Wednesday 6 January 2010

क़ुरआन - सूरह अनआम - ६


सूरह अनआम ६-
(6 The Cattle)
G

जेहनी ग़ुस्ल

ज़िन्दगी एक दूभर सफ़र है, यह तन इसका मुसाफ़िर है. आसमान के नीचे धूप, धूल और थकान के साथ साथ सफ़र करके हम बेहाल हो जाते हैं। मुसाफ़िर पसीने पसीने हो जाता है, लिबास से बदबू आने लगती है, तबीअत में बेज़ारी होने लगती है, ऐसे में किसी साएदार पेड़ को पाकर हम राहत महसूस करते है. कुछ देर के लिए इस मरहले पर सुस्ताते हैं, पानी मिलगया तो हाथ मुंह भी धो लेते हैं मगर यह पेड़ का साया सफ़र का मरहला होता है, हमें पूरी सेरी नहीं देता। हमें एक भरपूर स्नान कि ज़रुरत महसूस होती है। इस सफ़र में अगर कोई साफ़ सफ़फ़ाफ़ और महफूज़ गुस्ल खाना हमको मिल जाए तो हम अन्दर से सिटकिनी लगा कर, सारे कपडे उतार के फेंक देते हैं और मादर ज़ाद नंगे हो जाते हैं, फिर जिस्म को शावर के हवाले कर देते हैं. अन्दर से सिटकिनी लगी हुई है कोई खटका नहीं है. सामने कद्दे आदम आईना लगा हुआ है. इसमें बगैर किसी लिहाज़ के अपने पूरे जिस्म का जायज़ा लेते है, आखिर यह अपना ही तो है. बड़े प्यार से मल मल कर अपने बदन के हर हिस्से से गलाज़त छुडाते हैं. जब बिलकुल पवित्र हो जाते हैं तो खुश्क तौलिए से शारीर को हल्का करते हैं, इसके बाद धुले जोड़े पहेन कर संवारते हैं. इस तरह सफ़र के तकान से ताज़ा दम होकर हम अगली मंजिल की तरफ क़दम बढ़ाते हैं.
ठीक इसी तरह हमारा दिमाग भी सफ़र में है, सफ़र के तकान से बोझिल है। सफ़र के थकान ने इसे चूर चूर कर रखा है. जिस्म की तरह ही ज़ेहन को भी एक हम्माम की ज़रुरत है मगर इसके तकाज़े से आप बेखबर हैं जिसकी वजेह से ग़ुस्ल करने का एहसास आप नहीं कर पा रहे हैं। नमाज़ रोज़े पूजा पाठ और इबादत को ही हम ग़ुस्ल समझ बैठे हैं। यह तो सफ़र में मिलने वाले पेड़ नुमा मरहले जैसे हैं, हम्मामी मंज़िल की नई राह नहीं. जेहनी ग़ुस्ल है इल्हाद, नास्तिकता जिसे की धर्म और मज़हब के सौदागरों ने गलत माने पहना रखा है, गालियों जैसा घिनावना. बड़ी हिम्मत की ज़रुरत है कि आप अपने ज़ेहन को जो भी लिबास पहनाए हुए हैं, महसूस करें कि वह सदियों के सफ़र में मैले, गंदे और बदबूदार हो चुके हैं. इसको नए, फितरी, लौकिक ग़ुस्ल खाने में इन मज़हबी कपट के बोसीदा लिबास को उतार फेंकिए और एक दम उरियाँ हो जाइए, वैसे ही जैसे आपने अपने शारीर को प्यार और जतन से साफ़ किया थ, अपने जेहन को नास्तिकता और नए मानव मूल्यों के साबुन से मल मल क्र धोइए. जदीद तरीन इंसानी क़दरों की सुगंध में नहाइए, जब आप तबदीली का ग़ुस्ल कर रहे होंगे कोई आप को देख नहीं रहा होगा, अन्दर से सिटकिनी लगी हुई होगी. शुरू कीजिए दिमागी ग़ुस्ल. धर्मो मज़हब, ज़ात पात की मैल को खूब रगड़ रगड़ कर साफ़ कीजिए, हाथ में सिर्फ इंसानियत का कीम्याई साबुन हो. इस ग़ुस्ल से आप के दिमाग का एक एक गोशा पाक और साफ़ हो जाएगा. धुले जोड़ों को पहन कर बाहर निकलिए. अपनी शख्सियत को बैलौस, बे खौफ जसारत के जेवरात से सजाइए, इस तरह आप वह बन जाएँगे जो बनने का हक कुदरत ने आप को अता किया है.
याद रखें जिस्म की तरह ज़ेहन को भी ग़ुस्ल की ज़रुरत हुवा करती है। सदियों से आप धर्म ओ मज़हब का लिबास अपने ज़ेहन को पहनाए हुए हैं जो कि गूदड़ हो चुके हैं. इसे उतार के आग या फिर क़ब्र के हवाले कर दें ताकि इसके जरासीम किसी दूसरे को असर अंदाज़ न कर सकें. नए हौसले के साथ खुद को सिर्फ एक इंसान होने का एलान कर दें.

