Saturday, 29 May 2010

क़ुरआन सूरह हुज्र- १५

सूरह हुज्र १५ , पारा-१३
The रोचक


मुहम्मद फेस बुक पर


इंटर नेट की एक और वेब साईट 'फेस बुक' पर पाकिस्तानी कठमुल्लाओं ने पाबन्दी लगाने में कामयाबी हासिल करली है। क्या इस से पाकिस्तानी अवाम का कुछ भला होगा बजाय नुकसान के, या आलमी बिरादरी को कोई फ़र्क पड़ने वाला है? दर अस्ल मुआमला ये था कि किसी इदारे ने शरारतन मुहम्मद डे पर मुहम्मद की तस्वीर लोगों से माँगी थी, मुस्लमान जो कुछ करते इदारे पर करते, बंद कर दिया अपने मुल्क में पूरी साईट को. इंटर नेट पर साईट को मैंने देखा, इसमें तुगरे भेज कर सबसे ज़्यादः मुसलमानों ने ही शिरकत की. हालांकी इस्लामी हिमाक़तों की एक यह भी एक तरह की तस्वीर ही है. तस्वीरों में एक तस्वीर दिल को दहला देने वाली छ सात साला बच्ची आयशा की है जिसको औधा कर मुहम्मद उसके साथ मसरूफे-बलात्कार हैं, जो अपनी गुडिया को दर्द के मारे दबोचे हुए है और उसकी आँखें बाहर निकली जा रही हैं. मुहम्मद वहशी जानवर की तरह उस मासूम से मह्जूज़ हो रहे हैं. उफ़! क्या मुसलमानों से ये मुहम्मद की मुस्तनद और तारीखी हक़ीक़त देखी नहीं जाती? इसके चलते वह सच्चाई के दर्पन पर पथराव कर देंगे ? दुन्या के साथ चलना छोड़ देंगे. मुहह्म्मद के जरायम की परतें तो अब खुलना शुरू हुई हैं, अंत होने तक मुस्लमान बेयार ओ मदद गार तनहा रह जाएगा, अगर तौबा करके ईमान दार नहीं बन जाता.आइए चलिए हम ले चलते हैं आपको माज़ी में - - - ''आयशा कहती हैं जिस वक़्त मेरा मुहम्मद से निकाह हुवा मैं छ साल की थी. फिर मक्का से मदीना हिजरत करके पहुँचे तो मुझे बुखार आने लगा, मेरे सर के बाल गिर गए लेकिन अच्छी होने के बाद बाल फिर से निकल कर शानों के नीचे तक लटकने लगे. एक दिन मैं झूले में अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी कि यकायक मेरी वाल्दा ने आकर मुझको डांटा. मैं इनके इस डांटने का मतलब नहीं समझ सकी. वह मुझको वहां से पकड़ कर घर लाईं, मैं हांपने लगी, जब मेरी सांसें थमीं तो उन्हों ने मेरा हाथ, मुंह और सर धुलाया. घर के अन्दर कुछ नसारा औरतें बैठी थीं, उन्होंने वाल्दा के हाथों से मुझे ले लिया और वाल्दा मुझे इन के सुपुर्द करके चली गईं. इन औरतों ने मेरी जिस्मानी हालत को दुरुस्त किया. उसके बाद कोई नई बात पेश नहीं आई. मुहम्मद चाश्त के वक़्त मेरे घर आए, उन औरतों ने मुझे उनके हवाले कर दया. (बुख़ारी-१५३५) नन्हीं आयशा की यह आप बीती है. छ साल की उम्र में निकाह, आठ साल की उम्र में रुखसती, और इसी उम्र में वह हक़ीक़त जो फेस बुक में मुसव्विर ने तस्वीर खींची है. मुसलमानों! किस बात की मुखालिफ़त ? क्या सच्चाई का सामना नहीं कर सकते? क्या यह सब झूट है? क्या ५२ साला बूढ़े ने बच्ची आयशा को बेटी बना लिया था ? अगर तस्वीर देख्नना गवारा न करो तो तसव्वुर में चले जाओ, अपनी बहेन या बेटी को जो भी इन उमरों की हों, क्या किसी रूहानी अय्यार के हवाले करना पसंद करोगे? अगर नहीं तो अपने ज़मीर का साथ दो कि सदाक़त ही ईमान है न कि इस्लाम. और अगर हाँ मुहम्मद को हक बजानिब समझते हों तो तुम्हारे मुंह पर आक़! थू !!


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चलो मक्खियों की तरह भिनभिना कर मुहम्मद की तुकबंदी की तिलावत की जाय और आने वाली नस्लों का आकबत राब किया जाय . । .


''अलरा -ये आयतें हैं एक किताब और कुरआन वाज़ेह की.'' सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (१) अलरा यह बेमानी लफ्ज़ मुहम्मद का छू मंतर है इसके कोई माने नहीं. मुहम्मद बार बार अपनी किताब को वाज़ेह कहते हैं जिसका मतलब होता है स्पष्ट अथवा असंदिग्ध, जब कि कुरआन पूरी तरह से संदिग्ध और मुज़ब्ज़ब किताब है.खुद आले इमरान में आयत ६ में अपनी आयातों को अल्लाह मुशतबह-उल-मुराद(संदिग्ध) बतलाता है. इसी को हम क़ुरआनी तज़ाद (विरोधाभास) कहते है. इसी के चलते सदियों से विरोधाभाषी फतवे ओलिमा नाज़िल किया करते हैं.


''काफ़िर लोग बार बार तमन्ना करेंगे क्या खूब होता अगर वह लोग मुसलमान होते. आप उनको रहने दीजिए कि वह खा लें और चैन उड़ा लें और ख़याली मंसूबा उन्हें ग़फलत में डाले रखें, उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है ''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२-३)

काफ़िर लोग हमेशा खुश हल रहे हैं और मुसलमान बद हल। इस्लामी तालीम मुसलमानों को कभी खुश हाल होने ही न देगी, इनकी खुश हाली तो इनका फरेबी आक़बत है जो उस दुन्या में धरा है। सच पूछिए तो अज़ाब ए मुहम्मदी मुसलमानों का नसीब बन चुका है. चौदह सौ साल पहले अहमक़ अल्लाह ने कहा'' उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है '' उसका अभी, अभी तक नहीं आया ?


