Friday 14 May 2010

क़ुरआन- सूरह यूसुफ़- १२


सूरह यूसुफ़ -१२
Part - 2


ग़ालिब का क़ुरआन

एक हैं जनाब Impact ,सीधे सादे मुसलमान हैं इन जैसों के लिए ही मैं अपनी ज़िदगी वक्फ़ किए हुए हूँ. पहले बड़े प्यार से मुझ से मिलने और मुझे समझा बुझा कर राहे रास्त पर लाने की बात करते थे, फिर मेरे किसी आर्टिकिल से उन्हें लगा कि यह तो बहाउल्लाह का मद्दाह है और वह समझ गए कि मैं बहाई हूँ. उन्हों ने मुझे मशविरा दिया कि बहाई होने के नाते हमें एक दूसरे के धर्म की बुराई नहीं करनी चाहिए. अप्रेल में वह लिखते हैं,'' इस बहाई कुत्ते को भौकने दो, इस्लाम की मज़बूती पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. ''( जनाब! क्या यही आपका मेयार है?) और अब ९-मई को फ़रमाते हैं कि ''साबित हुवा कि तुम यहूदी हो''
''इस्लाम की मज़बूती पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।''
जनाबे आली! इस्लाम की चूलें अमरीका, योरोप, चीन और खुद हिदुस्तान ही नहीं पूरी दुन्या में ढीली पड़ चुकी हैं. यह अफवाहें भी साजिशी ओलिमा ही फैलाते हैं कि इस्लाम की मज़बूती रोज़ बरोज़ फरोग पा रही है.इस पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
ग़ालिब पर असली क़ुरआन नाज़िल हुवा है जिसकी आयतें हैं कि

बस कि दुशवार है हर काम का आसाँ होना.
आदमी को भी मुयस्सर नहीं इन्सां होना।

जनाब Impact साहब! मैं न हिदू हूँ, न मुसलमान, न बहाई और न यहूदी, मैं बहुत आसानी के साथ चचा ग़ालिब की राय से इन्सान हूँ। मैं भी कभी आपकी तरह ही कट्टर मुसलमान हुवा करता था मगर मोमिन बईमान बनना ज़रा मुश्किल है, बस इस बात पर अकेले में सोचा करिए. एक दिन आप भी फ़क़त इन्सान बन जाएँगे. आप को गलत फहमी है कि मुसलमान मोमिन होता है।

क़ुरआन ए ग़ालिब की एक आयत और मुलाहिजा हो - - -

कुछ न था तो खुदा था, न कुछ होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने, न मैं होता तो क्या होता।

ग़ालिब आपको इन अल्लाहों, भगवानों और Gods के चूहेदानों से आजाद कर रहा है. कभी मंसूर ने अनल हक (मैं खुदा हूँ) कहा था. भारतीय चिंतन का कहना है कण कण में भगवान, तो वजूद रखने वाला कौन है जो भगवन नहीं ?
क्या कव्वे और छछूंदर भी? इन बकवासों को छोडिए, ग़ालिब इनसे हमको आज़ाद कराता है.
कितनी पुर असर आयत उस फितरत ए कायनात की, ग़ालिब पर नाजिल हुई है, मुलाहिज़ा हो - - -

मरे बुतखाने में,काबे में गाडो बरहमन को,
वफ़ादारी बशर्ते उस्तवारी अस्ले ईमाँ है.

अगर ग़ालिब के यह अशआर आपको न समझ में आएँ तो किसी उस्ताद से ज़रूर समझें.

बहेन फिरदौस खान तुम भी मुस्लिम और गैर मुस्लिम के वहम में पड़ी हुई हो, इससे ऊपर उट्ठो. बहुत क़ाबिल ख़ातून हो खुल कर सदाक़त के मैदान में आओ, इस कौम ए मजलूम को तुम जैसी बेदारों की अशद ज़रुरत है।

असलम कासिमी साहब ! पंडित सत्य को मिथ्य से गुणा करता है, फिर गुणन फल में लेख लिखता है. हिन्दूओं में समाज सुधारक सर उठा कर बोलते हैं. मुसलामानों में मुझ जैसा मोमिन बईमान कोई मैदान में है? सच की अलामत तसलीमा नसरीन का, झूट के शैदाई जीना हराम किए हुए हैं।

बनाम इस्लाम की दुन्या - - - पहला बहादर! मैदाने हक में - - - जिसको मोमिन सलाम करता है.
मुहम्मद उमर कैरान्वी - - - बेचारा मेरे घर के सामने ही अपनी दूकान सजाए रहता है, समझता है छाता वहीँ बिकेगा जहाँ बारिश होती होगी, उसे क्या खबर कि मोमिन ज़ेहनों, दिलों और दिमागों पर अब्रे रहमत बरसता है जिसमें खिलक़त नहाना चाहती है. तरस आती है इस नव जवान पर इस उम्र में और इस युग में अफीम बेचता है.

