Sunday 11 July 2010

क़ुरआन

दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


प्रिय दोस्तों और दुश्मनों मेरे!
पिछले ब्लॉग पर आप लोगों के कोई कमेंन्ट्स नहीं आए मायूसी हो रही है।




बे तअल्लुकी उनकी कितनी जान लेवा है,
आज हाथ में उनके फूल है पत्थर है।



मोमिन अपने लिए तो नहीं लिखता मगर शायद आप को ये अच्छा नहीं लगता कि मैं हिदू वादी हूँ, इस्लाम वादी, मैं इस्लाम विरोधी हूँ तो मुझे हिदू समर्थक होना चाहिए - - -


हिन्दू के लिए मैं इक मुलिम ही हूँ, आख़िर,
मुलिम ये समझते हैं गुमराह है काफ़िर.
इंसान भी होते हैं कुछ लोग जहाँ में,
गफ़लत में हैं ये दोनों समझेगा मुनकिर.



विडम्बना ये है कि हमारे समाज में ज्यादाः तर लोग आपस सीगें लड़ाते हुए यही दोनों हैं, फिर भी ये मत देखिए कि कौन कह रहा है, यह देखिए कि क्या कह रहा है.-


क़ुरआन की चुनौतियाँ


आम मुसलामानों को कहने में बड़ा गर्व होता है कि कुरआन की एक आयत (वाक्य) भी कोई इंसान नहीं बना सकता क्यूंकि ये आल्लाह का कलाम है। दूसरी फ़ख्र की बात ये होती है कि इसे मिटाया नहीं जा सकता क्यूंकि यह सीनों में सुरक्षित है, (अर्थात कंठस्त है.) यह भी धारणा आलिमों द्वारा फैलाई गई है कि इसकी बातों और फ़रमानों को आम आदमी ठीक ठीक समझ नहीं सकता, बगैर आलिमों के. सैकड़ों और भी बे सिरों-पर की खूबियाँ इसकी प्रचारित हैं. सच है कि किसी दीवाने की बात को कोई सामान्य आदमी दोहरा नहीं सकता और आपकी अखलाकी जिसारत भी नहीं कि किसी पागल को दिखला कर मुसलामानों से कह सको कि यह रहा, बडबडा रहा है क़ुरआनी आयतें. एक सामान्य आदमी भी नक्ल में मुहम्मद की आधी अधूरी और अर्थ हीन बातें स्वांग करके दोहराने पर आए तो दोहरा सकता है, कुरआन की बक्वासें मगर वह मान कब सकेंगे. मुहम्मद की तरह उनकी नक्ल उस वक़्त लोग दोहराते थे मगर झूटों के बादशाह कभी मानने को तैयार न होते. हिटलर के शागिर्द मसुलेनी ने शायद मुहम्मद की पैरवी की हो कि झूट को बार बार दोहराव, सच सा लगने लगेगा. मुहम्मद ने कमाल कर दिया, झूट को सच ही नहीं बल्कि अल्लाह की आवाज़ बना दिया, तलवार की ज़ोंर और माले-ग़नीमत की लालच से. मुहम्मद एक शायर नुमा उम्मी थे, और शायर को यह भरम होता है कि उससे बड़ा कोई शायर नहीं, उसका कहा हुवा बेजोड़ हैकुरआन के तर्जुमानों को इसके तर्जुमे में दातों पसीने आ गए, मौलाना अबू कलाम आज़ाद सत्तरह सिपारों का तर्जुमा करके, मैदान छोड़ कर भागे। मौलाना शौकत अली थानवी ने ईमानदारी से इसको शब्दार्थ में परिवर्तित किया और भावार्थ को ब्रेकेट में अपनी राय देते हुए लिखा, जो नामाकूल आलिमों को चुभा. इनके बाद तो तर्जुमानों ने बद दयानती शुरू कर दी और आँखों में धूल झोंकना उनका ईमान और पेशा बन गया. दर अस्ल इस्लाम की बुनियादें झूट पर ही रख्खी हुई, अल्लाह बार बार यक़ीन दिलाता है कि उसकी बातें इकदम सही सही हैं, इसके लिए वह कसमें भी खाता है. इसी झूट के सांचे को लेकर ओलिमा चले हैं. इनका काम है मुहम्मद की बकवासों में मानी ओ मतलब पैदा करना. इसके लिए ताफ्सीरें (व्याख्या) लिखी गईं जिसके जारीए शरअ और आध्यात्म से जोड़ कर अल्लाह के कलाम में मतलब डाला गया। सबसे बड़ा आलिम वही है जो इन अर्थ हीन बक बक में किसी तरह अर्थ पैदा कर दे. मुहम्मद ने वजदानी कैफ़ियत (उन्माद-स्तिथि) में जो मुंह से निकाला वह कुरआन हो गया अब इसे ईश वाणी बनाना इन रफुगरों का काम है. जय्यद आलिम वही होता है जो कुरान को बेजा दलीलों के साथ इसे ईश वाणी बनाए.मुसलमान कहते हैं कुरआन मिट नहीं सकता कि ये सीनों में क़ायम और दफ़्न है. यह बात भी इनकी कौमी बेवकूफी बन कर रह गई है, बात सीने में नहीं याद दाश्त यानी ज़हनों में अंकित रहती है जिसका सम्बन्ध सर से है. सर खराब हुआ तो वह भी गई समझो. जिब्रील से भी ये इस्लामी अल्लाह ने मुहम्मद का सीना धुलवाया था, चाहिए था कि धुलवाता इनका भेजा. रही बात है हाफ़िज़े (कंठस्त) की, मुसलमान कुरआन को हिफ्ज़ कर लेते हैं जो बड़ी आसानी से हो जाता है, यह फूहड़ शायरी की तरह मुक़फ्फा (तुकान्तित) पद्य जैसा गद्य है, आल्हा की तरह, गोया आठ साल के बच्चे भी इसके हाफिज़ हो जाते हैं, अगर ये शुद्ध गद्य में होता तो इसका हफिज़ा मुश्किल होता.


