Sunday 25 July 2010

क़ुरआन सूरह ताहा _ २०


झूट का एलान है - - -
ये अज़ान
 
 मुसलामानों क़ौम की अक़ल पर हैरत होती है कि वह अपने किसी अमल पर दोबारा एक बार नज़र नहीं डालती कि वह अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर चल कर किस दिशा में जा रही है. जब कि दूसरी कौमें वक़्त के साथ बदलते हुए किसी से पीछे नहीं रहतीं. अज़ान की सुब्ह से शाम तक की आवाज़ें सिर्फ मुसलमान ही नहीं सारी दुन्या सुनती है और उस से आशना है, दुन्या में हज़ारों मस्जिदें होंगी, उन पर लाखों मुअज़्ज़िन(अजान देने वाले) होंगे, दिन में पॉँच बार कम से कम ये बावाज़ बुलंद दोहराई जाती है. अज़ान, नमाजों से पहले भी नमाज़ी, नमाज़ की नियत बांधने से पेश्तर पढता है. ग़रज़ हर मुअज़्ज़िन जितनी बार अज़ान देता है उसके चार गुना बार एलानिया झूट चीख चीख कर बोलता है और हर नमाज़ी जितनी बार नमाज़ की नियत बाँधता है उसके चार गुना बार बुदबुदाते हुए झूट बोलता है, जो अनजाने में हर नमाज़ी पढता है.
देखिए अज़ान में सबसे बड़ा पहला झूट _
१-अश हदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ की मुहम्मद अल्लाह के रसूल{दूत} हैं) बोल नंबर 3
गवाही का मतलब क्या होता है ? कोई अदना मुस्लमान से लेकर आलिम, फ़ज़िल, दानिशवर, मुस्लिम बुद्धि जीवी बतलाएं कि एक साधारण मस्जिद का मुलाज़िम किस अख्तियार को लेकर या कौन से सुबूत उसके पास हैं कि वह अल्लाह और मुहम्मादुर्रूसूलिल्लाह का चश्म दीद गवाह बना हुवा है? क्या उसने सदियों पहले अल्लाह को देखा था? और क्या उसे मुहम्मद के साथ देखा था?, सिर्फ देखा ही नहीं, बल्कि अल्लाह को इस अमल के साथ देख था कि वह मुहम्मद को रसूल बना रहा है? क्या अल्लाह की भाषा उस के समझ में आई थी? क्या हर अज़ान देने वाले की उम्र १५०० साल के आस पास की है, जब कि मुहम्मद को ये नबूवत मिली थी.
याद रखें गवाही का मतलब शहादत होता है, अकीदत नहीं, आस्था नहीं, यकीन नहीं, कोई अय्यार आलिम शहादत से चश्म पोशी नहीं कर सकता. गवाही के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता. न ही राम चन्द्र परम हंस की तरह झूटी गवाही दे सकता है कि जैसा उसने गवाही के संसार में एक मिथ्य की नज़ीर क़ायम किया "गीता पर हाथ रख कर कहा कि उसने राम लला को बाबरी मस्जिद में जन्मते देखा"
इसलाम आलमी मज़हब और उसकी बुनियाद इतनी खोखली? हैरत है जेहालत के मेराज पर और इस क़ौम के जुमूद पर.
थोडा सा अज़ान का परिचय दे दूं तो आगे बढूँ - - -
"जब महाजरीन मक्का से मदीना आए, तो एक रोज़ इकठ्ठा होके सलाह मशविरा किया कि नमाज़ियों को इत्तेला करने के लिए कि नमाज़ का वक्त हो गया है, क्या तरीक़ए कार अख्तियार किया जाए. सभी ने अपनी अपनी राय पेश कीं, किसी ने राय दी कि यहूद की तर्ज़ पर सींग बजाई जाए, किसी ने अंसार की तर्ज़ पर नाक़ूश (शंख) फूकने की राए दी. किसी ने कुछ किसी ने कुछ. मुहम्मद सब की राय को सुनते रहे मगर उनको उमर की राय पसंद आई कि अज़ान के बोल बनाए जाएँ, जिस को बाआवाज़ बुलंद पुकारा जाए. मुहम्मद ने बिलाल को हुक्म दिया उठो बिलाल अज़ान दो।"
(बुखारी ३५३)