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पिछली किस्त में मैंने कहा थ कि यूसुफ़ की तौरेती कहानी आपको सुनाऊंगा जिसे मैं मुल्तवी करता हूँ कि यह बात मेरे मुहिम में नहीं आती। इतना ज़रूर बतलाता चलूँ कि मुहम्मद ने तौरेत की हर बात को ऐतिहासिक घटना के रूप में तो लिया है मगर उसमें अपनी बात कायम करने के लिए रद्दो बदल कर दिया है तौरेत में यूसुफ़ हसीन इन्सान नहीं बल्कि ज़हीन तरीन शख्स है. उसने सात सालों में इतना गल्ला इकठ्ठा कर लिया था कि अगले सात क़हत साली के सालों में पूरे मिस्र को दाने के एवाज़ में बादशाह के पास गिरवीं कर दिया था. ज़मीन बादशाह की और मज़दूरी पर रिआया काम करने लगी . कुल पैदावार का १/५ लगान सरकार को मिलने लगा. यूसुफ़ का यह तरीक़ा आलम गीर बन गया जो आज तक कहीं कहीं रायज है.

''ये क़िस्सा गैब की ख़बरों में से है जो हम वाहिय के ज़रीए से आप को बतलाते हैं. - - - और अक्सर लोग ईमान नहीं लाते गो आप का कैसा भी जी चाह रहा हो, और आप इनसे इस पर कुछ मावज़ा तो चाहते नहीं, यह क़ुरआन तो सारे जहां वालों के लिए सिर्फ़ नसीहत है.
सूरह यूसुफ़ १३- १३-वाँ पारा आयत (१०२-४)
मैंने आप को बतलाया था कि यूसुफ़ कि कहानी अरब दुन्या कि मशहूर तरीन वाक़ेआ है जिसे बयान करने के बाद झूठे मुहम्मद फिर अपने झूट को दोहरा रहे है कि ये गैब कि खबर है जो इन्हें वाहिय के ज़रीए मिली है. मुसलमानों! मेरे भोले भाले भाई!! क्या तुम्हें ज़रा भी अपनी अक्ल नहीं कि ऐसे कुरआन को सर से उतार कर ज़मीन पर फेंको. सिड़ी सौदाई की खाहिशे पैगम्बरी कि इन्तहा देखिए कि ज़माने के दिखावे के लिए अपने आप में गम के मारे मरे गले जा रहे हैं, अपने जी की चाहत में तड़प राहे हैं जेहादी रसूल. कुरआन सारे ज़माने को एक भी कारामद नुस्खा नहीं देता बस इसका गुणगान बज़ुबान खुद है.
''और बहुत सी निशानियाँ आसमानों और ज़मीन पर जहाँ उनका गुज़र होता रहता है और वह उनकी तरफ तवज्जे नहीं देते हैं और अक्सर लोग जो खुदा को मानते भी हैं तो इस तरह के शिर्क करते जाते हैं तो क्या फिर इस बात से मुतमईन हुए हैं कि इन पर खुदा के अज़ाब का कोई आफ़त आ पड़े जो इनको मुहीत हो जावे या उन पर अचानक क़यामत आ जवे और उनको खबर भी न हो.''
सूरह यूसुफ़ १३- १३-वाँ पारा आयत (१०५-१०७)
गंवार चरवाहा बगैर कुछ सोचे समजे मुँह से बात निकालता है जिसको यह हराम ज़ादे ओलिमा कुछ नशा आवर अफीम मिला के कलामे इलाही बना कर आप को बेचते हैं. अब सोचिए कि आसमानों पर वह भी उस ज़माने में आप अवाम का गुज़र कैसे होता रहा होगा या इन मुल्लाओं का आज भी आसमानों पर जाने की तौफीक कहाँ , साइंस दानों के सिवा ? रह गई ज़मीन की बात तो इस पर अरब दुन्या के लड़ाके यूसुफ़ से लेकर मूसा तक हजारो बस्तियों को यूँ तबाह करते थे कि वह ज़मीन कि निशानयाँ बन जाती थीं. (पढ़ें तौरेत मूसा काल)
मुहम्मद हजरते इन्सान को कभी हालाते इत्मीनान में देखना या रहने देना पसंद नहीं करते थे. उनकी बुरी खसलत थी कि फर्द के ज़ातयात में दख्ल अंदाजी जिसकी पैरवी इस ज़माने भी उल्लू के पट्ठे तबलीगी जमाअत वाले जोहला, तालीम याफ्ता हल्के में, लोगों को जेहालत की बातें समझाने जाते है.
मुहम्मद की एक खू शिर्क है कि जो उनके सर में जूँ की तरह खुजली किया करती है. शिर्क यानी अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना. इसमें भी मुहम्मद की चाल है कि सिर्फ़ उनको शरीक करो.
जेहादों की मिली माले गनीमत,तलवारों के साए में रचे इस्लामी कानून और हरामी ओलिमा के खून में दौड़ते नुत्फे ए मशकूक ने एक बड़ी आबादी को रुसवा कर रखाहै।