''और हमने जितनी बस्तियां हलाक की हैं, इन सब के लिए एक मुअययन नविश्ता है। कोई उम्मत न अपनी मीयाद मुक़रररा से न पहले हुई न और न पीछे रही.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (४-५)

अल्लाह खुद एतरफ कर रहा है कि वह हलाकू है। फिर ऐसे अल्लाह पर सुब्ह ओ शाम लअनत भेजिए किसी ऐसे अल्लाह को तलाशिए जो बाप की तरह मुरब्बी और दयालु हो, नाकि बस्त्तियाँ तबाह करने वाला. उसके सही बन्दे ओसामा बिन लादेन की तरह ही होते हैं जो ? को तबाह करके ? बना सकते हैं.


''और कहा वह शख्स जिस पर कुरआन नाज़िल किया गया तहक़ीक़ तुम मजनूँ हो और अगर तुम सच्चे हो तो हमारे पास फ़रिश्तों को क्यूँ नहीं लाते? हम फ़रिश्तों को सिर्फ़ फ़ैसले के लिए ही नाज़िल किया करते हैं और इस वक़्त उनको मोहलत भी न दी जाती.''

सूरः हुज्र,१५ पारा१४ आयत (६-८)

हदीसों में कई जगह है कि फ़रिश्ते ज़मीन पर आते हैं। पहली बार मुहम्मद को पटख कर फ़रिश्ते ने ही पढाया था''इकरा बिस्म रब्बे कल्लज़ी'' फिर ''शक्कुल सदर'' भी फ़रिश्ते ने किया, मुहम्मद ने आयशा से कह की जिब्रील अलैहिस्सलाम आए हैं तुम को सलाम कर रहे हैं. जंगे बदर में तो हजारों फ़रिश्ते मैदान में शाने बशाने लड़ रहे थे, कई (झूठे) सहबियों ने इसकी गवाही भी दी. अब लोगों के तकाजे पर मंतिक गढ़ रहे हो कि रोज़े हश्र वह नाज़िल होंगे तो कभी कहते हो कि उनके आने पर भूचाल ही आ जाएगा।


''हम ने कुरआन नाज़िल किया, हम इसकी मुहाफ़िज़ हैं. और हम ने आप के क़ब्ल भी अगले लोगों के गिरोहों में भेजा था और कोई उनके पास ऐसा नहीं आया जिसके साथ उन्हों ने मज़ाक न किया हो. इसी तरह ये हम उन मुज्रिमीन के दिलों में डाल देते हैं. ये लोग इस पर ईमान नहीं लाते और ये दस्तूर से होता आया है. अगर उनके लिए आसमान में कोई दरवाज़ा खोल दें फिर ये दिन के वक़्त इस में चढ़ जाएँ, कह देंगे कि हमारी नज़र बंदी कर दी गई है, बल्कि हम लोगों पर तो एकदम जादू कर रखा है.

सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (९-१५)

अल्लाह कहता है कि वह खुद लोगों के दिलों में (शर) डाल देता है कि (स्वयंभू ) पैगम्बरों का मज़ाक़ उड़ाया करें। मुहम्मद इस बात को इस लिए अल्लाह से कहला रहे हैं कि बगेर उसके हुक्म के कुछ नहीं होता. यह उनका पहला कथन है. अब लोगों को मुजरिम भी अल्लाह को बना रहा है, जुर्म खुद कर रहा है ? भला क्यों? अल्लाह के पास कोई ईमान और इन्साफ़ का तराज़ू है? कहता है कि ऐसा उसका दस्तूर है? जबरा मारे रोवै न देय. ऐसे अल्लाह पर सौ बार लअनत. मुहम्मद आसमान में दरवाज़ा खोल रहे हैं गोया पानी में छेद कर रहे हैं. मुसलमानों! दर असल तुम्हारी नज़र बंदी कर दी गई है आँखें खोलो, वर्ना - - तुम्हारी दास्ताँ रह जाएगी बस दस्तानों में.


''बेशक हमने आसमान में बड़े बड़े सितारे पैदा किए और देखने वालों के लिए इसको आरास्ता किया और इसको शैतान मरदूद से महफूज़ फ़रमाया, हाँ! कोई बात चोरी छुपे अगर सुन भागे तो इसके पीछे एक रौशन शोला हो लेता है।''

सूरह हुज्र, पारा१४ आयत (१६-१८)

रात को तारे टूटते हैं, ये उसका साजिशी मुशाहिदा है, उम्मी मुहम्मद ने शगूफ़ा तराशा है कि अल्लाह जो आसमान पर रहता है, वहां से ख़ारिज और मातूब किया गया शैतान उसके राजों के ताक में लगा रहता है कि कोई राज़ ए खुदा वंदी हाथ लगे तो मैं उस से बन्दों को भड़का सकूँ, जिसकी निगरानी पर फ़रिश्ते तैनात रहते हैं, शैतान को देखते ही रौशन शोले की मिसाईल दाग देते हैं। जो उसे दूर ताक खदेड़ आतीहै।

मुसलमानों कब तक तुम्हारे अन्दर बलूगत आएगी? कब मोमिन के ईमान पर ईमान लओगे?


जीम। मोमिन ''निसारुल ईमान''


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हमारी और भी गवाहियाँ हैं । . .


The Rock
Before we give up and go fishing, I'd like to share what Islam had to say about the creation of man। It was one of Muhammad's and Allah's favorite subjects - covered countless times in the Hadith and Qur'an। Since neither were capable of prophecy or miracles, man's existence was used to prove Allah's existence। Tabari I:258 "Allah created Adam from sticky clay, meaning viscous and sweet smelling, from slime, being stinking. It became stinking slime after having been compact soil. Allah formed Adam with His own hand." [Qur'an 15:26] So if a Muslim calls you a "stinking slimeball," thank him. It's a compliment. I think.Yet, Allah forming us out of slime is insulting, and it's contradictory. The referenced verse says: Qur'an 15:26 "We fashioned man from fermented clay, stinking slime, dried tingling hard as we fashioned jinn [demons] from white hot flame." Elsewhere in the Qur'an god created man from "dust," "spurting water," "contemptible water," "a drop of semen," "an embryo," "a single sperm [whose do you suppose?]," "a single cell," "a chewed up lump of flesh," "extract of base fluid," "inordinate haste," or simply "weakness," depending on where you look. There are thirty creation accounts and twenty-two variations. Of course, this must all make sense, because Allah insists there are no contradictions in the Qur'an.Throughout the Sunnah and Qur'an Muhammad falsely attributes Muslim prophet and messenger status to Biblical characters in order to remake them in his image. Most every prophet/messenger listed in the Qur'an came from the Bible, including: Adam, Noah, Seth, Abraham, Lot, Jacob, Joshua, Jonah, Job, Moses, David, Solomon, Saul, Elijah, Ezra, Enoch, John, and Jesus. Moses is mentioned by name in 500 verses, Abraham in 250. Muhammad's non-Biblical list consists of mistakes and myths. For example, the oft-mentioned Hud was from the mythical land of "Ad." (Something Muhammad couldn't do.)
Prophet of Doom