चन्द लोगों के बीच किया गया एक फैसला था जिस में मुहम्मद के जेहनी गुलामों की सियासी टोली थी. अनपढों के बनाए हुए बोल थे महज़ , यहाँ तक कि मुहम्मद के मफरूज़ा इल्हामी वहियाँ भी न थीं जो बदली न जा सकतीं. हाँ उमर की अज़ान होने के बाईस बाद में शियों ने इस में कुछ रद्दो बदल कर दिया मगर इसे और भी दकयानूसी बना दिया. अज़ान मुसलमानों में इस क़द्र मुक़द्दस है कि बच्चे के पैदा होते ही इस झूट को उस के कानों में फूँक दिया जाता है.
अब आगे देखिए कि पंचों का ये फैसला मुहम्मद अपनी फरमूदत में कैसे ढालते हैं - - -
" मुहम्मद कहते हैं कि जब नमाज़ के लिए अज़ान दी जाती है तो शैतान पादता हुवा इतनी दूर भागता है कि जहाँ तक अज़ान की आवाज़ जाती है. जब अज़ान ख़त्म हो जाती है तो फिर वापस आ जाता है और तकबीर नमाज़ बा जमाअत के बाद फिर भाग जाता है. उसके बाद फिर आ जाता है और नमाजियों को वस्वसे में डाल देता है ----
(बुखारी ३५५)
इस झूटी गवाही की झूट अज़ान की इस तरह की बहुत सी बरकतों की एक तवील फेहरिस्त आप को मिलेगी.
२-अश हदोअन ला इलाहा इल्लिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.) बोल नंबर २
यहाँ पर भी गवाही तो बहरहाल काबिले एतराज़ है चाहे इस्लामी अल्लाह हो, या आलमी अल्लाह हो या गाड हो. लायके इबादत भी मुनासिब नहीं. काबिले सताइश तो हो सकता है. कोई कुदरत अपनी इबादत की न ज़रुरत रखती है, न ही उसकी ऐसी समझ बूझ होती है. उसकी तलाश में खुद उससे जूझते रहना उसकी दावत है और यही इन्सान के हक में है.
३- अल्ला हुअक्बर अल्लाह हुअक्बर
(अल्लाह बहुत बड़ा है) बोल नंबर १
बहुत बड़ी चीजें तभी होती हैं जब कोई दूसरी चीज़ उसके मुकाबले में छोटी हो. कुरआन का एलान है कि अल्लाह सिर्फ़ एक है तो उसका अज़ानी एलान बेमानी है कि अल्ला बहुत बड़ा है. मगर चूंकि इस्लाम एक उम्मी की रक्खी हुई बुन्याद है, इस लिए इस मे ऐसी खामियां रहना फितरी बात है. सच्चाई ये है की मुहम्मद ने एक तरफ़ दूसरा खुदा शैतान को बनाया है, तो दूसरी तरफ ३६० काबा के बुतों को तोड़ कर एक बड़े हवाई अल्लाह के बुत को कायम किया, बाद में उसके रसूल बन कर खुद अल्लाह बन गए हैं. कलिमाए शहादत इसी बात की तिकड़म है. शैतन को छोटा अल्लाह उन खुदाई ताक़तों से नफरत के लिए जो कहीं पर कुछ मुक़ाम रखती हों, मगर यहाँ पर भी उम्मी मुहम्मद से भूल चूक हुई है, जिस से शैतान बाज़ी मार ले गया है. कुरआन में शैतान का नाम पहले आता है, इसके मुक़ाबला में अल्लाह सिर्फ रहमान और रहीम होता है. मुक़ाबला शुरू होता है कुरआन की कोई भी सूरह पढने से पहले, देखें - - -
आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर रजीम, बिस्मिल्ला हिरर रहमा निर रहीम.
नाम पहले शैतान का आता है.
४- हैइया लस सला, हैइया लस सला.
(आओ नमाज़ की तरफ़ आओ नमाज़ की तरफ़) बोल नंबर ४
नमाजों में यही कुरानी इबारतें आंख मूँद कर पढ़ी जाती हैं जो हर्फे गलत में आप पढ़ रहे हैं. मनन, मगन, चिंतन, ध्यान या नानक की तरह यादे इलाही में ग़र्क़ हो जाना नमाज़ नहीं है, कुरानी आयातों के पाठ्य में ज़ेर ज़बर का फर्क हुवा तो नमाज़ अल्लाह ताला तुम्हारे मुँह पर वापस मार देगा, बोर्ड इक्जाम की कापियों की तरह चेक होती है नमाजें. मैं इन नमाजों को पंज वक्ता खुराफ़ात कहता हूँ. जोश मलीहाबादी कहते हैं - - -