''आप फरमा दीजिए मेरा तरीक है मैं खुदा की तरफ इस तौर पर बुलाता हूँ कि मैं दलील पर क़ायम हूँ। मैं भी, मेरे साथ वाले भी और अल्लाह पाक है और मैं मुशरिकीन में से नहीं हूँ और हमने आप से पहले मुख्तलिफ बस्ती वालों में जितने रसूल भेजे हैं सब आदमी थे. और यह लोग मुल्क में क्या चले फिरे नहीं कि देख लेते कि इन लोगों का कैसा अंजाम हुवाजो इन से पहले हो गुज़रे हैं और अल्बस्ता आलमे आखरत इनके लिए निहायत बहबूदी की चीज़ है जो एहतियात रखते हैं. सो क्या तुम इतना भी नहीं समझते.
इन के किस्से में समझदार लोगों के लिए बड़ी इबरत है। ये कुरान कोई तराशी हुई बात तो है नहीं बल्कि इससे पहले जो किताबें हो चुकी हैं ये उनकी तस्दीक करने वाला है और हर ज़रूरी बात की तफसील करने वाला है और ईमान वालों के लिए ज़रीया हिदायत है और रहमत है.
सूरह यूसुफ़ १३- १३-वाँ पारा आयत (१०९)
तुम किसी दलील पर क़ायम नहीं हो, तुम तो दलील की शरह भी नहीं कर सकते, अलबत्ता अपने गढ़े हुए अल्लाह के दल्लाली पर क़ायम हो. तुम और तुहारे साथी यह आलिमान दीन मुशरिकीन में से नहीं, बल्कि मुज्रिमीन में से हो. आ गया है वक़्त कि तुम जवाब तलब किए जा रहे हो. तुम्हारे अल्लाह ने तुमसे पहले मूसा जैसे ज़ालिम जाबिर और दाऊद जैसे डाकू लुटेरे रसूल ही भेजे हैं जिसे तुम अच्छी तरह समझते हो कि उनकी पैरवी ही तुम्हें कामयाब करेगी।
मुहम्मद के पास एह यहूदी पेशावर शागिर्द रहा करता था जो तमाम तौरेती किस्से और वाक़िए इनको बतलाता था और यह उसे अपनी गंवारू ग्रामर की शाइरी में गढ़ कर बयान करते और उसे वह्यी कहते। कहते हैं अल्लाह की इस कहानी को दूसरी आसमानी किताबें भी तसदीक़ करती हैं. कैसा बेवकूफ़ बनाया है जाहिलों को और जो आज तक बने हुए हैं.


निसार '' निसार-उल-ईमान''

15 comments:

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  2. आपने Word verification हटा लिया... इसके लिए आपके शुक्रगुज़ार हैं... यक़ीनन इससे कमेंट्स करने वालों को आसानी रहेगी...

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  4. आपने लिखा- "बहेन फिरदौस खान तुम भी मुस्लिम और गैर मुस्लिम के वहम में पड़ी हुई हो, इससे ऊपर उट्ठो."

    यह बात ही हमारी फ़ितरत के ख़िलाफ़ है. हम शिकायत दर्ज करते हैं...

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  5. कोई बात नागवार गुज़री हो तो उसके लिए मुआफ़ी चाहते हैं...

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  6. जनाब आप यहूदी हों या बहाई, लेकिन अभी भी आप हक पर नहीं हो. अपने दिल पर हाथ रखकर सोचो, कुछ झूटी हदीसों के आधार पर और कुरआन को उल्टा सीधा समझकर क्या आप मुहम्मद (स.अ.) को समझ सकते हो, वह जिसने पूरी दुनिया में इन्किलाब ला दिया? अगर वह इतने ही अत्याचारी थे जैसा की तुम कहते हो तो हिटलर की तरह उनका कोई नामलेवा न होता आज.
    रही बात कुरआन की तो इसपर लाखों तफ्सीरें लिखी जा चुकी हैं, इसके बाद भी कोई ये दावा न कर सका की उसने कुरआन को पूरी तरह समझ लिया है.
    अभी तुम्हें ज़रुरत है इस्लाम से सम्बंधित बहुत ज्यादा अध्ययन की. चलो एक किताब का नाम मैं बता देता हूँ : हयात-उल-कुलूब , लेखक हैं अल्लामा बाक़र मजलिसी. तीन भागों में है हज़रत आदम से लेकर पैगम्बर मोहम्मद (स.अ.) तक हर बड़े नबी का बयान है इसमें. इसे पढ़कर तुम्हें इन नबियों को समझने में आसानी होगी.