क़ुरआन- सूरह इब्राहीम- १४


सूरह इब्राहीम- १४
14
Abraham

इब्राहीम अलैहिस्सलाम



एक थे यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों (और शायद ब्रह्मा आविष्कारक आर्यन के भी) मुश्तरका मूरिसे आला (मूल पुरुष) अब्राम, अब्राहम, इब्राहीम, ब्राहम (और शायद ब्रह्म भी)बहुत पुराना ज़माना था, अभी लौह युग भी नहीं आया था, हम उनका बाइबिल प्रचलित नाम अब्राहम कहते हैं कि वह पथर कटे कबीले के गरीब बाप तेराह के बेटे थे, बाप बार कहता कि बेटा! हिजरत करो हिजरत में बरकत है, हो सकता है तुम को एक दिन दूध और शहेद वाला देश रहने को मिले. आखिर एक दिन बाप तेराह की बात लग ही गई, अब्राहम ने सामान ए सफ़र बांधा, जोरू सारा को और भतीजे लूत को साथ किया और तरके-वतन (खल्देइया) किया. ख़ाके ग़रीबुल वतनी छानते हुए फिरअना (बादशाह) के दर पर पहुँचे, माहौल का जायज़ा लिया. सारा हसीन थी, बादशाह ने दर पर आए मुसाफ़िरों को तलब किया, तीनों उसकी खिदमत में पेश हुए, अब्राहम ने सारा को अपनी बहेन बतला कर ग़रीबुल वतनी से नजात पाने का हल तय किया, वह उसकी चाचा ज़ाद बहेन थी भी, बादशाह ने सारा को मंज़ूर-ए-नज़र बना कर अपने हरम में शामिल कर लिया.
एक मुद्दत के बाद जब यह राज़ खुला तो बादशाह ने अब्राहम की ख़बर ली मगर सारा की रिआयत से उसको कुछ माल मता देकर महल से बहार किया. उस माल मता से अब्राहम और लूत ने भेड़ पालन शुरू किया जिससे वह मालदार हो गया. सारा ने बच्चे की चाहत में अब्राहम की शादी अपनी मिसरी खादिमा हाजरा से करा दी, जिससे इस्माईल पैदा हुआ, मगर इसके बाद ख़ुद सारा हामला हुई और उससे इस्हाक़ पैदा हुआ. इसके बाद सारा और हाजरा में ऐसी महा भारत हुई कि अब्राहम को सारा की बात माननी पड़ी कि वह हाजरा को उसके बच्चे इस्माइल के साथ बहुत दूर सेहरा बिया बान में छोड़ आया.
अब्राहम को उसके इलोही ने ख्वाब में दिखलाया कि इस्हाक़ की कुर्बानी दे और वह बच्चे इस्हाक़ को लेकर पहाड़ियों पर चला गया और आँख पर पट्टी बाँध कर हलाल कर डाला मगर जब पट्टी आँख से उतारता है तो बच्चे की जगह भेडा होता है और इस्हाक़ सही सलामत सामने खड़ा होता है.
मैं अब इस्लामी अक़ीदत से अबराम को '' हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम'' लिखूंगा जिनका सहारा लेकर मुहम्मद अपने दीन को देने-इब्राहीमी कहते हैं.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का पहला जुर्म और झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहेन बतलाया और उसको बादशाह की खातिर हरम के हवाले किया.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था, दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था भेड़ा ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली की सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा. खुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की कुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. सोचिए कि हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हजारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, इस्हाक़ का भेड़ा बन जाना गैर फितरी बात है, अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. अकीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे.
ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पुरुषों पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - - अल्ला हुम्मा सल्ले . . . अर्थात '' ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर. बे शक तू तारीफ़ किया गया है, तू बुज़ुर्ग है.''
मुसलमानों ! अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भो ज़ेहन में लाओ जिनका खूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हजारों साल पहले या फिर लाखों साल पहले कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए तूफानों से, सैलाबों से, दरिंदों से पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए आज तक जिंदा रक्खा है क्या तुम उनको फरामोश करके मुहम्मद की गुमराहियों में पड़ गए हो? अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी कुरैशियों के लिए दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो? शर्म से डूब मरो।



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आइए नई फ़िक्र पैदा करने के लिए पढ़ते हैं झूट की बुनियादें. . .

'' और जब इब्राहीम ने कहा ऐ मेरे रब! इस शहर (मक्का) को अम्न वाला शहर बना दीजिए और मेरे फ़रज़न्दों को बुतों की हिफ़ाज़त से बचाए रखियो. ऐ मेरे परवर दिगार बुतों ने बहुतेरे आदमियों को गुमराह कर रखा है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (३६)
उस वक़्त जब यह दुआ मंगवा रहे हैं उम्मी मुहम्मद अपने पुरखे इब्राहीम से, न काबा था, न शहर मक्का था, न इन नामों निशान की कोई चिड़िया. गैर इंसानी आबादी वाला मुसलसल रेगिस्तान था, बस ज़रा सा पानी का एक चश्मा हुवा करता था. मजबूरी में इस्माईल की माँ हाजरा यहाँ बस कर इसको आबाद किया था तब, मुसाफ़िर रुक कर यहाँ पानी लेते और उसकी कुछ मदद करते. दो बार इस्माईल के जवानी में इब्राहीम यहाँ आया भी मगर मुलाक़ात नहीं हुई कि वह बद हाल दोनों बार तलाशए मुआश में शिकार पर गया था.
मुहम्मद यहाँ पर बुतों को खुद बा असर पाते हैं जो इंसान को उनके या उनके अल्लाह के खिलाफ गुमराह करते रहते हैं. इसके बर अक्स पहले कह चुके हैं कि ये बे असर बुत किसी को कोई नफ़ा यानुक़सान नहीं पहुंचा सकते.

