tag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post6804536778188702870..comments2023-06-01T08:50:29.624-07:00Comments on <b>हर्फ़-ए-ग़लत</b> <sub> (उम्मी का कलाम)</sub>: क़ुरआन -सूरह कुहफ़ १८Mominhttp://www.blogger.com/profile/13659678910897680043noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-15131286061136973812017-06-14T10:31:51.700-07:002017-06-14T10:31:51.700-07:00http://www.google.co.in/url?q=https://m.facebook.c...http://www.google.co.in/url?q=https://m.facebook.com/IslamAndMslims/videos/500060443475105/&sa=U&ved=0ahUKEwjm1L6l5L3UAhXLGD4KHSjTD5wQFggXMAU&usg=AFQjCNEaXTCFjyjNok6pwaoBHKI6-zV3sQ<br /><br /><br /><br />agar tum us samandar KO dekhana chate ho jos ka jikar hajarat musa alaihi wssalam ke wakiyeme aaya hai to upar ki link dekh lo<br /><br />or ajar tum hajarat musa alaihi wssalam KO or Quran ki aayat KO jata zuta sabit karke dikhao <br /><br />ky tum bhul gaye firaun ki lash KO <br /><br />jiska jikar bibel me bhi hai <br /><br />agar sach janana change ho to ye link bhi dekh lo <br /><br />firaun story - YouTube<br /><br /><br />Hindi transliterated Bible - ओल्ड टैस्टमैंट - Old Testament <br />bhi dhekh lo or<br /><br /><br />ji ke bare me Quran me aayat hai<br /><br /><br />♥ अल कुरान :<br /><br />“इसलिए हम तेरे जिस्म को बचा लेंगे, ताकि तू अपने बाद वालों के लिए एक निशानी हो जाए ! बेशक बहुत से लोग हमारी निशानियों की तरफ से लापरवाह रहते हैं. “<br />– [सुरह: यूनुस:आयत-92] –<br /><br /><br /><br /><br />or agar tuze ye bat bhi zut lagti hai to tune maa ki bat q kar sach Mani ke tera bbap falah aadmi hai jab ke tu us samay itna samaz dar nahi tha jitana ab haiAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/18136922946109526035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-39771653806229529902016-08-06T10:52:19.463-07:002016-08-06T10:52:19.463-07:00Please Have an Answer for 3 Question for whole the...Please Have an Answer for 3 Question for whole the Life, 1. Who born you ? 2. Why have you borned (What is your job) ? 3. For which cause you are borned, how can you do the job ?<br />dwnhttps://www.blogger.com/profile/04359317735894713941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-24059887550226343732016-08-06T10:51:55.970-07:002016-08-06T10:51:55.970-07:00Please Have an Answer for 3 Question for whole the...Please Have an Answer for 3 Question for whole the Life, 1. Who born you ? 2. Why have you borned (What is your job) ? 3. For which cause you are borned, how can you do the job ?<br />dwnhttps://www.blogger.com/profile/04359317735894713941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-43253227954123687432012-04-21T04:20:05.373-07:002012-04-21T04:20:05.373-07:00This comment has been removed by the author.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-12272259443462026562012-01-08T09:12:01.138-08:002012-01-08T09:12:01.138-08:00Allah says in the quran at not less than diffrent ...Allah says in the quran at not less than diffrent three places that: It is He who has sent His Messenger with guidance and the religion of truth to manifest it over all religion, although they who associate others with Allah dislike it.(9:33,48:28,61:9)<br />And for your knowledge brother this is what happening in the world.The fastest growing religion is Islam in the world according to the world's stats..