Saturday 2 January 2010

क़ुरआन - सूरह अनआम


सूरह अनआम ६-
(6 The Cattle)
E

अल्लाह के मुँह से कहलाई गई मुहम्मद की बातें कुरआन जानी जाती हैं और मुहम्मद के कौल और कथन हदीसें कहलाती हैं. मुहम्मद की ज़िन्दगी में ही हदीसें इतनी हो गई थीं कि उनको मुसलसल बोलते रहने के लिए हुज़ूर को सैकड़ों सालों की ज़िन्दगी चाहिए थी, गरज उनकी मौत के बाद हदीसों पर पाबन्दी लगा दी गई थी, उनके हवाले से बात करने वालों की खातिर कोड़ों से होती थी. दो सौ साल बाद बुखारा में एक मूर्ति पूजक यहूदियत से मुतासिर बुड्ढा ''शरीफ मुहम्मद इब्ने इब्राहीम मुगीरा जअफ़ी बुखारी'' जो कि उर्फे आम में इमाम बुखारी के नाम से इस्लामी दुन्या में जाना जाता है, साठ साल की उम्र में इस्लाम कुबूल किया और दर पर्दा इस्लाम की चूलें हिला कर रख दिया. उसने मुहम्मद की तमाम ख़सलतें, झूट, मक्र, ज़ुल्म, ना इंसाफी, बे ईमानी और अय्याशियाँ खोल खोल कर बयान कीं हैं. इमाम बुखारी ने किया है बहुत अज़ीम काम जिसे इस्लाम के ज़ुल्म के खिलाफ ''इंतकाम -ऐ-जारिया'' कहा जा सकता है. अंधे, बहरे और गूंगे मुसलमान उसकी हिकमत-ए-अमली को नहीं समझ पाएँगे, वह तो ख़त्म कुरआन की तर्ज़ पर ख़त्म बुखारी शरीफ के कोर्स बच्चों को करा के इंसानी जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहेहैं.
इस्लामी कुत्ते, ओलिमा लिखते हैं कि इमाम बुखारी ने छ लाख हदीसों पर शोध किया और तीन लाख हदीसें कंठस्त कीं, इतना ही नहीं तीन तहज्जुद की रातों में एक कुरआन ख़त्म कर लिया करते थे और इफ्तार से पहले एक कुरआन. हर हदीस लिखने से पहले दो रेकत नमाज़ पढ़ते. इस्लाम कुबूल करने के बाद पाई सिर्फ सोलह साल की उम्र, वह भी जईफी की. तीन लाख सही हदीसों के दावेदार लिखने पर आए तो सिर्फ २१५५ हदीसें लिखीं.
बुखारी लिखता है मुहम्मद के पास कुछ देहाती आए और पेट की बीमारी की शिकायत की. हुक्म हुआ कि इनको हमारे के ऊंटों के बाड़े में छोड़ दो, वहां यह ऊंटों का दूध और मूत पीकर ठीक हो जाएँगे.(गौर करें कि बुखारी मुहम्मदी हुक्म से पेशाब पीना जायज़ करार देने का इशारा किया है) कुछ दिनों बाद देहाती बाड़े के रखवाले को क़त्ल करके ऊंटों को लेकर फरार हो गए जिनको कि इस्लामी सिपाहियों ने जा घेरा. उनको सज़ा मुहम्मद ने इस तरह दी कि सब से पहले उनके बाजू कटवाए, फिर टागें कटवाई, उसके बाद आँखों में गर्म शीशा पिलवाया बाद में गारे हरा में फिकवा दिया जहाँ प्यास कीशिद्दत लिए वह तड़प तड़प कर मर गए.
(बुखरि१७०) (सही मुस्लिम - - - किताबुल क़सामत)
तो इस क़दर ज़ालिम थे मुहम्मद.
*अब देखिए मुहम्मद कि मक्र कुरआन के सफ़हात में - - -

