Saturday 29 May 2010

क़ुरआन- सूरह इब्राहीम- १४


सूरह इब्राहीम- १४
14
Abraham

इब्राहीम अलैहिस्सलाम



एक थे यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों (और शायद ब्रह्मा आविष्कारक आर्यन के भी) मुश्तरका मूरिसे आला (मूल पुरुष) अब्राम, अब्राहम, इब्राहीम, ब्राहम (और शायद ब्रह्म भी)बहुत पुराना ज़माना था, अभी लौह युग भी नहीं आया था, हम उनका बाइबिल प्रचलित नाम अब्राहम कहते हैं कि वह पथर कटे कबीले के गरीब बाप तेराह के बेटे थे, बाप बार कहता कि बेटा! हिजरत करो हिजरत में बरकत है, हो सकता है तुम को एक दिन दूध और शहेद वाला देश रहने को मिले. आखिर एक दिन बाप तेराह की बात लग ही गई, अब्राहम ने सामान ए सफ़र बांधा, जोरू सारा को और भतीजे लूत को साथ किया और तरके-वतन (खल्देइया) किया. ख़ाके ग़रीबुल वतनी छानते हुए फिरअना (बादशाह) के दर पर पहुँचे, माहौल का जायज़ा लिया. सारा हसीन थी, बादशाह ने दर पर आए मुसाफ़िरों को तलब किया, तीनों उसकी खिदमत में पेश हुए, अब्राहम ने सारा को अपनी बहेन बतला कर ग़रीबुल वतनी से नजात पाने का हल तय किया, वह उसकी चाचा ज़ाद बहेन थी भी, बादशाह ने सारा को मंज़ूर-ए-नज़र बना कर अपने हरम में शामिल कर लिया.
एक मुद्दत के बाद जब यह राज़ खुला तो बादशाह ने अब्राहम की ख़बर ली मगर सारा की रिआयत से उसको कुछ माल मता देकर महल से बहार किया. उस माल मता से अब्राहम और लूत ने भेड़ पालन शुरू किया जिससे वह मालदार हो गया. सारा ने बच्चे की चाहत में अब्राहम की शादी अपनी मिसरी खादिमा हाजरा से करा दी, जिससे इस्माईल पैदा हुआ, मगर इसके बाद ख़ुद सारा हामला हुई और उससे इस्हाक़ पैदा हुआ. इसके बाद सारा और हाजरा में ऐसी महा भारत हुई कि अब्राहम को सारा की बात माननी पड़ी कि वह हाजरा को उसके बच्चे इस्माइल के साथ बहुत दूर सेहरा बिया बान में छोड़ आया.
अब्राहम को उसके इलोही ने ख्वाब में दिखलाया कि इस्हाक़ की कुर्बानी दे और वह बच्चे इस्हाक़ को लेकर पहाड़ियों पर चला गया और आँख पर पट्टी बाँध कर हलाल कर डाला मगर जब पट्टी आँख से उतारता है तो बच्चे की जगह भेडा होता है और इस्हाक़ सही सलामत सामने खड़ा होता है.
मैं अब इस्लामी अक़ीदत से अबराम को '' हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम'' लिखूंगा जिनका सहारा लेकर मुहम्मद अपने दीन को देने-इब्राहीमी कहते हैं.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का पहला जुर्म और झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहेन बतलाया और उसको बादशाह की खातिर हरम के हवाले किया.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था, दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था भेड़ा ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली की सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा. खुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की कुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. सोचिए कि हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हजारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, इस्हाक़ का भेड़ा बन जाना गैर फितरी बात है, अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. अकीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे.
ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पुरुषों पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - - अल्ला हुम्मा सल्ले . . . अर्थात '' ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर. बे शक तू तारीफ़ किया गया है, तू बुज़ुर्ग है.''
मुसलमानों ! अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भो ज़ेहन में लाओ जिनका खूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हजारों साल पहले या फिर लाखों साल पहले कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए तूफानों से, सैलाबों से, दरिंदों से पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए आज तक जिंदा रक्खा है क्या तुम उनको फरामोश करके मुहम्मद की गुमराहियों में पड़ गए हो? अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी कुरैशियों के लिए दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो? शर्म से डूब मरो।



xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx


आइए नई फ़िक्र पैदा करने के लिए पढ़ते हैं झूट की बुनियादें. . .