अब मुहम्मदी अल्लाह की गैर फ़ितरी और इंसानियत सोज़ बाते सुनें - - -

''आप जानदार चीज़ों को बेजान से निकल लेते हैं (बैज़े से चूजा) और बेजान चीज़ों को जानदार से निकल लरते है (परिदे से बैजा)''
सूरह अन आम छताँ+सातवाँ परा (आयत ९६)
(जी हाँ ! यह बात मुहम्मद अल्लाह से कह रहे हैं और एलान है कि कुरआन मुहम्मद से अल्लाह की कही हुई बात है. मुहम्मद के कलाम को अल्लाह का कलाम माना जाता है . क्याखुदाए बरतर ऐसी नादानी कि बातें कर सकता है?)
अण्डों में जान होती है, इतनी सी बात को खुद को पुर हिकमत अल्लाह के पयंबर कहलाने वाले मुहम्मद नहीं जानते. उनका गाउदी अल्लाह कुरआन में बार बार इस बात को दोहराता है. इस्लामी ओलिमा ऐसी आयतों को मुस्लिम अवाम से पर्दा पोशी करते हैं और उनको अंध विशवास का ज़हर पिलाते रहते हैं.
''वह आसमानों और ज़मीन का मूजिद है, इसके औलाद कहाँ हो सकती है? हालाँकि इसकी कोई बीवी तो है नहीं. और अल्लाह ने हर चीज़ को पैदा किया है और हर चीज़ को जानता है.''
सूरह अन आम छताँ+सातवाँ परा (आयत १०२)
ईसाई, ईसा को खुदा का बेटा कहते हैं, उसकी मुखालिफ़त में तर्क हीन बाते करते हैं। मुहम्मद के मुताबिक कोई आविष्कारक बाप कैसे हो सकता है? फिर खुद ही कहते हैं- - - उसके पास कोई बीवी भी तो नहीं है, यह दूसरी जेहालत की दलील है. अव्वल तो यह कि ब्रह्मांड का रचैता उसका आविष्कारक कैसे हुआ? यह एक जाहिल जपट की बातें हैं. जब अल्लाह ने हर चीज़ को पैदा किया तो एक अदद बच्चा पैदा करना उसके लिए क्या मुश्किल था या उसकी जोरू नहीं है इसका इल्म मुहम्मद को कैसे है. मुहम्मद कुरआन में ही एक जगह अल्लाह से क़सम खिलवाते हैं '' कसम है बाप की और औलाद की - - -'' गोया अल्लाह के बीवी बच्चे ही नहीं बाप भी है.
''और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो ये शिर्क न करते, और हम ने आप को इनका निगरान नहीं बनाया और न आप इन पर मुख़्तार हैं और गाली मत दो उनको जिनकी यह लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं, फिर वह बराए जमल हद से गुज़र कर अल्लाह को गाली देंगे.''
सूरह अन आम छताँ+सातवाँ परा (आयत १०८+९)
अल्लाह को मंज़ूर है कि वह शिर्क करें, फिर आप अल्लाह की रज़ा में बाधा क्यूं बन रहे हैं ?आप कितने किस्म की बातें करते हैं? आप निगरान ही नहीं मुख़्तार ही नहीं बल्कि मौक़ा मिलते ही तलवार लेकर उनके सरों पर खड़े हो जाते हैं, घिज़वा (जंग) करते हैं और इंसानी खून बहाते हैं. अबू बकर आप के ससुर जब काफ़िर इरवा से कहते हैं ''भाग जा अपने माबूद लात की शर्मगाह (लिंग) चूस'' (बुखारी ११४४)जवाब सुन कर आपको होश आता है.
''और लोगों ने बड़ा ज़ोर लगा कर अल्लाह की क़सम खाई थी कि इन के पास कोई निशानी आ जाए तो वह ज़रूर ही इस पर ईमान लाएँगे. आप कह दीजिए निशानियाँ सब अल्लाह के कब्जे में हैं और तुम को क्या खबर कि वह निशानियाँ जिस वक़्त आ जाएंगी, यह लोग तब भी ईमान न लाएँगे और हम भी उनके दिलों को और निगाहों को फेर देंगे जैसाकि ये लोग इस पर पहली बार ईमान नहीं लाए और हम इनको इनकी सरकशी में हैरान रहने देंगे''
सूरह अन आम छताँ+सातवाँ परा (आयत १११०+११)