<br />regarding what you have written ..i can only say that you have read the quran with the intention of insulting our beloved prophet muhammed and islam..so shaitan has put these thoughts into your mind..i pray to Allah that he show his straight path to you and guide you otherwise you will be thrown into the hell fire for your words that u have written about THE GLORIOUS QURAN..Shaikh Danishhttps://www.blogger.com/profile/02840842138076535242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-42786005594063628272011-05-01T03:05:15.630-07:002011-05-01T03:05:15.630-07:00ये क्या पागलपन है एक तो जाकिर नाइक जिसके दिमाग में...ये क्या पागलपन है एक तो जाकिर नाइक जिसके दिमाग में भूसा भरा है और ये दूसरा असरफअली है जिनका भी कोई स्क्रू ढीला लगता है एक को संस्कृत ठीक से नहीं आती और एक को अरबी का मतलब करना नहीं आता दोनों ही अपने अपने नाम का प्रचार करने में लगे है में कोई इस्लाम या मुसलमानों का विरोधी नहीं हूँ लेकिन ऐसे लोगो का विरोधी हूँ जो की किसी भी धर्म ग्रन्थ का अपमान करके अपने आप को बड़ा चतुर और समजदार बताते है इन लोगो की आदत होती है ये किसी भी धर्म ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया करते लेकिन ये धर्म ग्रन्थ इस लिए पढ़ते है की उसमे से कुछ ऐसा मसाले दार मतलब निकला जाये कि दुनिया अचंभित हो जाये ये सब दया के पात्र है और इनका साथ देनेवाले विकृत मनो विचार वाले कहलायेंगे (अगर जाकिर नाइक को संस्कृत और असरफ को अरबी उर्दू सीखनी है तो में सिखाने के लिया तैयार हु बिलकुल निःशुल्क ) चाणक्य के अनुसार मूर्खो से कोई भी सम्बन्ध रखने वाला अंत में संकट ही पाता है तो असरफ अली और जाकिर नाइक ये दोनों को एक दुसरे पर कीचड़ उछालना है तो उछाले लेकिन इनके पास खड़े रह कर अपने ऊपर भी किचल उचालेंगा ये तय है तो इनसे दूर ही रहा जाये यही बुध्धिमानी है असरफ अली मुस्लिम हो कर मुस्लिम के उपास्यो को निचा दिखा रहा है तो क्या ये दुसरे धमो की इज्जत करेगा ? इनसे पूछो की फिर किसकी उपासना की जाये? क्या तुम लोगो की ? इससे पूछना भी बेकार होगा की, तुम्हारे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बारेमे क्या विचार है? या तो गरीब नवाज़ के बारे में क्या विचार है? विवेकानंद के बारेमे या तो सूफी संत निजामुदीन के बारेमे? कबीर, तुलसीदास, मीराबाई के बारे में ?क्यों की ये दोनों बकवास ही करने वाले है. मैं तो हिन्दू, जैन, बुद्ध, सिख, इसाई और सबको इनसे दूर ही रहने की सलाह देता हूँ . - श्री दासअवतारAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-69150702802498643812010-07-18T05:46:53.253-07:002010-07-18T05:46:53.253-07:00ज़ीशान साहब,
आप अक्सर आकृमकता को जस्टिफ़ाय करने के ...ज़ीशान साहब,<br /><br />आप अक्सर आकृमकता को जस्टिफ़ाय करने के लिये यही उदाह्रण पेश करते है। पता है क्यों?,क्योंकि आज के युग में सीधे आकृमण को सही नहिं कहा जाता,अतः आप स्वबचाव का आश्रय लेना चाहते है। और आपकी मुश्किल यह है कि धेर्य,समता,क्षमा,सहनशीलता आदि के मायने आप विचार तक नहिं पाते।<br />आयत[60 : 8]वस्तुतः युद्ध विराम के बाद आपको कैसा व्यवहार करना है,उपदेशीत करती है। और अल्लाह का यह कथन "इन्साफ़ से पेश आने से अल्लाह तुम्हें मना नहीं करता" स्वयं दर्शाता है कि पहले कहीं कुछ 'मना' भी कहा गया है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-49292251817793139812010-07-13T22:40:05.195-07:002010-07-13T22:40:05.195-07:00@सुज्ञ जी
