सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा
The Elevated Places7-
C
धर्मो की स्थापना बहुधा दो अवस्था में होती है, या तो इसका नियुकता इसकी अलामतों से बे खबर स्वर्ग सिधार जाए, संसार बाद में उसके महत्त्व को समझ कर उसको यादगार बना सके. दुसरे वह जो अपनी ज़िन्दगी में ही अपने को पैगम्बर या भगवान आदि स्थापित करने के लिए पापड़ बेलते हैं. इसकी दो मिसालें हैं, गांधी जी जो कहते थे कि लोग मुझे महात्मा क्यूँ कहते हैं? दूसरे मुहम्मद जो मुहम्मदुर रसूल अल्लाह ''यानी मुहम्मद अल्लाह के दूत'' हैं, कहलाते थे. मुहम्मदुर रसूल अल्लाह कहला कर ही लोगों को वह मुसलमान बनाते थे. मुहम्मदुर रसूल अल्लाह न कहने वाले पर जज्या का जुर्माना वसूलते थे या फिर उसका सर कलम करते थे.
अब देखिए क़ुरआन में मुहम्मद का गढ़ा हुआ अल्लाह क्या कहता है - - -
''और ज़मीन में बाद इसके कि कुछ दुरुस्ती कर दी गई , फसाद मत फैलाओ. ये तुम्हारे लिए नाफे है.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८५)
मज़हबी फसाद फ़ैलाने वाला मुहम्मदी अल्लाह बन्दों से कह रहा है कि फसाद मत फैलाओ, है न जबरा मारे रोवे न देय.
नावें पारे में अल्लाह शोएब का बाब खोलता है. बागी शोएब को बस्ती वाले अपने आबाई मज़हब पर वापस आने के लिए ज़ोर डालते हैं और शोएब इन लोगों से अल्लाह की पनाह में आने की दावत देते हैं(जैसे मुहम्मद की आप बीती है) बस्ती के काफिरों के सरदार सरकशी करते हैं तो एक ज़लज़ला आ जाता है और सब अपने अपने घरों में औंधे मुंह गिर पड़ते हैं. पैगम्बर शोएब नाराज़ होकर बस्ती से मुंह मोड़ कर चले जाते हैं कि काफिरों के लिए मैं क्यूं रंज करून. फिर अल्लाह ने वहां किसी नबी को नहीं भेजा. सब तकज़ीब करने वाले मुहताजी और बदहाली में पड़ गए और ढीले हो गए.
मुहम्मद क़ुरान में इस किस्म की कई कहानियां मक्का के कबीलाई सरदारों के लिए गढ़े हुए हैं.
''हाँ! तो क्या अल्लाह की इस पकड़ से बे फ़िक्र हो गए? अल्लाह की पकड़ बजुज़ इसके जिसकी शामत आ गई हो कोई बे फ़िक्र नहीं सकता और इन रहने वालों के बाद ज़मीन पर, बजाए इन के ज़मीन पर रहते हैं, क्या इन को ये बात नहीं बतलाई कि अगर हम चाहते तो इनको इनके जरायम के सबब हलाक कर डालते और हम इन के दिलों पर बंद लगाए हुए हैं, इस से वह सुनते नहीं.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (८८-१००)
इन १३ आयातों में ऐसी ही बहकी बहकी बातें हैं जिसे मुहम्मद ने न जाने नशे (जब कि शराब हलाल थी) में,वज्द, या दीवानगी के आलम में बकी है. हराम जादे ओलिमा ने इनमें ब्रेकेट लगा लगा कर अपने हिसाब से मानी और मतलब भरा है. मुहम्मद ने ऐसे बे वकूफ अल्लाह का खाका पेश कर के उस नामालूम हस्ती कि मिटटी पिलीद की है.