बाबा इब्राहीम के दो बेटे इसहाक और इस्माईल थे. इसहाक ब्याहता सारा से और इस्माईल सेविका हाजरा से. इसहाक का वंश यहूदी हैं जो कि श्रेष्ट माने जाते है और तमाम जाने माने कथित पैगम्बर इसी में हुए. लौड़ी जादे इस्माईलिए रश्क किया करते कि मेरे वंस में कोई पैगम्बर होता तो क्या बात थी, यह बात इस्माईलिए मुहम्मद का सपना बन गया और उन्होंने पुख्ता इरादा किया कि उनको इस्माईलियों का ईसा, मूसा की तरह ही बनना है. यहाँ इसी बात का इस्माईलियों को यह ताना दे रहे हैं. ईसा मूसा की तरह ही जब लोगों ने इनसे चमत्कार दिखलाने की बात करते हैं तो मियां कैसी कैसी कन्नी कटते नज़र आते हैं.
'' और अगर हम इन पर फ़रिश्ते भी उतर देते और मुर्दे भी इनसे गुफ्तुगू करने लगते और हर चीज़ को उनके सामने पेश कर देते तो भी ये ईमान लाने वाले न थे लेकिन अक्सर इनमें से लोग जेहालत की बातें करते हैं.''
सूरह अन आम छताँ+सातवाँ परा (आयत ११२)
जनाबे आली! अगर आप उनके सामने यह मुअज्ज़े पेश कर देते तो वह न सिर्फ ईमान लाते बल्कि ईमान के दरिया में बह जाते। यह जाहिल न थे बल्कि मुस्तनद जाहिल तो आप थे जो ऐसी गैर फितरी बातें उनको समझाते थे. मुस्लिम अवाम की बद किस्मती यह है कि वह आप के बके हुए कलाम में मानी, मतलब और मकसद ढूंढने के बजाए सवाब ढूंढ रही है, नतीजतन वह अज़ाब में मुब्तिला है. मेरी बेदार लोगों से गुजारिश है कि उन भेड़ बकरियों को फिलहाल सवाब की घास चरने दें मगर आप हज़रात मेरी तहरीकमें शामिल हों.
निसार ''निसार-उल-ईमान''

4 comments:

  1. काश कि आपके लेखों से लोग कुछ सबक लें. आप जारी रखें. आभार

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  2. उल्‍लू की दुम देखी है तुमने शीशे में देखना, अपने मामा का अनुवाद ला रहा, बहुत तलाश किया यह आयत न मिली, इसलिए कि यह तूने खुद बनाई है उन नम्‍बरों पर यह मिलती हैं
    On that day, if the penalty is averted from any, it is due to Allah's mercy; And that would be (Salvation), the obvious fulfilment of all desire.‎ (6:16)

    He it is that cleaveth the day-break (from the dark): He makes the night for rest and tranquillity, and the sun and moon for the reckoning (of time): Such is the judgment and ordering of (Him), the Exalted in Power, the Omniscient.‎ (6:96)

    अओ अब भी समय है

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    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
    antimawtar.blogspot.com (Rank-2 Blog) डायरेक्‍ट लिंक

    अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
    अल्‍लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
    अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
    अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार
    अल्‍लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
    अल्‍लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी

    छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-3 Blog)
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  3. BAHUT BADIA
    YAHA BHI RUKE
    http://agmkgb88ptc.blogspot.com/

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