'' और जब इब्राहीम ने कहा ऐ मेरे रब! इस शहर (मक्का) को अम्न वाला शहर बना दीजिए और मेरे फ़रज़न्दों को बुतों की हिफ़ाज़त से बचाए रखियो. ऐ मेरे परवर दिगार बुतों ने बहुतेरे आदमियों को गुमराह कर रखा है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (३६)
उस वक़्त जब यह दुआ मंगवा रहे हैं उम्मी मुहम्मद अपने पुरखे इब्राहीम से, न काबा था, न शहर मक्का था, न इन नामों निशान की कोई चिड़िया. गैर इंसानी आबादी वाला मुसलसल रेगिस्तान था, बस ज़रा सा पानी का एक चश्मा हुवा करता था. मजबूरी में इस्माईल की माँ हाजरा यहाँ बस कर इसको आबाद किया था तब, मुसाफ़िर रुक कर यहाँ पानी लेते और उसकी कुछ मदद करते. दो बार इस्माईल के जवानी में इब्राहीम यहाँ आया भी मगर मुलाक़ात नहीं हुई कि वह बद हाल दोनों बार तलाशए मुआश में शिकार पर गया था.
मुहम्मद यहाँ पर बुतों को खुद बा असर पाते हैं जो इंसान को उनके या उनके अल्लाह के खिलाफ गुमराह करते रहते हैं. इसके बर अक्स पहले कह चुके हैं कि ये बे असर बुत किसी को कोई नफ़ा यानुक़सान नहीं पहुंचा सकते.

''हमने तमाम पैगम्बरों को उन ही के कौम के जुबान में पैगम्बर बना कर भेजा ताकि उन से बयान करें. फिर जिसको चाहे अल्लाह गुमराह करता है,जिसको चाहे हिदायत करता है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४)
ऐ मुहम्मदी अल्लाह! तूने तो यही सोचा था कि ज़ुबान के हिसाब अरबी कौम का पैग़म्बर अरबों के लिए भेजा है मगर मुहम्मद का जेहादी फार्मूला उससे हासिल माले ग़नीमत इतना कामयाब होगा कि यह आलमी बन जाएगा. अरब इसका फ़ायदा ईरान, अफ़गान, भारत, पूर्वी एशिया,अफ्रीका, योरोप में स्पेन और तुर्की से उठाएगा. मगर तूने यह भी नहीं सोचा कि यह निज़ाम कितना ख़ूनी होगा? वाक़ई तू शैतान ए अज़ीम है जिसको चाहे गुमराह करे, जैसे हमारे भोले भाले ,मासूम दिल मुसलमान, तेरी चालों को समझ ही नहीं पाते.