*अल्लाह, फिरौन और मूसा की कहानी एक बार फिर दोहराता है.( इन्हीं बातों के अलावा कुरआन में कुछ है भी नहीं.) जो कि किसी तौरेत के जानकार के मशविरे से मुहम्मद ने गाढ़ी है. कभी कभी जानकारी देने वाले मुहम्मद को चूतिया बना देते है और नाज़िल शुदा आयत मौक़ूफ हो जाया करती है. मुहम्मद अपनी तमाम सीमा पार करते हुए अल्लाह से कलाम कराते हैं कि मूसा और फिरौन के जादू गरों में जब मुकाबला होता है तो फिरौन के हारे हुए जादूगर इस्लाम कुबूल कर लेते हैं. खुराफाती आयातों में पकड़ने कि ज़लील तरीन बात यही है कि फिरौन के दरबार में यहूदी मूसा का मुकाबिला और हज़ारों साल बाद पैदा होने वाले मुहम्मद की दीवानगी की फतह.
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१०२-१५६)
''जो लोग ऐसे रसूल उम्मी की पैरवी करते हैं जिन को कि वह अपने पास तौरेत , इंजील में लिखा पते हैं कि वह उनको नेक बातों का हुक्म फ़रमाते हैं और बुरी बातों से मना फरमाते हैं और पाकीज़ा चीजों को हलाल फ़रमाते हैं और गन्दी चीजों को उन पर हराम फरमाते हैं - - - सो जो लोग उन पर ईमान लाते हैं और उनकी हिमायत करते हैं और उनकी मदद करते हैं और उस नूर की पैरवी करते हैं जो उनके साथ भेजा गया है , ऐसे लोग पूरी फलाह पाने वाले हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५७)
मुहम्मद खुद बतला रहे हैं कि जो लोग ऐसे अनपढ़ पैगम्बर कि बात मानते है जो बातें बतला न रहा हो बल्कि ''फरमा'' रहा हो। जो अपने जैसे अनपढ़ों को समझा रहा है कि उसका ज़िक्र तौरेत आर इंजील में है और उसके ज़ालिम जेहादी तलवार से समझा रहे हों कि पैगाबर सच बोल रहा है और अय्यार ओलिमा क़तार दर क़तार इसकी सदाक़त की तस्दीक कर रहे हों तो आज कौन उसको झुटला सकता है। हालाँकि झूट उनके सामने खुला रखा हुवा है। कितना बड़ा सनेहा है कि झूट पर ईमान लाया जाए.
*मुहम्मदी अल्लाह नबियों के किस्से कहानियों मेंफंसे हुए लोगों को बतलाता है कि उसने क़दीम क़बीलों पर कैसे कैसे ज़ुल्म ढाए.
मुहम्मद जैसा ज़ालिम पैगम्बर बना मुखिया अगर नाकाम होता तो बद दुआ देने की धमकी देता. खुद मुहम्मद ने कई बार इसका सहारा लिया.. कहते है - - - ''शोएब अलैहिस सलाम की उम्मत पर तीन मर्तबा अल्लाह ने कहर ढाया'' गोया मुहम्मद धमकाते हैं सुधर जाओ वर्ना तुम्हारा भी यही हाल होगा। चालाक. मुहम्मद ने जिस तरह खुद को अल्लाह का रसूल बना लिया था उसी तरह पहले अपने क़बीले को अपनी उम्मत बनाया और कामयाब होने के बाद पूरे अरब को अपनी उम्मत बना लिया. उनके बाद माले गनीमत के घिनाओने हरबे से दुन्या के तमाम आबादी का एक हिस्सा उम्मते मोहम्मदी बन गई जो झूटे पैगम्बर के झूट के चलते आज रुस्वाए ज़माना है.
*सूरह बहुत देर तक मुहम्मद साख्ता पैगम्बर शोएब के कन्धों पर चलती है. जिसमें न तो उनकी जीवनी है न ही उनकी जीवन की कोई घटना. बस मुहम्मद ने जिस किसी का नाम समाजी पासे मंज़र में सुन रख था, उसको लेकर कहानी गढ़ दी. उनकी तवारीख जानना हो तो अंग्रेजी हिस्टिरी को खंगालना पड़ेगा. मगर मुसलामानों को तो क़ुरानी तवारीख ही काफी है जिसकी गवाही अल्लाह दे रहा है.
