(6 The Cattle)
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हदीसी हादसे
'' अली ने एक कौम को आग से जला डाला'' यह खबर इब्न ए अब्बास को भी मालूम हुई तो फ़रमाया - - - अगर मैं होता तो इस कौम को अल्लाह की मानिंद (आग से जला कर) अज़ाब न देता जिस तरह कि हुज़ूर ( मुहम्मद) का हुक्म है किसी को अल्लाह के खास अज़ाब से अज़ाब न दिया जाए बल्कि जो शख्स अपना दीन बदल दे , उसको क़त्ल कर दिया जाए.''
(बुखारी १२४५)
मुसलमानों में दो वर्ग हैं शिया (मोहम्मद के रिश्तेदारों के समर्थक) सुन्नी - - कालिमा गो आम मुसलमान. शियों का कहना है कि पैगम्बरी अली के लिए आई थी फ़रिश्ते जिब्रील ने गलती की कि बड़े भाई मोहम्मद को थमा दी. शियों ने अली की शान में किताबों से लाइब्रेरियाँ भर दीं, वह इबारतें लिख और पढ़ लेते थे बस, कर्म उनके थे जो हदीस बतला रही है. मोहम्मद के ले पालक, हमेशा इक्तेदार के भूखे, एक अदना और मामूली इंसान, उजड, मौक़ा मिला तो बस्ती में एक कबीले को ज़िदा जला दिया, आज वह छोटे मोहम्मद बने मुसलामानों के लिए ''या अली'' बने हुए हैं. यह कौम है दमा दम मस्त कलंदर - -गाती है अली दा पहला नम्बर.
आइए कुरआनी ख़ुराफ़ात पर - - -
'' आप के रब का कलाम वाक़एअय्यत और एतदाल के एतबार से कामिल है. इसके कलाम का कोई बदलने वाला नहीं और वह खूब सुन रहे हैं, खूब जान रहे हैं.''
सूरह अनआम छताँ+सातवाँ परा (आयत ११६)
जिन खुसूसयात का कुरआन से कोई वास्ता नहीं, उसका वह दावा कर रहा है. तमाम वाक़िए सुने सुनाए और बेशतर मुहम्मद के गढ़े हुए हें. जिनमें न सर न पैर. एतदाल का यह आलम है कि अभी अल्लाह जंग और जेहाद की बातें कर रह है, दूसरे लम्हे ही आ जाता है औरत को मर्द से कम तर बतलाने में ,तीसरे लम्हे दोज़ख की आग भडकाने लगता है. उसके कलाम को मुसलामानों की जेहालत और इनके साजिशी ओलिमा की चालें बदलनेनहीं देतीं वर्ना इनमें रक्खा क्या है.
'' सो जिस शख्स को अल्लाह ताला रस्ते पर डालना चाहते हैं उसके सीने को इस्लाम से कुशादा कर देते हैं और जिस को बे राह रखना चाहते हैं उसके सीने को तंग कर देते हैं जैसे कोई आसमान पर चढ़ना चाहता हो. इसी तरह अल्लाह ईमान न लाने वाले वाले परफिटकार डालता है.''
सूरह अनआम छताँ+सातवाँ परा (आयत १२६)
सच यह है कि जिनको मुहम्मदी अल्लाह ने गुम राह कर दिया है वह राहे रास्त नहीं पा रहे हैं और जो इसके फंदे में नहीं आए वह चाँद तारों पर सीढियाँ लगा रहे हैं. मुहम्मदी अल्लाह इन पर अपनी ज़हरीली कुल्लियाँ कर रहा है जो कि नीचे गिर कर बिल आखीर मुसलामानों को पामाल कर रही हैं.
