Thursday, 3 June 2010

क़ुरआन सूरह हुज्र - १५


(दूसरी किस्त)
मैजिक आई



अल्ताफ हुसैन 'हाली' (हलधर) कहते हैं अँधेरा जितना गहरा होता है, मैजिक आई उतनी ही चका चौंध और मोहक लगती है। हाली साहब सर सय्यद के सहायकों में एक थे, रेडियो कालीन युग था जब रेडयो में एक मैजिक आई हुवा करती थी, श्रोता गण उसी पर आँखें गडोए रहते थे। हाली का अँधेरे से अभिप्राय था निरक्षरता। कहते हैं कि चम्मच से खाने पर भी मुल्लाओं का कटाक्ष है जब कि यह साइंसटिफिक है, क्यूँकि इंसान की त्वचा बीमारी के कीटाणुओं को आमन्तिरित करती है। सर सय्यद को मुल्लाओं ने काफ़िर होने का फ़तवा दे दिया था. पता नहीं मौलाना हाली को बख्शा या नहीं. कुरआन का सपाट तर्जुमा और उस पर बेबाक तबसरा पहली बार शायद अपने भारतीय माहौल में मैंने किया है। मेरे विश्वास पात्र सरिता मैगज़ीन के संपादक स्वर्गीय विश्व नाथ जी ने कहा इतना तो मैं भी समझता हूँ जो तुम समझते हो मगर इसका फायदा क्या? मुफ्त में अंगार हाथ में ले रहे हो और मेरे लेख की पंक्तियाँ उन्हें अंगार लगीं, सरिता में जगह देने से इंकार कर दिया. कुरआन को नग्नावस्था में देखने के बाद कुकर्मियों की रालें टपक पड़ती हैं कि एक अनपढ़, उम्मी का नाम धारण करके अगर इतना बड़ा पैगम्बर बन सकता है तो मैं क्यूँ नहीं? न बड़ा तो मिनी पैगम्बर ही सही. गोया चौदह सौ सालों से मुहम्मद की नकल में जगह जगह मिनी पैगम्बर कुकुर मुत्ते की तरह पैदा हो रहे हैं. इसी सिलसिले के ताज़े और कामयाब पैगम्बर मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी हुए हैं. यह मुहम्मद की ही भविष्य वाणी के फल स्वरुप हैं कि '' ईसा एक दिन मेहदी अलैहिस्सलाम बन कर आएँगे और दज्जाल को क़त्ल कर के इस्लाम का राज क़ायम करेंगे .'' मिर्ज़ा ने मुहम्मद की बकवास का फ़ायदा उठाया, और बन बैठे'' मेंहदी अलैहिस्सलाम'' क़दियानियों की मस्जिदें तक कायम हो गईं, वह भी पाकिस्तान लाहोर में. उसमें इस्लामी कल्चर के मुवाफिक क़त्ल ओ ग़ारत गरी भी होने लगी. पिछले दिनों ७२ अहमदिए शहीद हुए. उस शहादत की याद आती है जब मुहम्मद का वंश कर्बला में अपने कुकर्मों का परिणाम लिए इस ज़मीन से उठ गया था, वह भी ७२ थे. उम्मी (निरक्षर) मुहम्मद सदियों पहले अंध वैश्वासिक युग में हुए। उन्होंने इर्तेक़ा (रचना क्रिया) के पैरों में ज़ंजीर डाल कर युग को और भी सदियों पीछे ढकेल दिया. इस्लाम से पहले अरब योरोप से आगे था, खुद इसे योरोपियन दानिश्वर तस्लीम करते हैं और अनजाने में मुस्लिम आलिम भी मगर मुहम्मद ने सिर्फ अरब का ही नहीं दुन्या के कई टुकड़ों का सर्व नाश कर दिया. युग का अँधेरा दूर हो गया है, धरती के कई हिस्सों पर रातें भी दिन की तरह रौशन हो गई मगर मुहम्मद का नाज़िला ( प्रकोपित) अंधकार मय इस्लाम अपनी मैजिक आई लिए मुसलमानों को सदियों पुराने तमाशे दिखा रहाहै.



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आइए अब अन्धकार युग के मैजिक आई कि तरफ़ चलें . . .



