Monday 22 February 2010

क़ुर आन सूरह तौबः -- ९


सूरह ए तौबः ९
Repentance-9
A

मनहूस साहब!
मनहूस साहब! अगर आप का यही नाम है तो अजीब ज़ौक़ है आपका. आपने मनु वाद की तरफ इशारा किया है, यकीनन इन्तेहाई मज़्मूम है यह वाद और इसने उपमहाद्वीप के दलितों पर वह अत्याचार किया है कि मानवता इस से शरमा जाती है. शायद आप को मालूम हो कि मुश्तरका बंगाल में एक अछूत काला पहाड़ हुवा करता था, दबंग था, उसके पास बरह्मनो से निपटने के लिए कोई रास्ता न था सिवाय इसके कि वह मुसमान हो जाय. मुसलमान होकर उसने बरमानों को वह सबक सिखलाया की मनुवाद का इतिहास तमाम उम्र रोता रहेगा. उसने बरहमन हुक्मरानों के हाथों को घुटनों से कटवा दिया था और उनको ज़मीन पर पड़े खाने को जानवरों की तरह खाने पर मजबूर कर दिया थ कि तुम ने हम अछूतों को टूटे बर्तनों के ठीकरों में खाने को मजबूर किया था, हम तुमको वह भी नहीं देगे. वही शूद्र आज भारत का एक हिस्सा काट कर पाकिस्तान और अब बांगला देश बनाए बैठे है और पश्चिमी बंगाल में भी मुस्लिम बाहुल्य इलाके हैं जो काला पहाड़ की उम्मत हैं. उनके इन्कलाब में कुरआन या इस्लाम का कोई दखल नहीं है. भारत उपमहाद्वीप में आप मनु वाद को धन्य वाद काहिए जो मुसलामानों की संख्या की देन है. उनको इस वक़्त तर्क कुरआन और कम से कम कार्ल मार्क्स की ज़रुरत है.
मेरा अभियान आज दुन्या की २०% आबादी पर मंडलाती हुई क़यामत पर है जिनको मुसलमान कहते हैं यह इस क़यामत के शिकार होने की दर पे हैं. मजहबों ने इंसानों पर बेहद ज़ुल्म ढाए हैं जिसका नतीजा उसकी कौमों ने भुगता है. मूसा जैसा ज़ालिम इस धरती पर कोई नहीं हुवा, नतीजतन यहूदी दुन्या भर में मारे मारे फिरे, हर जगह गैर महफूज़ रहे, यहूदी होते हुए हिटलर ने तेरह लाख यहूदियों को मरवा डाला, कोई बड़ी कमी तो देखी होगी, कमी यह है कि उनको गलत फहमी है कि उनके खुदा ने उनको तमाम कौमो का हाकिम बनाने का ख़्वाब दिखलाया है. यही हाल मुसलमानों का है इन का बोसीदा, फर्सूदा और नाज़ेबा कुरआन इनको ले डूबेगा.
मोहम्मद उमर केरानी
एक हैं मोहम्मद उमर केरानी. पता नहीं कहां से उनको मेरे मामा का पता मिल गया है जब कि मेरे माँ बाप अपने वालिदैन के अकेले हुए. इनके लिए इतना काफी है कि मैं अपने मामा की नक़ल टीपता हूँ. अल्लामा इकबाल ने ज़र्तुष्ठ के सुपर मैन (महा-मानव) का उर्दू तर्जुमा मरदे-मोमिन किया है और यह हज़रात मरदे मोमिन का मतलब मोमिन का शौहर बतला रहे हैं. बहुत दिनों तक हर्फे-ग़लत में ग़लत की हिज्जे न लिख पाने की ताने देते रहे, मुझे तरह तरह की उपाधियों से नवाज़ते रहते हैं, कभी उल्लू की दुम, कभी माटी का माधौ, तो कभी बेटा टीपू । इनके बराबर तो मेरे नाती पोते होने को हैं. खैर हमारे ब्लाग पर केरानी साहब अपनी कबाड़ की दूकान लगाए हुए हैं. हमारे निशिचल भाई उनको सांड कहते हैं कि केरानी हर की फटे में सींग घुसाए रहता है, हमारे लिए इतना ही काफी है।
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सूरह ए तौबः ९

सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है . अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी, आमदे इस्लाम से पहले यह क़ाबिले क़द्र अरबी कौम के मेयार का एक नमूना था. मुहम्मद ने अपने पुरखों की अज़मत को बरक़रार रखते हुए इस सूरह की शुरूआत बगैर बिस्मिल्लाह हिररहमा निररहीम से अज खुद शुरू किया. आम मुसलमान इस बात को नहीं जानता कि कुरान की ११४ सूरह में से सिर्फ एक सूरह, सूरह-ए-तौबः बगैर बिस्मिल्लाह हिररहमा निररहीम पढ़े शुरू करनी चाहिए, इस लिए कि इस में रसूल के दिल में पहले से ही खोट थी. मुआमला यूँ था कि मुसलामानों का मुशरिकों के साथ एक समझौता हुआ था कि आइन्दा हम लोग जंगो जद्दाल छोड़ कर पुर अम्न तौर पर रहेंगे. ये मुआहदा कुरआन का है, गोया अल्लाह कि तरफ से हुवा. इसको कुछ रोज़ बाद ही अल्लाह निहायत बेशर्मी के साथ तोड़ देता है और बाईस-ए-एहसास जुर्म अपने नाम से सूरह की शुरूआत नहीं होने देता.
मुसलामानों! इस मुहम्मदी सियासत को समझो.अकीदत के कैपशूल में भरी हुई मज़हबी गोलियाँ कब तक खाते रहोगे? मुझे गुमराह, गद्दार, और ना समझ समझने वाले कुदरत कि बख्सी हुई अक्ल का इस्तेमाल करें, तर्क और दलील को गवाह बनाएं तो खुद जगह जगह पर क़ुरआनी लग्ज़िशें पेश पेश हैं कि इस्लाम कोई मज़हब नहीं सिर्फ सियासत है और निहायत बद नुमा सियासत जिसने रूहानियत के मुक़द्दस एहसास को पामाल किया है।

क़बले इस्लाम अरब में मुख्तलिफ़ फिरके हुवा करते थे जिसके बाकियात खास कर उप महाद्वीप में आज भी पाए जाते हैं। इनमें क़ाबिले ज़िक्र नीचे दिए जाते हैं ---

१- काफ़िर ---- यह क़दामत पसंद होते थे जो पुरखों के प्रचीनतम धर्म को अपनाए रहते थे. सच पूछिए तो यही इंसानी आबादी हर पैगम्बर और रिफार्मर का रा-मटेरियल होती रही है. बाकियात में इसका नमूना आज भी भारत में मूर्ति पूजक और भांत भांत अंध विश्वाशों में लिप्त हिदू समाज है.ऐसा लगता है चौदह सौ साला पुराना अरब पूर्व में भागता हुआ भारत में आकर ठहर गया हो और थके मांदे इस्लामी तालिबान, अल क़ायदा और जैशे मुहम्मद उसका पीछा कर रहे हों.
२- मुश्रिक़ ---- जो अल्लाह वाहिद (एकेश्वर) के साथ साथ दूसरी सहायक हस्तियों को भी खातिर में लाते हैं. मुशरिकों का शिर्क जानता की खास पसंद है. इसमें हिदू मुस्लिम सभी आते है, गोकि मुसलमान को मुश्रिक़ कह दो तो मारने मरने पर तुल जाएगा मगर वह बहुधा ख्वाजा अजमेरी का मुरीद होता है, पीरों का मुरीद होता है जो की इस्लाम के हिसाब से शिर्क है. आज के समाज में रूहानियत के क़ायल हिन्दू हों या मुसलमान थोड़े से मुश्रिक़ ज़रूर हैं.
३- मुनाफ़िक़ ---- वह लोग जो बज़ाहिर कुछ, और बबातिन कुछ और, दिन में मुसलमान और रात में काफ़िर. ऐसे लोग हमेशा रहे हैं जो दोहरी जिंदगी का मज़ा लूट रहे हैं. मुसलामानों में हमेशा से कसरत से मुनाफ़िक़ पाए जाते हैं.
४- मुनकिर ----- मुनकिर का लफ्ज़ी मतलब है इंकार करने वाला जिसका इस्लामी करन करने के बाद इस्तेलाही मतलब किया गया है कि इस्लाम क़ुबूल करने के बाद उस से फिर जाने वाला मुनकिर होता है. बाद में आबाई मज़हब इस्लाम को तर्क करने वाला भी मुनकिर कहलाया.
५-मजूसी ----- आग, सूरज और चाँद तारों के पुजारी. ज़रथुष्टि.
६-मुल्हिद ------ कब्र रसीदा (नास्तिक) हर दौर में ज़हीनों को ढोंगियों ने उपाधियाँ दीं हैं मुझे गर्व है कि इंसान की ज़ेहनी परवाज़ बहुत पुरानी है.
७- लात, मनात, उज़ज़ा जैसे देवी देवताओं के उपासक, जिनकी ३६० मूर्तियाँ काबे में रक्खी हुई थीं जिसमे महात्मा बुद्ध की मूर्ति भी थी.
इनके आलावा यहूदी और ईसाई कौमे तो मद्दे मुकाबिल इस्लाम थीं ही जो कुरआन में छाई हुई हैं.
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अल्लाह अह्द शिकनी करते हुए कहता है - - -

