लड़ाते हुए यही दोनों हैं, फिर भी ये मत देखिए कि कौन कह रहा है, यह देखिए कि क्या कह रहा है.-


क़ुरआन की चुनौतियाँ


आम मुसलामानों को कहने में बड़ा गर्व होता है कि कुरआन की एक आयत (वाक्य) भी कोई इंसान नहीं बना सकता क्यूंकि ये आल्लाह का कलाम है। दूसरी फ़ख्र की बात ये होती है कि इसे मिटाया नहीं जा सकता क्यूंकि यह सीनों में सुरक्षित है, (अर्थात कंठस्त है.) यह भी धारणा आलिमों द्वारा फैलाई गई है कि इसकी बातों और फ़रमानों को आम आदमी ठीक ठीक समझ नहीं सकता, बगैर आलिमों के. सैकड़ों और भी बे सिरों-पर की खूबियाँ इसकी प्रचारित हैं. सच है कि किसी दीवाने की बात को कोई सामान्य आदमी दोहरा नहीं सकता और आपकी अखलाकी जिसारत भी नहीं कि किसी पागल को दिखला कर मुसलामानों से कह सको कि यह रहा, बडबडा रहा है क़ुरआनी आयतें. एक सामान्य आदमी भी नक्ल में मुहम्मद की आधी अधूरी और अर्थ हीन बातें स्वांग करके दोहराने पर आए तो दोहरा सकता है, कुरआन की बक्वासें मगर वह मान कब सकेंगे. मुहम्मद की तरह उनकी नक्ल उस वक़्त लोग दोहराते थे मगर झूटों के बादशाह कभी मानने को तैयार न होते. हिटलर के शागिर्द मसुलेनी ने शायद मुहम्मद की पैरवी की हो कि झूट को बार बार दोहराव, सच सा लगने लगेगा. मुहम्मद ने कमाल कर दिया, झूट को सच ही नहीं बल्कि अल्लाह की आवाज़ बना दिया, तलवार की ज़ोंर और माले-ग़नीमत की लालच से. मुहम्मद एक शायर नुमा उम्मी थे, और शायर को यह भरम होता है कि उससे बड़ा कोई शायर नहीं, उसका कहा हुवा बेजोड़ हैकुरआन के तर्जुमानों को इसके तर्जुमे में दातों पसीने आ गए, मौलाना अबू कलाम आज़ाद सत्तरह सिपारों का तर्जुमा करके, मैदान छोड़ कर भागे। मौलाना शौकत अली थानवी ने ईमानदारी से इसको शब्दार्थ में परिवर्तित किया और भावार्थ को ब्रेकेट में अपनी राय देते हुए लिखा, जो नामाकूल आलिमों को चुभा. इनके बाद तो तर्जुमानों ने बद दयानती शुरू कर दी और आँखों में धूल झोंकना उनका ईमान और पेशा बन गया. दर अस्ल इस्लाम की बुनियादें झूट पर ही रख्खी हुई, अल्लाह बार बार यक़ीन दिलाता है कि उसकी बातें इकदम सही सही हैं, इसके लिए वह कसमें भी खाता है. इसी झूट के सांचे को लेकर ओलिमा चले हैं. इनका काम है मुहम्मद की बकवासों में मानी ओ मतलब पैदा करना. इसके लिए ताफ्सीरें (व्याख्या) लिखी गईं जिसके जारीए शरअ और आध्यात्म से जोड़ कर अल्लाह के कलाम में मतलब डाला गया। सबसे बड़ा आलिम वही है जो इन अर्थ हीन बक बक में किसी तरह अर्थ पैदा कर दे. मुहम्मद ने वजदानी कैफ़ियत (उन्माद-स्तिथि) में जो मुंह से निकाला वह कुरआन हो गया अब इसे ईश वाणी बनाना इन रफुगरों का काम है. जय्यद आलिम वही होता है जो कुरान को बेजा दलीलों के साथ इसे ईश वाणी बनाए.मुसलमान कहते हैं कुरआन मिट नहीं सकता कि ये सीनों में क़ायम और दफ़्न है. यह बात भी इनकी कौमी बेवकूफी बन कर रह गई है, बात सीने में नहीं याद दाश्त यानी ज़हनों में अंकित रहती है जिसका सम्बन्ध सर से है. सर खराब हुआ तो वह भी गई समझो. जिब्रील से भी ये इस्लामी अल्लाह ने मुहम्मद का सीना धुलवाया था, चाहिए था कि धुलवाता इनका भेजा. रही बात है हाफ़िज़े (कंठस्त) की, मुसलमान कुरआन को हिफ्ज़ कर लेते हैं जो बड़ी आसानी से हो जाता है, यह फूहड़ शायरी की तरह मुक़फ्फा (तुकान्तित) पद्य जैसा गद्य है, आल्हा की तरह, गोया आठ साल के बच्चे भी इसके हाफिज़ हो जाते हैं, अगर ये शुद्ध गद्य में होता तो इसका हफिज़ा मुश्किल होता.


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''फिर वह (मरियम) उसको (ईसा को) गोद में लिए हुए कौम के सामने आई। लोगों ने कहा ऐ मरियम तुमने बड़े गज़ब का काम किया है .ऐ हारुन की बहेन! तुम्हारे बाप कोई बुरे नहीं थे, और न तुम्हारी माँ बद किरदार. बस कि मरियम ने बच्चे की तरफ इशारा किया, लोगों ने कहा भला हम शख्स से कैसे बातें कर सकते हैं ? जो गोद में अभी बच्चा है. बच्चा खुद ही बोल उट्ठा कि मैं अल्लाह का बन्दा हूँ . उसने मुझ को किताब दी और नबी बनाया और मुझको बरकत वाला बनाया. मैं जहां कहीं भी हूँ. और उसने मुझको नमाज़ और ज़कात का हुक्म दिया जब तक मैं ज़िन्दा हूँ. और मुझको मेरी वाल्दा का खिदमत गार बनाया, और उसने मुझको सरकश और बद बख्त नहीं बनाया. और मुझ पर सलाम है. जिस रोज़ मैं पैदा हुवा, और जिस रोज़ रेहलत करूंगा और जिस रोज़ ज़िदा करके उठाया जाऊँगा. ये हैं ईसा इब्ने मरियम. सच्ची बात है जिसमे ये लोग झगड़ते हैं. अल्लाह तअला की यह शान नहीं कि वह औलाद अख्तियार करे वह पाक है.''

सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(२७-३४)

पिछली किस्त में आपने पढ़ा कि क़ुरआन में किस शर्मनाक तरीक़े से मुहम्मद ने मरियम को जिब्रील द्वारा गर्भवती कराया और ईसा रूहुल-जिब्रील पैदा हुए। अब देखिए कि दीवाना पैगम्बर, ईसा का तमाशा मुसलमानों को क्या दिखलाता है? विडम्बना ये है कि मुसलमान इस पर यक़ीन भी करता है, क़ुरआन का फ़रमाया हुवा जो हुवा। मरियम हरामी बच्चे को पेश करते हुए समाज को जताती है कि मेरा बच्चा कोई ऐसा वैसा नहीं, यह तो खुद चमत्कार है कि पैदा होते ही अपनी सफाई देने को तय्यार है. लो, इसी से बात करलो कि ये कौन है. लोगों के सवाल करने से पहले ही एक बालिश्त की ज़बान निकल कर टाँय टाँय बोलने लगे ईसा अलैहिस्सलाम . ज़ाहिर है उनके डायलोग और चिंतन उम्मी मुहम्मद के ही हैं. बच्चा कहता है, ''मैं अल्लाह का बन्दा हूँ '' जैसे कि वह देखने में भालू जैसा लग रहा हो. मुहम्मद को उनके अल्लाह ने चालीस साल की उम्र में क़ुरआन दिया था, ईसा को पैदा होते ही किताब मिली? जैसे कि ईसा का पुनर जन्म हुवा हो, और वह अपने पिछले जन्म की बात कर रहे हों. मुहम्मद की कुबुद्धि बोल चाल में इस स्तर की है कि इल्म की दुन्या में जैसे वह थे. व्याकरण, काल, भाषा, परस्तुति, इनकी गौर तलब है. लेखन की दुन्या में अगर इन आयतों को दे दिया जय तो मुहम्मद की बुरी दुर्गत हो जाए. इन्ही परिस्थियों में जो आलिम इसके अन्दर मानी, मतलब और हक़ गोई पैदा कर दे, वह इनआम याफ़्ता आलिम हो सकता है. मुसलमानों के सामने ये खुली खराबी है कि वह ऐसी क़ुरआन पर लअनत भेज कर इससे मुक्ति लें. अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बने ईसा मुहम्मद की नमाज़,ज़कात और इस्लाम का प्रचार भी करते हैं.