''और हम ही हवाओं को भेजते हैं जो कि बादलों को पानी से भर देती हैं फिर हम ही आसमान से पानी बरसते हैं फिर तुम को पीने को देते हैं और तुम जमा करके न रख सकते थे और हम ही ज़िन्दा करते मारते हैं और हम ही रह जाएँगे।''


सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२१-२३)


कुदरत अपने फ़ितरी अमल पर गामज़न रहते हुए मुहम्मदी अल्लाह की बातों पर हँस रही होगी न रो रही होगी जो उसकी सिफ्तों को अपने नाम कर रहा है और बदले में खुद को पुजवा रहा है. कमज़रफी के साथ खुद सताई कर रहा है


''बेशक आप का रब हिकमत वाला है और हमने इन्सान को बजती हुई मिटटी से जो कि सड़े हुए गारे की बनी हुई थी पैदा किया। और जिन्न को इस के क़ब्ल आग से कि वह एक गरम हवा हुवा करती थी, पैदा किया.


सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (२५-२७)


ये बजती हुई मिटटी भी खूब रही? जिससे इन्सान बनाया गया? आदमी बोलता है, गाता है, तिलावत भी करता है मगर बजता कहाँ है? हाँ कभी कभी बदबू दार हवा छोड़ने से या पेट का हारमोनियम फूलने से रियाह खरिज हो जाने की वजेह बज जाता है. ऐसे गंधैले इंसान का मंसूबा जब साफ सुथरे फरिश्तों के सामने अल्लाह रखता है कि मैं इसको वजूद में ला रहा हूँ तो तमाम फ़रिश्ते उसको सजदा करने पर राज़ी हो जाते हैं मगर इब्लीस भड़क उठता है. इस की कहानी जानी पहचानी दूर तक कुरआन में जो बार बार दोहराई जाती है, शुरू हो जाती है . . .मुहम्मद का एक और शगूफा कि जिन्न को गरम हवा से पैदा किया. खुद इनको अल्लाह ने दरोग और मक्र से पैदा किया।



(आदम के वजूद और इब्ल्लीस की बग़ावत की कहानी उम्मी की ज़ुबानी कई बार दोहराई जाती है)


सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (२८-४४)


''बेशक अल्लाह से डरने वाले बाग़ों और चश्मों में होंगे. तुम उसमें सलामती और अम्न से दाखिल होगे. उनके दिलों में जो कीना था वह हम सब दूर कर देंगे कि सब भाई भाई की तरह रहेंगे तख्तों पर आमने सामने, वहां इनको ज़रा भी तकलीफ़ नहीं होगी. और न वहां से निकाले जाएँगे. आप मेरे बन्दों को इत्तेला दे दीजिए कि मैं बड़ा मगफेरत वाला हूँ और मेरी सजा दर्दनाक सजा है.''


सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (४५-५०)


मुहम्मद से डरने वालों की ही खैर है. कल जब वह हयात थे तो उनके साथी हथियार बन्दों से डरना पड़ता था, उनके बाद उनकी खड़ी की गई फौजों से, फिर उन फौजयों की लश्करों और जज़िया से, फिर ओलिमा के फ़तुओं से और अब इस्लामी गुंडों से डरना पड़ रहा है. हम बागों और चश्मों में तो नहीं, हाँ झुग्गी और झोपड़ियों में रहते चले आए हैं और मुहम्मदी अल्लाह ने चाहा तो हमेशा रहेंगे. सब्र,सुकून अम्न और अल्लाह के डर के साथ. अल्लाह ऊपर हमारे दिलों के तमाम कीना, बुग्ज़ दूर कर देगा दुन्या में दूर करके हम सब को नेक इन्सान क्यूं नहीं बना देता? आखिर उसकी भी तो कुछ मजबूरी होगी, मगर ऐ अल्लाह जो भी हो तू है पक्का दोगला. इत्तेला देता है ''मैं बड़ा मगफेरत वाला हूँ ''और अगली साँस में ही कहता है ''मेरी सज़ा दर्दनाक सज़ा है।''



''अल्लाह ने इस सूरह में फिर किस्से इब्राहीमी और किस्से लूत बड़ी बेमज़ा तरह से दोहराया है जिसे सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (५१-७६) तक देखा जा सकताहै।