''हमने तमाम पैगम्बरों को उन ही के कौम के जुबान में पैगम्बर बना कर भेजा ताकि उन से बयान करें. फिर जिसको चाहे अल्लाह गुमराह करता है,जिसको चाहे हिदायत करता है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४)
ऐ मुहम्मदी अल्लाह! तूने तो यही सोचा था कि ज़ुबान के हिसाब अरबी कौम का पैग़म्बर अरबों के लिए भेजा है मगर मुहम्मद का जेहादी फार्मूला उससे हासिल माले ग़नीमत इतना कामयाब होगा कि यह आलमी बन जाएगा. अरब इसका फ़ायदा ईरान, अफ़गान, भारत, पूर्वी एशिया,अफ्रीका, योरोप में स्पेन और तुर्की से उठाएगा. मगर तूने यह भी नहीं सोचा कि यह निज़ाम कितना ख़ूनी होगा? वाक़ई तू शैतान ए अज़ीम है जिसको चाहे गुमराह करे, जैसे हमारे भोले भाले ,मासूम दिल मुसलमान, तेरी चालों को समझ ही नहीं पाते.

''और कुफ्फ़ार ने रसूल से कहा कि हम तो अपनी सर ज़मीन से निकल देंगे, या तुम हमारे मज़हब में फिर आओ, पस उन पर उन के रब ने वहिय नाज़िल की कि हम उन ज़ालिमों को ज़रूर हलाक़ कर देंगे और उनके बाद तुम को उस सर ज़मीन पर आबाद रखेंगे. ये हर उस शख्स के लिए है जो मेरे रूबरू खड़े रहने से डरे और मेरी वईद से डरे. और कुफ्फार फैसला चाहने लगे, जितने ज़िद्दी थे वह सब नामुराद हुए. इसके आगे दोज़ख है और इसको ऐसा पानी पीने को दिया जाएगा जो पीप होगा, जिसे घूँट घूँट पिएगा और कोई सूरत न होगी और हर तरफ उसके मौत की आमद होगी, वह किसी तरह से मरेगा नहीं और उसे सख्त अज़ाब का सामना होगा.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (१३-१७)
मुसलामानों! देखो कि कितनी सख्त और घिनावनी सज़ाएँ तुम्हारे अल्लाह ने मरने के बाद भी तुम्हारे लिए तैयार कर रक्खी है, यहाँ तो दुन्या भर के अज़ाब थे ही. वहां फिर मौत भी नहीं है कि इन से नजात मिल सके. एक ही रास्ता है कि हिम्मत करके ऐसे अल्लाह को एक लात जम कर लगाओ कि फिर तुम्हारे आगे यह मुँह खोलने लायक भी न रहे.
यह खुद तुम्हारा पिया हुवा ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का ज़हर है जो तुम्हारी खूब सूरत ज़िन्दगी को घुलाए हुए है. सर ज़मीनों को ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का नाटक है जो अपने जादू से लोगों को पागल किए हुए है. अब बस बहुत हो चुका. आप इक्कीसवीं सदी में पहुँच चुके हैं. आँखें खोलिए. ये पाक कुरान नहीं, नापाक नजसत है जो आप सर रखे हुए हैं.

''जो लोग अपने परवर दिगार के साथ कुफ्र करते हैं उनकी हालत बएतबार अमल के ये है कि जैसे कुछ राख हो जिस को तेज़ आँधी के दिन में तेज़ी के साथ उड़ा ले जाए. इन लोगों ने अमल किए थे, इस का कोई हिस्सा इनको हासिल नहीं होगा. ये भी बड़ी दूर दराज़ की गुमराही है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (१८)
अल्लाह के साथ बन्दा कभी कुफ्र कर ही नहीं सकता जब तक अल्लाह खुद न चाहे, ऐसा मैं नहीं खुद मुहम्मदी अल्लाह का कहना है. दूर दराज़ की गुमराही और आस पास कि गुमराही में क्या फ़र्क़ है ये कोई अरबी नुकता होगा जिसे मुहम्मद बार बार दोहराते हैं, इसमें कोई दूर की कौड़ी जैसी बात नहीं. कोई नेक अमल हवा में नहीं उड़ता बल्कि नमाज़ें ज़रूर हवा में उड़ जाती हैं या ताकों में मकड़ी के जाले की तरह फँसी रहती हैं.

'' और जब तमाम मुक़दमात फ़ैसल हो चुके होंगे तो शैतान कहेगा कि अल्लाह ने तुम से सच वादे किए थे, सो वह वादे हम ने तुम से उस से ख़िलाफ़ किए थे और मेरे तुम पर और कोई ज़ोर तो चलता नहीं था बजुज़ इसके कि हम ने तुम को बुलाया था, सो तुम ने मेरा कहना मान लिया, तो तुम मुझ पर मलामत मत करो, न मैं तुम्हारा मदद गार हूँ और न तुम मेरे मदद गार हो. मैं खुद इस से बेज़ार हूँ कि तुम इससे क़ब्ल मुझ को शरीक क़रार देते थे. यक़ीनन ज़ालिमों के लिए दर्द नाकअज़ाब है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (22)
मुहम्मद जब कलम इलाही बडबडाने में तूलानी या वजदानी कैफ़ियत में आ जाते हैं तो राह से भटक जाते हैं, इस सूरत में अगर कोई उनसे वज़ाहत चाहे तो जवाज़ होता है कि '' वह आयतें हैं जो मुशतबह-उल-मुराद हैं, इनका बेहतर मतलब बजुज़ अल्लाह तअला कोई नहीं जानता.'' सूरह आले इमरान आयत(७)यहाँ भी कुछ ऐसी ही कैफ़ियत है अल्लाह के रसूल की, शैतान के साथ शैतानी कर रहे हैं.