''तमाम ज़मीन और इस पर रहने वालों के हम ही मालिक रह जाएँगे और ये सब हमारे पास ही लौटे ''

''सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(४०)

मुसलामानों तुम्हारा अल्लाह कितना बडबोला है, यह बशर का सच्चा अल्लाह तो नहीं हो सकता. वह जो भी हो, जैसा भी हो, अपने आप में रहे, मखलूक को क्यूँ डराता धमकाता है ? हम उससे डरने वाले नहीं, क्या हक़ है उसे मखलूक को सज़ा देने की ? क्या मखलूक ने उससे गुज़ारिश की थी कि हम पैदा होना चाहते हैं, इस तेरी अज़ाबुन-नार में? अपनी तमाश गाह बनाया है दुन्या को? ऐसा ही ज़ालिम ओ जाबिर अगर है अगर तू , तो तुझ पर लअनत है।
बकौल शायर, कहता है - - -
तूने सूरज चाँद बनाया, होगा हम से क्या मतलब,

तूने तारों को चमकाया, होगा हम से क्या मतलब,

तूने बादल को बरसाया, होगा हम से क्या मतलब,

तूने फूलों को महकाया, होगा हम से क्या मतलब।


तूने क्यूं बीमारी दी है, तू ने क्यूं आजारी दी?

तूने क्यूं मजबूरी दी है, तूने क्यूं लाचारी दी?

तूने क्यूं महकूमी१ दी है, तूने क्यूं सालारी २ दी?

तूने क्यूं अय्यारी दी है, तूने क्यूं मक्कारी दी?



तूने क्यूं आमाल३ बनाए, तूने क्यूं तकदीर गढा?

तूने क्यूं आजाद तबा४ दी, तूने क्यूं ज़ंजीर गढा?

ज़न,ज़र,मय५ में लज़्ज़त देकर, उसमें फिर तकसीर६ गढा,

सुम्मुम,बुक्मुम,उमयुन७ कहके, तानो की तकरीर रचा।


बाज़ आए तेरी राहों से, हिकमत तू वापस लेले,

बहुत कसी हैं तेरी बाहें, चाहत तू वापस लेले,काफिर,

'मुंकिर' से थोडी सी नफरत तू वापस लेले,

दोज़ख में तू आग लगा दे, जन्नत तू वापस लेले।


१-आधीनता २-सेनाधिकार ३-स्वछंदता ५-सुंदरी,धन,सुरा,६-अपराध ७-अल्लाह अपनी बात न मानने वालों को गूंगे,बहरे और अंधे कह कर मना करता है कि मत समझो इनको,इनकी समझ में न आएगा


''और इस किताब में इब्राहीम का भी ज़िक्र कीजिए, वह बड़े रास्ती वाले और पैगम्बर रहे. जब कि उन्हों ने अपने बाप से कहा था कि ऐ मेरे बाप! मेरे पास ऐसा इल्म पहुँचा है जो तुम्हारे पास नहीं आया. तो तुम मेरे कहने पर चलो तुम को सीधा रास्ता बतलाऊँगा. ऐ मेरे बाप तुम शैतान की परिस्तिश मत करो, बेशक शैतान रहमान की नाफ़रमानी करने वाला है. ऐ मेरे बाप मैं अंदेशा करता हूँ कि तुम पर रहमान की तरफ से कोई अज़ाब आ पड़े, फिर तुम शैतान के साथी बन जाओ. जवाब दिया क्या तुम मेरे माबूदों से फिरे हुए हो? ऐ इब्राहीम तुम अगर बअज़ न आए तो मैं ज़रूर तुम पर संगसारी करूंगा और हमेश हमेश के लिए मुझ से बर किनार रहो. कहा मेरा सलाम लो, अब मैं तुम्हारे लिए रब से मग्फ़िरत की दरख्वास्त करूंगा. बे शक वह मुझ पर बहुत ही मेहरबान है और मैं तुम लोगों से और जिन की तुम खुदा को छोड़ कर इबादत कर रहे हो उन से कनारा करता हूँ और अपने रब की इबादत करूंगा.''
मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(४१-५०)

सूरह मरियम में मुहम्मद तकिया कलाम रहमान है, वह किसी एक शब्द को पाकर उसका इस्तेमाल बार बार करते हैं, ऐसा होता है ये इंसानी फितरत है, रहमानी नहीं. इन आयातों को उतारते हुए मुहम्मद अपने चचा अबू तालिब को ज़ेहन में रख्खा है कि वह भी मुहम्मद बेटे की तरह समझा था मगर जीते जी इस्लाम को कुबूल नहीं किया. मुहम्मद ने उनसे ठीक इसी तरह की बातें की थीं . इसके बाद अल्लाह अपनी उबाऊ भाषा में कटा है कि जब इब्राहीम अपने लोगों से अलग ही तो अल्लाह ने उनको बेटा इशाक और पोता याकूब दिया।


जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान

Sunday 4 July 2010

क़ुरआन 'सूरह मरियम १९


(पहली किस्त)


सूरह मरियम १९


मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


मुसलमानों के नाम - - -


तअलीम से ग़ाफिल, फ़न-ए-ओनक़ा से अलग,
बद हाली में आगे, सफ़-ए-आला से अलग,
गुमराह किए है इन्हें, इनका अल्लह,
दुन्या है मुसलमानों की, दुन्या से अलग.


* क्या आप कभी ख़याल करते हैं कि इस जहाँ में आपका सच्चा रहनुमा कौन है?
* क्या आप ने कभी गौर किया कि किस मसलके-इस्लाम से आप का तअल्लुक़ हैं?
* क्या आपने कभी ख़याल किया कि आप का महफूज़ मुल्क कहाँ है?
* क्या आपने कभी सोचा कि आप में किसी ने इस धरती को कुछ दिया, जिससे सब कुछ ले रहे है?
* क्या आप ने कभी खोजबीन की, कि मौजूदा ईजाद और तरक्की में आपका कोई योगदान है? जब कि भोगने में आगे है?
* क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई आलमी हस्ती पैदा
हुई है?
* क्या आप ने कभी ख़याल किया कि अपनी नस्लों के लिए किया कर रहे हैं?

बतौर नमूने के यह चन्द सवाल मैंने आपके सामने रख्खे हैं, सवाल तो सैकड़ों हैं। बगैर दूर अनदेशी के जवाब तो आपके पास हर सवाल के होंगे मगर हकीकत में आप के पास कोई मअक़ूल जवाब नहीं, अलावः शर्मसार होने के, क्यूँकि आपको मुहम्मदी अल्लाह ने गुमराह कर रखा है कि यह दुन्या फ़ानी है और आक़बत की ज़िदगी लाफ़ानी. इस्लाम ९०% यहूदियत है और यह अकीदा भी उन्हीं का है। वह इसे तर्क करके आसमान में सुरंग लगा रहे हैं और मुसलमान उनकी जूठन चबा रहे हैं.

पहला सवाल है मुसलमानों की रहनुमाई का? आलावा रूहानी हस्तियों के कोई काबिले ज़िक्र नहीं, रूहानियत जो अपने आप में इन्सान को निकम्मा बनाती है, इनको छोड़ कर जिसके शाने बशाने आप हों? आला क़द्रों में कबीर, शिर्डी का साईं बाबा जैसे जो आपके लिए नियारया हो सकते थे उनको आप ने इस्लाम से ख़ारिज कर दिया और वह हिन्दुओं में बस कर उनके अवतार हो गए। माजी करीब में क़ायदे-मिल्लत मुहम्मद अली जिनह शराब और सुवर के गोश्त के शौकीन थे, कभी भूल कर नमाज़ रोज़ा नहीं किया, कैसे पाकिस्तानियों ने उनको क़ायदे-मिल्लत बना दिया? मौलाना आज़ाद सूरज डूबते ही शराब में डूब जाते थे. ए.पी.जे अब्दुल कलाम तो जिंदा ही हैं, मुसलमान उनको मुहम्मदी हिन्दू कहते हैं। इनमें से कोई इस्लाम की कसौटी पर खरा नहीं उतरा.