''अल्लाह की तरफ से और उसके रसूल की तरफ से उन मुशरिकीन के अह्द से दस्त बरदारी है, जिन से तुमने अह्द कर रखा था.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१)
मुसलामानों ! आखें फाड़ कर देखो यह कोई बन्दा नहीं, तुम्हारा अल्लाह है जो अहद शिकनी कर रहा है, वादा खेलाफ़ी कर रहा है, मुआहिदे की धज्जियाँ उड़ा रहा है, मौक़ा परस्ती पर आमदः है, वह भी इन्सान के हक में अम्न के खिलाफ ? कैसा है तुम्हारा अल्लाह, कैसा है तुम्हारा रसूल ? एक मर्द बच्चे से भी कमज़ोर जो ज़बान देकर फिरता नहीं। मौक़ा देख कर मुकर रहा है? लअनत भेजो ऐसे अल्लाह पर.
''सो तुम लोग इस ज़मीन पर चार माह तक चल फिर लो और जान लो कि तुम अल्लाह तअला को आजिज़ नहीं कर सकते और यह कि अल्लाह तअला काफिरों को रुसवा करेंगे.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२)

कहते है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, क्या इस क़िस्म की बातें कोई तख्लीक़ कार-ए-कायनात कर सकता है? मुसलमान क्या वाकई अंधे,बहरे और गूँगे हो चुके हैं, वह भी इक्कीसवीं सदी में. क्या खुदाए बरतर एक साजिशी, पैगम्बरी का ढोंग रचाने वाले अनपढ़ , नाकबत अंदेश का मुशीर-ए-कार बन गया है. वह अपने बन्दों क्र अपनी ज़मीन पर चलने फिरने की चार महीने की मोहलत दे रहा है ? क्या अजमतो जलाल वाला अल्लाह आजिज़ होने की बात भी कर सकता है? क्या वह बेबस, अबला महिला है जो अपने नालायक बच्चों से आजिज़-ओ-बेजार भी हो जाती है. वह कोई और नहीं बे ईमान मुहम्मद स्वयंभू रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं जो अल्लाह बने हुए अह्द शिकनी कर रहे है.
''अल्लाह और रसूल की तरफ से बड़े हज की तारीखों का एलान है और अल्लाह और उसके रसूल दस्त बरदार होते हैं इन मुशरिकीन से, फिर अगर तौबा कर लो तो तुम्हारे लिए बेहतर है और अगर तुम ने मुंह फेरा तो यह समझ लो अल्लाह को आजिज़ न कर सकोगे और इन काफिरों को दर्द नाक सज़ा सुना दीजिए.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (३)
क़ब्ले इस्लाम मक्का में बसने वाली जातियों का ज़िक्र मैंने ऊपर इस लिए किया था कि बतला सकूं कअबा जो इनकी पुश्तैनी विरासत था, इन सभी का था जो कि इस्माइली वंशज के रूप में जाने जाते थे।यह कदीम लडाका कौम यहीं पर आकर अम्न और शांति का प्रतीक बन जाती थी, सिर्फ अरबियों के लिए ही नहीं बल्कि सारी दुन्या के लिए. अरब बेहद गरीब कौम थी, इसकी यह वजह भी हो सकती है सकती सकती कि हज से इनको कुछ दिन के लिए बद हाली से निजात मिलती रही हो. मुहम्मद ने अपने बनाए अल्लाह के कानून के मुताबिक इसको सिर्फ मुसलामानों के लिए मखसूस कर दिया, क्या यह झगडे की बुनियाग नहीं कायम की गई. इन्साफ पसंद मुस्लिम अवाम इस पर गौर करे.
'' मगर वह मुस्लेमीन जिन से तुमने अहेद लिया, फिर उन्हों ने तुम्हारे साथ ज़रा भी कमी नहीं की और न तुम्हारे मुकाबिले में किसी की मदद की, सो उनके मुआह्दे को अपने खिदमत तक पूरा करो. वाकई अल्लाह एहतियात रखने वालों को पसंद करता है.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४)
यह मुहम्मदी अल्लाह की सियासत अपने दुश्मन को हिस्सों में बाँट कर उसे किस्तों में मरता है. आगे चल कर यह किसी को नहीं बख्शता चाहे इसके बाप ही क्यूँ न हों.
''सो जब अश्हुर-हुर्म गुज़र जाएँ इन मुशरिकीन को जहाँ पाओ मारो और पकड़ो और बांधो और दाँव घात के मौकों पर ताक लगा कर बैठो. फिर अगर तौबा करलें, नमाज़ पढने लगें और ज़कात देने लगें तो इन का रास्ता छोड़ दो,'''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५)
मैं ने क़ब्ले इस्लाम मक्का कें मुख्तलिफ क़बीलों का ज़िक्र इस लिए किया था कि बावजूद इख्तेलाफ ए अकीदे के हज सभी का मुश्तरका मेला था क्यूँकि सब के पूर्वज इस्माईल थे. हो सकता है यहूदी इससे कुछ इख्तेलाफ़ रखते हों कि वह इस्माईल के भाई इसहाक के वंसज हैं मगर हैं तो बहरहाल रिश्ते दार. अब इस मुश्तरका विरासत पर सैकड़ों साल बाद कोई नया दल आकर अपना हक तलवार की जोर पर कायम करे तो झगडे की बुनियाद तो पड़ती ही है. इस तरह मुसलामानों ने यहूदियों और ईसाइयों से न ख़त्म होने वाला बैर खरीदा है. अल्लाह के वादे की खिलाफ वर्ज़ी के बाद मुहम्मद की बरबरियत की यह शुआतशुरुआत है।

'' निसार-उल-ईमान''

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_ऐतिहासिक सत्य में क़ुरआन की हक़ीक़त

