Sunday 31 January 2010

क़ुरअन - सूरह - एराफ -७


सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा
The Elevated Places7-
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''ऐ मिटटी के जन्मो! तुम से यकीनी तौर पर कह रहा हूँ - - तमाम इंसानों में सब से ज़्यादः फसादी वह शख्स है जो बैठे बैठे झगडे क़ायम करता रहता है और अपने भाई बंधुओं से आगे बढ़ जाने की तमन्नाएं रखता है. कह दो कि तुम्हारे अल्फ़ाज़ नहीं, तुम्हारे कर्म ही तुम्हारे मोक्ष करते हैं।''

बहा उल्लाह (बहाई धर्म)
इस्लाम से निष्काषित बागी बहाउल्लाह का मुहम्मद के पैगम्बरी और मुहम्मदी अल्लाह के क़ुरआन पर एक करारा तमाचा यह आयत है। जिसने दुन्या को बगैर किसी जेहाद और खून खराबे के, नई राह दी और सौ साल में ही अपना परचम नई दुन्या पर गाड़ दिया. यह संसार का आधुनिक तम धर्म है. दिल्ली का लोटस मंदिर इसी की निशान दही करता है.
चलिए क़ुरआन की अदभुत दुन्या की सैर करें. - - -

''और जब आप के रब ने बतला दी कि वह उन पर क़यामत तक ऐसे शख्स को ज़रूर मुसल्लत करता रहेगा जो उनको सज़ा ए शदीद की तकलीफ पहुंचता रहेगा. बिला शुबहा आप का रब वाकई जल्द ही सजा दे देता है और बिला शुबहा वह बड़ी मग्फेरात और बड़ी रहमत वाला है.''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१६७)
मुहम्मदी अल्लाह के परदे में खुद मुहम्मद है. वह लोगों को आगाह कर रहे हैं कि इस्लाम कुबूल करो वर्ना मैं तुमको सख्त सजा दूंगा. तलवार के जोर पर पैगम्बर बन जाने के बाद उन्हों ऐसा किया भी.
'' हमने दुनया में इसकी मुतफ़र्रिक जमाअतें कर दीं. बअज़े उनमें नेक और बअज़े और तरह के थे और हम उन को खुश हालियों और बद हालियों से आजमाते रहे कि शायद बअज़ आ जाएँगे. फिर उस के बाद ऐसे लोग उसके जानशीन रहे कि किताब को उन से हासिल किया. इस दुन्याए अदना का माल ओ मता हासिल कर लेते है और कहते हैं हमारी ज़रूर मग्फेरत हो जाएगी, हालांकि उनके पास ऐसा ही माल ओ माता आने लगे तो इस को ले लेते हैं. क्या उन से किताब का अहेद नहीं लिया गया कि अल्लाह की तरफ बजुज़ हक बात के और किसी बात की निस्बत न करें और उन्हों ने इस में जो कुछ था इसे पढ़ लिया और आखीर वाला घर इन लोगों के लिए बेहतर है जो परहेज़ रखते हैं, तो फिर क्या नहीं समझते. और जो लोग किताब के पाबन्द हैं और नमाज़ की पाबन्दी करते हैं, हम ऐसे लोगों का को जो अपनी इस्लाह खुद करें तो सवाब जाया न करेंगे. और जब पहाड़ को उठा कर छत की तरह इन के ऊपर कर दिया और इन को यकीन हो गया की अब उन पर गिरा , कुबूल करो जो किताब हमने उन को दी है और याद रखो जो एहकाम इस में हैं, जिस से तवक्को है कि तुम मुत्तकी बन जाओ,''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१७१-१६८
एक थे हादी बाबा, मैं जब भी क़ुरआन का तर्जुमा पढता हूँ तो ऐसी आयातों पर उनकी तस्वीर मेरे आँखों में तैर जाती है. वह सीधे सादे थे, क़लम किताब से उनको कभी वास्ता न रहा, खेत खलियान और मवेश्यों की देख भाल में उनकी ज़िन्दगी की कायनात महदूद थी. इन में कुछ ज़ेहनी खलल था. रात को हम लोग इनको लेकर कुछ मशगला किया करते, इनके ऊपर बाबा आया करते थे, जैसे कि लोगों पर शैतान, भूत और जिन्नात आते हैं. बस इन्हें पानी पर चढाने भर कि देर होती कि हादी बाबा हो जाते शुरू . उनके मुंह में जो भी आता बकते रहते मगर गाली गलौज नहीं न ही किसी को बुरा भला. उनकी धारा प्रवाह बक बक उस वक़्त तक ख़त्म न होती जब तक हम लोग उनको वापस पानी से उतार न लेते. इसी तरह पनयाने पर वह लम्बी लम्बी दौड़ भी लगा कर वापस आते. भरम था कि थकते नहीं. इसी भरम ने हादी बाबा की जान ले ली.
क़ुरआन में मुहम्मद की वज्दानी कैफियत में बकी गई बक बक हादी बाबा की बक बक जैसी ही होती है. जिन आयातों को मैं ने हाथ नहीं लगाया वह कुछ ऊपर जैसी ही होंगी. क़ुरआन की यह बक बक सियासत के दांव पेंच में आकर इबादत बन गईं हैं.
''क्या उनके पाँव हैं जिन से वह चलते हैं? या उनकी आँखें हैं जिन से वह देखते है? या उनके कान हैं जन से वह सुनते हों? आप कह दीजिए कि तुम अपने सब शुरका (सम्लितों) को बुला लो फिर मेरी ज़रर रेसनी (नुकसान पहुंचाने) की तदबीर करो, फिर मुझको ज़रा मोहलत मत दो. यकीनन मेरा मदद गार अल्लाह है जिस ने यह किताब नाज़िल फ़रमाई है. वह नेक बन्दों कि मदद करता है.''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (195-९६)
यह जुमले मुहम्मद के निजी दावे हैं तो अल्लाह का कलम कैसे हो सकत है? खैर अभी तो अरबी बोलने वाले अल्लाह का ही पता नहीं। वैसे मुहम्मद का ये दावा खोखला है। अगर इनकी बातों में दम है तो रातों रात मक्का से मदीना चोरों कि तरह अपने साथी अबू बकर के साथ क्यूं भागे> गारे हरा में दिन भर डर के मारे क्यूं दुबके पड़े रहे? जंगे उहद में सिकश्ते फ़ाश के बाद नाम पुकारने पर पिछली कतार में खामोश बे ईमान फौजी सिपाही बने खड़े रहे. कहीं पर अल्लाह की मदद इनको मयस्सर क्यूं न थी?