गाँधी जी जो आप के हमदर्दी में गोली के शिकार हुए, उनको आप के ओलिमा काफ़िर कहते हैं। बरेली के आला हज़रात ने तो उनकी अर्थी में शामिल होने वाले मुसलमानों को काफ़िर का फ़तवा दे दिया था। एक कमाल पाशा तुर्की में मुस्लिम रहनुमा सही मअनो में हुवा जिसको इस्लामी दुन्या क़यामत तक मुआफ नहीं करेगी.

पिछली चौदा सदियों से आप लावारिस हैं, क्यूँकि आप का वारिस, मालिक, रहनुमा है मुहम्मदी अल्लह और वह फरेब जिसके आप शिकार हैं आप के आखरुज्ज़मा. सललल्लाहो अलैहे वसल्लम.
आप किस टाइप के मुसलमान है? टाईप नंबर एक तो आप को काफ़िर कहता है. हर मस्जिद किसी न किसी मुल्ला की हुकूमत बनी हुई है. खुद मुहम्मद ने मस्जिदे नबवी को अपने हाथों से मदीने में मिस्मार किया कि वह काफिरों की मस्जिद हो गई थी. अली ने तीनो खलीफाओं को क़त्ल कराया, यहाँ तक कि उस्मान गनी की लाश तीन दिनों तक सडती रही तब रहम दिल यहूदियों ने उनको अपने कब्रिस्तान में दफ़नाया था. दुन्या भर में बकौल मुहम्मद अगर मुसलमानों के ७२ फिरके हो चुके हैं तो उनमें से ७१ आपका जानी दुश्मन हैं.फिर भी आप मुसलमान हैं? जाएँगे भी कहाँ? सोचें कि कोई रास्ता बचा है आपके लिए?
आपका कोई मुल्क नहीं कहीं आप आज़ादी के साथ कहीं भी नहीं रह सकते, हर मुल्क में आप पड़ोस में दुश्मन पाले हुए हैं आपका कोई मुल्क हो ही नहीं सकता, तमाम दुन्या पर इस्लाम को छा देने की आप की नियत जो है और आप को अमलन देखा गया है कि मुस्लिम हुक्मरान हमेशा एक दूसरे को फ़तह करते रहे. बस काबे में आप सब ज़रूर इकठ्ठा होते हैं लबबैक कह कर, ताकि कुरैशियों को इमदाद जारिया हो और आप को मुहम्मदी सवाब मिले.
आप ने खिदमत ए ख़ल्क़ के लिए कोई ईजाद की? कोई तलाश कोई या कोई खोज मुसलामानों द्वारा वजूद में आई ? आप दो चार मुस्लिम नाम गिना सकते हैं और ए. पी जे. अब्दुल कलाम को भी पेश कर सकते हैं, मगर आप अच्छी तरह जानते हैं कि साइंटिस्ट कभी मुसलमान हो ही नहीं सकता. मुसलमान तो सिर्फ अल्लाह का खोजी होता है और उम्मी मुहम्मद को सब से बड़ा साइंसदान ख़याल करता है. जहाँ कोई फ़नकार बना कि टाट पट्टी बाहर हुवा. मकबूल फ़िदा हुसैन या नव मुस्लिम ए. आर. रहमान जैसी आलमी हस्तियाँ क्या इस्लाम को गवारा हैं? हम तो यहाँ तक कहेंगे कि मुसलमानों को नई ईजादों की बरकतों को छूना भी नहीं चाहिए, चाहे रेल या हवाई सफ़र हो, चाहे बिजली हो. मोबाईल, कप्यूटर,ए.सी. मुसल्म्मानों के लिए बंद और हराम हो जाना चाहिए, तब होश ठिकाने आएँगे. इसकी तालीम भी इनके लिए मामनू हो अगर तालिब इल्म इस्लामी अकीदे का हो, वर्ना इल्म का इस्तेमाल तालिबान बन कर इंसानियत पर खुदकश बम बन कर नाज़िल.
क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई आलमी हस्ती पैदा हुई है? कोई नहीं. उन्हों ने इसकी इजाज़त ही नहीं दी. ज़माना जितना आगे जाएगा, मुसलमान उतना ही पीछे चला जायगा. एक दिन इसके हाथ में झाड़ू पंजा आ जाएगा. इसकी अलामत बने मज़लूम बिरादरी भी जग गई है मगर मुसलमानों की नींद ही नहीं खुल रही है.
मुसलमानों ! मोमिन आप के साथ रहते हुए आप को जगा रहा है, वर्ना उसके लिए बड़ा आसान था ईसाई या हिन्दू बन जाना. क्यूं अपनी जान को हथेली पर रख कर मैदान में उतरा? इस लिए कि आप लोग सब से ज्यादह इंसानी बिरादरी की आँखों में खटक रहे हो. मै आपका कुछ भी नहीं छीनना चाहता, जैसे हैं, जहाँ हैं, बने रहिए बस ईमानदार मोमिन बन जाइए, देखिगा कि ज़माने कि नफरत आपकी पैरवी में बदल जाएगी.
इस्लामी ओलिमा को अपनी ड्योढ़ी मत लांगने दीजिए और इनसे गलाज़त आलूद खिंजीर मानिए. इनके अलावा जो भी आपको इस्लाम के हक़ में समझाए, देखिए कि इसकी रोज़ी रोटी तो इस्लाम से वाबिस्ता नहीं है? ऐसे लोगों की मदद कीजिए कि वह ज़रीआ मुआश बदल सकें. आप जागिए और दूसरों को जगाइए।


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''खायाअस''
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(१)
यह शब्द मुहम्मदी अल्लाह का मन्त्र है, पढने वाले इस का मतलब नहीं जानते मगर हाँ! यह अल्लाह की कही हुई कोई बात ज़रूर है जिस का मतलब वही जानता है। ऐसे पचास मोह्मिलात (अर्थ हीन) हैं जिन को कुरआन की कोई सूरह शुरू करने से पहले इसका उच्चारण मुसलमान करते हैं. इंसानी नफसियत (मनो विज्ञानं) के माहिर मोहम्मद ने मुसलमानों के लिए यह शब्द गढ़े गोकि वह निरक्षर थे, जैसे जोगी जटा मदारी तमाशा दिखलाने से पहले मन्त्र भूमिका बाँधता है.


''ये तज़करह है आप के परवर दिगार के मेहरबानी फ़रमाने का अपने बन्दे ज़कारिया पर जब कि उन्होंने अपने परवर दिगार को पोशीदा तौर पर पुकारा. अर्ज़ किया ऐ मेरे परवर दिगार ! मेरी हड्डियाँ कमज़ोर पड़ गई हैं और मेरे सर में बालों की सफैदी फ़ैल गई है और आप से मांगने में ऐ मेरे रब, मैं नाकाम नहीं रहा हूँ और मैं अपने बाद रिश्ते दारों से ये अंदेशा रखता हूँ और मेरी बीवी बाँझ है. आप अपने पास से ऐसा वारिस दे दीजिए''
''ऐ हम तुमको एक नेक फ़रज़न्द की खुश खबरी देते हैं जिसका नाम यहिया होगा कि इससे पहले हमने किसी को इसका हम सिफ़त न बनाया होगा. अर्ज़ किया ऐ मेरे रब मेरे औलाद कैसे होगा हालाँकि मेरी बीवी बाँझ है और में बुढ़ापे के इन्तेहाई दर्जे को पहँच गया हूँ .इरशाद हुवा कि यूं ही तुम्हारे रब का कौल है कि ये मुझको आसान है हमने तुमको पैदा किया तो तुम न कुछ थे अर्ज़ किया कि मेरे रब मेरे लिए कोई अलामत मुक़रार फरमा दीजिए इरशाद ये हुवा कि तुम्हारी अलामत ये है कि तुम तीन दिन किसी आदमी से बात न कर सकोगे. पस कि हुजरे में से अपनी कौम की तरफ बरामद हुए और इरशाद फरमाया कि तुम लोग सुब्ह शाम खुदा की पाकी बयान किया करो. ऐ यहिया किताब को मज़बूत होकर लो और हमने उनको लड़कपन में ही समझ और खास अपने पास से रिक्कात ए कल्ब और पाकीजगी अता फरमाई थी - - - और उनको सलाम पहुँचे जिस दिन से वह पैदा हुए और जिस दिन कि वह इन्तेकाल करेंगे और जिस दिन वह जिन्दा हो कर उठाए जाएगे
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सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(२-१५)
तौरेती हस्ती ज़खारिया का नाम और बुढ़ापे में साहिबे औलाद होना ही मुहम्मद ने सुन रखा था, उसकी जानकारी देकर आगे बढ़ गए.
ज़खारिया का मुख़्तसर तअर्रुफ़ दे दूं कि वह और उसकी बीवी उम्र की ढलान पर थे कि औलाद हुई, जैसा कि आजकल भी देखा जा सकता है. ये यहूदी शाशक हीरोद के ज़माने में हुए। ज़खारिया से ज्यादह इसके बेटे योहन काबिले ज़िक्र हैं जिनका नाम मुहम्माद ने यहिया बतलाया कि वह अहेम था.
योहन ईसा कालीन एक सत्य वादी हुवा था जिस का राजा हीरोद ने एक रककासा की मर्ज़ी से सर कलम कर दिया था। योहन की माँ अल्हुब्बियत और मरियम आपस में सहेलियां हुवा करती थीं और साथ साथ हामला हुई थीं. ज़खरिया औलाद पैदा होने के बाद तरके-दुन्या हो गया था. ईसा यहिया की खबर से ऐसा खायाफ़ हुए कि सर पे पैर रख कर भागे और आखिर कार गिरफ़्तार हुए और सलीब पर चढ़ा दी गए। मंदार्जा बाला लाल रंग के जुमले पर गौर करें कि उम्मी मुहम्मद अपनी धुन में क्या कह रहे हैं.