Chronologically, the second to last surah revealed to Islam's "apostolic prophet" was named "Repentance", something that was beyond his ability. Much of it precedes and validates the conquest of Mecca. As a result of the defeat suffered at the hands of the Byzantines, Muhammad needed to vanquish an easier prey. But there was a problem. Muhammad had given his word, signed his name on a "peace treaty," proclaiming that he would not attack his hometown. So what do you suppose he did?
Foreshadowing what was to come, Muhammad said on behalf of his god: Qur'an 9:2 "Go for four months, backwards and forwards, [i.e., travel freely] throughout the land, but know that you cannot weaken Allah or escape. Allah will disgrace the unbelievers and put those who reject Him to shame."
Then Team Islam reneges on its commitment. Qur'an 9:3 "And an announcement from Allah and His Messenger, to the people (assembled) on the day of the Great Pilgrimage, that Allah and His Messenger dissolve (treaty) obligations with the Pagans. If then, you relent, it is best for you; but if you do not, know you that you cannot escape Allah, weaken or frustrate Him. And proclaim a grievous penalty of a painful doom to those who reject [Islamic] Faith." If you are a Muslim, ask yourself: if your prophet and his god were willing to break their sworn oath on this occasion, why trust them on any other occasion? Might their promises of paradise be equally hollow? Why does anyone trust a lying spirit?
The line "Allah and His Messenger dissolve (treaty) obligations" is a repudiation of written testimony. The verse Qur'an 66:1 "Allah has already sanctioned for you the dissolution of your vows" is an abandonment of sworn oaths, or verbal testimony. Islam's prophet and god said that their word and their scripture was not to be believed. So was Muhammad lying when he said that Allah was God? Did he lie when he claimed to be a prophet? What part of the Qur'an is untrue: some of it or all of it? Does paradise have virgins? Do killers go there? Does God really want his creation to follow the example of a perverted pedophile, a man guilty of incest and rape, a money-grubbing terrorist?
While you are pondering those questions, consider what comes next. Islam's dark spirit declares war on non-Muslims. Allah orders his militants to go out hunting by way of ambush. Muslims are told to fight non-Muslims, to slay them, to enslave them, and to torture them, deploying every strategy of war. Muslims must do this until every non-Muslim surrenders, worships the deceitful deity, and pays the Islamic tax.
I dare say, if this were the only verse in the Qur'an commanding Muslims to fight, enslave, torture, and kill non-Muslims, it would be sufficient to banish Islam: the order is open ended - it's not limited by time or place. Simply stated: they will kill until we stop them. Qur'an 9:5 "When the sacred forbidden months for fighting are past, fight and kill the disbelievers wherever you find them, take them captive [enslave them], beleaguer them [torture them], and lie in wait and ambush them using every stratagem of war. But if they relent, [and become Muslims by...] performing their devotional obligations and paying the zakat tax, then open the way. Allah is Forgiving, Merciful." The Islamic god said, "I created Islam to start fights that will kill, enslave, and torture people by way of deceptive ambush. Surrender, or I will have Muslims terrorize you."
So that the message would not be lost on the faithful: Bukhari:V9B84N59 "Allah's Apostle said, 'I have been ordered to fight the people till they say: "None has the right to be worshipped but Allah." Whoever says this will save his property and his life from me.'" Worship the Devil or die.
Prophet of Doom