तमाम क़ुरआन की कहानियां, वाकेआत, मुअज्ज़े मुहम्मद की वक्फा ए पयंबरी की कोशिशों के हिसाब से गढ़े हुए हैं. खुद क़ुरआन हदीस, तारीख ए इस्लाम को गहराई से मुतलेआ किया जाए तो यह नतीजा सामने आ जाता है.
आखीर में मूसा के मार्फ़त क़ुरआन चलता है. मुहम्मद पर लगा इलज़ाम बतलाता है कि मुहम्मद के पास कोई यहूदी मुखबिर था जो यहूदयत और मूसा की टूटी फूटी मालूमात उन्हें देता था वह जगह जगह क़ुरआन में इसे जड़ देते थे और अल्लाह को इसका गवाह अना देते.
* मेरी तहरीर में तौरेत और यहूदयत का बार बार हवाला शायद कुछ लोगों को खटक रहा हो, मालूम होना चाहिए कि अगर क़ुरआन से इसे ख़ारिज कर दिया जाए तो इसकी बुन्याद खिसक जाए. क़ुरआन खुद तस्लीम करता है, इस्लाम को दीन ए इब्राहिमी कह के, जब कि अब्राहम ही यहूदयों के के आबा ओ अजदाद की पहली कड़ी हैं. यहूदी इस्माइलियों को (जिस में मुहम्मद हैं) इस लिए अपने से कम तर मानते हैं कि वह अब्राहम की मिसरी लौंडी हाजरा की औलाद हैं, जिसे सारा के कहने पर अपनी रखैल तो बना लिय था मगर बाद में बीवी सारा के कहने ही उसे पर घर से निकल दिया था.
यह दुन्या के तमाम मुसलमानों के साथ गायबाना सानेहा है कि इन की जड़ें जुगराफियाई एतबार से अपने ही चमनों से कटी हुई हैं. वह न इधर के रहे न उधर के. मियाम्नार ने जो की बुद्धिष्ट हैं, अपने यहाँ से मुसलामानों को निकाल बाहर किया है क्यूँ कि वह बर्मी होते हुए भी कौमी धारे में शामिल न रह कर अलग थलग कनारे गढ़े में रुके हुए पानी की तरह थे जो कि तअफ्फुन पैदा कर रहे थे. तरक्की पज़ीर बर्मियों में धर्म दाल में नमक की तरह बचा है और मुसलामानों में इस्लाम दाल की जगह नमक की तरह है, वह कहीं भी क्यों न हों.वह पहले मुसलमान होते हैं उसके बाद बर्मी,हिदुस्तानी या चीनी. यही वजह है कि इन को हर गैर मुस्लिम मुल्क में शक की निगाह से देखा जाता है जो हक बजानिब है.
''आप कह दीजिए - - - लोगो! मैं तुम सब की तरफ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ जिसकी बादशाही है तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - - अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर जो अल्लाह और उसके एह्कम पर ईमान रखते हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)
लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ से नकली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी. तायाफ़ के हुक्मरां ने ठीक ही कहा थ कि क्या अल्लाह को मक्का में कोई पढ़ा लिखा ढंग का आदमी नहीं मिला था जिसे अपना रसूल बनता और रुसवा करके उसके दरबार से निकले. अल्लाह ने तुम्हारी कोई खबर न ली. जाहिलों को लूट मार का सबक सिखला कर कामयाब हुए तो किया हुए.
'' - - - औरिन लोगों को जो ज्यादती करते थे एक सख्त अज़ाब में पकड़ लिया बवाजेह इसके कि वह बे हुकमी किया करते थे यानी जब उनको जिस काम से मना किया जाता थ तो उस में वह हद से निकल गए तो हम ने उन को कह दिया की तुम बन्दर ज़लील बन जाओ.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१६६)
ऐ अल्लाह के बन्दों ! ऐ भोले भाले मुसलमानों ! अगर तुम इस पैगम्बरी जेहालत से बागी होकर इल्म जदीद की तरफ रागिब हो जाओ तो बेहतर होगा कि यह तुम को ज़लील बन्दर बना दे. तुमहारे लिए दावते फ़िक्र यह है कि समझो, अपने फेल से सिर्फ इंसान ही ज़लील और अज़ीम होता है, बाक़ी तमाम मखलूक अपनी फितरत और अपनी खसलत के एतबार से हुआ करती हुआ करती हैं. इंसान को इंसानियत की राह से हटा कर दुश्मने इंसानियात बनाने वाला खुद ज़लील बंदर हो सकता है.