''और इस किताब में मरियम का भी तज़करह करिए जब मरियम अपने घर वालों से अलाहिदा एक ऐसे मकान में जो मशरिक जानिब था, नहाने के लिए गईं. फिर इन घर वालों के बीच उन्हों ने पर्दा डाल दिया, पास हमने अपने फ़रिश्ते जिब्रील को उनके पास भेज दिया और मरियम के सामने पूरा बशर बन कर ज़ाहिर हुवा. मरियम ने कहा मैं तुझ से रहमान की पनाह मांगती हूँ और अगर तू खुदा तरस है तो यहाँ से हट जा. उसने कहा मै तेरे रब का भेजा हुवा फ़रिश्ता हूँ (आया इस लिए हूँ) ताकि तुझ को एक पाकीज़ा औलाद दूं. मरियम ने कहा मुझे बच्चा कैसे हो जायगा? जब कि मुझे किसी मर्द ने हाथ नहीं लगाया है.और न मैं बदकार हूँ। फ़रिश्ते ने कहा यूं ही, यह उसके लिए आसान है, इस लिए पैदा करेंगे ताकि ये लोगों के लिए निशानी हो और रहमत बने और ये एक तय शुदा बात है. और फिर मरियम के पेट में बच्चा रह गया. फिर इस को लिए हुए वह दूर चली गई, फिर दर्द ज़ेह (प्रसव पीड़ा) के आलम में खजूर की तरफ आई और कहने लगी कि काश! मैं इससे पहले ही मर गई होती और ऐसी नेस्त नाबूद होती कि किसी को याद भी न आती. फिर जिब्रील ने पुकारा तुम मगमूम मत हो. तुम्हारे पैताने तुम्हारे रब ने नहर पैदा कर दी है और खजूर के तने को पकड़ कर हिलाओ, तुम्हारे लिए ताज़े खुरमें गिरेंगे सो इन्हें खाओ और पानी पियो. और आँखें ठंडी करो फिर जब तुम किसी आदमी को देखो कह दो कि हम ने तो रोज़ा के वास्ते अल्लाह से मन्नतमाँग रख्खी है, सो आज मैं किसी आदमी से न बोलूंगी'' (उम्मियत का एक नमूना)
सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(१६-२६)
हकीकत ये है कि ईसा मरियम के शौहर का नहीं बल्कि उसके मंगेतर यूसुफ का बेटा था और दोनों की शादी होने से पहले बच्चा पैदा हो गया था, रूढ़ी वादी समाज उस वक़्त ऐसी औलाद को हरामी करार देता था, जैसे आज मुस्लिम समाज को देखा जा सकता है. हरामी है, हरामी है - - - का तअना सुन सुन कर बच्चे ईसा का दिल बचपन में ही मजरूह हो गया. चौदह साल की उम्र में इस यहूदी नवजवान ने योरुसलम की एक इबादत गाह में पनाह ली, जहाँ उसने खुद को खुदा का बेटा कहा और उसी दिन दिन से वह खुदा का बेटा मशहूर हुवा. बिलकुल कबीर की कहानी है, कबीर की तरह उसने भी रूढ़ी वादिता का सामना किया. ईसा की ऐसी चर्चा हुई कि वह हुकूमत की निगाहों में आ गया और सलीब पर चढ़ा दिया गया. सलीब पर चढ़ जाने के बाद वह वाकई खुदा का बेटा बन गया. मानव जाति को यहूदियत के क़दामत की ग़ार से निकल कर जदीद वसी मैदान बख्सने वाला ईसा के छे सौ साल बाद वजूद में आने वाले इस्लाम ने इंसानियत को एक बार फिर यहूदियत की ग़ार में झोंक दिया. मूसा ने नस्ली तौर पर बनी इस्राईल को ही यहूदियत की चपेट में रख्खा था, मुहम्मद ने चौथाई दुन्या हर कौम को यहूदियत की ज़द में लाकर खड़ा कर दिया है.
ईसा की विवादित वल्दियत को लेकर मुहम्मद ने जो बेहूदा कहानी गढ़ी है इसे पढ़ कर ईसाइयों की दिल आज़ारी होना लाजिम है. सैकड़ों सलीबी जंगें ऐसी बातों को लेकर ईसाइयों और मुसलामानों में हुई हैं और आज तक जारी हैं . करोरों इंसानी खून मुहम्मद के सर जाता है.
ईसा को कुरआन में रूहुल क़ुद्स बतलाया गया है जैसा कि उपरोक्त आयतें कहती हैं। इन आयतों पर गौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह ने किस तरह जिब्रील से मरियम का रूहानी मुबाश्रत (सम्भोग) करवाया है कि जो जिस्मानी बलात्कार का ही एक मुज़ाहिरा है - - -
मरियम का नहाने के लिए जाना, सामने पर्दा डालना, नहाने के लिए उरयाँ होना,
जिब्रील का बशक्ल इंसान मरियम के सामने आकर खड़े हो जाना,
मरियम का हट जाने की मिन्नत करना,
फरिस्ते का आल्लाह का फैसला सुनाना, और मरियम का हामला हो जाना - - -
यह सब ख़ुराफात के सिवा और क्या है?
ईसा की ज़िन्दगी के एक एक लम्हात तारिख इंसानी में दर्ज है और मुसलमान उस हकीकत पर यक़ीन न करके क़ुरआनी आयतों कि बद तमीज़ियों पर यक़ीन करता है तो अगर कोई बुश इसकी दुर्गत करे तो हैरानी किस बात की?


जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान
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क़ुरआन सूरह कुहफ़ १८


कर बद्ध निवेदन




ब्लॉग की दुन्या में आजकल जूतम-पीज़ार और गली गलौच खुल कर आमने सामने हैं. क्या ब्लाग आविष कारकों ने अपनी मेहनत का सिलह इस रूप में पाया? दो महान धर्मों के अनुयायी एक दूसरे की माँ, बहेन और बेटियाँ उनके आँखों के सामने - - -


छि: छि: छि:
गूगल के दो पैग़म्बरों और अवतारों ने मिलकर, क्या इनके लिए यह सुविधा सेज बिछाई थी?