''क्या आप को मालूम है कि अल्लाह ने कैसी मिसालें बयान फ़रमाई है . . . कलमा ए तय्यबा वह कि मुशाबह एक पाकीज़ा दरख़्त के जिसकी जड़ें खूब गडी हुई हों और इसकी शाखें उचाई में जारी हों और परवर दिगार के हुक्म से हर फ़स्ल में अच्छा फल देता हो. . . . और गन्दा कलमा की मिसाल ऐसी है जैसे एक ख़राब दरख़्त की हो जो ज़मीन के ऊपर ही ऊपर से उखाड़ लिया जाए, उसको कोई सबात न हो.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (२४-२५)
मुहम्मदी अल्लाह की मिसालें हमेशा ही बेजान और फुसफुसी होती हैं. खैर. मुहम्मद अपने कलमा ए तय्यबा की बात करते हैं, यह वह कलमा है जो अनजाने में ज़हरे हलाहल बन कर दुन्या पर नाज़िल हुवा. देखिए कि इसका असर कब तलक दुन्या पर क़ायम रहता है.

''तमाम हम्दो सना अल्लाह के लिए है जिसने बुढ़ापे में हमें इस्माईल और इशाक (इसहाक) अता फरमाए ऐ मेरे रब मुझको भी नमाज़ों का एहतमाम करने वाला बनाए रखियो मेरी औलादों में से भी बअज़ों को.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४०)
इर्तेकई हालात का शिकार, इंसानी तहज़ीब में ढलता हुवा इब्राहीम उस वक़्त अर्वाह ए आसमानी में ज़ात मुक़द्दस के लिए चंद पत्थर इकठ्ठा किए थे जो ज़मीन और उसके क़द से ज़रा ऊँचे हो जाएँ और उसी बेदी के सामने अपने सर को झुकाया था, उसके मन में बअज़ों के लिए बुग्ज़ न बअज़ों के लिए हुब थी. न ही मुहम्मदी इस्लाम का कुफ्र.

'' ऐ मेरे रब मेरी मग्फेरत कर दीजो, और मेरे माँ बाप की भी और कुल मोमनीन की हिसाब क़ायम होने के दिन . . . ''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४१)
इसी कुरआन में मुहम्मदी अल्लाह इस आयत के ख़िलाफ़ कहता है कि उन लोगों के लिए मग्फेरात की दुआ न करो जो काफ़िर का अक़ीदा लेकर मरे हों, ख्वाह वह तुम्हारे कितने ही क़रीबी अज़ीज़ ही क्यूं न हों. यहाँ पर इब्राहीम काफ़िर बाप आज़र के लिए अल्लाह के हुक्म से दुआ मांग रहा है? कोई आलिम इनबातों का जवाब नहीं देता.

'' पस कि अल्लाह तअला को अपने रसूल की वअदा खिलाफ़ी करने वाला न समझना. बे शक अल्लाह तअला बड़ा ज़बरदस्त और पूरा बदला लेने वाला है और सब के सब ज़बदस्त अल्लाह के सामने पेश होने वाले हैं.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४७)
इस आयत के लिए जोश मलीहाबादी कि रुबाई काफी होगी.कहते हैं - - -


गर मुन्ताकिम है तो झूटा है खुदा,
जिसमें सोना न हो वह गोटा है खुदा,
शब्बीर हसन खाँ नहीं लेते बदला,
शब्बीर हसन खाँ से भी छोटा है खुदा।

''जिस रोज़ दूसरी ज़मीन बदल दी जाएगी, इस ज़मीन के अलावा आसमान भी, और सब के सब एक ज़बर दस्त अल्लाह के सामने पेश होंगे और तू मुजरिम को ज़ंजीरों में जकड़े हुए देखेगा, और उनके कुरते क़तरान के होंगे और आग उनके चेहरों पर लिपटी होगी ताकि अल्लाह हर शख्स को इसके किए की सज़ा दे यक़ीनन अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४९-५१)
ज़मीन बदल जाएगी, आसमान बदल जाएगा मगर इंसान न बदलेगा, क़तरान का कुरता पहने मुंह पर आग की लपटें लिए ज़बर दस्त अल्लाह के आगे अपने करतब दिखलाता रहेगा. आज ऐसा दौर आ गया है कि बच्चे भी ऐसी कहानियों से बोर होते हैं. मुसलमान इन पर यकीन रखते हैं?

मुसलमानों! दुन्या की हर शय फ़ानी है और यह दुन्या भी. साइंस दान कहते है कि यह धरती सूरज का ही एक हिस्सा है और एक दिन अपने कुल में जाकर समां जाएगी मगर अभी उस वक़्त को आने में अरबों बरसों का फासला है. अभी से उस की फ़िक्र में मुब्तिला होने की ज़रुरत नहीं. साइंस दान यह भी कहते हैं कि तब तक नसले-इंसानी दूसरे सय्यारों तक पहुँच कर बस जाएगी. साइंस कि बातें भी अर्द्ध-सत्य होती हैं, वह खुद इस बात को कहते है मगर इन अल्लाह के एजेंटों की बातें १०१% झूट होती हैं, इन पर क़तई और यक़ीनन यक़ीन न करना।


जीम. मोमिन ''निसारुल ईमान''

Friday, 21 May 2010

हर्फ़-ए-ग़लत - part- 2

Hi All,
I have started harf-e-galat part 2 .Readers are kindly requested to read my new blog
@ http://harf-e-galat-ll.blogspot.com/

-Momin

मैं इस बात का एलान करने में ख़ुशी महसूस कर रहा हूँ कि मैं हर्फ़ ए ग़लत का दूसरा दौर हर्फ़ ए ग़लत part -2 शुरू कर रहा हूँ. एक नए अहेद के साथ कि सच्चाई की राह पर अडिग रहूँगा, जानिब दारी, भावुकता, ज़ुबान ए ख़ल्क़, लिहाज़, लालच या मौत का डर भी मेरे सच बोलने में आड़े नहीं आ सकती. ईमान मेरा धर्म है. ईमान ही हर इंसान का धर्म होना चाहिए. ईमान ही इंसान की मुक्ति और नजात का एक मात्र साधन है. मैं अपने पूरे ईमान के साथ कह रहा हूँ कि इस्लाम ने आज तक दुन्या का सब से ज्यादा अहित किया है. मुसलमान भाई इसे संजीदगी से सोचें और जानें, न कि इस बात को पढ़ कर ही गुस्से से बिफर जाएँ. मसावात के नाम पर अगर कहीं कोई तब्दीली हुई है तो इसकी जंग जू फितरत ने उसको बरक़रार नहीं रक्खा. आज इस्लाम की यही फितरत मुसलमानों को रुस्वाए ज़माना किए हुए है. मुसलमान होश में आएँ, अपने वजूद को बचाएँ. बस ज़रा सा तबदीली करनी है कि मुस्लिम से मोमिन हो जाएँ.
ख़ैर अंदेश
'मोमिन'

