tag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post6675546567022921033..comments2023-06-01T08:50:29.624-07:00Comments on <b>हर्फ़-ए-ग़लत</b> <sub> (उम्मी का कलाम)</sub>: क़ुरआन - सूरह इंफाल --८Mominhttp://www.blogger.com/profile/13659678910897680043noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-87248462590686021142010-02-09T09:37:04.021-08:002010-02-09T09:37:04.021-08:00आप जैसे एक नहीं करोड़ों इस्लाम दुश्मन पड़ॆ हैं आज...आप जैसे एक नहीं करोड़ों इस्लाम दुश्मन पड़ॆ हैं आज से नहीं 1400 सालों से यही काम कर रहे हैं जो आज आप कर रहें है वो ख़ुद तो फ़ना हो गये पर इस्लाम तरक़्क़ी करता गया। असल में आप जैसे लोगों को यह बात हजम नहीं होती की दुनिया के तमाम धर्म अपने मूल स्वरूप से हट्कर आज विकृत रूप में मौजूद हैं मगर इस्लाम कैसे वही असली रूप में मौजूद है। यही इस बात का सबूत है की इसकी निगहबानी ख़ुद दुनिया का पालनहार कर रहा है। अगर यह मुहम्मद का स्वनिर्मित धर्म होता तो 100-150 सालों बाद गायब हो जाता या उससे भी कम। मगर जिसे समझना ही न हो उसे कौन समझाए।intezarhttps://www.blogger.com/profile/10947231295127194400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-26343979852591891072010-02-08T03:27:01.615-08:002010-02-08T03:27:01.615-08:00उस युग के लिये कुरआन में कही गयी बातें इस युग में ...उस युग के लिये कुरआन में कही गयी बातें इस युग में दे रहे हो, वह भी मामा के अनुवाद से, इस युग और भविष्य के लिये कही गयी बातों पर आओ<br /><br />signature:<br />विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि <br />(इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है? <br />antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog) <a href="http://antimawtar.blogspot.com/" rel="nofollow">डायरेक्ट लिंक</a><br /><br /><a href="http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html" rel="nofollow">अल्लाह का <br />चैलेंज पूरी मानव-जाति को</a><br /><a href="http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html" rel="nofollow">अल्लाह का <br />चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता</a><br /><a href="http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/blog-post.html" rel="nofollow">अल्लाह का <br />चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं</a><br /><a href="http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/5-7.html" rel="nofollow">अल्लाह का <br />चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार</a><br /><a href="http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/4-7.html" rel="nofollow">अल्लाह का <br />चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में</a><br /><a href="http://http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/2-7.html" rel="nofollow">अल्लाह <br />का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी</a><br /><br />छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें<br />islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog) <br /><a href="http://islaminhindi.blogspot.com/" rel="nofollow">डायरेक्ट लिंक</a>Mohammed Umar Kairanvihttps://www.blogger.com/profile/06899446414856525462noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-82543896002102350102010-02-06T07:33:13.442-08:002010-02-06T07:33:13.442-08:00आप की लगन अद्भुत है।
उजाले की खातिर उछाले कितने ...आप की लगन अद्भुत है।<br /><br /><br />उजाले की खातिर उछाले कितने ही पत्थर<br /><br />जाने कैसा आसमाँ है, सुराख ही नहीं होता।<br /><br />चरैवेति। कठमग़जी कभी तो द्रवित होगी। <br />तार्किक ढंग से सोचेगी।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-13431712942737408082010-02-05T08:24:12.102-08:002010-02-05T08:24:12.102-08:00सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है-