3 comments:

  1. बुजुर्गवार आजकी पोस्‍ट से कुछ पता चला कि आप बुजुर्ग हैं, मेरा नाम आज भी बिगाड के दे रहे हो, खेर बातों की ओर आते हैं, उर्दू में फारसी का नियम चलता है उसे यूं समझें जैसे दीवान-ए-इकबाल = इकबाल का दीवान
    'ए' का मतलब 'का' होता है और अर्थ उलटा पढना होता है, इसी नियम से
    मर्द-ए-मोमिन = मोमिन का मर्द होता है, आप जो बता रहे हैं वह मर्दे मामिन नहीं 'मर्द मामिन' है मर्द-ए-मोमिन नहीं

    आज भी मामा का अनुवाद दे रहे हो, पूरी बात उठाकर लाया करो, यह बातें तो तारीफ की हैं देखो तुम जैसे मक्‍कारों को सुधरने का समय दिया जा रहा है

    www.hindikosh.in/quran
    ''मुशरिकों (बहुदेववादियों) से जिनसे तुमने संधि की थी, विरक्ति (की उद्‍धोषणा) है अल्लाह और उसके रसूल की ओर सेक ॥कुआन 9 :1॥
    "अतः इस धरती में चार महीने और चल-फिर लो और यह बात जान लो कि अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और यह कि अल्लाह इनकार करनेवालों को अपमानित करता है।"॥2॥
    सार्वजनिक उद्‍धोषणा है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से, बड़े हज के दिन लोगों के लिए, कि "अल्लाह मुशरिकों के प्रति जिम्मेदार से बरी है और उसका रसूल भी। अब यदि तुम तौबा कर लो, तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है, किन्तु यदि तुम मुह मोड़ते हो, तो जान लो कि तुम अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते।" और इनकार करनेवालों के लिए एक दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो॥3॥''

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  2. कुरआन की उन आयतों पर बहस करते रहोगे जो इस्‍लाम के आरम्‍भ में उस युग को मुखातिब थी, अब भी समय है फाइनल और अन्तिम दिन तक के लिये कही गयी आयतों पर सोचो आओ

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    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
    (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
    antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog) डायरेक्‍ट लिंक

    अल्‍लाह का
    चैलेंज पूरी मानव-जाति को

    अल्‍लाह का
    चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता

    अल्‍लाह का
    चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं

    अल्‍लाह का
    चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार

    अल्‍लाह का
    चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में

    अल्‍लाह
    का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी


    छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
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  3. आज कई नई बातों का पता चला. शुक्रिया. आप यूंही इन तथ्यों का खुलासा करते रहें.

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