कहते हैं की गेहूं के साथ घुन भी पिस्ता है मुसीबते और बीमारियाँ नेको बद को देख कर नहीं आतीं. मगर अक्ल का दुश्मन मुहम्मदी अल्लाह ज़रा देखिए तो मुहम्मद से क्या कहता है- - -
''आप कहिए कि यह बतलाओ अगर तुम पर अल्लाह का अज़ाब आन पड़े, ख्वाह बे खबरी में ख्वाह खबरदारी में तो क्या बजुज़ ज़ालिम लोगों के और कोई हलाक किया जाएगा?''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (४७)
एक रत्ती भर अक्ल रखने वाले के लिए कुरआन की यह आयत ही काफ़ी है कि वह मुहम्मद को परले दर्जे का बे वकूफ आँख बंद कर के कह दे और इस्लाम से बाहर निकल आए मगर ये हरामी आलिमान दीन अपने अल्कायदी गुंडों के साथ उनकी गर्दनों पर सवार जो हैं. इस से ज्यादह मज़हकः खेज़ बात और क्या हो सकती है कि जब कोई कुदरती आफत ज़लज़ला या तूफ़ान आए तो इस में काफ़िर ही तबाह हों और मुसलमान बच जाएं.
''आप कहिए कि न मैं यह कहता हूँ कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न मैं तमाम गैबों को जनता हूँ और न तुम से यह कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ. मैं तो सिर्फ मेरे पास जो वही आती है उसकी पैरवी करता हूँ. आप कहिए कि कहीं अँधा और आखों वाला बराबर हो सकता है? सो क्या तुम गौर नहीं करते?''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (५०)
यहाँ मुहम्मद ने खुद को आँखों वाला और दीगरों को अँधा साबित किया है, साथ साथ यह भी बतलाया है कि वह भविष्य की बातों को नहीं जानते. उनकी सैकड़ों ऐसी हदीसें हैं जो इस के बार अक्स हैं और पेशीन गोइयाँ करती है. विरोधा भास कुरआन और मुहम्मद की तकदीर बना हुवा है.
''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)
मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है.उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता कीबातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेजार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.
''जब इब्राहीम ने अपने बाप आजार से फ़रमाया की क्या तू बुतों को माबूद करार देता है? बेशक मैं तुझको और तेरी सारी कौम को सरीह ग़लती में देखता हूँ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७५)
इब्राहीम का बाप आजार एक मामूली और गरीब बुत तराश था, जो अपने बेटे को अक्सर समझाता रहता कि बेटे हिजरत कर, हिजरत में बरकत है . यहाँ कुछ न कर पाएगा. बाहर निकल तुझे दूध और शहेद की नदियों वाला देश मिलेगा. फ़रमा बरदार बेटे इब्राहीम ने अपनी जोरू सारा और भतीजे लूत को लेकर एक रोज़ बाहर की राह अख्तियार की जिसको मुहम्मदने गुस्ताखाना कहानी की शक्ल देकर अपना कुरआन बनाया है. मुहक्म्मद ने अब्राहम के बाप तेराह (आजार) को बिला वजेह कुरआन में बार बार रुसवा किया है, ये मुहम्मद की मन गढ़ंत है. सच पूछिए तो वह ही इंसानी इतिहास के शुरुआत हैं.
''हमने ऐसे ही तौर पर इब्राहीम को आसमानों और ज़मीन की मख्लूकात (जीव) दिखलाईं और ताकि वह कामिल यक़ीन करने वाले बन जाएं फिर जब रात को तारीकी उन पर छा गई तो उन्हों ने एक सितारा देखा तो फ़रमाया ये हमारा रब है, फिर जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया मैं ग़ुरूब हो जाने वालों से मुहब्बत नहीं करता. फिर जब चाँद को चमकता हुवा देखा तो फ़रमाया ये मेरा रब है. सो जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया कि मेरा रब मुझ को हिदायत न करता रहे तो मैं गुमराह लोगों में शामिल हो जाऊं - - -''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७६-७७-७८)