'' ऐ जमाअत जिन्नात और इंसानों की ! क्या तुम्हारे पास तुम ही में से पैगम्बर नहीं आए थे ? जो तुम को मेरे एह्काम बयान किया करते थे और तुम को इस आज के दिन की खबर दिया करते थे, वह सब अर्ज़ करेंगे क़ि हम अपने ऊपर इकरार करते है और लोगों को दुनयावी ज़िन्दगी ने भूल मेंडाल रखा है और यह लोग मुकिर होंगे की वह लोग काफ़िर हैं''
सूरह अनआम आठवाँ पारा (आयत १३१)
मुहम्मद की कल्पित क़यामत का एक सीन ये आयत है जन्नत में दाखिल होने वाली इंसानी टोली जहन्नम रसीदे जिन्नातों और इंसानों की टोलियों से पूछेगी क़ि ऐ लोगो ! क्या तुम्हारे पास मुहम्मद नाम के पैगम्बर नहीं आए थे जो अल्लाह की राहें बतला रहे थे - - - मुहम्मद के इन्तेहाई दर्जा मक्र की ये आयतें थीं क़ि जिसको बज़ोर तलवार मजबूरों को मनवाया गया और इन मजबूरों की नस्लें जब इस में पलती रहीं तो आज वह मक्र कापुतला सललललाहे अलैहे वसल्लम बन गया.
''तुम पर हराम किए गए हैं मुरदार, खून और खंजीर का गोश्त और जो गैर अल्लाह के नाम से ज़द कर दिया गया हो, जो गला घुटने से मर जावे, जो किसी ज़र्ब से मर जावे, या गिर कर मर जावे, जिसको कोई दरिंदा खाने लगे, लेकिन जिसको ज़बह कर डालो - - -.''
सूरह अनआम आठवाँ पारा (आयत १४६)
और हलाल किया जाता है माले ग़नीमत जो लूट मार और शबखून के ज़रिए हासिल किया गया हो, जिसमें बे कुसूर लोगों को क़त्ल कर गिया गया हो, औरतों को लौंडियाँ बना कर आपस में बाँट लिया गया हो, बच्चों और बूढों को इनके हल पर छोड़ दिया गे हो.
''सो इस शख्स से ज्यादह ज़ालिम कौन होगा जो हमारी इन आयतों को झूठा बतलाए और इस से रोके. हम अभी इन लोगों को जो कि इन से रोकते हैं, इनको रोकने के सबब सख्त सजा देंगे. यह लोग सिर्फ इस अम्र के मुन्तजिर है कि इन के पास फ़रिश्ते आवें या इन के पास इन का रब आवे या आप के रब कि कोई निशानी आवे. जिस रोज़ आप के रब कि बड़ी निशानी आ पहुंचेगी, किसी ऐसे शख्स का ईमान इस के काम न आएगा, जो पहले स ईमान नहीं रखता या अपने आमाल में उसने कोई नेक अमल न किया हो. आप फरमा दीजिए कि तुम मुन्तजिर रहो और हम भी मुन्तजिर हैं.''
मुहम्मद के मज़ालिम की दास्तानें हैं जो आगे आप सिलसिलेवार देखते रहेंगे. ऐसे ज़ालिम इन्सान की बात देखिए कि कहता है ''इस से बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो इसकी चाल घात और मक्र की बात को न माने. इसकी बात मानने से लोगों को रोके,'' यह मुहम्मद का बनाया हुआ सांचा आज तक ज़ालिम मुसलामानों के काम आ रहा है. यह तालिबानी क्या हैं ? चौदह सौ साल पुराना मुहम्मदी साँचा ही तो उनके काम आ रहा है. यह आप को समझाएं बुझाएँगे,डराएँगे और बाद में सबक सिख्लएंगे.
मुसलामानों अल्लाह अगर है तो ऐसा घटिया हो ही नहीं सकता क्या आप ऐसे अल्लाह की इबादत करते हैं? इस पर तो लानत भेजा करिए।
नोट :-- आयातों में लम्बे लम्बे फासले देखे जा सकते हैं जिनको कि मानी, मतलब और तबसरे के शुमार में नहीं लिया गया है क्यों कि यह इस लायक भी नहीं इन का ज़िक्र या इन पर तबसरा किया जाए। इन पर कलम उठाना भी कलम की पामाली है. इस क़दर बकवास है कि आप पढ़ कर बेज़ार हो जाएँ. अफ़सोस सद अफ़सोस कि कौम इसख़ुराफ़ात को सरों पर उठाए घूमती है.
