सूरह अनआम ६-
(6 The Cattle)
पुर अम्न बस्ती, सुब्ह तडके का वक़्त, लोग अध् जगे, किसी नागहानी से बेखबर, खैबर वासियों के कानों में शोर व् गुल की आवाज़ आई तो उन्हें कुछ देर के लिए ख़्वाब सा लगा मगर नहीं यह तो हक़ीक़त थी. आवाज़ ए तकब्बुर एक बार नहीं, दो बार नहीं तीन बार आई '' खैबर बर्बाद हुवा ! क्यूं कि हम जब किसी कौम पर नाज़िल होते हैं तो इन की बर्बादी का सामान होता है'' यह आवाज़ किसी और की नहीं, सललल्लाहो अलैहे वसल्लम कहे जाने वाले मुहम्मद की थी नवजवान मुकाबिला को तैयार होते, इस से पहले मौत के घाट उतर दिए गए। बेबस औरतें लौडियाँ बना ली गईं और बच्चे गुलाम कर लिए गए. बस्ती का सारा तन और धन इस्लाम का माले गनीमत बनचुका था।
एक जेहादी लुटेरा वहीय क़ल्बी जो एक परी ज़ाद को देख कर फ़िदा हो जाता है, मुहम्मद के पास आता है और एक अदद बंदिनी की ख्वाहिश का इज़हार करता है जो उसे मुहम्मद अता कर देते हैं. वहीय के बाद एक दूसरा जेहादी दौड़ा दौड़ा आता है और इत्तेला देता है या रसूल अल्लाह सफ़िया बिन्त हई तो आप की मलिका बन्ने के लायक हसीन जमील है, वह बनी क़रीज़ा और बनी नसीर दोनों की सरदार थी. मुहम्मद के मुंह में पानी आ जाता है, क़ल्बी को बुलाया और कहा तू कोई और लौंडी चुन ले. मुहम्मद की एक पुरानी मंजूरे नज़र उम्मे सलीम ने सफ़िया को दुल्हन बनाया मुहम्मद दूलह बने और दोनों का निकाह हुवा।
लुटे घर, फुंकी बस्ती में, बाप भाई और शौहर की लाशों पर सललल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सुहाग रात मनाई. मुसलमान अपनी बेटियों के नाम मुहम्मद की बीवियों, लौंडियों और रखैलों के नाम पर रखते हैं, यह सुवर ज़ाद ओलिमा के उलटे पाठ की पढाई की करामत है। कुरआन में ''या बनी इसराइल'' के नाम से यहूदियों को मुहम्मदी अल्लाह मुखातिब करता है. अरब में बज़ोर तलवार बहुत सारे यहूदी मुसलमान हो गए हैं, उनकी ही कुछ शाखें हिंदुस्तान में है जो खुद को बनी इसराइल कहते हैं मगर मुहम्मद के फरेब में इतने मुब्तिला हैं कि उनकी तलवार लेकर मरनेमारने पर आमादः रहते हैं।
(बुखारी २३७)
अब आइए कुरआन की ख़ुराफ़ात पर- - -
''तो आप को अगर ये कुदरत है कि ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो फिर कोई मुअज्ज़ा लेकर आओ. अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो इन सब को राहे रास्त पर जमा कर देता, सो आप नादानों में मत हो जाएं.''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३५)
मुहम्मद की इस जेहनी कारीगरी को क्या आम आदमी समझ नहीं सकता मगर मुसलमान आँख बंद किए, सर झुकाए इन सौदागरी बातों को समझ नहीं पा रहा है. इन बे सिर पैर की बातों का मज़ाक डेढ़ हज़ार साल पहले बन चुका था, अफ़सोस कि आज इबादत बना हुवा है.
ज़हीन काफिर दीगर नबियों जैसा मुअज्ज़ा दिखने की फरमाइश जब मुहम्मद से करते हैं तो मुहम्मदी अल्लाह कहता है- - -
''अगर आप को इन काफिरों की रू गर्दानी गराँ गुज़रती है तो, फिर अगर आप को कुदरत है तो ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो''
सूरह अनआम-६_७ वाँ पारा (आयत३७)
लीजिए अल्लाह अपने दुलारे रसूल से भी रूठ रहा है क्यूं कि वह ग़म ज़दः हो रहे हैं और धीरज नहीं रख पा रहे हैं, अल्लाह पहले बन्दों को ताने देकर बातें सुनाता है फिर मुहम्मद को. ये आलमे ख्वाहिशे पैगम्बरी में मुहम्मद की जेहनी कैफियत है जिसमे मक्र की बू आती है.
