सूरह कुहफ़ १८
18
The Cave
मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
(बमय अलक़ाब) '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
कुहफ़ के मानी गुफा के होते हैं. इस सूरह में मुहम्मद ने सिकंदर कालीन यूनानी घटना की योरपियन पौराणिक कथा को अपने ही अंदाज़ में इस्लामी साज़ ओ सामान के साथ गाया किया है. चार व्यक्ति किसी मुल्क की सरहद पार कर रहे थे कि इनको खबर हुई कि इन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा. ये लोग डर के मारे एक ग़ार में छुप गए, साथ में इनके एक कुत्ता भी था. वह बगरज़ हिफ़ाज़त ग़ार के मुँह पर बैठ गया. रात हो गई, वह लोग ग़ार में ही सो गए, सुब्ह हुई तो उन्हें भूख लगी, वह बचते बचाते बाज़ार गए कि कुछ खाना पीना ले आएं. बाज़ार में सामाने-खुर्दनी ख़रीद कर जब उसका भुगतान किया तो दूकान दार इनका मुँह तकने लगा के ज़माना ए क़दीम का सिक्का यह कैसे दे रहे है? इस ख़बर से बाज़ार में हल चल मच गई. पता चला कि यह तो तीन सौ साल पुराना सिक्का है, यह लोग इसे अब चला रहे हैं? गरज़ राज़ खुला कि यह तीन सौ साल तक ग़ार में सोते रहे. कहानी तो कहानी ही होती है, यानि 'फिक्शन' कहानी में अस्ल किरदार कुत्ते का है जो इतने बरसों तक वफ़ा दारी के साथ अपने मालिकों की हिफ़ाज़त करता रहा. इस पौराणिक कहानी का मोरल कुत्ते की वफ़ादारी है। इस्लाम ने अरबी तहज़ीब ओ तमद्दुन, उसका इतिहास और उसकी विरासत का खून करके दफ़्न कर दिया है, जो अपनी नई तहजीब बदले में मुसलमानों को दी वह उनकी हालत पर अयाँ है मगर कुदरत की बख्सी हुई सदाक़तें कैसे रूपोश हो सकती हैं? इस्लाम ने कुत्तों की कद्र ओ कीमत ख़त्म करके उसे नजिस और नापाक बना दिया है. मुहम्मद कुत्तों से शदीद नफ़रत करते थे, कई हदीसेंइसकी गवाह हैं - - -
''मुहम्मद की ग्यारवीं बेगम मैमूना कहती है कि एक रोज़ मुहम्मद पूरे दिन उदास रहे, कहा 'जिब्रील अलैहिस्सलाम ने वादा किया था कि आज वह हम से मिलने आ रहे हैं, मगर आए नहीं, ख़याल आया कि आज एक कुत्ते का बच्चा डेरे से निकला था, यह वजेह हो सकती है, वह उठे, फ़ौरन उस जगह को पानी छिड़क कर साफ़ और पाक किया, फ़रमाया कुत्ते की मौजूदगी और नजासत फरिश्तों को पसंद नहीं. सुबह उठे और हुक्म दे दिया कि तमाम कुत्तों को क़त्ल कर दिया जाए, जब कुत्ते मारे जाने लगे तो इस हुक्म का विरोध हुआ, कहा अच्छा छोटे बाग़ों के कुत्तों को मार दो, बड़ों को बागों की रखवाली के लिए रहने दो, फिर एहतेजाज हुवा की कुत्ते तो हमारी इस तरह से हिफाज़त करते हैं कि हम अपनी औरतों को उनके हमराह एक गाँव से दूसरे गाँव तक तनहा भेज देते हैं - - - तब कुछ सोचने के बाद कहा अच्छा उन कुत्तों को मार दो जिनकी आँखों पर दो काले धब्बे होते हैं, ऐसे कुत्तों में शैतानी अलामत होती है। (मुस्लिम- - - किताबुल लिबास ओ जीनत+ दीगर)