निसार ''निसार-उल-ईमान''






3 comments:

  1. आप का ज्ञान बहुत विस्तृत है. आप से आशा है कि इसी प्रकार सही गलत को सामने रखेंगे. काश कि हमारी पूरी अवाम आप के लिखे को पढ़ सके.वर्ड वेरीफिकेशन को हटा दें कृपया.

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  2. TO TOONE APNA MAZHAB BATA HI DIYA. LEKIN KYA YAHI HAI TERA BAHAI MAZHAB JO DOOSRE DHARMON KO BURA BHALA KAHTA HAI?

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  3. भारत के विनाश और पतन का कारण केवल ब्राह्मण हैं। मेरे लेखों से यह सच्चाई उजागर होते देखकर जनाब बी. एन. शर्मा परेशान हो गये और किसी मत में विश्वास न रखने के बावजूद वे ब्राह्मणी मायाजाल की रक्षा में कमर कसकर मैदान में कूद गये। उन्होंने इस्लाम के बारे में जो कुछ भी कहा वह केवल इसलिये ताकि लोग इस्लाम के नियमों को मानकर ब्राह्मणी मायाजाल से मुक्त न हो जाएं।
    इस्लाम के युद्धों में कमियां निकालने वालों को डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ का यह लेख देखना चाहिये।
    क्या वेद अहिंसावादी हैं ? - डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ The True Hindu
    नीचे इंद्र और उसके युद्धों का वर्णन करने वाले कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं :

    त्वमेतात्र् जनराज्ञो द्विदशाबंधुना सुश्रवसोपजग्मुषः ,
    षष्टिं सहसा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
    ( ऋग्वेद , 1-53-9 )
    अर्थात हे इंद्र , सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए आए 20 राजाओं और उनके 60,099 अनुचरों को तुमने पराजित कर दिया था ।

    इंद्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः जघान नवतीर्नव ।
    ( ऋग्वेद , 1-84-13 )
    अर्थात अ-प्रतिद्वंदी इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से वृत्र आदि असुरों को 8-10 बार नष्ट किया ।

    अहन् इंद्रो अदहद् अग्निः इंद्रो पुरा दस्यून मध्यन्दिनादभीके ।
    दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्
    ( ऋग्वेद , 4-28-3 )
    अर्थात हे सोम , तुझे पी कर बलवान हुए इंद्र ने दोपहर में ही शत्रुओं को मार डाला था और अग्नि ने भी कितने ही शत्रुओं को जला दिया था । जैसे किसी असुरक्षित स्थान में जाने वाले व्यक्ति को चोर मार डालता है , उसी प्रकार इंद्र ने हज़ारों सेनाओं का वध किया है ।

    अस्वापयद् दभीयते सहस्रा त्रिंशतं हथैः, दासानिमिंद्रो मायया ।
    ( ऋग्वेद , 4-30-21 )
    अर्थात इंद्र ने अपने कृपा पात्र दभीति के लिए अपनी शक्ति से 30 हज़ार राक्षसों को अपने घातक आयुधों से मार डाला ।

    नव यदस्य नवतिं च भोगान् साकं वज्रेण मधवा विवृश्चत्,
    अर्चंतींद्र मरूतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम ।
    ( ऋग्वेद , 5-29-6 )
    अर्थात इंद्र ने वज्र से शंबर के 99 नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया । तब संग्राम भूमि में ही मरूतों ने त्रिष्टुप छंद में इंद्र की स्तुति की । तब जोश में आकर इंद्र ने वज्र से शंबर को पीड़ित किया था ।

    नि गव्यवो दुह्यवश्च पष्टिः शता सुषुपुः षट् सहसा
    षष्टिर्वीरासो अधि षट् दुवोयु विश्वेदिंद्रस्य वीर्या कृतानि
    ( ऋग्वेद , 7-18-14 )
    अर्थात अनु और दुहयु की गौओं को चाहने वाले 66,066 संबंधियों को सेवाभिलाषी सुदास के लिए मारा गया था । ये सब कार्य इंद्र की शूरता के सूचक हैं ।
    वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है । आज तक जहां कहीं यज्ञ होता है , उस के अंत में निम्नलिखित शलोक पढ़ा जाता है ।
    अर्थात अनेक यज्ञ , कठिन तप कर के और अनेक सुपात्रों को दान दे कर ब्राह्मण लोग जिस उच्च गति को प्राप्त करते हैं , अपने जातिधर्म का पालन करते हुए युद्धक्षेत्र में प्राण त्यागने वाले शूरवीर क्षत्रिय उस से भी उच्च गति को प्राप्त होते हैं ।
    http://vedquran.blogspot.com/2010/04/true-hindu.html

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