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''फिर वह (मरियम) उसको (ईसा को) गोद में लिए हुए कौम के सामने आई। लोगों ने कहा ऐ मरियम तुमने बड़े गज़ब का काम किया है .ऐ हारुन की बहेन! तुम्हारे बाप कोई बुरे नहीं थे, और न तुम्हारी माँ बद किरदार. बस कि मरियम ने बच्चे की तरफ इशारा किया, लोगों ने कहा भला हम शख्स से कैसे बातें कर सकते हैं ? जो गोद में अभी बच्चा है. बच्चा खुद ही बोल उट्ठा कि मैं अल्लाह का बन्दा हूँ . उसने मुझ को किताब दी और नबी बनाया और मुझको बरकत वाला बनाया. मैं जहां कहीं भी हूँ. और उसने मुझको नमाज़ और ज़कात का हुक्म दिया जब तक मैं ज़िन्दा हूँ. और मुझको मेरी वाल्दा का खिदमत गार बनाया, और उसने मुझको सरकश और बद बख्त नहीं बनाया. और मुझ पर सलाम है. जिस रोज़ मैं पैदा हुवा, और जिस रोज़ रेहलत करूंगा और जिस रोज़ ज़िदा करके उठाया जाऊँगा. ये हैं ईसा इब्ने मरियम. सच्ची बात है जिसमे ये लोग झगड़ते हैं. अल्लाह तअला की यह शान नहीं कि वह औलाद अख्तियार करे वह पाक है.''

सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(२७-३४)