इस तरह पूरी कौम कुदरत की इस बेश बहा और प्यारी मखलूक से महरूम है. वह मानते हैं कि जहाँ कुत्ते के रोएँ गिरते हैं वहां फ़रिश्ते नहीं आते. बाहरी दुन्या से कुत्ते की खुशबू पाकर मुहम्मदी अल्लाह इतना मुतासिर हुवा कि कुत्ते को क़ुरआनी सूरह बना दिया जिसको आज मुसलमान वज़ू करके अपनी नमाज़ों में वास्ते सवाब पढ़ते हैं, यहाँ तक कि वह कहते हैं, जानवरों में सिर्फ़ यही कुत्ता जन्नत नशीन हुवा है. अजीब ट्रेजडी है इस कौम के साथ पत्थर की मूर्तियाँ इसके लिए कुफ्र है, तो वहीँ पत्थर असवद को चूमती है. अंध विश्वास को कोसती है मगर मुहम्मदी अल्लाह अंध विश्वास से शराबोर है।
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नोट : -- {ब्रेकेट में बंद शब्द (लाल रंग में) अल्लाह के नहीं, उसके गुरू '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' के हैं, जिन्हों ने अल्लाह क़ी मदद क़ी है, वर्ना मुहम्मदी भाषा इस बात क़ी दलील है कि मुहम्मद को शब्द ज्ञान क्या था ? पूरा का पूरा कुरआन इसी तर्ज़ पर है। इस पोस्ट में इसे बतौर नमूना इसे पेश कर रहे हैं.}
आयत में बयान को बेहूदः कहा जा सकता है, खुद देखिए - - -
''खूबियाँ उस अल्लाह के लिए हैं (साबित) जिसने अपने(ख़ास)बन्दे पर (ये)किताब नाज़िल फ़रमाई और इसमें ज़रा भी कजी नहीं रखी।''
सूरह १८ -१५ वाँ पारा आयत(१)
खूबियाँ ज़रूर सब अल्लाह की हो सकती हैं, ख़राबियां मुसलमानों की ये क़ुरआन किए हुए है. यह अलफ़ाज़ किसी झूठे बन्दे के हैं, जो सफ़ाई दे रहा है कि किताब में कोई कजी नहीं, अल्लाह की बात तो हाँ की हाँ और न की न होती है. वह हरकत अपने फ़ेल से करता है, इन्सान की तरह मुँह नहीं बजाता. भूचाल जैसी उसकी हरकतें किसी मुस्लमान और काफ़िर को नहीं पहचानतीं, न प्यारा मौसम किसी ख़ास के लिए होता है।
''और ताकि लोगों को डराइए जो (यूं) कहते हैं (नौज़ बिल्लाह) कि अल्लाह तअला औलाद रखता है, न कोई इसकी कोई दलील उनके पास है, न उनके बाप दादों के पास थी. बड़ी भारी बात है जो उनके मुँह से निकलती है. वह लोग बिलकुल झूट बकते हैं।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(५)
मुहम्मद सिर्फ़ काफ़िर, मुशरिक से ही नहीं सारे ज़माने से बैर पालते थे. यहाँ इशारा ईसाइयों की तरफ़ है जो ईसा को खुदा का बेटा मानते हैं. तुम खुदा के नबी हो सकते हो कि वह तुमको आप जनाब करके चोचलाता है, कोई दूसरा खुदा का बेटा क्यूँ नहीं हो सकता ? क्यूँ ? अल्लाह के लिए क्या मुश्किल है
''कुन फियाकून '' का फ़ॉर्मूला उसके पास है, एक अदद बेटा बना लेना उसकेलिए कौन सी मुश्किल है? ईसा कट्टर पंथी यहूदी धर्म का एक बाग़ी यहूदी था. एक मामूली बढई यूसुफ़ क़ी मंगेतर मरियम थी, जिनका शादी से पहले ही अपने मंगेतर के साथ यौन संबंध हो गया था और नतीजतन वह गर्भ वती हो गई, बच्चा हुआ जो यहूदी धर्म में अमान्य था, जैसे आज मुसलमानों में ऐसे बच्चे नाजायज़ क़रार पाते हैं. ईसा को बचपन से ही नाजायज़ होने का तअना सुनना पड़ा. जिसकी वजह से वह अपने माँ बाप से चिढने लगा था. वह चौदह साल का था, माँ बाप उसे अपने साथ योरोसलम तीर्थ पर ले गए जहाँ वह गुम हो गया, बहुत ढूँढने के बाद वह योरोसलम के एक मंदिर में मरियम को मिला. मरियम ने झुंझला कर ईसा घसीटते हुए कहा,'' तुम यहाँ हो और तुम्हारा बाप तुम्हारे लिए परेशान है.'' ईसा का जवाब था मेरा कोई बाप और माँ नहीं, मैं खुदा का बेटा हूँ और यहीं रहूँगा. ईसा अड़ गया, यूसुफ़ और मरियम को ख़ाली हाथ वापस जाना पड़ा. ईसा के इसी एलान ने उसे खुदा का बेटा बना दिया और वह कबीर क़ी तरह यहूदी धर्म क़ी उलटवासी कहने लगा, वह धर्म द्रोही हुवा और सबील पर यहूदी शाशकों ने उसे लटका दिया. इस तरह वह ''येसु खुदा बाप का बेटा'' बन गया और उसके नाम से ही एक धर्म बन गया. ईसाई उसे कुंवारी मरिया का बेटा कहते हैं, जिसमें झूट और अंध विश्वास न हो तो वह धर्म कैसा? ''