जिस को अल्लाह हिमाक़त की सज़ा देता है,

उसको बे रूह नमाज़ों में लगा देता है।

५- हैइया लल फला, हैइया लल फला
(आओ भलाई की तरफ ,आओ भलाई की तरफ) बोल नंबर ५
नमाज़ पढना किसी भी हालत में भलाई का काम नहीं कहा जा सकता. इंसानी या मख्लूकी फलाह ओ बहबूद के काम ही भलाई के काम कहे जा सकते हैं. मस्जिद में दाखला ही इस वक़्त सोच समझ कर करने की ज़रुरत है. नव जवानो को खास कर आगाही है कि वह मुल्लाओं के शिकार न बन जाए, मुसलामानों में तरके मस्जिद कि तहरीक चलनी चाहिए जैसे कि तरके मीलादुन नबी खुद बखुद वजूद में आगे है।


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सूरह ताहा _ २०


''ताहा''
सूरह ताहा _ २० -१६ वां पारा (१)
तर्जुमान लिखता है इसके मअने तो अल्लाह को ही मालूम हैं.
जिनके शब्दों के मअने पाठक न जान सकें तो ऐसे अर्थ हीन शब्द को लिखना और पढ़ते रहना और पढ़ाते रहना का क्या मकसद है?
'' हमने क़ुरआन आप पर इस लिए नहीं उतारी कि तकलीफ उठाएं, बल्कि ऐसे शख्स की नसीहत के लिए जो डरता हो. ये उस की तरफ से नाजिल किया गया है जिसने ज़मीन को और बुलंद आसमानों को पैदा किया. बड़ी रहमत वाला अर्श पर कायम है. उसी की हैं जो चीजें आसमानों में हैं और ज़मीन में हैं. और जो इन दोनों के दरमियान में हैं. और जो चीज़ें तःतुत सरा में हैं.
सूरह ताहा _ २० -१६ वां पारा (२-६)
मुहम्मद तकलीफ नहीं उठा रहे बल्कि दूसरों को तकलीफ़ ऐ जारिया दे रहे हैं.
यह तह्तुत्सरा क्या ज़मीन और आसमान से बाहर है? इन दोनों के दरमियाँ तो नहीं ही है, उम्मी ने लफ्ज़ को किसी से सुन लिया होगा और इस्तेमाल करने की कोशिश की . अगर यह अल्लाह का कलाम होता तो ऐसी लग्ज़िश के इमकान ही न होते. या काश की उम्मी इस क़दर के उम्मी न होते.
''और अगर तुम पुकार के बात करो तो वह चुपके से कही गई बात को और इस भी ख़फ़ी बात को जानता है - - - उसके अच्छे अच्छे नाम हैं .
हजारों बार दोहराया है कुरआन में इस बात को, अगर इस कायनात का बनी वह है तो उसी की तख्लीक़ हम सब है, ख्वाह कुछ भी और कैसे भी हों. अल्लाह के बहुत से नाम ओलिमा नामुरादों रक्खा हुवा है, खुद अल्लाह ने अपने नाम नहीं बतलाए , अभी तो वह किसी को दिखा भी नहीं.
सूरह ताहा _ २० -१६ वां पारा (७-८)
 
आयत ७ से ७५ तक मूसा और फिरौन सुने सुनाए को किस्से को मुहम्मद अपने बेढंगे तरीके से दोहराया हैं, मूसा यहूदी से नमाज़ें पढवाते हैं, ये कहना नहीं भूलते कि क़यामत ज़रूर आएगी और बागों नहरों वाली जन्नत मुसलामानों के लिए, चंद नमूने पेश हैं - - -
''मूसा ने उन लोगों से फरमाया ऐ कमबख्ती मारो अल्लाह तअला पर झूट इफतरा मत करो ''
फिरौन के जादूगरों से मूसा की लफज़ी जंग होती है बहुत बचकाना संवाद मुहम्मद ने अपने ही स्तर के बके हैं, अल्लाह भाषा पर गौर करें.
''फिर उन्हों ने कहा आप अपना पहले डालेंगे या हम पहले डालने वाले नहीं, आप ने फरमाया नहीं तुम ही पहले डालोगे,पस यका यक उनकी रस्सियाँ और लाठियां उनकी नज़र बंदी से उनके ख़याल में ऐसे मालूम होने लगीं जैसे दौड़ती हों.''
''और तुम्हारे दाहिने हाथ में जो है इसको डाल दो, उन लोगों ने जो कुछ बनाया है, ये सब को निंगल जायगा.''
''सो जादूगर सजदे में गिर पड़े और ईमान लाए.''
फिरौन अपने जादूगरों से कहता है ''मैं तुम्हारे हाथ पाँव कटवाता हूँ, एक तरफ़ का हाथ और एक तरफ़ का पाँव और तुम सब को खजूरों के दरख़्त पर लटकुवाऊँगा और ये भी तुम्हें मालूम हुवा जाता है कि किसका अज़ाब ज्यादा सख्त और देर पा है,''
मुसलामानों गौर करो कि तुम अपने नमाज़ों में क्या इन्हीं वाहियात बातों को दोहराते हो, इसी को अल्लाह का कलाम मानते हो?
जागो ! ऐसे कलाम-ए-नापाक से नफ़रत किए बिना तुम्हारा मुस्तकबिल रौशन नहीं हो सकता, अभी तक जिस गुनहगारी के अंधरे में थे ,उस का कफ्फारह यही है कि सिर्फ सच्चा ईमान अख्तियार करो और मोमिन बन जाओ