निसार ''निसार-उल-ईमान''
________________________________________________________________
ऐतिहासिक सत्य में क़ुरआन की हक़ीक़त
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
It's stunning to the point of agony that a billion people, through seduction, indoctrination, and compulsion, have been led to believe that these hateful words are God's. Yet while stunning, it's not baffling. All Muhammad had to do was to convince fifty well-armed fools. While it took him ten years, it shouldn't have been hard. Mecca was a town of five thousand. All but a handful were illiterate. Steeped in pagan superstition, already believing in the pagan idol of the Ka'aba, the young and the rebellious, the poor and the destitute, were ripe for the picking.
The seventh surah is one of many that ties Islam to terror. It began, as you may recall, with Allah launching a blitzkrieg attack on some unsuspecting townsfolk. His line, "Our terror came unto them while they slept," was chilling. We covered the first half of this revelation in the third chapter as it devolved into a disturbing conversation between Allah, Satan, and Adam. Now it's time to jump back in where we left off. Qur'an 7:39 "The first will say to the last: 'See there! No advantage have you over us; so taste the torment you have earned.' To those who reject Our signs and deny Our revelations, treating them with arrogance, no opening will there be of the gates of the Garden of Bliss, until the camel can pass through the eye of the needle. Such is our reward for the guilty. They shall have a bed on the floor of Hell and coverings of fire; this is how We reward them." The Qur'an may be the only book that is more racist, hateful, and violent than Mein Kampf. Hitler gave six million Jews a bed of fire. Muhammad's dark spirit could have been his inspiration.
To help us understand these verses, the Noble Qur'an adds: "The Jews were ordered in the Torah to follow Prophet Muhammad." It references Qur'an 7:157: "Those who follow the Messenger (Muhammad), the Prophet who can neither read nor write whom they find written in the Torah (Deuteronomy 18:15) and the Gospel (John 14:16); he commands them to Islam." We've been through this drill before. While Team Islam couldn't read, I can. And I assure you that no Arab was called a prophet, and no man was called a messenger. But he was right in a way. When the Bible spoke of Satan, it said that he would use prostration, taxation, terror, a new gospel, and a boastful false prophet to deceive mankind.
Prophet of Doom
अब देखिए क़ुरआन में मुहम्मद का गढ़ा हुआ अल्लाह क्या कहता है - - -
''और ज़मीन में बाद इसके कि कुछ दुरुस्ती कर दी गई , फसाद मत फैलाओ. ये तुम्हारे लिए नाफे है.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८५)
मज़हबी फसाद फ़ैलाने वाला मुहम्मदी अल्लाह बन्दों से कह रहा है कि फसाद मत फैलाओ, है न जबरा मारे रोवे न देय.
नावें पारे में अल्लाह शोएब का बाब खोलता है. बागी शोएब को बस्ती वाले अपने आबाई मज़हब पर वापस आने के लिए ज़ोर डालते हैं और शोएब इन लोगों से अल्लाह की पनाह में आने की दावत देते हैं(जैसे मुहम्मद की आप बीती है) बस्ती के काफिरों के सरदार सरकशी करते हैं तो एक ज़लज़ला आ जाता है और सब अपने अपने घरों में औंधे मुंह गिर पड़ते हैं. पैगम्बर शोएब नाराज़ होकर बस्ती से मुंह मोड़ कर चले जाते हैं कि काफिरों के लिए मैं क्यूं रंज करून. फिर अल्लाह ने वहां किसी नबी को नहीं भेजा. सब तकज़ीब करने वाले मुहताजी और बदहाली में पड़ गए और ढीले हो गए.
मुहम्मद क़ुरान में इस किस्म की कई कहानियां मक्का के कबीलाई सरदारों के लिए गढ़े हुए हैं.