फिर उसने (कुरआन को)...सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है-<br />फिर उसने (कुरआन को) देखा। फिर (घृणा से) मुँह मोड़ा और फिर अहंकार किया। फिर बोला,“ यह एक जादू है जो पहले से चला आ रहा है, यह मनुष्य का वचन (वाणी है)”<br />‘मैं, शीघ्र ही उसे ‘सक़र’ (नर्क) में झोंक दूँगा, और तुम्हें क्या मालूम कि सक़र क्या है?<br />वह न बाक़ी रखेगी, और न छोड़ेगी। वह शरीर को बिगाड़ देने वाली है। उस पर 19 (देवदूत) नियुक्त हैं। और ‘हमने’ उस अग्नि के रखवाले केवल देवदूत (फरिश्ते) बनाए हैं, और ‘हमने’ उनकी संख्या को इनकार करने वालों के लिए मुसीबत और आज़माइश बनाकर रखा है। ताकि पूर्व ग्रन्थ वालों को (कुरआन की सत्यता का) विश्वास हो जाए और आस्तिक किसी शक में न पडें। (पवित्र कुरआन 29:21:31)<br /><br />मनुष्य का मार्ग और धर्म<br />पालनहार प्रभु ने मनुष्य की रचना दुख भोगने के लिए नहीं की है। दुख तो मनुष्य तब भोगता है जब वह ‘मार्ग’ से विचलित हो जाता है। मार्ग पर चलना ही मनुष्य का कत्र्तव्य और धर्म है। मार्ग से हटना अज्ञान और अधर्म है जो सारे दूखों का मूल है।<br /><br />पालनहार प्रभु ने अपनी दया से मनुष्य की रचना की उसे ‘मार्ग’ दिखाया ताकि वह निरन्तर ज्ञान के द्वारा विकास और आनन्द के सोपान तय करता हुआ उस पद को प्राप्त कर ले जहाँ रोग,शोक, भय और मृत्यु की परछाइयाँ तक उसे न छू सकें। मार्ग सरल है, धर्म स्वाभाविक है। इसके लिए अप्राकृतिक और कष्टदायक साधनाओं को करने की नहीं बल्कि उन्हें छोड़ने की ज़रूरत है।<br />ईश्वर प्राप्ति सरल है<br /><br />ईश्वर सबको सर्वत्र उपलब्ध है। केवल उसके बोध और स्मृति की ज़रूरत है। पवित्र कुरआन इनसान की हर ज़रूरत को पूरा करता है। इसकी शिक्षाएं स्पष्ट,सरल हैं और वर्तमान काल में आसानी से उनका पालन हो सकता है। पवित्र कुरआन की रचना किसी मनुष्य के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। इसके विषयों की व्यापकता और प्रामाणिकता देखकर कोई भी व्यक्ति आसानी से यह जान सकता है कि इसका एक-एक शब्द सत्य है।<br /><br />आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के बाद भी पवित्र कुरआन में वर्णित कोई भी तथ्य गलत नहीं पाया गया बल्कि उनकी सत्यता ही प्रमाणित हुई है। कुरआन की शब्द योजना में छिपी गणितीय योजना भी उसकी सत्यता का एक ऐसा अकाट्य प्रमाण है जिसे कोई भी व्यक्ति जाँच परख सकता है।<br /><br /><br />प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग<br />ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।<br /><br />‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’ (पवित्र कुरआन 1:5-6)<br /><br />ईश्वर की उपासना की सही रीति<br /><br />मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा? वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?<br /><br />सर्मपण से होता है दुखों का अन्त<br /><br />ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह आपके दुखों का अन्त करने की शक्ति रखता है। अपने जीवन की बागडोर उसे सौंपकर तो देखिये। पूर्वाग्रह,द्वेष और संकीर्णता के कारण सत्य का इनकार करके कष्ट भोगना उचित नहीं है। उठिये,जागिये और ईश्वर का वरदान पाने के लिए उसकी सुरक्षित वाणी पवित्र कुरआन का स्वागत कीजिए।<br /><br /><br />भारत को शान्त समृद्ध और विश्व गुरू बनाने का उपाय भी यही है।<br /><br /><br />क्या कोई भी आदमी दुःख, पाप और निराशा से मुक्ति के लिये इससे ज़्यादा बेहतर, सरल और ईश्वर की ओर से अवतरित किसी मार्ग या ग्रन्थ के बारे में मानवता को बता सकता है? <br />please see <br />http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/02/quran-math-ii.htmlDR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com