(और आप जो उन पर इतना ग़म खाते (हैं) सो शायद आप उनके पीछे अगर यह लोग इस मज़मून (क़ुरआनी) पर ईमान न लाए तो ग़म से अपनी जान दे देंगे (यानी इतना गम न करें कि करीब ब-हलाकत कर दे)।'' देखें ''सर्व धर्म कोष''
(और आप जो उन पर इतना ग़म खाते (हैं) सो शायद आप उनके पीछे अगर यह लोग इस मज़मून (क़ुरआनी) पर ईमान न लाए तो ग़म से अपनी जान दे देंगे (यानी इतना गम न करें कि करीब ब-हलाकत कर दे)।'' देखें ''सर्व धर्म कोष''
(और आप जो उन पर इतना ग़म खाते हैं) सो शायद आप उनके पीछे अगर यह लोग इस मज़मून (क़ुरआनी) पर ईमान न लाए तो ग़म से अपनी जान दे देंगे (यानी इतना गम न करें कि करीब ब-हलाकत कर दे)।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(६)
देखिए कि मुहम्मद खुद को अल्लाह से कैसा दुलरवा रहे हैं. लगता है अल्लाह और उनका चचा भतीजे का रिश्ता हो, क्यूँ कि बेटे तो हो नहीं सकते. मुल्ला कहता है कुरआन को ज़ारो क़तार हो कर पढ़ा जाए, हैं न मुहम्मद का भारी नाटक कि अगर उनकी उम्मत उनके लिए राज़ी न होती तो वह जान दे देते।
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(६)
देखिए कि मुहम्मद खुद को अल्लाह से कैसा दुलरवा रहे हैं. लगता है अल्लाह और उनका चचा भतीजे का रिश्ता हो, क्यूँ कि बेटे तो हो नहीं सकते. मुल्ला कहता है कुरआन को ज़ारो क़तार हो कर पढ़ा जाए, हैं न मुहम्मद का भारी नाटक कि अगर उनकी उम्मत उनके लिए राज़ी न होती तो वह जान दे देते।
''हमने ज़मीन पर की चीज़ों को इस (ज़मीन) के लिए बाइसे-रौनक़ बनाया ताकि हम इन लोगों की आज़माइश करें कि इन में ज्यादह अच्छा अमल कौन करता है और हम इस (ज़मीन) पर की तमाम चीज़ों को एक साफ़ मैदान (यानी फ़ना) कर देंगे।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(७-८)
मुहम्मद क़ी नियत में हर जगह नफ़ी का पहलू नज़र आता है, एक मुसलमान बगैर खौफ़ के कोई ख़ुशी मना ही नहीं सकता. क़ुदरत क़ी रौनक़ भी देखने से पहले अपनी बर्बादी का ख़याल रक्खो. इस कशमकश के अक़ीदे से लोग बेज़ार भी नहीं होते।
'' क्या आप ये ख़याल करते हैं कि ग़ार वाले और पहाड़ वाले हमारी अजाएबात (कुदरत) में से कुछ तअज्जुब की चीज़ थे (वह वक़्त काबिले-ज़िक्र है) जब कि इन नव जवानो ने इस ग़ार में जाकर पनाह ली और कहा के ऐ हमारे परवर दिगार हमको अपने पास से रहमत (का सामान) अता फ़रमाइए और हमारे लिए (इस) काम में दुरुस्ती का सामान मुहय्या कर दीजिए. ''
''सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(९-१०)
ग़ार वालों क़ी कहानी में ग़ार वालों और पहाड़ियों को अल्लाह खुद अजाएबात और तअज्जुब की चीज़ बतला कर शुरू करता है, अल्लाह खुद अपनी रचना पर तअज्जुब करता है. मुहम्मद तबलीग में लगने लगे कि पौराणिक कथा में भी खुद को कायम करते हैं. सिकंदर युगीन जवानों से अल्लाह क़ी रहमत क़ी दरख्वास्त करवाते हैं गोया वह भी मुसलमान थे।