''हाँ! तो क्या अल्लाह की इस पकड़ से बे फ़िक्र हो गए? अल्लाह की पकड़ बजुज़ इसके जिसकी शामत आ गई हो कोई बे फ़िक्र नहीं सकता और इन रहने वालों के बाद ज़मीन पर, बजाए इन के ज़मीन पर रहते हैं, क्या इन को ये बात नहीं बतलाई कि अगर हम चाहते तो इनको इनके जरायम के सबब हलाक कर डालते और हम इन के दिलों पर बंद लगाए हुए हैं, इस से वह सुनते नहीं.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (८८-१००)
इन १३ आयातों में ऐसी ही बहकी बहकी बातें हैं जिसे मुहम्मद ने न जाने नशे (जब कि शराब हलाल थी) में,वज्द, या दीवानगी के आलम में बकी है. हराम जादे ओलिमा ने इनमें ब्रेकेट लगा लगा कर अपने हिसाब से मानी और मतलब भरा है. मुहम्मद ने ऐसे बे वकूफ अल्लाह का खाका पेश कर के उस नामालूम हस्ती कि मिटटी पिलीद की है.
*अल्लाह, फिरौन और मूसा की कहानी एक बार फिर दोहराता है.( इन्हीं बातों के अलावा कुरआन में कुछ है भी नहीं.) जो कि किसी तौरेत के जानकार के मशविरे से मुहम्मद ने गाढ़ी है. कभी कभी जानकारी देने वाले मुहम्मद को चूतिया बना देते है और नाज़िल शुदा आयत मौक़ूफ हो जाया करती है. मुहम्मद अपनी तमाम सीमा पार करते हुए अल्लाह से कलाम कराते हैं कि मूसा और फिरौन के जादू गरों में जब मुकाबला होता है तो फिरौन के हारे हुए जादूगर इस्लाम कुबूल कर लेते हैं. खुराफाती आयातों में पकड़ने कि ज़लील तरीन बात यही है कि फिरौन के दरबार में यहूदी मूसा का मुकाबिला और हज़ारों साल बाद पैदा होने वाले मुहम्मद की दीवानगी की फतह.
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१०२-१५६)
''जो लोग ऐसे रसूल उम्मी की पैरवी करते हैं जिन को कि वह अपने पास तौरेत , इंजील में लिखा पते हैं कि वह उनको नेक बातों का हुक्म फ़रमाते हैं और बुरी बातों से मना फरमाते हैं और पाकीज़ा चीजों को हलाल फ़रमाते हैं और गन्दी चीजों को उन पर हराम फरमाते हैं - - - सो जो लोग उन पर ईमान लाते हैं और उनकी हिमायत करते हैं और उनकी मदद करते हैं और उस नूर की पैरवी करते हैं जो उनके साथ भेजा गया है , ऐसे लोग पूरी फलाह पाने वाले हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५७)
मुहम्मद खुद बतला रहे हैं कि जो लोग ऐसे अनपढ़ पैगम्बर कि बात मानते है जो बातें बतला न रहा हो बल्कि ''फरमा'' रहा हो। जो अपने जैसे अनपढ़ों को समझा रहा है कि उसका ज़िक्र तौरेत आर इंजील में है और उसके ज़ालिम जेहादी तलवार से समझा रहे हों कि पैगाबर सच बोल रहा है और अय्यार ओलिमा क़तार दर क़तार इसकी सदाक़त की तस्दीक कर रहे हों तो आज कौन उसको झुटला सकता है। हालाँकि झूट उनके सामने खुला रखा हुवा है। कितना बड़ा सनेहा है कि झूट पर ईमान लाया जाए.
*मुहम्मदी अल्लाह नबियों के किस्से कहानियों मेंफंसे हुए लोगों को बतलाता है कि उसने क़दीम क़बीलों पर कैसे कैसे ज़ुल्म ढाए.