पिछली किस्त में आपने पढ़ा कि क़ुरआन में किस शर्मनाक तरीक़े से मुहम्मद ने मरियम को जिब्रील द्वारा गर्भवती कराया और ईसा रूहुल-जिब्रील पैदा हुए। अब देखिए कि दीवाना पैगम्बर, ईसा का तमाशा मुसलमानों को क्या दिखलाता है? विडम्बना ये है कि मुसलमान इस पर यक़ीन भी करता है, क़ुरआन का फ़रमाया हुवा जो हुवा। मरियम हरामी बच्चे को पेश करते हुए समाज को जताती है कि मेरा बच्चा कोई ऐसा वैसा नहीं, यह तो खुद चमत्कार है कि पैदा होते ही अपनी सफाई देने को तय्यार है. लो, इसी से बात करलो कि ये कौन है. लोगों के सवाल करने से पहले ही एक बालिश्त की ज़बान निकल कर टाँय टाँय बोलने लगे ईसा अलैहिस्सलाम . ज़ाहिर है उनके डायलोग और चिंतन उम्मी मुहम्मद के ही हैं. बच्चा कहता है, ''मैं अल्लाह का बन्दा हूँ '' जैसे कि वह देखने में भालू जैसा लग रहा हो. मुहम्मद को उनके अल्लाह ने चालीस साल की उम्र में क़ुरआन दिया था, ईसा को पैदा होते ही किताब मिली? जैसे कि ईसा का पुनर जन्म हुवा हो, और वह अपने पिछले जन्म की बात कर रहे हों. मुहम्मद की कुबुद्धि बोल चाल में इस स्तर की है कि इल्म की दुन्या में जैसे वह थे. व्याकरण, काल, भाषा, परस्तुति, इनकी गौर तलब है. लेखन की दुन्या में अगर इन आयतों को दे दिया जय तो मुहम्मद की बुरी दुर्गत हो जाए. इन्ही परिस्थियों में जो आलिम इसके अन्दर मानी, मतलब और हक़ गोई पैदा कर दे, वह इनआम याफ़्ता आलिम हो सकता है. मुसलमानों के सामने ये खुली खराबी है कि वह ऐसी क़ुरआन पर लअनत भेज कर इससे मुक्ति लें. अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बने ईसा मुहम्मद की नमाज़,ज़कात और इस्लाम का प्रचार भी करते हैं.

''तमाम ज़मीन और इस पर रहने वालों के हम ही मालिक रह जाएँगे और ये सब हमारे पास ही लौटे ''

''सूरह मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(४०)

मुसलामानों तुम्हारा अल्लाह कितना बडबोला है, यह बशर का सच्चा अल्लाह तो नहीं हो सकता. वह जो भी हो, जैसा भी हो, अपने आप में रहे, मखलूक को क्यूँ डराता धमकाता है ? हम उससे डरने वाले नहीं, क्या हक़ है उसे मखलूक को सज़ा देने की ? क्या मखलूक ने उससे गुज़ारिश की थी कि हम पैदा होना चाहते हैं, इस तेरी अज़ाबुन-नार में? अपनी तमाश गाह बनाया है दुन्या को? ऐसा ही ज़ालिम ओ जाबिर अगर है अगर तू , तो तुझ पर लअनत है।
बकौल शायर, कहता है - - -
तूने सूरज चाँद बनाया, होगा हम से क्या मतलब,

तूने तारों को चमकाया, होगा हम से क्या मतलब,

तूने बादल को बरसाया, होगा हम से क्या मतलब,

तूने फूलों को महकाया, होगा हम से क्या मतलब।


तूने क्यूं बीमारी दी है, तू ने क्यूं आजारी दी?

तूने क्यूं मजबूरी दी है, तूने क्यूं लाचारी दी?

तूने क्यूं महकूमी१ दी है, तूने क्यूं सालारी २ दी?

तूने क्यूं अय्यारी दी है, तूने क्यूं मक्कारी दी?



तूने क्यूं आमाल३ बनाए, तूने क्यूं तकदीर गढा?

तूने क्यूं आजाद तबा४ दी, तूने क्यूं ज़ंजीर गढा?

ज़न,ज़र,मय५ में लज़्ज़त देकर, उसमें फिर तकसीर६ गढा,

सुम्मुम,बुक्मुम,उमयुन७ कहके, तानो की तकरीर रचा।


बाज़ आए तेरी राहों से, हिकमत तू वापस लेले,

बहुत कसी हैं तेरी बाहें, चाहत तू वापस लेले,काफिर,

'मुंकिर' से थोडी सी नफरत तू वापस लेले,

दोज़ख में तू आग लगा दे, जन्नत तू वापस लेले।


१-आधीनता २-सेनाधिकार ३-स्वछंदता ५-सुंदरी,धन,सुरा,६-अपराध ७-अल्लाह अपनी बात न मानने वालों को गूंगे,बहरे और अंधे कह कर मना करता है कि मत समझो इनको,इनकी समझ में न आएगा