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  7. सादर वन्दे!
    मै आपकी हिम्मत की दाद देता हूँ ! और सच्चाई की भी| और आप जिन डरपोकों की बात कर रहे हैं, ये अन्दर से खोखले लोग हैं इनका क्या है किसी को अपने जाल में फासो फस गया तो इनकी नजर में सच्चा मुस्लमान, और अगर इनकी असलियत जान कर नहीं फसा तो .............आपने बता ही दिया है!
    रत्नेश त्रिपाठी

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  8. कोई कुछ भी कहता रहे... आप स्याह को स्याह और सफेद को सफेद बोलते हैं... आपको प्रणाम... काश चौथाई मुस्लिम भी आपकी बातों को समझ सकें और हमारे धर्मनिरपेक्ष हिन्दू भी... क्योंकि मेरे जैसा साम्प्रदायिक तो अपने यहां की और आपके यहां की बाते समझने की कोशिश करता है..

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  9. मोहतरम 'जीम' मोमिन साहब
    हमारी भी हालत यही है...
    उम्र तो सारी कटी इश्क़े-बुतां में मोमिन
    आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे...

    हफ़्तेभर से आपके ब्लॉग पर कोई नया कलाम पढ़ने को नहीं मिला...
    आपसे कोई राबता क़ायम करे तो कैसे करे... ब्लॉग पर कोई ई-मेल तो दे ही दीजिए... एक इल्तिजा...

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  10. मोहतरम 'जीम' मोमिन साहब,
    हम मुस्लिम- गैर मुस्लिम के फेर में नहीं पड़ते... हम हमेशा कहते हैं कि हम मज़हब से ज़्यादा इंसानियत और रूहानियत में यक़ीन रखते हैं... हमारे इसी अक़ीदे की वजह से हमें काफ़िर होने का 'तमगा' भी मिल चुका है...

    हमने आपकी तारीफ़ करते हुए कहा था- " यह काम किसी ग़ैर मुस्लिम का तो क़तई नहीं हो सकता... इतनी मेहनत... कमाल है और क़ाबिले-तारीफ़ भी... "
    हमारा मतलब उर्दू ज़बान से था...जो आप लिखते हैं... यक़ीनन तारीफ़ के क़ाबिल...हम फिर दोहराते हैं...

    हम सही थे...आपने मान ही लिया-"मैं भी कभी आपकी तरह ही कट्टर मुसलमान हुवा करता था"

    हम आपके लेखन से बहुत मुतासिर हैं...
    नेक दुआओं के साथ...

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  11. आप सब की चर्चा देख कर लगा कि कुछ हो रहा है अच्छे के लिए

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  12. जीम मोमिन साहेब ,आपने आखिर सारी हकीकत से पर्दा उठा दिया.अब हकीकत लोगों के सामने आगयी है.यह तंगनजर लोग अपना तालिबानी रूप कब तक छुपायेंगे..आपने अपना इंसानी फर्ज बखूबी अदा किया है.मुझे यह जानकर निहायत खुशी हुई की बहिन फिरदौस की तरह आप भी हक्परस्त और इंसानियत पसंद हैं.मेरी दुआ आपके साथ है.बराए मेहरबानी अपना इ मेल प्रकाशित करें. धन्यवाद .बी एन शर्मा भोपाल

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  13. फिरदौस साहिबा ! आप फिर मुझको समझने में ग़लती कर रही हैं कि मैं मुसलमान हूँ , था कभी नादानी के आलम में. होश में आने के बाद अब मैं एक मोमिन हूँ जिसका मसलक ईमान है, इस्लाम नहीं. आप ईमान और इस्लाम के फर्क को मेरे मज़ामीन से समझ सकती हैं. आपके पाँव में रूहानियत का काँटा चुभ कर अन्दर टूट चुका है , आप ईमान कि सीधी सड़क पर दौड़ ही नहीं सकतीं. थोडा जिसारत कीजिए इस कांटे को ईमानकी सूई से निकलने की.

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  14. Anvar ji Geeta mei krisna ne bhi arjun ko yuddha ke liye lalkara tha. Arjjun kahta hai ki vo pitamah aur Guru aadi hai magar Krisn ne kaha nahi ye adharm ka saath de rahe hai isliye adharmi hai inko marne mei pap nahi hai. Hindu Dharm aattaiyon rakshon ko marvata hai insano ko kafir samjh kar nahi. Abhi aap aur gahrai se hindu dharm ka addhyana karen.

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