मुहम्मद जैसा ज़ालिम पैगम्बर बना मुखिया अगर नाकाम होता तो बद दुआ देने की धमकी देता. खुद मुहम्मद ने कई बार इसका सहारा लिया.. कहते है - - - ''शोएब अलैहिस सलाम की उम्मत पर तीन मर्तबा अल्लाह ने कहर ढाया'' गोया मुहम्मद धमकाते हैं सुधर जाओ वर्ना तुम्हारा भी यही हाल होगा। चालाक. मुहम्मद ने जिस तरह खुद को अल्लाह का रसूल बना लिया था उसी तरह पहले अपने क़बीले को अपनी उम्मत बनाया और कामयाब होने के बाद पूरे अरब को अपनी उम्मत बना लिया. उनके बाद माले गनीमत के घिनाओने हरबे से दुन्या के तमाम आबादी का एक हिस्सा उम्मते मोहम्मदी बन गई जो झूटे पैगम्बर के झूट के चलते आज रुस्वाए ज़माना है.
*सूरह बहुत देर तक मुहम्मद साख्ता पैगम्बर शोएब के कन्धों पर चलती है. जिसमें न तो उनकी जीवनी है न ही उनकी जीवन की कोई घटना. बस मुहम्मद ने जिस किसी का नाम समाजी पासे मंज़र में सुन रख था, उसको लेकर कहानी गढ़ दी. उनकी तवारीख जानना हो तो अंग्रेजी हिस्टिरी को खंगालना पड़ेगा. मगर मुसलामानों को तो क़ुरानी तवारीख ही काफी है जिसकी गवाही अल्लाह दे रहा है.
तमाम क़ुरआन की कहानियां, वाकेआत, मुअज्ज़े मुहम्मद की वक्फा ए पयंबरी की कोशिशों के हिसाब से गढ़े हुए हैं. खुद क़ुरआन हदीस, तारीख ए इस्लाम को गहराई से मुतलेआ किया जाए तो यह नतीजा सामने आ जाता है.
आखीर में मूसा के मार्फ़त क़ुरआन चलता है. मुहम्मद पर लगा इलज़ाम बतलाता है कि मुहम्मद के पास कोई यहूदी मुखबिर था जो यहूदयत और मूसा की टूटी फूटी मालूमात उन्हें देता था वह जगह जगह क़ुरआन में इसे जड़ देते थे और अल्लाह को इसका गवाह अना देते.
* मेरी तहरीर में तौरेत और यहूदयत का बार बार हवाला शायद कुछ लोगों को खटक रहा हो, मालूम होना चाहिए कि अगर क़ुरआन से इसे ख़ारिज कर दिया जाए तो इसकी बुन्याद खिसक जाए. क़ुरआन खुद तस्लीम करता है, इस्लाम को दीन ए इब्राहिमी कह के, जब कि अब्राहम ही यहूदयों के के आबा ओ अजदाद की पहली कड़ी हैं. यहूदी इस्माइलियों को (जिस में मुहम्मद हैं) इस लिए अपने से कम तर मानते हैं कि वह अब्राहम की मिसरी लौंडी हाजरा की औलाद हैं, जिसे सारा के कहने पर अपनी रखैल तो बना लिय था मगर बाद में बीवी सारा के कहने ही उसे पर घर से निकल दिया था.
यह दुन्या के तमाम मुसलमानों के साथ गायबाना सानेहा है कि इन की जड़ें जुगराफियाई एतबार से अपने ही चमनों से कटी हुई हैं. वह न इधर के रहे न उधर के. मियाम्नार ने जो की बुद्धिष्ट हैं, अपने यहाँ से मुसलामानों को निकाल बाहर किया है क्यूँ कि वह बर्मी होते हुए भी कौमी धारे में शामिल न रह कर अलग थलग कनारे गढ़े में रुके हुए पानी की तरह थे जो कि तअफ्फुन पैदा कर रहे थे. तरक्की पज़ीर बर्मियों में धर्म दाल में नमक की तरह बचा है और मुसलामानों में इस्लाम दाल की जगह नमक की तरह है, वह कहीं भी क्यों न हों.वह पहले मुसलमान होते हैं उसके बाद बर्मी,हिदुस्तानी या चीनी. यही वजह है कि इन को हर गैर मुस्लिम मुल्क में शक की निगाह से देखा जाता है जो हक बजानिब है.