''सो हमने इस ग़ार में इनके कानो पर सालाहा साल तक (नींद का पर्दा) डाल दिया. फिर हमने उनको उठाया त़ाकि हम मालूम कर लें इन दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है. हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं, वह लोग चन्द नव जवान थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, हमने उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए, जब वह (दीन में) पुखता होकर कहने लगे हमारा रब तो वह है जो आसमानों और ज़मीन का रब है. हम तो इसे छोड़ कर किसी माबूद की इबादत न करेंगे. (क्यूँकि) इस सूरत में यक़ीनन हम ने बड़ी बेजा बात कही है, जो हमारी कौम है, उन्हों ने खुदा को छोड़ कर और माबूद क़रार दे रखे हैं. ये लोग इन (माबूदों पर) कोई खुली दलील क्यूँ नहीं लाते? सो इस शख्स से ज़्यादः कौन गज़ब ढाने वाला होगा जो अल्लाह पर गलत तोहमत लगावे. और जब तुम उन लोगों से अलग हो गए हो और उनके माबूदों से भी, मगर अल्लाह से अलग नहीं हुए तो तुम फलाँ ग़ार में जाकर पनाह लो. तुम पर तुम्हारा रब अपनी रहमत फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे इस काम में कामयाबी का सामान दुरुस्त करेगा।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(८-१६)
कहानी का मुद्दा मुहम्मद के बत्न में ही रह गया '' दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है.'' कौन से दो गिरोह? अल्लाह जी जानें या फिर मुल्ला जी जानें. फिर अल्लाह झूटों क़ी तरह बातें करता है ''हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं'' और झूट उगलने लगता है कि वह नव मुस्लिम थे, इस लिए उसने ''उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए'' यानी ये चारा मक्का वालों के लिए फेंका जाता है कि वह बेजा बातें करते हैं कि मूर्ति पूजा करते हैं और उनके फेवर में कोई दलील नहीं रखते. मुहम्मद ऐसे लोगों को गज़ब ढाने वाला बतलाते है. मक्का वालों को आप बीती बतलाते हैं कि वह इस्लाम का झंडा लेकर उन कुरैशियों और अरबों से अलग हो गए.मुहम्मद क़ी हर हर बात में सस्ती सियासत और बेहूदा पेवंद कारी क़ी बू आती है. अफ़सोस कि मुसलमानों क़ी नाकें बह गई हैं. ऐसा घिनावना मज़हब जिसको अपना कहने में शर्म आए. बस इन को इस्लामी ओलिमा इस के लिए, मारे और बांधे हुए हैं।
''और ऐ (मुखातब) तू इनको जागता हुवा ख़याल करता है, हालांकि वह सोते थे. और हम उनको (कभी) दाहिनी तरफ और (कभी) बाएँ तरफ करवट देते थे और इनका कुत्ता दह्जीज़ पर अपने दोनों हाथ फैलाए हुए था. अगर ऐ (मुखातब) तू इनको झाँक कर देखता तो उनसे पीठ फेर कर भाग खड़ा होता, तेरे अन्दर उनकी दहशत समां जाती और इस तरह हमने उनको जगाया ताकि वह आपस में पूछ ताछ करें. उनमें से एक कहने वाले ने कहा कि तुम (हालाते-नर्म) में किस क़दर रहे होगे ? बअज़ों ने कहा कि (गालिबन) एक दिन या एक दिन से भी कुछ कम रहे होंगे (दूसरे बअज़ों ने) कहा ये तो तुहारे खुदा को ही ख़बर है कि तुम किस क़दर रहे. अब अपनों में किसी को ये रुपया दे