अगर युद्धनीति मात्र क्षत्रियों के लिए ह...@सुज्ञ जी <br />अगर युद्धनीति मात्र क्षत्रियों के लिए है, तो मुझे बताइये अगर कोई दुश्मन आपकी किसी बस्ती पर हमला करता है और उस बस्ती में कोई क्षत्रिय नहीं है तो क्या बाकी लोग मूक दर्शक बने अपने और अपने घरवालों को लुटता हुआ देखते रहेंगे? <br />अब ये बताइये की इसमें युद्ध विराम की कौन सी शर्त है:-<br />[60 : 8] जो लोग तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें घरों से निकाले उन लोगों के साथ एहसान करने और उनके साथ इन्साफ़ से पेश आने से अल्लाह तुम्हें मना नहीं करता बेशक अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-8244627091687420572010-07-13T22:23:19.502-07:002010-07-13T22:23:19.502-07:00This comment has been removed by the author.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-66896685047738361662010-07-12T01:05:34.362-07:002010-07-12T01:05:34.362-07:00ज़ीशान साहब,
हां,मैने कहा,धर्मयुक्त युद्ध' से य...ज़ीशान साहब,<br />हां,मैने कहा,धर्मयुक्त युद्ध' से यहां तात्पर्य 'जेहाद'जैसा नहिं, बल्कि ऐसा युद्ध जो नितीनियमों से कर्तव्यों के लिये लडा जाय,।<br />फ़िर से दोहराता हुं,वह उपदेश ही मात्र क्षत्रियों के लिये था,समस्त मानवता के लिये नहिं।<br />और आपके जेहाद को सामान्य युद्ध से नहिं धर्म से जोडा जाता है।<br />जैसे गीता एक क्षत्रियों को सम्बोधित युद्धनीति है,वैसे ही कुरआन भी पूर्ण युद्धनीति ही है,हम यही तो कहना चाह्ते है। इसलिये आपका यह 'अमन का पैगाम' वस्तुतः युद्ध विराम व युद्धशान्ति है। और यह 'युद्ध विराम'तब तक है जब तक कथित शर्तें मान नहिं ली जाती।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-9364741948005123892010-07-08T08:54:53.528-07:002010-07-08T08:54:53.528-07:00@सुज्ञ जी,
आपने कहा की 'धर्मयुक्त युद्ध' स...@सुज्ञ जी,<br />आपने कहा की 'धर्मयुक्त युद्ध' से यहां तात्पर्य 'जेहाद'जैसा नहिं, बल्कि ऐसा युद्ध जो नितीनियमों से कर्तव्यों के लिये लडा जाय,।<br />तो फिर जेहाद को आप क्या समझ रहे हैं? जेहाद भी कर्तव्यों की पूर्ती के लिए ही तो होता है.<br />कभी कभी शान्ति स्थापित करने के लिए भी युद्ध करना पड़ता है. निश्चित रूप से शान्ति सभी को पसंद होती है. लेकिन अगर कोई आपके घर में घुसकर आपके घरवालों के साथ दुर्व्यवहार करे, तो क्या उस समय आप शान्ति की दुहाई देंगे? गीता और कुरआन के युद्ध सम्बन्धी उपदेश ऐसे ही वक़्त के लिए हैं. लेकिन अगर अधूरा कुरआन पढ़कर हम हर समय तलवार लेकर खड़े हो जाएँ और सबको मारने काटने लगें, तो हमसे बड़ा बेवक़ूफ़ कोई नहीं.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-31817849284701146662010-07-07T05:55:02.630-07:002010-07-07T05:55:02.630-07:00ज़ीशान साहब,
अवश्य श्रीमद्भागवत गीता के इस कानून को...ज़ीशान साहब,<br />अवश्य श्रीमद्भागवत गीता के इस कानून को लागू कर देंगे।<br />आप अभी तक जानते ही नहीं क्षत्रियधर्म क्या होता है,केवल धर्म शब्द देखकर उतावले हो जाते है।<br />आज देश की सेना क्षत्रिय है, और उसके लिये आज भी यही धर्म है।<br />अर्थात तुझे भय नहीं करना चाहिए. क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है.'धर्मयुक्त युद्ध'<br />से यहां तात्पर्य 'जेहाद'जैसा नहिं, बल्कि ऐसा युद्ध जो नितीनियमों से कर्तव्यों के लिये लडा जाय, जो क्षत्रियोचित हो।<br />खैर, मैं गीता का बचाव नहिं कर रहा,उसमें भी कई हिंसात्मक उपदेश हो सकते है,जरूरी नहिं हम अन्धे बनकर गीता का हुबहू पालन करने लगें। पर गीता का उपरोक्त कथन सही है,क्षत्रिय को अपने क्षत्रियधर्म का पालन करना श्रेयकर है।<br />भारतीय दर्शन मानवों और पूरी जीवसृष्टि के लिये ज्ञानियों द्वारा कहा गया है। ईश्वर द्वारा भेजा गया नहिं,ईश्वर को समझा गया है। ये देव-दानव आपस में लड पडे तो दर्शन क्या करे,इन लडाईयों को अनुकरणिय धर्म नहिं कहा है,लेकिन इतिहास के रूप में शास्त्रों में संजोया गया है। देव और ईश्वर अलग अलग है,कहीं कहीं तो देवताओं को मानवों से कमतर आंका गया है,धर्म-कर्म में मानव ही समर्थ है।<br />देवताओं में मान,माया,लोभ,क्रोध जैसी बुराईयां पायी जाती है,परन्तु देवों का अपमान करना पाप है। भले आप गुणगान न कर सकें।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-71862139735126406562010-07-07T04:30:24.135-07:002010-07-07T04:30:24.135-07:00@सुज्ञ जी,