मानवता वादी हमेशा मानव के हक़ और हित में काम करते हैं मगर इसका दुरोपयोग यह अमानुष लोग करते चले आते हैं। धर्मों और मज़हबों का संसार होता ही ऐसा है कि इसके साँचे में ढलने के बाद समप्रदाय अधर्मी बन जाते हैं. शाशन और नेता इनके सहयोग में समर्पित है. बुद्धि जीवी असहाय खडा खड़ा टुकुर टुकुर इनका मुँह तकता है, कुछ मुट्ठी भर लोग पूरे माहौल में गन्दगी फैलाए रहते हैं. ऐसे लोग सोचें कि वह किसका भला कर रहे हैं? देश का? धरती माता का? या इस पर बसने वाले जीवों का?
मैं ने अपने ब्लॉग पर मुसलामानों के लिए जागरण यात्रा प्रारंभ की है, जिसे मैं मानव धर्म मानता हूँ, इसके लिए मुसलमान मुझ पर हर तरह का हमला कर सकता है क्यूंकि वह गहरी अन्ध विश्वास की नींद सो रहा है, नींद में किसी को जगाओ तो बडबडाता हुवा ही उठता है, उसकी गालियाँ मुझे मंज़ूर हैं, उसका प्रतिवाद आप सिर्फ देखिए, उसकी तरह गाली मत बकिए. हो सके तो आप अपने समाज में ''मोमिन'' जैसा प्रयास करें, मत ग़लत फ़हमी में रहिए कि वह पूरी तरह जाग चुके हैं। गैर मुस्लमान भाइयों से मेरा अनुरोध है कि कृपा करके मेरे ब्लॉग पर अपशब्द की भाषा मत लाएँ.



तुम अपनी खामियाँ खोलो, हम अपनी खामियाँ खोलें,
लड़ें ख़ामोश आपस में, न तुम बोलो न हम बोलें।


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सूरह कुहफ़ १८
The CAVE


(चौथी किस्त)




मेरी तहरीर में - - -


 
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
(बमय अलक़ाब) '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


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आइए आप को ले चलते हैं अल्लाह की चौपट नगरी में - - -



''लोग आप से ज़ुलक़रनैन का हाल पूछते हैं, आप बयान करिए - - - हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी और हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था, चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?) और इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी। हमने उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो, जवाब दिया जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम लोग सज़ा ही देंगे, फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा और वह उसको सख्त सज़ा देगा और जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - - फिर ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी। इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है ,फिर एक और राह हो लिए, यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते. उन्हों ने अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें , इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें, जवाब दिया कि जिस में हमारे रब ने अख्तियार दिया है, वह बहुत बहुत कुछ है . सो कूवत से मेरी मदद करो. मैं तुम्हारे और उनके दरमियान खूब मज़बूत दीवार बना दूगा. तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको, यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र दिया तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे, कहा कि ये मेरे रब की रहमत है फिर जिस वक़्त मेरे रब का वादा आएगा , इसके फ़ना का वक़्त आएगा सो इसको ढा कर बराबर कर देगा और मेरे रब का वडा बर हक है.''
सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(८३-९८)
मुहम्मद ने ईसा, मूसा, मरियम,हकीम लुकमान वगैरह, जिनका हाल सुन रख्खा था, या जिनकी कहानी सुनी थी सबको कुरआन में शामिल करके उनकी कहानी अपने अंदाज़ में बनाई है, जो इस्लामी प्रचार के लिए विषय होते थे और इसका गवाह सीधे अल्लाह को बना दिया. कुरआन को अल्लाह का कलाम बता कर. मशहूर हस्तियाँ ही नहीं कुछ अजीबो-गरीब हस्तियाँ अपनी तरफ़ से भी गढ़ लिया था. इस सूरह में कोई फ़र्ज़ी बादशाह ज़ुलक़रनैन की कहानी गढ़ी है. बड़े बादशाह को हर क़िस्म का सामान भी अल्लाह ने दिया था है न अहमकाना बात और ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, अल्लाह को इसकी पूरी खबर है ये दूसरी अहमकाना दलील हुई, मगर वह बे सरो समानी के आलम में तनहा सफ़र पर भी था - - - चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?) शाम का वक़्त था काले पानी में क्या डूबता हुवा दिखाई दिया उसका नाम बतलाना भूल कर आगे बढ़ते हैं. इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी. हमने (गोया अल्लाह ने ) उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो मतलब हुवा कि अल्लाह ज़ुलक़रनैन के मातहत था. अल्लाह का मशविरा ठुकरा कर ज़ुलक़रनैन ने फैसला कुन जवाब दिया कि जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम सज़ा ही देंगे और (कोई आप से बड़ा मालिक है तो ) फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा. वह उसको सख्त सज़ा देगा. मुहम्मद अपनी इस्लामी डफली बजने लगते हैं - - -जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - - चलते चलते शाम से रात हुई और सुबह का वक़्त आया फिर ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी. मुहम्मद ने यहाँ क्या कहा है अलीम रफुगरों की समझ से भी बाहर है. अल्लाह ने सूरज को चिलमन बना कर नहीं लटकाया? मुखबिर अल्लाह ज़ुलक़रनैन के झोले में रख्खे सामान की पूरी जानकारी रखता है यह मुक़र्रर इरशाद है . - - - इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है. चलते चलते ज़ुलक़रनैन यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते. यानी उस कौम की गुतुगू को न समझते हुए भी समझे कि उन लोगों ने '' अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें , इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें, यह याजूज माजूज भी मुहम्मद की जेहनी पैदावार हैं. आगे फरमाते हैं की '' ज़ुलक़रनैन ने उन लोबों से कोई माली मदद तो नहीं ली क्यूँकि उनके पास रब का दिया हुवा बहुत था, मगर लोगों कि मेहनत ज़रूर तलब की. बादशाह उनकी मदद यूँ करता है - - - तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको'', जिस कौम ने लोहे की चादर बना ली हो, उसको इनसे उनको मैदान की घेरा बंदी भी आती होगी. ज़ुलक़रनैन उनसे क्या (?) धौंक्वता है,'' यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र देते हैं तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे.'' लोग ताम्बा पिघला सकते हैं, बस कि लोहे की दीवार नहीं खड़ी कर सकते? फिर मुहम्मद क़ुरआनी सारंगी छेड़ देते हैं.
मुसलमानों! ईमान दार मोमिन ही कुरआन की सही तर्जुमानी कर सकता है, ये ज़मीर फरोश ओलिमा सच बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकते. कुरआन में इस फ़र्ज़ी वाकिए और नामुकम्मल गुफ्तुगू में आलिम ने क्या क्या न आरिफाना बातें बघारी हैं कि पढ़ कर दिल मसोसता है. तुम जागो, जग कर मोमिन हो जाओ जो कि इंसान का मुकम्मल मज़हब है, जिसका कोई झूठा पैगम्बर नहीं, कोई चल-घात की बातें नहीं, सीधा सदा एलान कि २+२=४ होता है, न तीन और न पाँच. फूल में खुशबू होती है, इसे किसने पैदा किया? उसकी तलाश में मत जाओ कि तुम्हारी तलाश की रह में कोई मुहम्मद बना हुवा बैठा होगा. बहुत से सवाल, जवाब नहीं रखते, कि वक़्त कब शुरू हुआ था ? कब ख़त्म होगा? सम्तें (दिशाएँ) कहाँ से शुरू होती हैं, कहाँ ख़त्म होंगी? इन सवालों को ज़मीन की दीगर मखलूक की तरह सोचो ही नहीं. फितरत की इस dunya में चार दिन के लिए आए हो,फ़ितरी ज़िन्दगी जी लो.
''और उस रोज़ हम उनकी ऐसी हालत कर देंगे कि वह एक दूसरे में गडमड हो जाएँगे और सूर फूँका जायगा और हम सब को जमा कर लेंगे और दोज़ख को उस रोज़ काफ़िरों के सामने पेश करेगे और वह अपने ख़याल में हैं कि अच्छा काम कर रहे हैं, ये लोग हैं जो कि रब की आयातों का और उस से मिलने का इंकार कर रहे हैं इनके सारे काम ग़ारत हो जाएँगे क़यामत के रोज़. हम इनका ज़रा भी वज़न न कायम करेंगे. यानी दोज़ख इस सबब से कि उन्हों ने कुफ्र किया था और मेरी आयातों और पैगम्बर का मज़ाक उड़ाया था. आप कह दीजिए कि मेरे रब की बातें लिखने के लिए समन्दर रोशनी हो तोसमन्दर ख़त्म हो जाएगा मगर मेरे रब की बातें ख़त्म न होंगी''
सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(१००-११०)
मुसलमानों! देखो की अपने अल्लाह की शान, अपने बन्दों की हालत वह क्या कर देगा, यह मुहम्मद की ज़ालिमाना फ़ितरत की गम्माज़ी है. क्या तुम को ये शैतान ज़ेहन की साज़िश नहीं मअलूम पड़ती? क्या तुम उस कुदरत को इतना बे रहम समझते हो कि अपने बन्दों में कुफ़्र को गुनाह साबित करके उनके लिए अलग से सज़ा मुक़र्रर करेगा? ज़लज़ला आता है तो काफ़िर और मोमिन को देख कर उनके घर गिराता है ? मुहम्मद इतने बड़े गैर मुंसिफ थे कि काफिरों के नेक अमल को भी खातिर में नहीं लाते. बस कि जब तक उनकी इन पुरगुनाह आयतों को तस्लीम न कर लें. दुन्या की तारिख में इतना बड़ा साजिशी कोई और नहीं हुवा कि इंसानियत को महसूर करके कामयाब हो गया हो. मगर नहीं यह कामयाबी नहीं, झूट भी क्या कभी कामयाब हो सकता है? मकर कभी हक़ीक़त का सामना नहीं कर सकती, मुहम्मद आलमे इंसानियत में बद तरीन मुजरिम हैं. खुदा के लिए अपने आप को और अपनी औलादों को आने वाले वक़्त से बचाओ. अभी सवेरा है , वरना मुहम्मद के किए धरे की सज़ा भुगतने के लिए तैयार रख्खो अपनी नस्लों को. तुमको छूट हैकि मोमिन बन के अपने बुजुर्गों की भूल की तलाफी करो।


जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान
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Monday 28 June 2010

क़ुरआन -सूरह कुहफ़ १८

सूरह कुहफ़ १८


18The Cave



मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी(बमय अलक़ाब)


'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,


हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,


तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


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यह जहन्नुमी आलिमाने-दीन



क़यामत के दिन तमाम इस्लामी ओलिमा और आइमा को चुन चुन कर अल्लाह जब जहन्नम रसीदा कर चुकेगा तो ही उसके बाद दूसरे बड़े गुनाहगारों की सूची-तालिका अपनी हाथ में उठाएगा. यह (तथा कथित धार्मिक विद्वान) टके पर मस्जिद और कौडियों में मन्दिर ढ़ा सकते हैं। ये दरोग़, क़िज़्ब, मिथ्य और झूट के यह मतलाशी, शर और पाखंड के खोजी हुवा करते हैं। इनकी बिरादरी में इनके गढे झूट का जो काट न कर पाए वही सब से बड़ा आलिम होता है। यह इस्लाम के अंतर गत तस्लीम शुदा इल्म के आलिम होते हैं यथार्थ से अपरिचित यानी कूप मंडूक जिसका ईमान से कोई संबंध नहीं होता। लफ्ज़ ईमान पर तो इस्लाम ने कब्जा कर रखा है, ईमान का इस्लामी-करण कर लिया गया है, वगरना इस्लाम का ईमान से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। ईमान धर्म-कांटे का निकला हुवा सच है, इस्लाम किसी अल्प-बुद्धि की बतलाई हुई ऊल-जुलूल बातें हैं, जिसको आँख मूँद कर तस्लीम कर लेना इस्लाम है।
अमरीकी प्रोफेसर सय्यद वकार अहमद हुसैनी कहते हैं "कुरान की 6226 आयातों में से 941 पानी के विज्ञानं और इंजीनयरिंग से संबध हैं, 1400 अर्थ शास्त्र से, जब कि केवल 6 रोजे से हैं और 8 हज से।"
प्रोफेसर हुसैनी का ये सफेद झूट है, या प्रोफ़सर हुसैनी ही फर्ज़ी अमरीकी प्रोफ़सर हैं, जैसा कि ये धूर्त इस्लामी विद्वान् अक्सर ऐसे शिगूफे छोड़ा करते हैं । कुरआन कहता है
"आसमान ज़मीन की ऐसी छत है जो बगैर खंभे के टिका हुआ है. ज़मीन ऐसी है कि जिस में पहाडों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि यह अपनी जगह से हिले-डुले नहीं" और "इंसान उछलते हुए पानी से पैदा हुवा है" क़ुरआन में यह है इंजीनयरिंग और पानी का विज्ञान जैसी बातें। इसी किस्म के ज्ञान (दर अस्ल अज्ञान) से क़ुरआन अटा पडा है जिस पर विश्वास के कारण ही मुस्लिम समाज पिछड़ा हुवा है. मलऊन ओलिमा इन जेहाल्तो में मानेयो-मतलब पिरो रहे हैं. हकीक़त ये है की क़ुरआन और हदीस में इंसानी समाज के लिए बेहद हानि कारक, अंधविश्वास पूर्ण और एक गैरत मंद इंसान के लिए अपमान जनक बातें हैं, जिन्हें यही आलिम उल्टा समझा समझा कर मुस्लिम अवाम को गुमराह किया करते है। अभी पिछले दिनों एन डी टी वी के प्रोग्राम में हिदुस्तान की एक बड़ी इस्लामी जमाअत के दिग्गज और ज़िम्मेदर आलिम महमूद मदनी, जमाअत का प्रतिनिधित्व करते हुए भरी महफ़िल में अवाम की आंखों में धूल झोंक गए। बहस का विषय तसलीमा नसरीन थी। मौलाना तसलीमा की किताब को हवा में लहराते हुए बोले,"तसलीमा लिखती है 'उसने अपने बहू से शादी की " गुस्ताख को देखो हुज़ूर की शान में कैसी बे अदबी कर रही है।" ( मदनी को मालूम नहीं कि अंग्रेज़ी से हिन्दी तर्जुमा में यही भाषा होती है।) आगे कहते है "हुज़ूर की (पैगम्बर मुहम्मद की ) कोई औलादे-नरीना (लड़का) थी ही नही तो बहू कैसे हो सकती है ?" बात टेकनिकल तौर पर सच है मगर पहाड़ से बड़ा झूट, जिसे लाखों दर्शकों के सामने एक शातिर और अय्यार मौलाना बोलकर चला गया और अज्ञात क़ौम ने तालियाँ बजाईं। उसकी हकीक़त का खुलासा देखिए----- किस्से की सच्चाई ये है कि ज़ैद बिन हारसा एक मासूम गोद में उठा लेने के लायक बच्चा हुवा करता था। उस लड़के को बुर्दा फरोश (बच्चे चुराने वाले) पकड़ कर ले गए और मुहम्मद के हाथों बेच दिया। ज़ैद का बाप हारसा बेटे के ग़म में परेशान ज़ारों-क़तार रोता फिरता। एक दिन उसे पता चला कि उसका बेटा मदीने में मुहम्मद के पास है, वह फिरोती की रक़म जिस कदर उससे बन सकी लेकर अपने भाई के साथ,मुहम्मद के पास गया। ज़ैद बाप और चचा को देख कर उनसे लिपट गया। हारसा की दरखास्त पर मोहम्मद ने कहा पहले ज़ैद से तो पूछो कि वह किया चाहता है ? पूछने पर ज़ैद ने बाप के साथ जाने से इनकार कर दिया, तभी बढ़ कर मुहम्मद ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और सब के सामने अल्लाह को गवाह बनाते हुए ज़ैद को अपनी औलाद और ख़ुद को उसका बाप घोषित किया। ज़ैद बड़ा हुवा तो उसकी शादी अपनी कनीज़ ऐमन से कर दी। बाद में दूसरी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से की। ज़ैनब से शादी करने पर कुरैशियों ने एतराज़ भी खड़ा किया कि ज़ैद गुलाम ज़ादा है, इस पर मुहम्मद ने कहा ज़ैद गुलाम ज़ादा नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है। मशहूर सहाबी ओसामा ज़ैद का बेटा है जो मुहम्मद का बहुत प्यारा था. गोद में लिए हुए उम्र के ज़ैद वल्द मुहम्मद एक अदद ओसामा का बाप भी बन गया और मुहम्मद के साथ अपनी बीवी ज़ैनब को लेकर रहता रहा, बहुत से मुहम्मद कालीन सहाबी उसको बिन मुहम्मद मरते दम तक कहते रहे और आज के टिकिया चोर ओलिमा कहते हैं मुहम्मद की कोई औलादे-नरीना ही नहीं थी. सच्चाई इनको अच्छी तरह मालूम है कि वह किस बात की परदा पोशी कर रहे हैं. दर अस्ल गुलाम ज़ैद की पहली पत्नी ऐमन मुहम्मद की उम्र दराज़ सेविका थी ओलिमा उसको पैगम्बर की माँ की तरह बतला कर मसलेहत से काम लेते है. खदीजा मुहम्मद की पहली पत्नी भी ऐमन की हम उम्र मुहम्मद से पन्द्रह साल बड़ी थीं. ज़ैद की जब शादी ऐमन से हुई, वह जिंस लतीफ़ से वाकिफ भी न था. नाम ज़ैद का था काम मुहम्मद का, चलता रहा. इसी रिआयत को लेकर मुहम्मद ने जैनब, अपनी पुरानी आशना के साथ फर्माबरदार पुत्र ज़ैद की शादी कर दी, मगर ज़ैद तब तक बालिग़ हो चुका था . एक दिन, दिन दहाड़े ज़ैद ने देखा कि उसका बाप मुहम्मद उसकी बीवी जैनब के साथ मुंह काला कर रहा है, रंगे हाथों पकड़ जाने के बाद मुहम्मद ने लाख लाख ज़ैद को पटाया कि ऐमन की तरह दोनों का काम चलता रहे मगर ज़ैद नहीं पटा. कुरआन में सूरह अहज़ाब में इस तूफ़ान बद तमीजी की पूरी तफ़सील है मगर आलिमाने-दीन हर ऐब में खूबी गढ़ते नज़र आएंगे. इसके बाद इसी बहू ज़ैनब को मुहम्मद ने बगैर निकाह किए हुए अपनी दुल्हन होने का एलान किया और कहा कि "ज़ैनब का मेरे साथ निकाह सातवें आसमान पर हुवा, अल्लाह ने निकाह पढ़ाया था और फ़रिश्ता जिब्रील ने गवाही दी।" इस दूषित और घृणित घटना में लंबा विस्तार है जिसकी परदा पोशी ओलिमा पूर्व चौदह सौ सालों से कर रहे हैं। इनके पीछे अल्कएदा, जैश, हिजबुल्ला और तालिबान की फोजें हर जगह फैली हुई हैं। "मुहम्मद की कोई औलादे-नारीना नहीं थी" इस झूट का खंडन करने की हिंदो-पाक और बांगला देश के पचास करोड़ आबादी में सिर्फ़ एक औरत तसलीमा नसरीन ने किया जिसका जीना हराम हो गया है।