''और कुफ्फ़ार ने रसूल से कहा कि हम तो अपनी सर ज़मीन से निकल देंगे, या तुम हमारे मज़हब में फिर आओ, पस उन पर उन के रब ने वहिय नाज़िल की कि हम उन ज़ालिमों को ज़रूर हलाक़ कर देंगे और उनके बाद तुम को उस सर ज़मीन पर आबाद रखेंगे. ये हर उस शख्स के लिए है जो मेरे रूबरू खड़े रहने से डरे और मेरी वईद से डरे. और कुफ्फार फैसला चाहने लगे, जितने ज़िद्दी थे वह सब नामुराद हुए. इसके आगे दोज़ख है और इसको ऐसा पानी पीने को दिया जाएगा जो पीप होगा, जिसे घूँट घूँट पिएगा और कोई सूरत न होगी और हर तरफ उसके मौत की आमद होगी, वह किसी तरह से मरेगा नहीं और उसे सख्त अज़ाब का सामना होगा.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (१३-१७)
मुसलामानों! देखो कि कितनी सख्त और घिनावनी सज़ाएँ तुम्हारे अल्लाह ने मरने के बाद भी तुम्हारे लिए तैयार कर रक्खी है, यहाँ तो दुन्या भर के अज़ाब थे ही. वहां फिर मौत भी नहीं है कि इन से नजात मिल सके. एक ही रास्ता है कि हिम्मत करके ऐसे अल्लाह को एक लात जम कर लगाओ कि फिर तुम्हारे आगे यह मुँह खोलने लायक भी न रहे.
यह खुद तुम्हारा पिया हुवा ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का ज़हर है जो तुम्हारी खूब सूरत ज़िन्दगी को घुलाए हुए है. सर ज़मीनों को ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का नाटक है जो अपने जादू से लोगों को पागल किए हुए है. अब बस बहुत हो चुका. आप इक्कीसवीं सदी में पहुँच चुके हैं. आँखें खोलिए. ये पाक कुरान नहीं, नापाक नजसत है जो आप सर रखे हुए हैं.

''जो लोग अपने परवर दिगार के साथ कुफ्र करते हैं उनकी हालत बएतबार अमल के ये है कि जैसे कुछ राख हो जिस को तेज़ आँधी के दिन में तेज़ी के साथ उड़ा ले जाए. इन लोगों ने अमल किए थे, इस का कोई हिस्सा इनको हासिल नहीं होगा. ये भी बड़ी दूर दराज़ की गुमराही है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (१८)
अल्लाह के साथ बन्दा कभी कुफ्र कर ही नहीं सकता जब तक अल्लाह खुद न चाहे, ऐसा मैं नहीं खुद मुहम्मदी अल्लाह का कहना है. दूर दराज़ की गुमराही और आस पास कि गुमराही में क्या फ़र्क़ है ये कोई अरबी नुकता होगा जिसे मुहम्मद बार बार दोहराते हैं, इसमें कोई दूर की कौड़ी जैसी बात नहीं. कोई नेक अमल हवा में नहीं उड़ता बल्कि नमाज़ें ज़रूर हवा में उड़ जाती हैं या ताकों में मकड़ी के जाले की तरह फँसी रहती हैं.

'' और जब तमाम मुक़दमात फ़ैसल हो चुके होंगे तो शैतान कहेगा कि अल्लाह ने तुम से सच वादे किए थे, सो वह वादे हम ने तुम से उस से ख़िलाफ़ किए थे और मेरे तुम पर और कोई ज़ोर तो चलता नहीं था बजुज़ इसके कि हम ने तुम को बुलाया था, सो तुम ने मेरा कहना मान लिया, तो तुम मुझ पर मलामत मत करो, न मैं तुम्हारा मदद गार हूँ और न तुम मेरे मदद गार हो. मैं खुद इस से बेज़ार हूँ कि तुम इससे क़ब्ल मुझ को शरीक क़रार देते थे. यक़ीनन ज़ालिमों के लिए दर्द नाकअज़ाब है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (22)
मुहम्मद जब कलम इलाही बडबडाने में तूलानी या वजदानी कैफ़ियत में आ जाते हैं तो राह से भटक जाते हैं, इस सूरत में अगर कोई उनसे वज़ाहत चाहे तो जवाज़ होता है कि '' वह आयतें हैं जो मुशतबह-उल-मुराद हैं, इनका बेहतर मतलब बजुज़ अल्लाह तअला कोई नहीं जानता.'' सूरह आले इमरान आयत(७)यहाँ भी कुछ ऐसी ही कैफ़ियत है अल्लाह के रसूल की, शैतान के साथ शैतानी कर रहे हैं.