Monday, 17 May 2010

क़ुरआन - सूरह राद - १३


सूरह राद - १३

(1st पार्ट)

मोमिन का ईमान



मोमिन और ईमान, लफ़्ज़ों और इनके मअनों को उठा कर इस्लाम ने इनकी मिटटी पिलीद कर दी है. यूँ कहा जाए तो ग़लत होगा कि इस्लाम ने मोमिन के साथ अक़दे(निकाह) बिल जब्र कर लिया है और अपनी जाने जिगर बतला रहा है, जब कि ईमान से इस्लाम कोसों दूर है, दोनों का कोई आपस में तअल्लुक़ ही नहीं है, बल्कि बैर है. मोमिन की सच्चाई नीचे दर्ज है - -
- फितरी (प्रकृतिक) सच ही ईमान है. गैर फितरी बातें बे ईमानी हैं-- जैसे हनुमान का या मुहम्मद की सवारी बुर्राक का हवा में उड़ना.
- जो मुम्किनात में से है वह ईमान है. ''शक्कुल क़मर '' मुहम्मद ने ऊँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, उनका सफेद झूट है.
-जो स्वयं सिद्ध हो वह ईमान है. जैसे त्रिभुज के तीन नोकदार कोनो का योग एक सीधी रेखा. या इंद्र धनुष के सात रंगों का रंग बेरंग यानी सफेद.
- जैसे फूल की अनदेखी शक्ल खुशबू, बदबू का अनदेखा रूप दुर्गन्ध.
- जैसे जान लेवा जिन्स मुख़ालिफ़ में इश्क़ की लज्ज़त.
- जैसे जान छिड़कने पर आमादा खूने मादरी खूने पिदरी.
- जैसे सच और झूट का अंजाम.
ऐसे बेशुमार इंसानी अमल और जज्बे हैं जो उसके लिए ईमान का दर्जा रखते हैं. मसलन - - - क़र्ज़ चुकाना, सुलूक का बदला, अहसान भूलना, अमानत में खयानत करना, वगैरह वगैरह



मुस्लिम का इस्लाम


- कोई भी आदमी (चोर, डाकू, ख़ूनी, दग़ाबाज़ मुहम्मद का साथी मुगीरा* से लेकर गाँधी कपूत हरी गाँधी उर्फ़ अब्दुल्लाह तक) नहा धो कर कलमन (कालिमा पढ़ के) मुस्लिम हो सकता है.
- कालिमा के बोल हैं ''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' जिसके मानी हैं अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है और मुहम्मद उसके दूत हैं.
सवाल उठता है हजारों सालों से इस सभ्य समाज में अल्लाह और ईशवरों की कल्पनाएँ उभरी हैं मगर आज तक कोई अल्लाह किसी के सामने आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा. जब अल्लाह साबित नहीं हो पाया तो उसके दूत क्या हैसियत रखते हैं? सिवाय इसके कि सब के सब ढोंगी हैं.
- कालिमा पढ़ लेने के बाद अपनी बुद्धि मुहम्मद के हवाले करो, जो कहते हैं कि मैं ने पल भर में सातों आसमानों की सैर की और अल्लाह से गुफतुगू करके ज़मीन पर वापस आया कि दरवाजे की कुण्डी तक हिल रही थी.
- मुस्लिम का इस्लाम कहता है यह दुनिया कोई मानी नहीं रखती, असली लाफ़ानी ज़िन्दगी तो ऊपर है, यहाँ तो इन्सान ट्रायल पर इबादत करने के लिए आया है. मुसलमानों का यही अक़ीदा कौम के लिए पिछड़े पन का सबब है और हमेशा बना रहेगा.
- मुसलमान कभी लेन देन में सच्चा और ईमान दार हो नहीं सकता क्यूंकि उसका ईमान तो कुछ और ही है और वह है ''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' इसी लिए वह हर वादे में हमेशा '' इंशाअल्लाह'' लगता है. मुआमला करते वक़्त उसके दिल में उसके ईमान की खोट होती है. बे ईमान कौमें दुन्या में कभी तरक्क़ी कर सकती हैं और सुर्ख रू हो सकती हैं


*मुगीरा*= इन मुहम्मद का साथी सहाबी की हदीस है कि इन्होंने (मुगीरा इब्ने शोअबा) एक काफिले का भरोसा हासिल कर लिया था फिर गद्दारी और दगा बाज़ी की मिसाल क़ायम करते हुए उस काफिले के तमाम लोगो को सोते में क़त्ल करके मुहम्मद के पनाह में आए थे और वाकेआ को बयान कर दिया था, फिर अपनी शर्त पर मुस्लमान हो गए थे. (बुखारी-११४४)
मुसलमानों ने उमर ग्रेट कहे जाने वाले ख़लीफा के हुक्म से जब ईरान पर लुक़मान इब्न मुक़रन की क़यादत में हमला किया तो ईरानी कमान्डर ने बे वज्ह हमले का सबब पूछा था तो इसी मुगीरा ने क्या कहा गौर फ़रमाइए - - -
''हम लोग अरब के रहने वाले हैं. हम लोग निहायत तंग दस्ती और मुसीबत में थे. भूक की वजेह से चमड़े और खजूर की गुठलियाँ चूस चूस कर बसर औक़ात करते थे. दरख्तों और पत्थरों की पूजा किया करते थे. ऐसे में अल्लाह ने अपनी जानिब से हम लोगों के लिए एक रसूल भेजा. इसी ने हम लोगों को तुमसे लड़ने का हुक्म दिया है, उस वक़्त तक कि तुम एक अल्लाह की इबादत करने लगो या हमें जज़या देना कुबूल करो. इसी ने हमें परवर दिगार के तरफ़ से हुक्म दिया है कि जो जेहाद में क़त्ल हो जाएगा वह जन्नत में जाएगा और जो हम में ज़िन्दा रह जाएगा वह तुम्हारी गर्दनों का मालिक होगा.
(बुखारी १२८९)