दुनिया के हर कानून में IF-Then होता है....@सुज्ञ जी,<br />दुनिया के हर कानून में IF-Then होता है. किसी को फांसी पर तभी चढ़ाया जाता है जब उसने उस तरह का कोई जुर्म किया हो. क्या आप बिना IF-Then श्रीमद्भागवत गीता के इस कानून को लागू कर देंगे?<br />(अध्याय २ श्लोक ३१, ३२, ३३) तथा अपने धर्म को देखकर भी तू भय करने योग्य नहीं है. अर्थात तुझे भय नहीं करना चाहिए. क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है.<br />अपने आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार रूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान क्षत्रिय लोग ही पाते हैं.<br />किन्तु यदि तू इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा.<br />(सूरे तौबा की आयतें भी कुछ इसी से मिलती जुलती हैं.)<br />आप बताएं की भारतीय दर्शनों में लाख शान्ति हो, इसके बावजूद देवों और असुरों के बीच संग्राम क्यों हुए? रामायण और महाभारत के युद्ध क्यों हुए?<br />कुरआन की सूरे तौबा युद्धकाल की बात कर रही है. जबकि युद्ध ज़ोरों पर है, इसके बावजूद अगर शत्रु पनाह मांगता है तो उसे पनाह देने और सुरक्षित उसके घर पहुंचाने की बात आयत नं. 9 कर रही है. इससे ज्यादा अमन का पैगाम और क्या हो सकता है?zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-3197856275621766632010-07-07T04:07:26.915-07:002010-07-07T04:07:26.915-07:00This comment has been removed by a blog administrator.सच का बोलबाला, झूठ का मुँह कालाhttps://www.blogger.com/profile/15332158219978204141noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-50615229300844182772010-07-07T01:31:25.111-07:002010-07-07T01:31:25.111-07:00ज़ीशान साहब,
फ़ैसला तो हमें अन्तर आत्मा की गवाही से...ज़ीशान साहब,<br /><br />फ़ैसला तो हमें अन्तर आत्मा की गवाही से ही मन्जूर है।<br />हमारी व आपकी मूल दार्शनिक मान्यता में ही गज़ब का अंतर है।<br />हम भले कितनी ही वकालत करलें कि सभी धर्म समान है,सभी में अच्छे उपदेश दिये गये है। पर में निश्चय के साथ कह सकता हुं,समानता जैसा कुछ नहिं होता, जब मूल ध्येय ही विरोधार्थी हो।<br />या इतने अस्प्ष्ठ कि उन्हे मनमर्ज़ी तोडा मरोडा जा सके।<br />[तौबा आयत नं 9] को ही 'अमन का पैगाम' के लिये प्रमुखता से कोट करते हो, और यहां शर्तों पर ही शन्ति है।<br />और समस्त भारतिय दर्शनों में किसी भी श्रेष्ठ गुणों को शर्तों के साथ नहीं अपनाया जाता। यहां तो क्षमा करने वाला,क्षमा से पहले सामने वाले के दुर्गुण भी गिनाये तो उसे सच्ची क्षमा नहिं माना जाता।<br />आपने सही कहा,इस्लाम में राजनैतिक कानूनों की तरह IF - Then होता है.और भारतिय दर्शनों में शान्ति,तो फ़िर सर्वांग,सम्पूर्ण शान्ति। अन्तिम उद्देश्य आत्मा के अक्षय सुख का होता है।<br />अतः समस्या "मूल में ही भूल" की है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-53530100514531134372010-07-06T22:53:00.461-07:002010-07-06T22:53:00.461-07:00@सुज्ञ जी,