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आज मैं आप के सामने मुहम्मद द्वारा गढ़ी एक कहानी को पेश कर रहा हूँ जिस में मुहम्मद की हकीकत है कि वह और उनका अल्लाह कितने अधकचरे थे। इसमें देखने क़ि बात ये है क़ि इसके तर्जुमान ने अल्लाह और मुहम्मद क़ि कितनी मदद की है, कहानी को एक बार ब्रेकट में दिए गए लाल रंग को छोड़ कर पढ़िए, दूसरी बार इस के साथ पढ़िए।आप को अंदाज़ा हो जायगा कि इन ओलिमा ने झूट को सच का रूप देने में इस्लाम की कितनी सहायता क़ि है।
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''और(वह वक़्त याद करो) जब मूसा ने अपने नौकर से फ़रमाया कि मैं(इस सफ़र में) बराबर चला जाऊँगा, यहाँ तक कि इस मौके पर पहुँच जाऊँ जहाँ दो दरया आपस में मिले हैं, या(यूं ही) ज़माना-ए दराज़ तक चलता रहूँगा. पास जब (चलते चलते) दोनों के जमा होने के मौके पर पहुँचे, अपनी मछली को दोनों भूल गए और उस (मछली) ने अपनी राह ली और चल दी। फिर जब दोनों (वहां से) आगे बढ़ गए (तो मूसा ने), अपने नौकर से फ़रमाया कि हमारा नाश्ता लाओ हमको तो इस सफ़र में( यानी आज की मंज़िल में) बड़ी तकलीफ पहुंची. (नौकर ने) कहा कि (लीजिए) देखिए (अजीब बात हुई) जब हम उस पत्थर के करीब ठहरे थे सो मैं (उस) मछली (के तज़करे) को भूल गया और मुझको शैतान ही ने भुला दिया, कि मैं इसका ज़िक्र करता और (वह किस्सा ये हुवा कि) उस (मछली)ने (ज़िदा होने के बाद) दरया में अजीब तौर पर अपनी राह ली. (मूसा ने हिकायत सुन कर) फ़रमाया यही वह मौक़ा है जिसकी हम को तलाश थी. सो दोनों अपने क़दमों के निशान देखते हुए उलटे लौटे. सो(वहां पहुँच कर) उन्हों ने हमारे बन्दों में से एक बन्दे (यानी खिज़िर) को पाया जिनको हमने अपनी(ख़ास) रहमत (यानी मक़बूलियत) दी थी और उनको हमने अपने पास से (एक ख़ास तौर का) इल्म सिखलाया था. मूसा ने (उनको सलाम किया और) उन से फ़रमाया कि क्या मैं आप के साथ रह सकता हूँ? इस शर्त से कि जो इल्मे-मुफ़ीद को (मिन जानिब अल्लाह) आप को सिखलाया गया है, इस में से आप मुझको भी सिखला दें.(इन बुज़ुर्ग ने)जवाब दिया आप को मेरे साथ (रह कर मेरे अफाल पर) सब्र न होगा. और (भला) ऐसे उमूर पर कैसे सब्र करेगे जो आप के अहाते-वाकिफ़यत से बाहर हो. (मूसा ने) फ़रमाया आप इंशा अल्लाह हम को साबिर (यानी ज़ाबित) पाएँगे. और मैं किसी बात में आप के खिलाफ हुक्म नहीं करूँगा, (इन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाया (कि अच्छा) अगर आप मेरे साथ रहना चाहते हैं तो (इतना ख़याल रहे कि) फिर मुझ से किसी बात के निसबत कुछ पूछना नहीं, जब तक कि उसके मुतालिक मैं खुद ही इब्तेदाए ज़िक्र न कर दूं . फिर दोनों (किसी तरह) चले, यहाँ तक कि जब कश्ती में सवार हुए तो (इन बुज़ुर्ग ने) इस कश्ती में छेद कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया कि क्या आप ने इस कश्ती में इस लिए छेद किया (होगा) है कि इसके बैठने वालों को गर्क़ करदें? आप ने बड़ी भारी (यानी खतरा की) बात की. (इन बुज़ुर्ग ने) कहा क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया (मुझको याद न रहा था सो) आप मेरी भूल (चूक)पर गिरफ़्त न कीजिए और मेरे इस मुआमले में कुछ ज़्यादा तंगी न डालिए. फिर दोनों (कश्ती से उतर कर आगे) चले, यहाँ तक कि जब एक (कमसिन) लड़के से मिले तो (इन बुज़ुर्ग ने) उसको मर डाला . मूसा (घबरा कर) कहने लगे कि आपने एक बेगुनाह को जान कर मार डाला (और वह भी) बे बदले किसी जान के, बे शक आप ने (ये तो) बड़ी बेजा हरकत की. (उन बुज़ुर्ग ने)फ़रमाया क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ से सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया कि ( खैर अब के और जाने दीजिए) अगर इस (मर्तबा) आप से किसी अम्र के मुतालिक कुछ पूछूं तो आप मुझको अपने साथ न राखिए. बेशक आप मेरी तरफ से उज़र (की इन्तहा) को पहुँच चुके हैं. फिर दोनों (आगे) चले फिर जब एक गाँव वालों पर गुज़र हुवा तो वहां वालों से खाने को माँगा कि (हम मेहमान है) सो उन्हों ने उनकी मेहमानी से इंकार कर दिया. इतने में इनको वहाँ पर एक दीवार मिली जो गिरा ही चाहती थी कि फिर उन बुज़ुर्ग ने उसको (हाथ के इशारे से) सीधा कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया अगर आप चाहते तो इस (काम)पर कुछ उजरत ही ले लेते.(उन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाय कि अब ये वक़्त हमारे और आप के अलहदगी का है ( जैसा कि आपने खुद शर्त की थी) मैं उन चीज़ों की हकीकत आप को बतलाए देता हूँ जिन पर आप से सब्र न हुवा. जो कश्ती थी वह चन्द आदमियों की थी जो (इसके ज़रीए) इस दरया में मेहनत (मजदूरी) करते थे सो मैं ने चाहा कि इसमें ऐब डाल दूं और (वजेह इसकी ये थी कि) इन लोगों के आगे की तरफ़ एक (ज़लिम) बादशाह था जो हर (अच्छी) कश्ती को ज़बरदस्ती पकड़ रहा है. और रहा वह लड़का तो उसके माँ बाप ईमान दार थे सो हमको अंदेशा (यानी तहकीक) हुवा कि ये इन दोनों पर सर कशी और कुफ्र का असर न डाल दे. पस हम को ये मंज़ूर हुवा कि बजाए इसके कि इनका परवर दिगार इनको ऐसी औलाद दे जो पाकीज़गी (यानी दीन) में इस से बेहतर हो और( माँ बाप के साथ) मुहब्बत करने में इस से बेहतर हो. और रही दीवार, सो वह दो यतीम बच्चों की थी जो इस शहर में (रहते) हैं और उस (दीवार) के नीचे उन का कुछ माल मदफून था (जो उनके बाप से मीरास में पहूंचा है) और उनका बाप (जो मर गया) एक नेक आदमी था. सो आप के रब ने अपनी मेहरबानी से चाहा कि वह दोनों अपने जवानी (की उम्र) को पहुँचें और अपना दफीना निकल लें. आपके रब की रहमत से और (ये सारे काम मैं ने ब-अल्हाम इलाही किए हैं इन में से) कोई काम मैं ने अपनी राय से नहीं किया. लीजिए ये है हक़ीक़त इन (बातों) की जिन पर आप से सब्र न हो सका। ''


सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (५९-८२)



इस क़िस्से पर गौर करें ? ? ?मछली गोया परिंदा थी बगैर पर पैर की कहानी - - -


''अपनी मछली को दोनों भूल गए और उस (मछली) ने अपनी राह ली और चल दी''इस्लामी शैतान ने अपना काम गुमराह करने का मछली गुमा कर, कर दिया।''


ब्रेकेट में तर्जुमा निगार मौलाना शौकत अली थानवी द्वारा भरे अलफ़ाज़ हैं जो मुहम्मद की ज़ुबान दानी को मुकम्मल करते है.मुहम्मद के पास इतना भी सलीक़ा न था के ढंग से बात कर पाते, यह तहरीर गवाह है.चोर डाकू नहीं बल्कि - - -


'' आगे की तरफ़ एक (ज़लिम) बादशाह था जो हर (अच्छी) कश्ती को ज़बरदस्ती पकड़ रहा है।


कहानी में उस शख्स का नाम भी नहीं है जो मूसा की रहनुमाई करता है, थानवी ने अपनी तरफ से (यानी खिज़िर) जोड़ कर अल्लाह की मदद कर दिया है।


मूसा की रहनुमाई करने वाले की हरकत गौर तलब है कि अंदेशा के तहत लड़के का खून कर दिया, थानवी को इसे ईश वाणी कर देने में कोई परहेज़ नहीं, अल्लाह के गुरू जो ठहरे. अंदेशा - - -


(यानी तहकीक) इस तरह अल्लाह की इस्लाह किया है.चोर डाकू नहीं बल्कि - - - '' आगे की तरफ़ एक (ज़लिम) बादशाह था जो हर (अच्छी) कश्ती को ज़बरदस्ती पकड़ रहा है।


बोसीदा दीवार जो गिर रही है को हाथ से रोक दिया और वह रुक भी गई, यही नहीं बच्चों के बड़े होंने तक रुकी रहेगी और गड़े दाफीने का पता भी बतलाएगी। मुहम्मद की अक़ली उड़ान कितनी सतही थी।


मुसालमानों! बूढी दादी की कहानियों में तो कुछ दम होता था कि बच्चे कान लगा कर सुनते थे, मुहम्मद के क़िस्से गोई में तो इतना भी दम नहीं जो तुम अपनी इबादत में भुनभुनाते हो।


जागो मोमिन जगा रहा है जिसे तुम्हारी फ़िक्र है कि तुम्हारे ऊपर इस्लामी अज़ाब के बादल मंडरा रहे हैं. काल कोठरी से बहार निकलो नई फ़िज़ा तुम्हारा इंतज़ार कर रही है, तुम्हारे भीतर जो अल्लाह का खौफ है वैसा कोई अल्लाल नहीं है, वह मुहम्मदी शैतान है. अल्लाह अगर है तो तुम्हारे बाप की तरह होगा, जो चाहता है कि उसकी औलादें इल्म जदीद को हासिल करके डाक्टर, इंजीनियर और साइंटिस्ट बनें और उसकीराह में इस्लाम बाधक है।



जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान


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ज़माना गवाह है - - -



The fabricated Alexander the Great said, Qur'an 18:96 "'Bring me (blocks) of iron.' then, when he had filled up the gap between the two mountainsides, he said, 'Blow.' Then when he had made them (red) as fire [by blowing on an iron wall], he said: 'Bring me molten lead-copper-brass to pour over them. Thus Gog and Magog were made powerless to scale it or dig a hole in it. (Dhu'l-Qarnain) said: 'This is a mercy from my Lord. But when the promise of my Lord comes to pass, He will make it into dust; and the promise of my Lord is ever true.' On that day (the day of Gog and Magog will come out) We shall leave them to surge like waves on one another: the trumpet will be blown, and We shall collect them (the creatures) all together in one gathering in conflict. And We shall present Hell that day for disbelievers to see, all spread out in plain view.... Verily We have prepared Hell for the hospitality of the Infidels; Hell is for the disbeliever's entertainment." At least Allah hasn't lost his touch. He remains the most devilishly demonic deity ever devised. But then I suppose a god who would call hell "entertainment," is a perfect match for a warlord who entertains himself torturing men and raping women.Qur'an 18:103 "Say: 'Shall we inform you of who will be the greatest losers? ...Those who reject my Revelations... Hell is their reward, because they rejected Islam, and took My proofs, verses, and lessons, and those of My Messengers by way of jest in mockery.'" In all fairness, it's pretty hard not to mock such foolishness.There is a Magog Hadith, too: Bukhari:V9B88N249 "One day Allah's Apostle entered upon her in a state of fear and said, 'None has the right to be worshipped but Allah! Woe to the Arabs from the Great evil that has approached (them). Today a hole has been opened in the dam [Alexander's iron barrier between the mountains] of Gog and Magog like this.' The Prophet made a circle with his index finger and thumb. Zainab added: I said, 'O Allah's Apostle! Shall we be destroyed though there will be righteous people among us.' The Prophet said, 'Yes, if the (number) of evil (persons) increases.'" Somebody had a very rich imagination - one might even call it hallucinogenic.Enough with the fairytale. According to the Bible, Islam will lead to the destruction of much of the world. I share this with you so that you might appreciate the cost of tolerating the terrorist dogma rather than freeing Muslims from it. And equally important, I want you to be prepared for what is to come, because while it will happen, millions can be saved from it.I know the future because - unlike Muhammad - Isaiah, Daniel, Ezekiel, and John were real prophets. By putting their predictions together, one can reasonably deduce that six thousand years after Adam and Eve made the wrong choice, Yahweh will put an end to man's destructive deceptions, false prophets, ignorance, and sin. He wants to establish a new world order, one without deceit, disease, death, or damnation.Yet, true to his character and purpose, he wants the final choice to remain ours, not his. Yahweh simply removes his spirit from the earth, enabling those who remain to plot their own course. Totally separated from God, the prophets predict, humanity will choose poorly. The world will plummet into chaos.The story of Islam's ultimate demise is but one of many tragic tales that collectively make up what the Bible calls the "Tribulation" - the last seven years of man's rule on planet earth। Isaiah, in addition to writing about the arrival and nature of the Messiah, was inspired by Yahweh to foretell how Lucifer would form Islam. Then he predicted the events that would lead the Nation of Islam to attack Israel, engulfing the world in war. Daniel explains that it will begin, as did World War II, with a "peace treaty." Foolishly, the world trusts nations whose official god and prophet order them to disavow such oaths. As a result, a third of the earth's surface is scorched (Revelation 8:7), a quarter of its people die (Revelation 6:8) - including the annihilation of five out of every six Muslims (Ezekiel 39:2). I want to provide you with an overview of this battle so that you might be saved from its devastation.
Prophet of Doom