कर शहर की तरफ भेजो फिर वह शख्स तहक़ीक़ करे कि कौन सा खाना (हलाल) है. सो इसमें से तुम्हारे पास कुछ खाना ले आवे और (सब काम) खुश तदबीरी (से) करे और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे. (क्यूं कि अगर) वह लोग कहीं तुम्हारी ख़बर पा जावेंगे तो तुमको या तो पत्थर से मार डालेगे फिर (जबरन) अपने तरीकों में ले लेंगे और (ऐसा हुवा तो) तुम को भी फ़लाह न होगी. और इस तरह (लोगों को) मुत्तेला कर दिया. ताकि लोग इस बात का यक़ीन कर लें कि अल्लाह तअला का वादा सच्चा है. और यह कि क़यामत में कोई शक नहीं. (वह वक़्त भी काबिले-ज़िक्र है ) जब कि ( इस ज़माने के लोग) इन के मुआमले में आपस में झगड़ रहे थे. सो लोगों ने कहा उनके पास कोई इमारत बनवा दो, इनका रब इनको खूब जनता है. जो लोग अपने काम पर ग़ालिब थे उन्हों ने कहा हम तो उनके पास एक मस्जिद बनवा देंगे. (बअज़े लोग तो) कहेंगे कि वह तीन हैं और चौथा उनका कुत्ता है. और (बअज़े) कहेंगे वह पाँच हैंछटां उनका कुत्ता (और) ये लोग बे तहक़ीक़ बात को हाँक रहे हैं और (बअज़े) कहेगे कि वह सात हैं, आठवां उनका कुत्ता. आप कह दीजिए कि मेरा रब उनका शुमार खूब (सही सही) जनता है उनके (शुमार को)बहुत क़लील लोग जानते हैं तो सो आप उनके बारे में बजुज़ सरसरी बहेस के ज़्यादः बहेस न कीजिए और आप उनके बारे में इन लोगों से किसी से न पूछिए।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(१८-२२)
मुसलमान संजीदगी के साथ ये पाँच आयतें अपने ज़ेहनी और ज़मीरी कसौटी पर रख कर कसें. अल्लाह जो साज़गारे-कायनात है, इस तरह से आप के साथ मुख़ातिब है ? इसके बात बतलाने के लहजे को देखिए, कहता है कि कुत्ता दोनों हाथ फैलाए था? चारों पैर के सिवा कुत्ते को हाथ कहाँ होते हैं जो इंसानों की तरह फैलाता फिरे. अपना क़ुरआनी मसला हराम, हलाल को उस वक़्त भी मुहम्मद लागू करना नहीं भूलते. खुद इंसानी जानों को पथराव करके सज़ा की ज़ालिमाना उसूल को उन पहाड़ियों का बतलाते हैं जो सैकड़ों साल इन से पहले हुवा करते थे, हर मौके पर अपनी क़यामत की डफली बजाने लगते हैं. पागलों की तरह बातें करते है, एक तरफ उन लोगों को तनहा छुपा हुवा बतलाते हैं, दूसरी तरफ इकठ्ठा भीड़ दिखलाते हैं कि कोई कहता है इन असहाब के लिए इमारत बनवा देंगे और अपने काम में गालिब लोग उनके लिए मस्जिद बनवाने की बातें करते हैं. उनकी तादाद पर ही अल्लाह क़यास आराईयाँ करता है कि कुत्ते समेत कितने असहाबे-कुहफ़ थे? कहता है बंद करो क़यास आराईयाँ असली शुमार तो मैं ही जनता हूँ कि मैं अल्लाह हूँ, जो हर जगह गवाही देने के लिए मुहम्मद के लिए बे किराये के टट्टू की तरह हाज़िर रहता हूँ।
मुसलमानों! क्या है तुम्हारे इस कुरआन में? जो इसके पीछे बुत के पुजारी की तरह आस्था वान बने खड़े रहते हो? तुमसे बेहतर वह बुत परस्त हैं जो बामानी तहरीर तो रखते और गाते हैं. यह जिहालत भरी गलीज़ लेखनी क्या किसी के लिए इअबादत की आवाज़ हो सकती है? कोई नहीं है तुम्हारा दुश्मन, तुम खुद अपने मुजरिम और दुश्मन हो .