मोमिन मियाँ का कहना है की उपरोक्त आयतें...@सुज्ञ जी,<br />मोमिन मियाँ का कहना है की उपरोक्त आयतें जो मैंने बताईं वह मुसलमानों से मुसलमानों के लिए हैं. आप ईमानदारी से बताएं क्या यह आयतें मुसलमानों से मुसलमानों के लिए हैं?<br />[60 : 8 &9] जो लोग तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें घरों से निकाले उन लोगों के साथ एहसान करने और उनके साथ इन्साफ़ से पेश आने से अल्लाह तुम्हें मना नहीं करता बेशक अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है. अल्लाह तो बस उन लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है जिन्होने तुमसे दीन के बारे में लड़ाई की और तुमको तुम्हारे घरों से निकाल बाहर किया और तुम्हारे निकालने में (औरों की) मदद की और जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे वह लोग ज़ालिम हैं <br />[4 : 80] जिसने रसूल की इताअत की तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ खयाल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है<br />[6 : 107] और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके ज़िम्मेदार हो.<br />इसका मतलब साफ़ है की अगर कोई तुमसे झगडा नहीं कर रहा है तो तुम्हें उससे झगड़ने या उसे तकलीफ पहुंचाने का कोई हक नहीं. मोमिन मियाँ ने दीने इस्लाम लगता है किसी तालिबानी मुल्ला से पढ़ा है, वरना वह ऐसी बातें हरगिज़ न कहते. <br />अब बात करते हैं सुलह की जो मोहम्मद (स.अ.) ने मक्के के काफिरों से की थी, उस सुलह के नियमों की अवहेलना मक्के वाले खुले आम कर रहे थे और मुसलमानों को परेशान कर रहे थे. उसके बाद सूरे तौबा नाजिल हुई. <b>हर कानून में IF - Then होता है.</b> मोमिन मियाँ इस सूरे की 1, 5, 23 आयत तो पढ़ रहे हैं लेकिन आयत नं 12, 13 और 6 पढना भूल गए या टाल गए,<br />[तौबा आयत नं 12] और अगर ये लोग एहद कर चुकने के बाद अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुमको ताना दें तो तुम कुफ्र के सरवर आवारा लोगों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी शरारत से) बाज़ आएँ.<br />[तौबा आयत नं 13] (मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला और रसूल को निकाल बाहर करना (अपने दिल में) ठान लिया था और तुमसे पहले छेड़ भी उन्होंने ही शुरू की थी क्या तुम उनसे डरते हो तो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो अल्लाह उनसे कहीं बढ़ कर तुम्हारे डरने के क़ाबिल है.<br /><b>यानी अगर कोई तुमसे लड़ता है तो ज़रूर लड़ो. क्या सेल्फ डिफेंस भारतीय कानून में नहीं है?</b><br />इसी सूरे की देखिये आयत अमन पसंद गैर मुस्लिमों के बारे में क्या कहती है<br /><b><i>[तौबा आयत नं 9]<br />और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं.</i></b><br />सुज्ञ जी, अब फैसला आपके हाथ में है.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-40991301189341620422010-07-06T11:56:13.020-07:002010-07-06T11:56:13.020-07:00@सुज्ञ जी,
मक्के में कथित काफिरों के निशाने पर आ ...@सुज्ञ जी,<br /><br />मक्के में कथित काफिरों के निशाने पर आ जाने के वक़्त मुहम्मद ने काफिरों से सुलह करके मुआहिदा किया था तब कुरआन की यह आयत ''लकुम दीनाकुम वाले यदीन'' मुहम्मद के मुंह में आई जिसका मतलब हुआ ''तुहारा दीन तुम्हारे लिए है, हमारा हमारे लिए है .''मगर फफिरों के नारगे से निकलते ही सुलह किए हुए मुआहिदा को तोड़ दिया और सूरह तौबा नाज़िल कर दिया जो अल्लाह के नाम से शुरू नहीं होती कि इसमें मुआहिदा शिकनी है, बाक़ी तमाम ११३ सूरह ''बिस्मिल्ला हिररहमा निररहीम'' से शुरू हुई हैं, इसे छोड़ कर . सूरह तौबा कथित आयत से तौबा है जिसको मुल्ला हर जगह उछाला करते हैं, ऐसे ही आयतें हैं जिनका ज़िक्र मियाँ ज़ीशान कर रहे हैं वह सब आपस में मुसलामानों से मुसलामानोंके लिए हैं.<br />पहले भी मैं ने अल्लाह की आयतें बयान की हैं फिर भी सूरह तौबा में अल्लाह कहता है - - -<br />''अल्लाह की तरफ से और उसके रसूल की तरफ से उन मुशरिकीन के अह्द से दस्त बरदारी है, जिन से तुमने अह्द कर रखा था.''