असर क़ुबूल


हम मुहम्मद की अन्दर की शक्ल सूरत उनकी बुनयादी किताबों कुरआन और हदीस में अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं. मेरी आँखों में धूल झोंक कर उन नुत्फे हराम ओलिमा की बकवास पढने की राय दी जा रही है जिसको पढ़ कर उबकाई आती है कि झूट और इस बला का. मुझे तरस आती है और तअज्जुब होता है कि यह अक्ल से पैदल पाठक उनकी बातों को सर पर लाद कैसे लेते हैं?
मुहम्मद उमर कैरान्वी के बार बार इसरार पर एक बार उसके ब्लॉग पर चला गया, देखा कि एक हिदू मुहम्मद भग्त 'राम कृष्ण राव दर्शन शास्त्री' लिखते है कि
''एक क़बीले के मेहमान का ऊँट दूसरे क़बीले की चरागाह में ग़लती से चले जाने की छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष तक ऐसे भयानक रूप से लड़ते रहे थे कि दोनों पक्षों के कोई सत्तर हज़ार आदमी मारे गए, और दोनों क़बीलों के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था, उस उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दिया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे।''
'सत्तर हज़ार' अतिश्योक्ति के लिए ये मुहम्मद का तकिया कलाम हुवा करता था, उनके बाद नकलची मुल्लाओं ने भी उनका अनुसरण किया शास्त्री जी भी उसी चपेट में हैं. बात अगर अंधी आस्था वश कर रहे हैं तो बकते रहें और अगर किराए के टट्टू हैं तो इनको भी मैं उन्हीं ओलिमा में शुमार करता हूँ. गौर तलब है कि उस वक़्त पूरे मक्का की आबादी सत्तर हज़ार नहीं थी, ये दो क़बीलों की बात करते हैं. इनकी पूरी हांड़ी में एक चावल टो कर आपको बतला रहा हूँ कि पूरी हाँडी कैरान्वी की ही तरह बदबूदार हुलिए की है



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सूरह रअद- १३


''अल्लरा - ये आयतें हैं किताब की और जो कुछ आपके रब की तरफ से आप पर नाज़िल किया जाता है, बिलकुल सच है, और लेकिन बहुत से आदमी ईमान नहीं लाते. अल्लाह ऐसा है कि आसमानों को बगैर खम्बों के ऊँचा खड़ा कर दिया चुनाँच तुम उनको देख रहे हो, फिर अर्श पर क़ायम हुवा और सूरज और चाँद को काम में लगाया हर एक, एक वक़्त मुअय्यन पर चलता रहता है. वही अल्लाह हर काम की तदबीर करता है और दलायल को साफ़ साफ़ बयान करता है.ताकि तुम अपने रब के पास जाने का यक़ीन करलो.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (-)
सबसे पहले क़ुरआन में नाज़िल का अर्थ जानें नाज़िल होने का सही अर्थ है प्रकृति की और से प्रकोपित ( कि उपहारित) नाज़िला (बला) होना, यानी क़ुरआन अल्लाह की तरफ से एक बला है, एक नज़ला है. उम्मी (जाहिल) पयम्बर ने अपने दीवान की व्याख्या में ही ग़लती करदी. इसी नाज़िल, नुज़ूल और नाज़िला के बुन्याद पर इस्लाम को भी खड़ा किया कि वह कोई भेंट स्वरूप नहीं, बल्कि क़ह्हार का क़हर है, हर वक़्त उसकी याद में मुब्तिला रहो. इसका फायदा और नुकसान खुद मुस्लमान ही उठा रहा है. अवाम डरपोक हो गई है और ख़वास (आलिम व् मुल्ला और धूर्त-जन) उनके डर का फ़ायदा उठा कर उनको पीछे किए हुए हैं. इसकी बुन्याद डाली है बद नियती के साथ दुश्मने इंसानियत मुहम्मद ने. गवाही में मुगीरा का वाक़ेआ पेश करचुका हूँ.
अल्लाह को ज़रुरत पेश आई यकीन दिलाने की कहता है ''बिलकुल सच है'' यह तो इंसानी कमज़ोरी है, इस लिए कि ''लेकिन बहुत से आदमी ईमान नहीं लाते.''
उम्मी आसमान को छत तसव्वुर करते हैं जब कि इनसे हज़ार साल पहले ईसा पूर्व सुकरात और अरस्तू के ज़माने में सौर्य मंडल का परिचय इन्सान पा चुका था और यह अपने अल्लाह को ऐसा घामड़ साबित कर रहे हैं कि उसको अभी तक इसका इल्म नहीं . अल्लाह बगैर सीढ़ी के उस पर चढ़ कर कयाम पज़ीर हो जाता है और फिर मुंतज़िर खड़े सूरज और चाँद को हुक्म देता है कि काम पर लग जाओ. इन बातों को उम्मी दलायल का साफ़ साफ़ बयान बतलाते हैं और मुसलमान अपने रब के पास जाने का यक़ीन कर लेता है? इस सदी में भी मुसलमानों के चेहरों पर दीदा और खोपड़ी में भेजा नहीं आता तो ज़रूर जाएँगे असली जहन्नम में.