ऐसी वाहियात तसनीफ़ को पढ़ के हर इन्सान तुमसे नफ़रत करेगा कि तुम ''पहाड़ वाले उसकी अजाएबात में से कुछ तअज्जुब की चीज़ हो'' इस धरती का हक अदा करने की बजाए, उस पर बोझ हो, क्यूं कि तुम्हारा यक़ीन तो इस धरती पर न होकर ऊपर पे है. तुम्हारी बेगैरती का आलम ये है कि धरती के लिए किए गए ईजाद को सब से पहले भोगने लगते हो, चाहे हवाई सफ़र हो या टेलीफोन, या जेहाद के लिए भी गोले बारूद जो कचरा की तरह बेकार हो चुका है, क्यूँकि तुम्हारे लिए वही आइटम बम है. वह अपने पुराने हथियार तुम को बेच कर ठिकाने लगाते हैं, तुम उन्हें सोने के भाव खरीद लेते हो. तुम उनको लेकर मुस्लिम देशों में ही उन बेगुनाहों का खून बहाते हो जो हराम जादे ओलिमा के फन्दों में है. शर्म तुमको मगर नहीं आती।
जीम 'मोमिन' निसरुल-इमान
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ज़माना गवाह है
Left to his own devices, Muhammad didn't do very well. He said that the answers finally came to him in the form of the 18th surah - aptly named "The Cave." The last time he was on his own searching for god in all the wrong places, Satan had met him there. This time his spirit friend said that the "Mighty Traveler" was a Muslim: Qur'an 18:83 "They ask about Dhu'l-Qarnain [Alexander the Great]. I shall recite to you something of his story. We established him and gave him the means to do everything. So he reached the setting place of the sun and saw that it set in a muddy spring of hot, black water. Around it he found people. He asked if he might punish them." The story goes on to talk about extraterrestrials, mythical people, and to claim that the pagan Alexander was a Muslim. I'll present the entire story in the last chapter as it ultimately points to our destiny.
The "men who disappeared," according to the Qur'an, were Moses and his servant. They went sailing looking for a fish and some buried treasure. The inane story unfolds at the 60th verse and continues until god sends Alexander off looking for the extraterrestrials.
The verses that precede these "answers" focus on Satan, "hell fire, punishments, deceptions, and annihilations." I can only assume that the "spirit" is the Devil himself. In fact, "The Cave" surah ends with: "We have prepared Hell for the hospitality of the infidels...because they disbelieved and mocked My Signs and Messengers."
However, Ishaq believes the "men who disappeared" were "the dwellers of the cave of Raqim." Beginning at the 18th verse, Allah claims that some men stayed in a cave for 300 years and argued about dogs. Ahmed Ali, in his translation of the Qur'an says that the cave is the place the Dead Sea Scrolls were found. That's hilarious in that the Qumran scrolls prove that the Qur'an is a lie.
What this all means is, without Jewish and Hanif inspiration, Muhammad didn't do very well. The 18th surah is the Qur'an's most foolish.