<br />सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१)<br />''सो जब अश्हुर-हुर्म गुज़र जाएँ इन मुशरिकीन को जहाँ पाओ मारो और पकड़ो और बांधो और दाँव घात के मौकों पर ताक लगा कर बैठो. फिर अगर तौबा करलें, नमाज़ पढने लगें और ज़कात देने लगें तो इन का रास्ता छोड़ दो,'''<br />सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५)<br />''ऐ ईमान वालो! अपने बापों को, अपने भाइयों को अपना रफ़ीक़ मत बनाओ अगर वह कुफ़्र को बमुक़बिला ईमान अज़ीज़ रखें और तुम में से जो शख्स इनके साथ रफ़ाक़त रखेगा, सो ऐसे लोग बड़े नाफ़रमान हैं''<br />सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२३)<br />'' लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुंह से फूँक मार के बुझा दें ,हालाँकि अल्लाह तआला बदून इसके अपने नूर को कमाल तक पहुँचा दे , मानेगा नहीं, गो काफ़िर लोग कैसे ही नाखुश हों.''<br />सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (३२)<br />क्यूंकि - - -<br />''बिला शुबहा अल्लाह तअला ज़बरदस्त हिकमत वाले हैं''<br />सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१०)<br />आज कल मौलानाओं का यही रवय्या है जो मियां जीशान अख्तियार किए हुए हैं और दूसरों को बच्चा समझते हैं.इनके हक में है कि सच्चाई पर आएं .Mominhttps://www.blogger.com/profile/13659678910897680043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-43148781402407989682010-07-06T11:01:07.696-07:002010-07-06T11:01:07.696-07:00ज़ीशान साहब,
स्पष्ठ रूप से मात्र शान्ति की आयत तो न...ज़ीशान साहब,<br />स्पष्ठ रूप से मात्र शान्ति की आयत तो नहिं दिखती,हां अल्लाह चाह्ता नहिं था ज़मीन पर फसाद फैले। शायद बात बात पर लडने वालों को ताक़िद किया है,और शायद वहां यह सामान्य हो।<br />खैर,पर यह आयत बहुत कुछ कह जाती है:<br />"और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं, सबके सब इमान ले आते। तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो? ताकि सबके सब इमानदार हो जाएँ? हालॉकि किसी शख्स को ये इखतियार नहीं कि बगै़र अल्लाह की इजाज़त ईमान ले आए। और जो लोग अक़ल से काम नहीं लेते उन्हीं लेागें पर अल्लाह गन्दगी डाल देता है"[10 : 99&100]सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-875314437206539302010-07-05T23:39:36.107-07:002010-07-05T23:39:36.107-07:00This comment has been removed by the author.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-46378226799263150052010-07-05T23:37:18.514-07:002010-07-05T23:37:18.514-07:00This comment has been removed by the author.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-73377445796436484162010-07-05T23:36:03.573-07:002010-07-05T23:36:03.573-07:00@सुज्ञ जी,
मैंने उदाहरण के लिए कुछ आयतें पेश की थी...@सुज्ञ जी,<br />मैंने उदाहरण के लिए कुछ आयतें पेश की थीं, वरना हैं तो बहुत सी आयतें. जैसे की :<br />[4 : 80] जिसने रसूल की इताअत की तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने रूगरदानी की तो तुम कुछ खयाल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है<br />[6 : 107] और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके ज़िम्मेदार हो<br />[10 : 99&100] और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं सबके सब इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब इमानदार हो जाएँ हालॉकि किसी शख्स को ये इखतियार नहीं कि बगै़र अल्लाह की इजाज़त ईमान ले आए और जो लोग अक़ल से काम नहीं लेते उन्हीं लेागें पर अल्लाह गन्दगी डाल देता है <br />[11 : 28] (नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ<br />[16 : 82] तुम उसकी फरमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (इमान से) मुँह फेरे तो तुम्हारा फर्ज़ सिर्फ (एहकाम का) साफ पहुँचा देना है<br />[17 : 53&54] और (ऐ रसूल) मेरे (सच्चे) बन्दों (मोमिनों से कह दो कि वह (काफिरों से) बात करें तो अच्छे तरीक़े से (सख्त कलामी न करें) क्योंकि शैतान तो (ऐसी ही) बातों से फसाद डलवाता है इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है <br />[21 : 107 & 109] और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा-----फिर अगर ये लोग (उस पर भी) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसाँ ख़बर कर दी है और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वायदा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है<br />[22 : 67] इसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हमने हर उम्मत के वास्ते एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया कि वह इस पर चलते हैं फिर तो उन्हें इस दीन (इस्लाम) में तुम से झगड़ा न करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की तरफ बुलाए जाओ<br />[24 : 54] (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किए गए हैं और जिसके ज़िम्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज़ है<br />[36 : 16&17] तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीन्न उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो) हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे अल्लाह का पहुँचा देना फर्ज़ है<br />[39 : 41] (ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरआन) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो उसकी गुमराही का वबाल भी उसी पर है और फिर तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार तो हो नहीं<br />[42 : 6] और जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़ कर (और) अपने सरपरस्त बना रखे हैं अल्लाह उनकी निगरानी कर रहा है (ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो<br />[42 : 48] फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा तुम्हारा काम तो सिर्फ (एहकाम का) पहुँचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ पहुँचती (सब एहसान भूल गए) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है<br />[64 :12] और अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो फिर अगर तुमने मुँह फेरा तो हमारे रसूल पर सिर्फ़ पैग़ाम का वाज़ेए करके पहुँचा देना फर्ज़ है<br />[60 : 8&9] जो लोग तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें घरों से निकाले उन लोगों के साथ एहसान करने और उनके साथ इन्साफ़ से पेश आने से अल्लाह तुम्हें मना नहीं करता बेशक अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है. अल्लाह तो बस उन लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है जिन्होने तुमसे दीन के बारे में लड़ाई की और तुमको तुम्हारे घरों से निकाल बाहर किया और तुम्हारे निकालने में (औरों की) मदद की और जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे वह लोग ज़ालिम हैं <br />अल्लाह का पहला उद्देश्य यही है की ज़मीन पर फसाद न फैले, और इसके लिए वह अपने नबी को भी बार बार ताकीद कर रहा है.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-29864891053980344822010-07-05T10:21:10.602-07:002010-07-05T10:21:10.602-07:00'मोमिन'साहब,
इस चर्चा मे,सत्य तक पहुंचने ...'मोमिन'साहब,<br /><br />इस चर्चा मे,सत्य तक पहुंचने में आप भी सह्योग करेंसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-21806037329817364442010-07-05T10:07:19.961-07:002010-07-05T10:07:19.961-07:00ज़ीशान साहब,
जानकारी के लिये शुक्रिया!