''आप कह दीजिए - - - लोगो! मैं तुम सब की तरफ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ जिसकी बादशाही है तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - - अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर जो अल्लाह और उसके एह्कम पर ईमान रखते हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)
लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ से नकली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी. तायाफ़ के हुक्मरां ने ठीक ही कहा थ कि क्या अल्लाह को मक्का में कोई पढ़ा लिखा ढंग का आदमी नहीं मिला था जिसे अपना रसूल बनता और रुसवा करके उसके दरबार से निकले. अल्लाह ने तुम्हारी कोई खबर न ली. जाहिलों को लूट मार का सबक सिखला कर कामयाब हुए तो किया हुए.
'' - - - औरिन लोगों को जो ज्यादती करते थे एक सख्त अज़ाब में पकड़ लिया बवाजेह इसके कि वह बे हुकमी किया करते थे यानी जब उनको जिस काम से मना किया जाता थ तो उस में वह हद से निकल गए तो हम ने उन को कह दिया की तुम बन्दर ज़लील बन जाओ.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१६६)
ऐ अल्लाह के बन्दों ! ऐ भोले भाले मुसलमानों ! अगर तुम इस पैगम्बरी जेहालत से बागी होकर इल्म जदीद की तरफ रागिब हो जाओ तो बेहतर होगा कि यह तुम को ज़लील बन्दर बना दे. तुमहारे लिए दावते फ़िक्र यह है कि समझो, अपने फेल से सिर्फ इंसान ही ज़लील और अज़ीम होता है, बाक़ी तमाम मखलूक अपनी फितरत और अपनी खसलत के एतबार से हुआ करती हुआ करती हैं. इंसान को इंसानियत की राह से हटा कर दुश्मने इंसानियात बनाने वाला खुद ज़लील बंदर हो सकता है.
निसार ''निसार-उल-ईमान''
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ऐतिहासिक सत्य में क़ुरआन की हक़ीक़त
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It's stunning to the point of agony that a billion people, through seduction, indoctrination, and compulsion, have been led to believe that these hateful words are God's. Yet while stunning, it's not baffling. All Muhammad had to do was to convince fifty well-armed fools. While it took him ten years, it shouldn't have been hard. Mecca was a town of five thousand. All but a handful were illiterate. Steeped in pagan superstition, already believing in the pagan idol of the Ka'aba, the young and the rebellious, the poor and the destitute, were ripe for the picking.
The seventh surah is one of many that ties Islam to terror. It began, as you may recall, with Allah launching a blitzkrieg attack on some unsuspecting townsfolk. His line, "Our terror came unto them while they slept," was chilling. We covered the first half of this revelation in the third chapter as it devolved into a disturbing conversation between Allah, Satan, and Adam. Now it's time to jump back in where we left off. Qur'an 7:39 "The first will say to the last: 'See there! No advantage have you over us; so taste the torment you have earned.' To those who reject Our signs and deny Our revelations, treating them with arrogance, no opening will there be of the gates of the Garden of Bliss, until the camel can pass through the eye of the needle. Such is our reward for the guilty. They shall have a bed on the floor of Hell and coverings of fire; this is how We reward them." The Qur'an may be the only book that is more racist, hateful, and violent than Mein Kampf. Hitler gave six million Jews a bed of fire. Muhammad's dark spirit could have been his inspiration.
To help us understand these verses, the Noble Qur'an adds: "The Jews were ordered in the Torah to follow Prophet Muhammad." It references Qur'an 7:157: "Those who follow the Messenger (Muhammad), the Prophet who can neither read nor write whom they find written in the Torah (Deuteronomy 18:15) and the Gospel (John 14:16); he commands them to Islam." We've been through this drill before. While Team Islam couldn't read, I can. And I assure you that no Arab was called a prophet, and no man was called a messenger. But he was right in a way. When the Bible spoke of Satan, it said that he would use prostration, taxation, terror, a new gospel, and a boastful false prophet to deceive mankind.