''और जितने किस्म के जानदार ज़मीन पर चलने वाले हैं और जितने किस्म के परिंदे हैं कि अपने दोनों बाजुओं से उड़ते हैं, इसमें कोई किस्म ऐसी नहीं जो तुम्हारी तरह के गिरोह न हों. हमने दफ्तर में कोई चीज़ नहीं छोड़ी फिर सब अपने परवर दिगार के पास जमा किए जाएंगे''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३८)
इन अर्थ और तर्क हीन बातों में मुल्लाओं ने खूब खूब अर्थ और तर्क पिरोया है. ज़रुरत है कि इसे नई तालीम की रौशनी में लाकर इनका पर्दा फाश किया जाए.
''अल्लाह जिसको चाहे बेराह कर दे - - -''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३९ )
अल्लाह शैतान का बड़ा भाई जो ठहरा.
मुहम्मदी शैतान जो मुसलामानों को सदियों से गुमराह किए हुए 'है.
''मुहम्मद लोगों से पूछते हैं कि अगर कोई मुसीबत आन पड़े या क़यामत ही आ जाए तो अल्लाह के सिवा किसको पुकारोगे? जिससे लगता है कि उस वक़्त के लोग ईश शक्ति की बुनयादी ताक़त को न मान कर उसकी अलामतों को ही शक्ति मानते रहे होंगे.आज का आम मुसलमान भी यही समझता है, जब कि ख्वाजा अजमेरी को खुद अल्लाह कि मार्फ़त मानता है मगर अल्लाह नहीं. कुफ्र की दुश्मनी का ऐनक लगा कर ही हर मुआमले को देखता है.''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४१)
''हमने और उम्मतों की तरफ भी जोकि आपसे पहले हो चुकी हैं पैगम्बर भेजे थे, सो हमने उनको तंग दस्ती और बीमारी में पकड़ा था ताकि वह ढीले पड़ जाएं''
''सो जब उन को हमारी सजाएं पहुची थीं तो वह ढीले क्यूं न पड़े? लेकिन उनके क्लूब (ह्रदय) तो सख्त ही रहे. और शैतान उनके आमाल को उनके ख़याल में आरास्ता करके दिखलाता है''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४२-४३)
मुहम्मदी अल्लाह बड़ी बेशर्मी के साथ अपनी बद आमालियों के कारनामें बयान करते हुए मुहम्मद की पैगम्बरी में मदद गार हो रहा है. अपने मुकाबले में शैतान को खड़ा करके नूरा कुश्ती का खेल खेल रहा है, बालावस्था में पड़ा मुस्लिम समाज मुंह में उंगली दबाए अपने अल्लाह की करामातें देख रहा है.