और जानना चा...ज़ीशान साहब,<br /><br />जानकारी के लिये शुक्रिया!<br />और जानना चाहता हुं,इसके अलावा भी अमन पर ज़्यादा ज़ोर देनें वाली आयतें है?अथवा यह सात आयतें मुख्य है?इन सातों में वह प्रमुख आयत कौनसी है,जिस के आधार पर इस्लाम का अमन के पैगाम का दावा है। और उसे मूल रूप (शब्दसः अनुवाद,अनुवादक के मन्तव्य रहित)प्रस्तूत करें।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-77197092655734033842010-07-05T06:17:18.982-07:002010-07-05T06:17:18.982-07:00@सुज्ञ जी,
कुरआन की शान्ति का पैगाम देती हुई आयतें...@सुज्ञ जी,<br />कुरआन की शान्ति का पैगाम देती हुई आयतें :<br />[2:256] <b>दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं </b> क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और अल्लाह ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है जो टूट ही नहीं सकती और अल्लाह सब कुछ सुनता और जानता है<br />[2:272] (ऐ रसूल) उनका मंज़िले मक़सूद तक पहुँचाना तुम्हारा काम नहीं (तुम्हारा काम सिर्फ़ रास्ता दिखाना है) मगर हॉ अल्लाह जिसको चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा दे <br />[7:56] (लोगों) अपने परवरदिगार से गिड़गिड़ाकर और चुपके - चुपके दुआ करो वह हद से तजाविज़ करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता <b>और ज़मीन में असलाह के बाद फसाद न करते फिरो </b>और (अज़ाब) के ख़ौफ से और (रहमत) की आस लगा के अल्लाह से दुआ मांगो<br />[2:11-12] और जब उनसे कहा जाता है <b>कि मुल्क में फसाद न करते फिरो </b>(तो) कहते हैं कि हम तो सिर्फ इसलाह करते हैं. ख़बरदार हो जाओ बेशक यही लोग फसादी हैं लेकिन समझते नहीं .<br />[88:21-22] तो तुम नसीहत करते रहो तुम तो बस नसीहत करने वाले हो. तुम कुछ उन पर दरोग़ा तो हो नहीं<br />[109:5-6] और जिसकी मैं इबादत करता हूँ उसकी तुम इबादत करने वाले नहीं. तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मेरे लिए मेरा दीन<br />[9:6] और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं <br /><br /><a href="http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/07/2.html" rel="nofollow">क्या कुरआन में गलतियां हैं? (भाग दो)</a>zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4781064014320594643.post-85423666098267303822010-07-05T04:11:46.823-07:002010-07-05T04:11:46.823-07:00इन बेतुकी बातों को अल्लाह का संदेश मानने वाले,अपने...इन बेतुकी बातों को अल्लाह का संदेश मानने वाले,अपने इन्सान होने का कुछ तो सबूत दे,कुछ तो अक्ल लगा कर शक़ करे,उन संदिग्ध आदेशो पर!!<br />ये लोग तो इतने भयभीत है,कि अन्धे बन कर अक्ल से ही तौबा किये हुए है। शक़-समाधान की जगह अन्धविश्वास में गर्क है,<br /><br />एक बात बताईए,'मोमिन'साहब,<br />स्पष्टतया हिंसक बातों,जेहादी आदेशों के बावज़ुद,ये कट्टर मुस्लिम किस आधार पर कुरआन व इस्लाम को 'अमन का पैगाम'कहते हैं। अल्लाह को न मानने वालों को खत्म करने की प्रेरणा स्वयं अल्लाह देता हैं, तो किस तरह ये शान्ति फ़ैलाना चाहते है? सभी को (चिर)शान्त करके?<br />कुरआन में अमन के लिये कितना विशिष्ट,विस्तरित,विवादरहित त्यागमय शान्ति का सन्देश छुपा हुआ है,कुछ प्रकाश डालिये।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com