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जीम 'मोमिन' निसारुल -ईमान
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9 comments:

  1. मुसलामानों गौर करो कि तुम अपने नमाज़ों में क्या इन्हीं वाहियात बातों को दोहराते हो, इसी को अल्लाह का कलाम मानते हो?

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  2. इब्लीस शैतान नहिं, वह पहला क्रांतिकारी था,जिसने अल्लाह के दोगले आदेश को मानने से इन्कार कर दिया था। अल्लाह हमेशा कहता था,मेरे सिवाय किसी को भी सज़दा न करो,यह शिर्क है,और आदम को पैदा कर उसे भी सज़दा करने का दोगला हुक्म फ़रिस्तों को फ़रमा दिया।
    सभी डरपोक फ़रिस्तों ने मान लिया, पर इब्लीस नें इस दोगलेपन का विरोध किया। आज भी वह शैतान शब्द के अन्याय पूर्ण ठप्पे को सह रहा है।
    ऐसा मनमौजी अल्लाह यदि आखरत के दिन अपने नियम बदल दे,और जिसने भी लाइल्लाह्………॥ किया जह्न्नुम में झोक दे।


    सायबर यज़ीद कैरानवी,

    अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
    (साल्लाह अपनी ही पैदा की गई मानव-जाति को चैलेंज ठोकता है)

    अल्‍लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
    (कितने सबूत चाहिए,चल अल्‍लाह को बोल एक टिप्पणी मार यहां)

    अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
    (साल्लाह विरोध का 'आभास' क्या, प्रमाणिक विरोध ही विरोध दर्ज़ है)

    अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार
    (साल्लाह कभी कहता है,बहुत सी भेजी,कभी चार,तो चारों को सही तो मान )आसमानी नहिं हरे रंग की दिखती है।

    अल्‍लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
    (साल्लाह कभी वैज्ञानिकों की बातों का सहारा लेता है,कभी वैज्ञानिकों के विरोध में खडा होता है,तेरा क्या भरोसा?)

    अल्‍लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
    (साल्लाह तूं ही पैदा करे, जीवित भी रखे और कहे कभी शांति नहीं मिलेगी। जब तक यहूदी इस ज़मी पर रहेंगे, अल्लाह तुझे शांति नहीं मिलेगी )

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  3. momin sahab,

    क्या यह ब्लोग 'चिट्ठाजगत' पर अधिकृत नहिं है? तो कर दिजिये।
    क्या 'हमारीवाणी'पर रजिस्टर नहिं किया है? तो कर दिजिये।
    आपका ब्लोग महत्वपूर्ण है,लोगों तक पहूचनी चाहिए,
    पोस्टों को विभिन्न एग्रीगेटरों पर डालिये,और चेक करके कि प्रकाशित हो।
    आपकी बात जयादा लोगों तक पहूचें,90% भी जड हो सकते है,यदि 10% के सरल मन तक बात पहूची तो उनका भला हो जायेगा।

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  4. मान्यवर !
    मुहम्मद उमर कैरान्वी को मुनासिब जवाब देने वाला मैदान में आ गया है जो उन्हीं की भाषा में उनको जवाब देने में सक्षम है. मैं आपकी राय पर अमल करने की कोशिश करूगा. धन्य वाद .