The second prophecy of "The Great Terror" proceeding from the Magog "sweeping swarm" comes from a surah entitled "The Cave." But before we read the story I'd like to turn your attention to a footnote in the Ahmed Ali translation. It says: "Qur'an commentators identify Dhu'l-Qarnain with Alexander the Great of Macedonia as he is the closest in his travels, wisdom, and [Islamic] prophethood to the description." The problem with that theory is Alexander was a pagan. He said that he was a sun god, and he died in a drunken stupor. He never mentioned Allah, the moon god of Mecca, nor visited his rock pile of a house.
So as not to let facts get in our way, let's listen to what Muhammad claims Allah had to say in his perfect book. Qur'an 18:83 "They will ask you of Dhu'l-Qarnain. Say: 'I shall recite something of his story.' Verily We established his power on earth and gave him the ways and means to all ends. He followed a course until he reached the setting place of the sun. He found it setting in a spring of hot, black, muddy water." Remember, Muhammad wasn't very smart, and his god's inspiration wasn't of any value. Earlier in the Hadith we read that the sun set each night in a muddy spring. The Qur'an is verifying that "truth."
The Islamic "scripture" goes on to say: "And he found near the murky spring a people thereabout।" In an adjoining Hadith, Muhammad explained that the "people" who lived near the sun's muddy-spring-setting-place were extraterrestrials: Tabari I:236 "Allah created two cities out in space.... Were those people not so many and noisy, all the inhabitants of this world would hear the loud crash made by the sun falling when it rises and when it sets. Gabriel took me to them during my Night Journey from the Sacred Mosque [the Ka'aba] to the Farthest Mosque [the Jewish Temple which was no longer on Mount Moriah]. I told the people of these cities to worship Allah but they refused to listen to me." I wonder if this proves that extraterrestrials are more advanced than humans?
Prophet of Doom
आप कुरान और इस्लाम कि तस्बीर ठीक कर रहे है
ReplyDeleteसभी धर्मो को तार्किक और सहिषुन होना चाहिए,
जिससे दुनिया में खुसिया क़े सभी को जीने क़ा अधिकार हो.
पोस्ट क़े लिए धन्यवाद.
जो लोग बुखारी और मुस्लिम की अधिकतर हदीसों पर यकीन ही नहीं करते उनके लिए क्या हुक्म है? जैसे की शिया फिरके वाले?
ReplyDeleteपूरी की पूरी इस्लामी तवारीख इन्हीं हदीसों के आधार लिखी हुई हैं, कहाँ से निकालेंगे इस्लाम का इतिहास? छोडिए हदीसों को कुरआन के तर्जुमे पर आइए.उसमें तो और भी इंसानियत का बेडा गर्क है.
ReplyDeleteकिसी भी समय का इतिहास उस समय के बादशाहों और शासकों के हित में लिखा जाता है, उसमें से असली बातों को ढूँढने के लिए तार्किक चिंतन और तथ्यों के सुबूत ज़रूरी होते हैं. दुःख की बात ये है की मुसलमानों में यह काम बहुत कम हुआ है. हज़रत मोहम्मद(स.अ.) के बाद एक अरसे तक अरब की बागडोर उमय्यद और अब्बासी बादशाहों के हाथ में रही, इनमें से कई यजीद जैसे रहे जो सिर्फ दिखावे के लिए मुसलमान थे वरना उनकी हरकतें किसी भी तरह मुसलमान कहलाने लायेक नहीं थीं. शाही खजाने पर पलने वाले बहुत से ओलेमा उनकी हक में हदीसें और फतवे जारी करते रहते थे. यहाँ तक की इन्होंने नबी के नवासे के क़त्ल का भी फतवा जारी कर दिया. इन्होंने अपने फायेदे के लिए हज़रत मोहम्मद(स.अ.) के चरित्र को कितना बदला होगा आप सोच सकते हैं. ज़ाहिर है की बुखारी और मुस्लिम की हदीसें भी इससे अछूती नहीं.