''क्या आप को मालूम है कि अल्लाह ने कैसी मिसालें बयान फ़रमाई है . . . कलमा ए तय्यबा वह कि मुशाबह एक पाकीज़ा दरख़्त के जिसकी जड़ें खूब गडी हुई हों और इसकी शाखें उचाई में जारी हों और परवर दिगार के हुक्म से हर फ़स्ल में अच्छा फल देता हो. . . . और गन्दा कलमा की मिसाल ऐसी है जैसे एक ख़राब दरख़्त की हो जो ज़मीन के ऊपर ही ऊपर से उखाड़ लिया जाए, उसको कोई सबात न हो.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (२४-२५)
मुहम्मदी अल्लाह की मिसालें हमेशा ही बेजान और फुसफुसी होती हैं. खैर. मुहम्मद अपने कलमा ए तय्यबा की बात करते हैं, यह वह कलमा है जो अनजाने में ज़हरे हलाहल बन कर दुन्या पर नाज़िल हुवा. देखिए कि इसका असर कब तलक दुन्या पर क़ायम रहता है.

''तमाम हम्दो सना अल्लाह के लिए है जिसने बुढ़ापे में हमें इस्माईल और इशाक (इसहाक) अता फरमाए ऐ मेरे रब मुझको भी नमाज़ों का एहतमाम करने वाला बनाए रखियो मेरी औलादों में से भी बअज़ों को.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४०)
इर्तेकई हालात का शिकार, इंसानी तहज़ीब में ढलता हुवा इब्राहीम उस वक़्त अर्वाह ए आसमानी में ज़ात मुक़द्दस के लिए चंद पत्थर इकठ्ठा किए थे जो ज़मीन और उसके क़द से ज़रा ऊँचे हो जाएँ और उसी बेदी के सामने अपने सर को झुकाया था, उसके मन में बअज़ों के लिए बुग्ज़ न बअज़ों के लिए हुब थी. न ही मुहम्मदी इस्लाम का कुफ्र.

'' ऐ मेरे रब मेरी मग्फेरत कर दीजो, और मेरे माँ बाप की भी और कुल मोमनीन की हिसाब क़ायम होने के दिन . . . ''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४१)
इसी कुरआन में मुहम्मदी अल्लाह इस आयत के ख़िलाफ़ कहता है कि उन लोगों के लिए मग्फेरात की दुआ न करो जो काफ़िर का अक़ीदा लेकर मरे हों, ख्वाह वह तुम्हारे कितने ही क़रीबी अज़ीज़ ही क्यूं न हों. यहाँ पर इब्राहीम काफ़िर बाप आज़र के लिए अल्लाह के हुक्म से दुआ मांग रहा है? कोई आलिम इनबातों का जवाब नहीं देता.

'' पस कि अल्लाह तअला को अपने रसूल की वअदा खिलाफ़ी करने वाला न समझना. बे शक अल्लाह तअला बड़ा ज़बरदस्त और पूरा बदला लेने वाला है और सब के सब ज़बदस्त अल्लाह के सामने पेश होने वाले हैं.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४७)
इस आयत के लिए जोश मलीहाबादी कि रुबाई काफी होगी.कहते हैं - - -


गर मुन्ताकिम है तो झूटा है खुदा,
जिसमें सोना न हो वह गोटा है खुदा,
शब्बीर हसन खाँ नहीं लेते बदला,
शब्बीर हसन खाँ से भी छोटा है खुदा।

''जिस रोज़ दूसरी ज़मीन बदल दी जाएगी, इस ज़मीन के अलावा आसमान भी, और सब के सब एक ज़बर दस्त अल्लाह के सामने पेश होंगे और तू मुजरिम को ज़ंजीरों में जकड़े हुए देखेगा, और उनके कुरते क़तरान के होंगे और आग उनके चेहरों पर लिपटी होगी ताकि अल्लाह हर शख्स को इसके किए की सज़ा दे यक़ीनन अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४९-५१)
ज़मीन बदल जाएगी, आसमान बदल जाएगा मगर इंसान न बदलेगा, क़तरान का कुरता पहने मुंह पर आग की लपटें लिए ज़बर दस्त अल्लाह के आगे अपने करतब दिखलाता रहेगा. आज ऐसा दौर आ गया है कि बच्चे भी ऐसी कहानियों से बोर होते हैं. मुसलमान इन पर यकीन रखते हैं?