इब्राहीम, इस्माईल वगैरा का नाम भर यहूदियों और ईसाइयों से उम्मी मुहमद ने सुन रखे थे. इन पर किस्से गढ़ना इनकी जहनी इख्तेरा है. मुहम्मद की मंजिले मक़सूद थी ईसा मूसा की तरह मुकाम पाना जिसमें वह कामयाब रहे मगर इंसानी क़दरों में दागदार उनके पोशीदा पहलू उनको कभी मुआफ नहीं कर सकते. मुहम्मद के अन्दर छुपा हुआ शैतान उन्हें इंसानियत का मुजरिम करारठहराएगा. जैसे जैसे इंसानियत बेदार होगी मुसलमानों के लिए बहुत बुरे दिन आने के इमकान है.
''और ये ऐसी किताब है जिसको हमने नाजिल किया है, जो बड़ी बरकत वाली है और पहले वाली किताबों की तस्दीक करने वाली है और ताकि आप मक्का वालों को और इस के आस पास रहने वालों को डरा सकें।''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९३)
जो शै डराए वह बरकत वाली कैसे हो सकती है? शैतान, भूत, परेत, सांप, दरिन्दे गुंडे,सब डराते हैं, यह सब मुफ़ीद कैसे हो सकते हैं? मुहम्मद की जेहालत और उनका क़ुरआन दर असल कौम के लिए अज़ाब बन सकते हैं.
''और उस शख्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए या यूं कहे की मुझ पर वही (ईश वाणी) आती है, हालाँकि उस के पास किसी बात की वही नहीं आती. और जो कहे जैसा कलाम अल्लाह ने नाज़िल किया है , इसी तरह का मैं भी लाता हूँ और अगर आप उस वक़्त देखें जब ज़ालिम लोग मौत की सख्तियों में होंगे और फ़रिश्ते अपने हाथ बढ़ा रहे होंगे - - - हाँ ! अपनी जानें निकालो. आज तुमको ज़िल्लत की सज़ा दी जाएगी, इस लिए की तुम अल्लाह के बारे में झूटी बातें बकते थे और तुम इस की आयात से तकब्बुर करते थे.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९४)
मुहम्मद को पैगम्बरी का भूत सवार था वह गली कूचे सड़क खेत और खलियान में क़ुरआनी आयतें गाते फिरते और दावा करते कि अल्लाह की भेजी हुई इन वहियों के मुकाबिले में कोई एक आयत तो बना कर दिखलाए. लोग इनकी नकल में जब आयतें गढ़ते तो यह राहे फरार में इस किस्म की बकवास करते. इसे अपने अल्लाह की तरफ से नाज़िल बतलाते. मुहम्मद ऐसे लोगों को ज़ालिम कहते जो इनकी नक़ल करते जब कि बज़ात खुद वह ज़ालिम नंबर एक थे जैसा की ऊपर हदीस में एक नमूना पेश किया गया. कहते हैं ''और उस शख्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए'' कौन बेवकूफ रहा होगा जो खालिक़े कायनात पर बोहतान जड़ता रहा होगा? मुहम्मद अपनी इन मक्र और बे शर्मी की बातों से अवाम को गुम राह कर रहे हैं. मुहम्मद खुद उस पाक और बे नयाज़ जात को अपनी फूहड़ बातों से बदनाम कर रहे हैं. कैसी अहमकाना बातें हैंकि जालिमों को मौत से डराते हैं जैसे खुद मौज उड़ाते हुए मरेंगे.
''कहते न थे की मुसलमान हो जाओ - - -''
ऐसा होगा क़यामत के दिन का मुसलामानों का काफिरों पर ताना. जन्नत सिर्फ़ मुसलामानों को ही मिलेगी, वह भी जो नेक आमाल के होंगे, नेक आमाल नेक काम नहीं बल्कि मुहम्मद नमाज़ रोज़ा ज़कात और हज वगैरा में नेकी देखते हैं. ईसाई,यहूदी और सितारा परस्त के लिए तो जन्नत में जगह नहीं है, जिनकोकि मुहम्मद साहबे किताब मानते हैं, मगर काफिरों (मूर्ति-पूजक)के लिए तो दहेकती हुई दोज़ख धरी हुई है, भले ही खुद अनाथ मुहम्मद को पालने वाले दादा और चाचा ही क्यूं न हों. उम्मी मुहम्मद को इस दलील से कोई वास्ता नहीं कि जिसने इस्लामी पैगाम सुना ही न हो या जो इस्लाम से पहले हुआ हो वह भला दोजखी क्यूं होगा??
ऐसे हठ धर्म कुरआन को इस्लामी जंजूओं ने माले ग़नीमत को जायज़ करार देने के बाद चौथाई दुन्या को पीट पीट कर तस्लीम कराया है.