निसार ''निसार-उल-ईमान''
ऐतिहासिक सत्य में क़ुरआन की हक़ीक़त
"Do you reject my gods, Abraham? If you do not cease this, I shall stone you।" As sick as this sounds, it depicts Muslim behavior. If a son renounces Islam, his father will kill him. One of my friends, a former Muslim, had this very thing happen to him. Hearing the news, his loving father reached for his gun and fired it at his son, narrowly missing him. Mark Gabriel, who holds a Ph.D. in Islamic History, wrote a book about his experience called: Islam and Terror.
Qur'an 6:83 "And this was Our argument which we gave to Abraham against his people. And We gave him Ishaq (Isaac) and Yah'qub (Jacob) [Oops. Abraham was given Isaac and Ishmael. Jacob came later]; each did We guide, and Nuh (Noah) did We guide before, and of his descendants, David and Solomon, and Job and Joseph and Moses and Aaron; and thus do We reward those who do good (following Muhammad's example in the Sunnah). And Zachariah and Yahya (John), Isa (Jesus) and Elias; every one was of the good [i.e. Muslims]; And Ishmael and Elisha and Jonah and Lot and every one We preferred above men and jinn." One of the many problems with the Qur'an is that Allah was no brighter than Muhammad. Job was a gentile and a contemporary of Abraham. As such he could neither be Abe's descendant nor follow Solomon.
I am reasonably certain that the Yathrib Jews read their scriptures correctly to Muhammad. But having a poor memory, and a heinous agenda, he got them all fouled up. I don't say that to be mean-spirited, just informative. Muhammad will convict himself of having a heinous agenda a thousand times over before we are through. As prophets go, he was pretty pathetic.
Returning to the Islamicized Abraham, Ibn Ishaq tells us: Tabari II:52 "Then Abraham returned to his father Azar, having seen the right course. He had recognized his Lord." Actually, all he had done was recognize who his Lord wasn't And while that may sound picky, that's all Muhammad really did. Ultimately, he promoted the largest of the Meccan rock idols, Allah, and denounced the rest. "He was free of the religion of his people, but he did not tell them that." This, too, is revisionism for the sake of Muhammad. Allah's Messenger kept quiet about his first "revelation" for several years.
One of the most repetitive and damning indictments in the Qur'an comes from the Meccans. They recognized that Muhammad's notion of casting the smaller Ka'aba idols aside so that the largest idol could be feared as the one true god was lunacy. A big stone was no more god than a bunch of little ones. Ishaq:38 "Every house had an idol. When Allah sent Muhammad with the message of monotheism, the Quraysh said: 'Would he make many gods into one god? This is a strange thing.'" So Muhammad, ever in character, changed the story of the great Hebrew patriarch Abraham to make his behavior seem inspired.
This sorry tale is chronicled in both the Hadith and Qur'an. Tabari II:55 "His father told him, 'Abraham, we have a festival. If you go to it you will learn to like our religion.' The festival came and they went to it. On the way Abraham threw himself down and said, 'I am sick. My foot hurts.' When they went away he called to the last of them. 'I shall deal with your idols after you have gone away and turned your backs.' Abraham went to the house of the gods which was in a great hall. Opposite the entrance was a great idol, and at his side a smaller one, and next to him a smaller one, and so on." Too bad Allah didn't get out more. He would have known that in Abraham's day the Temple of Ur housed just one god - Sin - a masculine moon deity like himself. Unlike the Ka'aba, there weren't a bunch of rock idols lying around.
"Azar made a living making the idols which his people worshipped, and he employed Abraham to sell them. Abraham would call out, 'Who will buy what will be of no use to him.' So they became unsellable. He would take them to the river and point their heads at it and say, 'Drink.' mocking his people. At length his mocking spread about among the inhabitants of his town, although Nimrod did not hear of it. Then when the time seemed right to Abraham to reveal to his people the error of what they were doing, and to tell them of Allah's command and of how to pray, he glanced up at the stars and said, 'I feel sick.' They fled from him when they heard it, but Abraham had only said it to make them go away so that he could do what he wanted with their idols. When they left he went to the idols and brought them food. He said, 'Will you not eat? What is the matter? Why do you not speak.' reproaching their falsely elevated position and mocking them."