मुसलमानों! दुन्या की हर शय फ़ानी है और यह दुन्या भी. साइंस दान कहते है कि यह धरती सूरज का ही एक हिस्सा है और एक दिन अपने कुल में जाकर समां जाएगी मगर अभी उस वक़्त को आने में अरबों बरसों का फासला है. अभी से उस की फ़िक्र में मुब्तिला होने की ज़रुरत नहीं. साइंस दान यह भी कहते हैं कि तब तक नसले-इंसानी दूसरे सय्यारों तक पहुँच कर बस जाएगी. साइंस कि बातें भी अर्द्ध-सत्य होती हैं, वह खुद इस बात को कहते है मगर इन अल्लाह के एजेंटों की बातें १०१% झूट होती हैं, इन पर क़तई और यक़ीनन यक़ीन न करना।


जीम. मोमिन ''निसारुल ईमान''

3 comments:

  1. पोल खोलती जानकारी

    ReplyDelete
  2. तुम्हारे पहले पैराग्राफ का ही एक एक शब्द झूठ और सिर्फ झूठ है,
    हज़रत इब्राहिम अपने ही मुल्क में थे और पूरी तरह खुशहाल थे, उस समय नमरूद नामक फिरअना (बादशाह) की वहाँ हुकूमत थी जिसने अपने को खुदा घोषित कर रखा था जब इब्राहीम ने उसका विरोध किया तो उसने उन्हें आग में फिंकवाया, लेकिन अल्लाह ने आग को ठंडी होने का हुक्म देकर इब्राहिम को बचा लिया. जब नमरूद की हज़रत इब्राहिम पर नहीं चली तो उसने उन्हें देश निकाला दे दिया. हज़रत इब्राहिम दूसरे मुल्क पहुंचे जहां का बादशाह फिरअना नहीं था बल्कि एक मामूली बादशाह था. उसकी हज़रत सारा पर नज़र टेढ़ी हुई हज़रत इब्राहिम ने उसे बताया की वो उनकी बीवी हैं लेकिन वह नहीं माना तब हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह से दुआ की और उसका हाथ अकड़ गया. यह देखकर वह डर गया और एक कनीज़ हज़रत हाजिरा को हज़रत सारा की खिदमत में पेश किया. हज़रत इब्राहिम ने हज़रत हाजिरा से शादी की जिनसे हज़रत इस्माइल पैदा हुए. जबकि हज़रत सारा से बाद में हज़रत इसहाक हुए.
    हज़रत इब्राहिम ने हज़रत इसहाक की कुर्बानी नहीं दी थी बल्कि हज़रत इस्माइल की देने जा रहे थे जब अल्लाह ने जन्नत से उनकी जगह दुंबा भेज दिया था.
    हज़रत इब्राहिम या किसी नबी ने कभी झूठ नहीं बोला, झूठे तुम जैसे मोमिन का लबादा पहने शैतान ही बोला करते हैं. पहले नबियों का सही इतिहास पढो फिर कलम चलाने की जुर्रत करो.

    ReplyDelete
  3. जमाल -- सुरेन्द्र कुमार शर्मा के अनुवाद को कौन हिन्दू मानता है, ये सुरेन्द्र कुमार शर्मा जैसे लोग तुम्हारे जैसे ही भडवे हैं या फिर मुर्ख लोग हैं.
    तुम लोग एक तरफ दुनिया में आतंकवाद फैला रहे हो और दूसरी तरफ अमन-शान्ति की बात करते हो . एक तरफ कुरान के अनुसार वेदों की तारीफ करते हो और दूसरी तरफ जगह-२ वेदों की बुराई. तुम्हरी इन हरामी चालों में कोई नहीं आने वाला. तुम हरामी जेहादी कुत्ते हो जिनको गोली मार देनी चाहिये.

    ReplyDelete