''और इस किताब में इब्राहीम का भी ज़िक्र कीजिए, वह बड़े रास्ती वाले और पैगम्बर रहे. जब कि उन्हों ने अपने बाप से कहा था कि ऐ मेरे बाप! मेरे पास ऐसा इल्म पहुँचा है जो तुम्हारे पास नहीं आया. तो तुम मेरे कहने पर चलो तुम को सीधा रास्ता बतलाऊँगा. ऐ मेरे बाप तुम शैतान की परिस्तिश मत करो, बेशक शैतान रहमान की नाफ़रमानी करने वाला है. ऐ मेरे बाप मैं अंदेशा करता हूँ कि तुम पर रहमान की तरफ से कोई अज़ाब आ पड़े, फिर तुम शैतान के साथी बन जाओ. जवाब दिया क्या तुम मेरे माबूदों से फिरे हुए हो? ऐ इब्राहीम तुम अगर बअज़ न आए तो मैं ज़रूर तुम पर संगसारी करूंगा और हमेश हमेश के लिए मुझ से बर किनार रहो. कहा मेरा सलाम लो, अब मैं तुम्हारे लिए रब से मग्फ़िरत की दरख्वास्त करूंगा. बे शक वह मुझ पर बहुत ही मेहरबान है और मैं तुम लोगों से और जिन की तुम खुदा को छोड़ कर इबादत कर रहे हो उन से कनारा करता हूँ और अपने रब की इबादत करूंगा.''
मरियम १९-१६ वाँ पारा- आयत(४१-५०)

सूरह मरियम में मुहम्मद तकिया कलाम रहमान है, वह किसी एक शब्द को पाकर उसका इस्तेमाल बार बार करते हैं, ऐसा होता है ये इंसानी फितरत है, रहमानी नहीं. इन आयातों को उतारते हुए मुहम्मद अपने चचा अबू तालिब को ज़ेहन में रख्खा है कि वह भी मुहम्मद बेटे की तरह समझा था मगर जीते जी इस्लाम को कुबूल नहीं किया. मुहम्मद ने उनसे ठीक इसी तरह की बातें की थीं . इसके बाद अल्लाह अपनी उबाऊ भाषा में कटा है कि जब इब्राहीम अपने लोगों से अलग ही तो अल्लाह ने उनको बेटा इशाक और पोता याकूब दिया।


जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान

6 comments:

  1. जय भीम पेरियार की रामायण भी पढ़ें और टिप्पणी दें

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  2. मियाँ कैरान्वी उर्फ सत्य गौतम!!!!!!!!!
    दूसरों को मूर्ख समझते हो??????? सत्य गौतम के नाम का बुरका पहनकर भौंकते हो

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  3. कुरआन ही सत्य(?) है- कुरान अल्लाह की किताब है. कुरान के संदेश देखिये_
    जब हराम के महीने बीत तो फिर मुशरिकों (गैर मुसलमानों)को जहाँ पाओ क़त्ल करो,और पकड़ो,उन्हें घात लगा कर घेरो, हर जगह उनकी तक में रहो,अगर वो नमाज कायम कर लें तो उनको छोड़ दो नहीं तो उनकी उंगलिया और गर्दन काट लो.निसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील है.(कुरान 10:9:5)

    जब तुम काफिरों से भिड जाओ तो उनकी गर्दन काट दो, और जब तुम उन्हें खूब कत्ल कर चुको तो जो उनमे से बच जाये उन्हें मजबूती से कैद कर लो (कुरान 26: 47.4 )

    निश्चित रूप से काफिर मुसलमानों के खुले दुश्मन है (इस्लाम में भाई चारा केवल इस्लाम को मानने वालों के लिए है) (कुरान 5 : 4.101)

    मुसलमानों को अल्लाह का आदेश है की काफिरों के सर काट कर उड़ा दो ,और उनके पोर -पोर मारकर तोड़ दो (कुरान 9 : 8. 12)

    हे इमान वालों, मूर्तिपूजक नापाक हैं.( कुरान 10:9.28)