''वह ऐसा है कि उसने ज़मीन को फैलाया और उसमे पहाड़ और नहरें पैदा कीं और उसमे हर किस्म के फलों से दो दो किस्में पैदा किए. रात से दिन को छिपा देता है. इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है. और ज़मीन में पास पास मुख्तलिफ़ टुकड़े हैं और अंगूरों के बाग़ है और खेतयाँ हैं और खजूरें हैं जिनमें तो बअजे ऐसे है कि एक तना से जाकर ऊपर दो तने हो जाते हैं और बअज़े में दो तने नहीं होते, सब को एक ही तरह का पानी दिया जाता है और हम एक को दूसरे फलों पर फौकियत देते हैं इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (-)
चार सौ साल पहले ईसाई साइंटिस्ट गैलेलियो ने बाइबिल को कंडम करके ज़मीन को फैलाई हुई रोटी जैसी चिपटी नहीं बल्कि गोल कहा था तो उसे ईसाई कठ मुल्ला निजाम ने फाँसी की सजा सुना दिया था, खैर वह उनकी बात अपनी जान बचाने के लिए मान गया मगर आज सारे ईसाई गैलेलियो की बात को मान गए हैं. तौरेत के नकल में गढ़े कुरआन के पैरोकार ज़िद में अड़े हुए हैं कि नहीं ज़मीन वैसे ही है जैसी कुरआन कहता है,हालांकि वह रोज़ उसकी तस्वीर कैमरों में देखते हैं. हे कुरआन के रचैता! पहाड़ तो खैर कुदरती हैं मगर उस पर नहरें तो इंसानों ने बनाई! खैर आप को इस बात की भी ख़बर मिली होगी. अहमक अल्लाह! कौन सा फल है जिसकी सिर्फ दो किस्में होती हैं? ( दरअस्ल मुहम्मद को भाषा ज्ञान तो था नहीं शायद दो दो से उनका अभिप्राय बहु वचन से हो)
''रात से दिन को छिपा देता है'' ये जुमला भी कुरआन में बार बार आता है. खुदाए आलिमुल ग़ैब को क्या इस बात का पता था कि ज़मीन पर रात और दिन का निज़ाम क्यूँ है? दरख्तों में तनों की बात फिर करता है, एक या दो दो - -यहाँ पर भी दो दो से अभिप्राय बहु वचन से हैं. इसी तरह तर्जुमा निगारों ने पूरे कुरआन में '' अल्लाह के कहने का मतलब ये - - - है'' लिख कर मुहम्मद की मदद की है. लाल बुझक्कड़ के इन फ़लसफ़ों पर बार मुहम्मद इसरार करते हैं कि
''इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''

'' और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये कौल तअज्जुब के लायक है कि जब हम खाक हो गए, क्या हम फिर अज़ सरे नव पैदा होंगे. ये वह लोग हैं कि जिन्हों ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया और ऐसे लोगों की गर्दनों में तौक़ डाले जाएँगे और ऐसे लोग दोज़खी हैं.वह इस में हमेशा रहेंगे.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत ()
यहूदियत से उधार लिया गया ये अन्ध विश्वास मुहम्मद ने मुसलामानों के दिमाग़ में भर दिया है कि रोज़े महशर वह उठाया जाएगा, फिर उसका हिसाब होगा और आमालों की बुन्याद पर उसको जन्नत या दोज़ख की नई ज़िन्दगी मिलेगी. आमाले नेक क्या हैं ? नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, और अल्लाह एक है का अक़ीदा जो कि दर अस्ल नेक अमल हैं ही नहीं, बल्कि ये ऐसी बे अमली है जिससे इस दुन्या को कोई फ़ायदा पहुँचता ही नहीं, आलावा नुकसान के.
हक तो ये है कि इस ज़मीन की हर शय की तरह इंसान भी एक दिन हमेशा के लिए खाक नशीन हो जाता है बाकी बचती है उस की नस्लें जिन के लिए वह बेदारी, खुश हाली का आने आने वाला कलवह जन्नत नुमा इस धरती को अपनी नस्लों के वास्ते छोड़ कर रुखसत हो जाता है या तालिबानियों के वास्ते . मुहम्मद का भाषाई व्याकरण देखिए - -''और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये कौल तअज्जुब के लायक है'' दोज़ख तो तड़प तड़प कर जलने की आग की भट्टी है, आपफ़रमाते हैं -''वह इस में हमेशा रहेंगे.''

''ये लोग आफियत से पहले मुसीबत का तकाज़ा करते हैं. आप का रब ख़ताएँ बावजूद इसके कि वह ग़लती करते हैं, मुआफ़ कर देता है और ये बात भी यक़ीनी है कि आप का रब सख्त सज़ा देने वाला है. और कहते हैं इन पर मुअज्ज़ा क्यूँ नहीं नाज़िल हुवा. आप सिर्फ डराने वाले हैं. - - और अल्लाह को सब ख़बर रहती है जो कुछ औरत के हमल में रहता है और जो कुछ रहिम में कमी बेशी होती रहती है. और तमाम पोशीदा और ज़ाहिर को जानने वाला है, सब से बड़ा आलीशान है.
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (-)
''क़यामत कैसी होती है लाकर बतलाओ'' लोगों के इस मज़ाक़ पर मुहम्मद की ये आयत कैसी चाल भरी है, रिआयत और धमकी के साथ साथ. लोगों के मुअज्ज़े कि फ़रमाइश को टाल कर जवाब देते है कि वह तो बिलाऊवा हैं सिर्फ डराने वाले, बे सुर कि तानते हैं कि अल्लाह औरत के गर्भ में झाँक कर सब देख लेता है कि क्या घट रहा है. और खुद अपनी शान भी बघारता है कि बड़ा आली शान है. क्या नतीजा निकालते हो मुसलमानों! अल्लाह की इन खुराफाती बातों से ?

''हर शख्स के लिए कुछ फ़रिश्ते हैंजिनकी बदली होती रहती है, कुछ इसके आगे कुछ इसके पीछे बहुक्म खुदा फ़रिश्ते हिफाज़त करते रहते हैं. वाकई अल्लाह तअला किसी कौम की हालत में तगय्युर नहीं करता जब तक वह लोग खुद अपनी हालत को बदल नहीं देते और जब अल्लाह तअला किसी काम पर मुसीबत डालना तजवीज़कर लेता है तो फिर उस को हटाने की कोई सूरत नहीं होती और कोई इसके सिवा मदद गार नहीं होता.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (११)
बाइबिल के कौल को अल्लाह का कलाम बतलाते हुए मुहम्मद कहते हैं, ''वाकई अल्लाह तअला किसी कौम की हालत में तगय्युर नहीं करता जब तक वह लोग खुद अपनी हालत को बदल नहीं देते'' 'दूसरे लम्हे ही इसके ख़िलाफ़ अपनी क़ुरआनी जेहालात पेश कर देते हैं ''जब अल्लाह तअला किसी काम पर मुसीबत डालना तजवीज़ कर लेता है तो फिर उस को हटाने की कोई सूरत नहीं होती और कोई इसके सिवा मदद गार नहीं होता।''



जीम. मोमिन ''निसारुल ईमान''