Qur'an 6:83 "And this was Our argument which we gave to Abraham against his people. And We gave him Ishaq (Isaac) and Yah'qub (Jacob) [Oops. Abraham was given Isaac and Ishmael. Jacob came later]; each did We guide, and Nuh (Noah) did We guide before, and of his descendants, David and Solomon, and Job and Joseph and Moses and Aaron; and thus do We reward those who do good (following Muhammad's example in the Sunnah). And Zachariah and Yahya (John), Isa (Jesus) and Elias; every one was of the good [i.e. Muslims]; And Ishmael and Elisha and Jonah and Lot and every one We preferred above men and jinn." One of the many problems with the Qur'an is that Allah was no brighter than Muhammad. Job was a gentile and a contemporary of Abraham. As such he could neither be Abe's descendant nor follow Solomon.
I am reasonably certain that the Yathrib Jews read their scriptures correctly to Muhammad. But having a poor memory, and a heinous agenda, he got them all fouled up. I don't say that to be mean-spirited, just informative. Muhammad will convict himself of having a heinous agenda a thousand times over before we are through. As prophets go, he was pretty pathetic.
Returning to the Islamicized Abraham, Ibn Ishaq tells us: Tabari II:52 "Then Abraham returned to his father Azar, having seen the right course. He had recognized his Lord." Actually, all he had done was recognize who his Lord wasn't And while that may sound picky, that's all Muhammad really did. Ultimately, he promoted the largest of the Meccan rock idols, Allah, and denounced the rest. "He was free of the religion of his people, but he did not tell them that." This, too, is revisionism for the sake of Muhammad. Allah's Messenger kept quiet about his first "revelation" for several years.
One of the most repetitive and damning indictments in the Qur'an comes from the Meccans. They recognized that Muhammad's notion of casting the smaller Ka'aba idols aside so that the largest idol could be feared as the one true god was lunacy. A big stone was no more god than a bunch of little ones. Ishaq:38 "Every house had an idol. When Allah sent Muhammad with the message of monotheism, the Quraysh said: 'Would he make many gods into one god? This is a strange thing.'" So Muhammad, ever in character, changed the story of the great Hebrew patriarch Abraham to make his behavior seem inspired.
This sorry tale is chronicled in both the Hadith and Qur'an. Tabari II:55 "His father told him, 'Abraham, we have a festival. If you go to it you will learn to like our religion.' The festival came and they went to it. On the way Abraham threw himself down and said, 'I am sick. My foot hurts.' When they went away he called to the last of them. 'I shall deal with your idols after you have gone away and turned your backs.' Abraham went to the house of the gods which was in a great hall. Opposite the entrance was a great idol, and at his side a smaller one, and next to him a smaller one, and so on." Too bad Allah didn't get out more. He would have known that in Abraham's day the Temple of Ur housed just one god - Sin - a masculine moon deity like himself. Unlike the Ka'aba, there weren't a bunch of rock idols lying around.
"Azar made a living making the idols which his people worshipped, and he employed Abraham to sell them. Abraham would call out, 'Who will buy what will be of no use to him.' So they became unsellable. He would take them to the river and point their heads at it and say, 'Drink.' mocking his people. At length his mocking spread about among the inhabitants of his town, although Nimrod did not hear of it. Then when the time seemed right to Abraham to reveal to his people the error of what they were doing, and to tell them of Allah's command and of how to pray, he glanced up at the stars and said, 'I feel sick.' They fled from him when they heard it, but Abraham had only said it to make them go away so that he could do what he wanted with their idols. When they left he went to the idols and brought them food. He said, 'Will you not eat? What is the matter? Why do you not speak.' reproaching their falsely elevated position and mocking them."
Prophet of Doom
अबे उल्लू के पट्ठे तुझे शियों और उनके अकीदे के बारे में कुछ पता भी है या यूंही बकवास किये जा रहा है.
ReplyDeleteजहाँ तुम छोडते हो वही काम का है जैसे चिंत्ता (chinta) में बिन्दी हटा दें तो चित्ता रह जाता है, इसलिये मेरी जान आओ
ReplyDeletesignature:
विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
(इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
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