    निस्संदेह मूर्तिपूजक तुम्हारे दुश्मन हैं.-( कुरान 5: 4.101)

    हे नबी,काफिरों से जिहाद करो.उनको जहन्नम में पहुचाओ.( कुरान 24: 41.27)

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  4. सत्य गौतम साहब!
    मैंने पेरियार को भी पढ़ा है और मनु स्मृति भी उम्र गुजरी है पढने में ही .
    आप का मुखालिफ अगर ९०% झूठा है तो आपका झूट ४५% ही है, तो चलेगा, क्या आप किसी के मुकाबिले में कम झूठे बने रहना चाहते हैं? मेरे पास मुसलमानों को बेदार करने का जज़्बा है, सो मैं अपनी धुन में हूँ, बाकी हर कौमों में समाज सुधारक अपने अपने समाज को सुधर के ठिकाने लगा चुके हैं. आप भी ईमानदार मोमिन बनी.

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  5. इस्लाम के दलाल
    १. मुहम्मद उम्र कैरान्वी
    २. सलीम खान
    ३. अनवर जमाल
    ४. असलम कासमी
    ५. जिशान जैदी
    ६. अयाज अहमद
    ६ .सफत आलम
    ७. शाहनवाज
    बाकियों को भी सभी जानते हैं.
    प्रमाण
    इनके बाप ईसाइयों ने ११ सितम्बर को इनके अल्लाह की किताब कुरान जलाने की घोषणा की है.
    अमेरिका ने सऊदी अरब को मोती रकम देकर कुरान जलाने का विरोध न करने का "आदेश" दिया है. अपने बाप के आदेश पर आतंकवाद के सरगना सऊदी अरब ने अपने चमचों आतंकवादियों से चुप बैठने को कह दिया है.
    चुप बैठने वाले आतंकवादियों को भी उनका हिस्सा मिलेगा. इसलिए उपरोक्त "इस्लाम के दलाल" चुप बैठे हैं. भारत में तो कुरान के नाम पर हिन्दुओं का खून पीने को तैयार रहते हैं. अब क्या हुआ?????????

    इस्लाम के दलालों के संगठन का नाम "impact " यानी "indian muslim progressive activist "है. यह दल "indian mujaahidin "से संबधित है .कैरानावी और सलीम खान इसके local सरगना हैं .बाक़ी सब सदस्य हैं, जिनमें असलम कासमी, अनवर जमाल, अयाज अहमद, एजाज अहमद, जीशान जैदी आदि शामिल हैं. इस्लाम के दलालों के ग्रुप में बुरकेवालियां भी हैं .इनका मुख्य काम दुश्मनों को सूचना देना है. कैरानवी का गिरोह धर्मं परिवर्तन कराना, आतंकवादियों को और घुसपैठ करने वालों को पनाह देना है और उनका सहयोग करना है. blogging तो इनका बाहरी रूप है. ब्लोगिंग के माध्यम से ये लोग अपनी जेहादी मानसिकता के लोग तलाश रहे हैं.

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  6. मुसलामानों तुम्हारा अल्लाह कितना बडबोला है, यह बशर का सच्चा अल्लाह तो नहीं हो सकता. वह जो भी हो, जैसा भी हो, अपने आप में रहे, मखलूक को क्यूँ डराता धमकाता है ? हम उससे डरने वाले नहीं, क्या हक़ है उसे मखलूक को सज़ा देने की ?

    अबे उल्लू के पठ्ठे तेरी अक़ल घास चरने गयी है क्या मुझे बता तेरी औलाद अगर तुझे कहे की " तेरी माँ की......" तो तू क्या करेगा प्यार से गले लगेगा अगर तेरी औलाद किसी दुसरे को कह दे की " ये है मेरा बाप " तो तू उसकी आरती उतरेगा अगर तेरी बीबी गैर मर्द के साथ सो जाए तो तो उसको सजा मत देना चूतिये के ठप्पे तुझे उसे सजा देने का क्या हक बनता है अगर तेरी मान बदकारी करे तो बुरा मत मानना मुन्ने अगर अभी भी अकल आ जाये तो बेहतर है.

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