''फिर जब वह लोग इन चीज़ों को भूले रहे जिनकी इनको नसीहत की जाती थी तो हमने इन पर हर चीज़ के दरवाज़े कुशादा कर दिए, यहाँ तक कि जब उन चीज़ों पर जो उनको मिली थीं, वह खूब इतरा गए तो हमने उनको अचानक पकड़ लिया, फिर तो वह हैरत ज़दः रह गए, फिर ज़ालिम लोगों की जड़ कट गई''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (aayat 44-45)
मुहम्मद एलान नबूवत के बाद अपनी फटीचर टुकड़ी को समझा रहे हैं कि उनके अल्लाह की ही देन है यह काफिरों की खुश हाली जो आरजी है। काश कि वह मेहनत और मशक्क़त का पैगाम देते जिस में कौमों की तरक्क़ी रूपोश है. इस्लाम का पैग़ाम तो क़त्ल ओ ग़ारत गरी और लूट पाट है
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ReplyDeleteसैयद मोहम्मद लतीफ़ -हिस्टरी आफ पंजाब --'अरब कि लुटेरी जातिओं को मुहम्मद का लोक और परलोक सुख और धन दौलत का लालच दिलाना उनके जोश को भड़काने के लिए काफी था .इस लालच से उनकी युद्ध शक्ति और विषय कामना भभक उठी । कुरआन और तलवार को हाथ में लेकर अपने अनुयायीओं कि शक्ति से उत्साहित हो कर मुहम्मद ने संसार के शिष्टाचार और धरम्शीलता के साथ उध छेड़ दिया।
ReplyDeleteडॉ मिर्चिल- जो आदमी कुरआन को पढ़ कर उस पर चलेंगे अवश्य निर्दयी और कामी बन जायेंगे।
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ReplyDeleteबेटा अपने मामा के किए अनुवाद से हेर फेर करके ला रहे हो,ले अब दुनिया समझ लेगी तरी मक्कारी यह आयतें उन लोगों के लिए जब कुरआन अवतरित हुआ था, अब ता 53 झण्डे हैं इस्लाम के पास, अबके लिए तो निम्न लिंकों पर विचार करना,ज रा बताओ तो जरा इसमें कौन सी खुराफात है? 6:35
ReplyDeleteअगरचे उन लोगों की रदगिरदानी (मुँह फेरना) तुम पर शक़ ज़रुर है (लेकिन) अगर तुम्हारा बस चले तो ज़मीन के अन्दर कोई सुरगं ढूँढ निकालो या आसमान में सीढ़ी लगाओ और उन्हें कोई मौजिज़ा ला दिखाओ (तो ये भी कर देखो) अगर अल्लाह चाहता तो उन सब को राहे रास्त पर इकट्ठा कर देता (मगर वह तो इम्तिहान करता है) बस (देखो) तुम हरगिज़ ज़ालिमों में (शामिल) न होना
If their spurning is hard on thy mind, yet if thou wert able to seek a tunnel in the ground or a ladder to the skies and bring them a sign,- (what good?). If it were Allah's will, He could gather them together unto true guidance: so be not thou amongst those who are swayed by ignorance (and impatience)! (6:35)
6:36 (तुम्हारा कहना तो) सिर्फ वही लोग मानते हैं जो (दिल से) सुनते हैं और मुर्दो को तो अल्लाह क़यामत ही में उठाएगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाएँगें
Those who listen (in truth), be sure, will accept: as to the dead, Allah will raise them up; then will they be turned unto Him. (6:36)
अब भी समय है आओ
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विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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गीता पढ़ कर लोग शायद अपने रिश्तेदारों को मारेंगे
ReplyDeleteक्या ख़्याल है।
क्रष्ण से लोग रासलीएं सीख रहे हैं तभी बलात्कारों से की दर बढ़ रही है
यह भी ज़रा समझाईये
पढने दिया गया होता तो पता लगता कि रणभूमि के इस उपदेश तक में अहिंसा, क्षमा, प्रेम और सौहार्द की बात कितनी बार दोहराई गयी है. नफरत और तलवार की बातें कोई भी बदनसीब कर सकता है - प्रेम, क्षमा और अहिंसा को पढने और बरतने के लिए अच्छी तकदीर और प्रभु की कृपा चाहिए.
स्मार्ट जी
ReplyDeleteआपने मेरी टिप्पणी को अपनी टिप्पणी में समाहित कर लिया है इस्लिए में अपनी टिप्पणी को हटा रहा हूं ये टिप्पणी जो ऊपर टिप्पणीकार हैं सिर्फ उनके लिये थी ताकि उनका ज़मीर जागे वो जवाब दें और महाभारत के युद्ध में भी अहिंसा, प्रेम, और सौहार्द की बात बतायें, तो फिर हम भी उन्हें इस्लाम की अहिंसा, प्रेम, और सौहार्द को समझा सकें लेकिन वो एक टिप्पणीं कर ग़ायब हो गये।
इस्लाम नफरत की तलवार नहीं,इल्म की तलवार की बात करता है।
इस पैदाईशे गलत को हमने कई बार प्यार से समझाया मुहब्बत से सवाल किये लेकिन ये टिप्पणियां हटा देता है, और किसी सवाल का जवाब भी नहीं देता १००% इसने नाम भी ग़लत ही लिख रख्खा है,
और १०००००००००००००००००००००००....................%
इसकी बातें झूटी।