ReplyDeleteमिसाल के तौर पर अपनी एक पोस्ट में आपने शिया फिरके की मान्यता के बारे में लिखा की 'अल्लाह ने हज़रत अली(अ.स.) को नबी बनाना चाहा लेकिन जिब्रील ने गलती से हज़रत मोहम्मद(स.अ.) को यह पैगाम पहुंचा दिया.' अब आप जाहिल से जाहिल शिया से यह पूछ कर देखिये की क्या उसकी ऐसी मान्यता है? या किसी भी शिया किताब में ऐसा लिखा दिखा दीजिये. यह सरासर (सफ़ेद) झूठ है. शिया मान्यता ये है की पैगम्बर मोहम्मद(स.अ.) ने हज़रत अली(अ.स.) को अपना जानशीन बनाया है, लेकिन नबी नहीं बनाया.
अब रही बात कुरआन की तो इसमें आप इसकी आयतों का कुछ मतलब निकालते रहोगे और हम किसी और मतलब से इसे जानते हैं. हाँ अगर इसे गलत सिद्ध करना है तो इसमें कोई ऐसी आयत ढूंढों जो आज की साइंस के एतबार से गलत हो. मिसाल के तौर पर ज़मीन का चपटा होना. या सूरज का ज़मीन के चारों तरफ गर्दिश करना वगैरह.
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ReplyDeleteजीशान भाई,
ReplyDeleteपहले तो दर्शन पर लिखी किताब को दर्शन के एतबार पर तोलो,
साइंस को इतना महत्व क्यों देते हो? जबकि उसे खुदा के कलाम के बराबर नहिं मानते। साइंस तो साफ़ है कि मात्र इन्सानों की पहुंच का ज्ञान है।
ज़मीन के बारे में जो चीजें लोग साइंस और कुरआन से मिलाते है,वह मात्र तुक के अलावा कुछ नहिं।
कुरआन में कहा गया कि "ज़मीन को रोटी की तरह बिछाया,और पहाडों को खूंटे की तरह गाडा ताकि तुम्हे लेकर ज़मीन फ़िसल न पडे"
इसे साइंस से कुछ इस तरह मिलाया कि ज़मीन की उपरी परत रोटी की तरह लिपटी है,और पहाड ज़मीन में गहरे है सो वे गाडे हुए है।
पर मित्र,जिस चीज पर ज़मीन को बिछाया,यानि वह भीतरी गोला कहां से आया,उसे किसने बनाया? और साइंस पहाडों के बारे में तो कहती है उसी उपरी परत(प्लेट)के टकराने से ये परते उपर उठ जाती है,और वह उभार पर्वत बनते है,सो पहाड गडे नहिं,उभरे हुए है।
जीशान जी, आप बहुत समझदार व्यक्ति हैं आप अपने नजरिये को जरा सा बदलिये फिर देखिये कि कैसे हिन्दू मुस्लिम का रंग उतर कर इन्सानियत नाम की चीज ही बाकी बचती है... सुज्ञ ने सही कहा है..
ReplyDelete@Sugya Ji,
ReplyDeleteज़मीन और पहाड़ों के निर्माण पर मैं जल्दी ही एक पोस्ट लिखूंगा. क्योंकि एक टिप्पणी में इस टोपिक को कवर करना मुश्किल है.
कुरआन दर्शन के एतबार से भी उच्च है. यूं समझ लीजिये की यह मजदूर के लिए भी है और ऊंचे आई क्यू वाले फिलासफर के लिए भी.
@Indian Citizen Ji,
मैंने अपने धर्म को अच्छी तरह समझा है और ये कहीं भी इंसानियत या इंसान को क़त्ल करने की इजाज़त नहीं देता. ये इंसानियत के लिए ही है.
जीशान भाई,
ReplyDeleteजब आप विज्ञान और कुरआन के तथ्यों को विश्लेषण की तराजु पर तोलें तो आपकी भुमिका पूर्णतः निष्पक्ष होनी चाहिए।
आपको खुदा के खौफ़ से बाहर आना पडेगा,क्योंकि उस खौफ़ के चलते आप कभी भी कुरआन को निष्पक्ष नज़रिए से महसूस तक नहिं कर सकते।
निष्पक्षता में पहली आवश्यकता ही निर्भयता हैं। निर्भयता से ही निर्णय निर्दोष रहते है। पक्षपात पूर्ण निर्णय हमेशा चेलेन्ज किये जाते रहेंगे।