Prophet of Doom
आज आप में भाषिक स्खलन देख रहा हूँ। पहले भी बताया था कृपया इससे बचें। आप को बहुत गम्भीरता से पढ़ा जा रहा है। कम से कम एक व्यक्ति तो पढ़ ही रहा है। कृपया सुधार लें।
ReplyDeleteसही कहा है गिरिजेश भाई ने।
ReplyDeleteआप अच्छा काम कर रहे हैं।
भारत के विनाश और पतन का कारण केवल ब्राह्मण हैं। मेरे लेखों से यह सच्चाई उजागर होते देखकर जनाब बी. एन. शर्मा परेशान हो गये और किसी मत में विश्वास न रखने के बावजूद वे ब्राह्मणी मायाजाल की रक्षा में कमर कसकर मैदान में कूद गये। उन्होंने इस्लाम के बारे में जो कुछ भी कहा वह केवल इसलिये ताकि लोग इस्लाम के नियमों को मानकर ब्राह्मणी मायाजाल से मुक्त न हो जाएं।
ReplyDeleteइस्लाम के युद्धों में कमियां निकालने वालों को डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ का यह लेख देखना चाहिये।
क्या वेद अहिंसावादी हैं ? - डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ The True Hindu
नीचे इंद्र और उसके युद्धों का वर्णन करने वाले कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं :
त्वमेतात्र् जनराज्ञो द्विदशाबंधुना सुश्रवसोपजग्मुषः ,
षष्टिं सहसा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
( ऋग्वेद , 1-53-9 )
अर्थात हे इंद्र , सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए आए 20 राजाओं और उनके 60,099 अनुचरों को तुमने पराजित कर दिया था ।
इंद्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः जघान नवतीर्नव ।
( ऋग्वेद , 1-84-13 )
अर्थात अ-प्रतिद्वंदी इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से वृत्र आदि असुरों को 8-10 बार नष्ट किया ।
अहन् इंद्रो अदहद् अग्निः इंद्रो पुरा दस्यून मध्यन्दिनादभीके ।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्
( ऋग्वेद , 4-28-3 )
अर्थात हे सोम , तुझे पी कर बलवान हुए इंद्र ने दोपहर में ही शत्रुओं को मार डाला था और अग्नि ने भी कितने ही शत्रुओं को जला दिया था । जैसे किसी असुरक्षित स्थान में जाने वाले व्यक्ति को चोर मार डालता है , उसी प्रकार इंद्र ने हज़ारों सेनाओं का वध किया है ।
अस्वापयद् दभीयते सहस्रा त्रिंशतं हथैः, दासानिमिंद्रो मायया ।
( ऋग्वेद , 4-30-21 )
अर्थात इंद्र ने अपने कृपा पात्र दभीति के लिए अपनी शक्ति से 30 हज़ार राक्षसों को अपने घातक आयुधों से मार डाला ।
नव यदस्य नवतिं च भोगान् साकं वज्रेण मधवा विवृश्चत्,
अर्चंतींद्र मरूतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम ।
( ऋग्वेद , 5-29-6 )
अर्थात इंद्र ने वज्र से शंबर के 99 नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया । तब संग्राम भूमि में ही मरूतों ने त्रिष्टुप छंद में इंद्र की स्तुति की । तब जोश में आकर इंद्र ने वज्र से शंबर को पीड़ित किया था ।
नि गव्यवो दुह्यवश्च पष्टिः शता सुषुपुः षट् सहसा
षष्टिर्वीरासो अधि षट् दुवोयु विश्वेदिंद्रस्य वीर्या कृतानि
( ऋग्वेद , 7-18-14 )
अर्थात अनु और दुहयु की गौओं को चाहने वाले 66,066 संबंधियों को सेवाभिलाषी सुदास के लिए मारा गया था । ये सब कार्य इंद्र की शूरता के सूचक हैं ।
वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है । आज तक जहां कहीं यज्ञ होता है , उस के अंत में निम्नलिखित शलोक पढ़ा जाता है ।
अर्थात अनेक यज्ञ , कठिन तप कर के और अनेक सुपात्रों को दान दे कर ब्राह्मण लोग जिस उच्च गति को प्राप्त करते हैं , अपने जातिधर्म का पालन करते हुए युद्धक्षेत्र में प्राण त्यागने वाले शूरवीर क्षत्रिय उस से भी उच्च गति को प्राप्त होते हैं ।
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