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  5. अच्छा किया आपने 'हमारीवाणी'पर रजिस्टर नहिं किया।
    यह एग्रिगेटर सायबर मुल्ला मुहम्मद उमर कैरान्वी, शाह नवाज़,सलीम खान,अयाज़ अहमद, अनवर जमाल, असलम क़ासमी,आदि टोली का है।

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  6. क्या वास्तव में मेरी शिक्षा ऐसी ही है जैसा इस ब्लॉग में जिक्र किया गया है?
    अगर सच्चाई यही होती तो आज करोड़ो हाथों और दिलों में मेरा वजूद ना होता।
    ऐ इंसानों आओ मैं तुम सबको आमंत्रित करता हूं। बिना किसी पूर्वाग्रह के मुझे पढ़ो, गौर करो मेरी शिक्षा पर और ईमानदारी से सोचो अपने सच्चे दिल और दिमाग से।
    उस दिल-दिमाग से जो सच्चे मालिक का दिया हुआ है। मुझे यकीन है वह सच्चा पालनहार आपका मार्गदर्शन करेगा।

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  7. 'कुरआन में छिपे दार्शनिक तत्व और नैतिक शिक्षाओं ने मुझे बेहद प्रभावित किया और ये मुझे सोने के समान खरी नजर आईं।
    कुरआन की आयतों को देखकर मुझे यकीन हो गया कि पैगंबर और उनके मिशन पर किसी तरह का शाक नहीं किया जा सकता।'
    ..२५ सितंबर १९८० को उन्होने इस्लाम का कलिमा पढ़ लिया-‘ मैं गवाही देता हू कि सिवाय अल्लाह के कोई इबादत के लायक नहीं और मुहम्मद स.ल व अल्लाह के रसूल हैं। इस्लाम कबूल करने के बाद पन्द्रह साल बाद तक डॉ हॉफमेन जर्मनी के दूत और नाटो के अधिकारी की हैसियत से काम करते रहे।

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  8. मैंने दुनिया के विभिन्न लोगों और सभ्यताओं के इतिहास का अध्ययन किया। विभिन्न धर्मग्रंथों और दर्शनशास्त्र को भी पढ़ा। मैंने तीन साल तक गहराई से बोध धर्म का भी अध्ययन किया।
    इस दौरान मैंने जब कुरआन पढ़ा तो मैं इससे बेहद प्रभावित हुआ। कुरआन की शिक्षा ने मुझ पर जादुई असर डाला और मुझे पूरी तरह यकीन हो गया कि कुरआन सच्चे ईश्वर की तरफ से भेजा गया धर्मग्रन्थ है। मैं नहीं जानता कि मैं किस तरह इस्लाम की छांव में आ पहुंचा। मेरा भरोसा है कि ईश्वर ही ने मुझे सही राह दिखाई।

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  9. इस्लाम के दलाल
    १. मुहम्मद उम्र कैरान्वी
    २. सलीम खान
    ३. अनवर जमाल
    ४. असलम कासमी
    ५. जिशान जैदी
    ६. अयाज अहमद
    ६ .सफत आलम
    ७. शाहनवाज
    बाकियों को भी सभी जानते हैं.
    प्रमाण
    इनके बाप ईसाइयों ने ११ सितम्बर को इनके अल्लाह की किताब कुरान जलाने की घोषणा की है.
    अमेरिका ने सऊदी अरब को मोती रकम देकर कुरान जलाने का विरोध न करने का "आदेश" दिया है. अपने बाप के आदेश पर आतंकवाद के सरगना सऊदी अरब ने अपने चमचों आतंकवादियों से चुप बैठने को कह दिया है.
    चुप बैठने वाले आतंकवादियों को भी उनका हिस्सा मिलेगा. इसलिए उपरोक्त "इस्लाम के दलाल" चुप बैठे हैं. भारत में तो कुरान के नाम पर हिन्दुओं का खून पीने को तैयार रहते हैं. अब क्या हुआ?????????

    इस्लाम के दलालों के संगठन का नाम "impact " यानी "indian muslim progressive activist "है. यह दल "indian mujaahidin "से संबधित है .कैरानावी और सलीम खान इसके local सरगना हैं .बाक़ी सब सदस्य हैं, जिनमें असलम कासमी, अनवर जमाल, अयाज अहमद, एजाज अहमद, जीशान जैदी आदि शामिल हैं. इस्लाम के दलालों के ग्रुप में बुरकेवालियां भी हैं .इनका मुख्य काम दुश्मनों को सूचना देना है. कैरानवी का गिरोह धर्मं परिवर्तन कराना, आतंकवादियों को और घुसपैठ करने वालों को पनाह देना है और उनका सहयोग करना है. blogging तो इनका बाहरी रूप है. ब्लोगिंग के माध्यम से ये लोग अपनी जेहादी मानसिकता के लोग तलाश रहे हैं.

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