निसार ''निसार-उल-ईमान''
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ऐतिहासिक सत्य में क़ुरआन की हक़ीक़त
Like so many Islamic Traditions, these were written to provide the context the Qur'an lacks. Let's dive into the 6th surah to hear what Allah has to say: Qur'an 6:74 "When Abraham said to his sire, Azar: 'Why do you take idols for gods? I find you and your people in manifest error.' Thus We showed Abraham the visible and invisible kingdom of the heavens and earth that he might be of those who are sure and believe. So when night overshadowed him, he saw a star. Said he: 'This is my Lord.' When it set, he said: 'I do not love the setting ones.' When he saw the moon rising, he said: 'This is my Lord.' When it set, he said: 'If my Lord had not guided me I would be of the erring people who go astray.'" This is embarrassing. The conversation condemns the message. After Allah personally showed Abe his kingdom so that he might be sure, the Islamic babe turns to the sky, the source of idols, and says, "This is my Lord." What is it about Islam that turns everyone's brains to mush - Allah's included?
Qur'an 6:78 "Then when he saw the sun rising, he said: 'My Lord is surely this, the greatest of all.' So when it set, he said: 'O my people, I am through with those. Surely I have turned my face toward Him who originated the heavens and earth, and I am not a polytheist.'" The sun, the most popular pagan deity, is now god, never mind it was the moon in the preceding Tradition. After becoming an idolater, he magically turns and says he's through with idols. And after asking a star, the moon, and the sun if they were god, he says he's not a polytheist. All the context in the world, all the explanations ever written, can't undo the damage the Qur'an does to itself.
Tabari explains it this way: Tabari II:51 "When day came upon Abraham and the sun rose, he saw the greatness of the sun and saw that here was something with more light than he had ever seen before. He said, 'This is my Lord! This is greater.' And when it set he exclaimed, 'O my people, I am free from all the things which you associate with Him.'" Muhammad wants us to believe that all it took to "free" this fifteen-month old baby from pagan idolatry, worshiping the sun, moon, and stars, to become a Muslim in the oneness of Allah was for the sun to set.
Qur'an 6:80 "His people disputed with him." What people? Depending upon whether you believe Muhammad's Hadith or Allah's Qur'an, he's with his mom or dad. He's a toddler, having just emerged from a cave for the first time. "He said: 'Do you dispute with me respecting Allah? He has guided me. I do not fear those that you set up with Him, unless my Lord pleases; my Lord comprehends all things; will you not mind?'"
Let me see if I can decipher this. Over the course of one brief conversation, dishonest Abe tells his father that he and his people are in manifest error, and that idolatry is bad. After visiting heaven he says that big bright shiny things are gods, and that he is not a polytheist. Then he disputes with people he has never seen about their religion. He even says that he doesn't fear their gods, unless of course, his god wants him to fear them. And, wouldn't you know it, after such drivel, he tells them to mind him. This Qur'anic passage destroys the Islamic myth of divine inspiration, for this is not some minor event in the life of Islam. Abraham is purported to be the religion's founder, and this is his moment of awakening.
Qur'an 6:81 "Why should I fear what you have set up with Allah, that for which He has not sent down to you any authority." We can only assume that the Abe babe is speaking of idols his people have erected in shrines like the Ka'aba. "O my father! Why do you worship that which neither hears, nor sees, nor can in any way help you?" Even something as simple as this indicts Muhammad. It's a rip off. As we shall see in upcoming chapters, Arabian Hanifs (monotheists) during Muhammad's day had it figured out. They had said of the rock idols in the Ka'aba, "Why do you worship that which neither hears, nor sees, nor can help you in any way?"
"Do you reject my gods, Abraham? If you do not cease this, I shall stone you." As sick as this sounds, it depicts Muslim behavior. If a son renounces Islam, his father will kill him. One of my friends, a former Muslim, had this very thing happen to him. Hearing the news, his loving father reached for his gun and fired it at his son, narrowly missing him. Mark Gabriel, who holds a Ph.D. in Islamic History, wrote a book about his experience called: Islam and Terror

Prophet of Doom

1 comment:

  1. कहां से लाते हैं आप इतनी जानकारी.

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