''और हुज्र वालों ने पैगम्बर को झूठा बतलाया और हमने उनको अपनी निशानयाँ दीं सो वह लोग उस से रू गरदनी करते रहे और वह लोग पहाड़ों को तराश तराश कर अपना घर बनाते थे कि अमन में रहें सो उनको सुबह के वक़्त आवाज़ ए सख्त ने आन पकड़ा सो उनका हुनर उनके कुछ काम न आया . . और ज़रूर क़यामत आने वाली है, सो आप खूबी के साथ दरगुज़र कीजिए।''


सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (८०-८५)


यह अल्लाह की गुफ्तुगू है या किसी बौराए की बड़ बत्ती ? या किसी किसी जाहिल चरवाहे से कहा गया हो कि कुछ बातें करके दिखलाओ कि क्या जानते हो?


मुहम्मद ने तौरेती वाक़ेए के मुखबिर यहूदी के ज़ुबानी सुना सुनाया किस्सा गढ़ते हुए उस बस्ती को लिया है जिस पर कुदरती आपदा आ गई थी जिसमें बसे लूत बस्ती को तर्क करके पहाड़ों पर अपनी बेटियों के साथ आबाद हो गए थे और उनकी बीवी हादसे का शिकार हो गई थी. उसके आसार आज भी देखे जा सकते हैं कि योरोपियन लूत की नस्लें मुआबियों और अम्मोनियों को उस वाक़ेए पर रिसर्च करने की तैफीक़ हुई है. मुहम्मद उसकी कहानी की गढ़ी कुरआन की मुसलामानों से तिलावत करा रहे हैं


''बिला शुबहा आप का रब बड़ा खालिक और बड़ा आलिम है। और हम ने आप को सात आयतें दीं जो मुक़र्रर हैं और कुरआन ए अज़ीम. आप अपनी आँख उठा कर भी इस चीज़ को न देखिए जो कि हम ने उन मुख्तलिफ़ लोगों को बरतने के लिए दे रक्खी है और उन पर ग़म न कीजिए.और मुसलमानों पर शिफक़त रखिए.


सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (८६-८८)


अल्लाह अपने प्यारे नबी से वार्ता लाप कर रहा है कि वह बड़ा निर्माण कुशल और ज्ञानी है, कहता है हमने आपको सात आयतें दीं(?) { अब याद नहीं कि सात दीं या सात सौ ? कुछ याद नहीं आ रहा} कि कुराने- - - -अज़ीम समझो. यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि मुहम्मद इस वक़्त होश में नहीं हैं चाहे उन्हें दिमागी खलल या किसी नशे की लत? रही हो, बहर हाल एतदाल तो हरगिज़ नहीं है. वह अपने बच्चे को समझाता है दूसरों की संपन्नता को आँख उठा कर देखा ही मत करो. ''रूखी सूखी खाए के ठंडा पानी पिव, देख पराई चोपड़ी क्यूं ललचाए जिव.'' इस बात का गम भी न किया करो.( कुरैशियों का आगे भला ज़रूर होगा.) बस मुसलामानों को चूतिया बनाए रहना।



''और कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला हूँ जैसा कि हम ने उन लोगों पर नाज़िल किया है जिन्हों ने हिस्से कर रखे थे यानी आसमानी किताबों के मुख्तलिफ़ अजज़ा करार दिए थे, सो तुम्हारे परवर दिगार की क़सम हम उन सब के आमाल की ज़रूर बाज़ पुर्स करेंगे। ये लोग जो हँसते हैं अल्लाह तअला के साथ, दूसरा माबूद क़रार देते हैं, उन से आप के लिए हम काफ़ी हैं. सो उनको अभी मालूम हुवा जाता है. और वाक़ई हमें मालूम है ये लोग जो बातें करते हैं उस से आप तंग दिल हैं.''


सूरह हुज्र,१५ पारा१४ आयत (९५-९७)


अल्लाह की राय मुहम्मद को कितनी सटीक है कि कहता है कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला बागड़ बिल्ला हूँ , यह कि इस से वह हजारों साल तक डरते रहेगे। हमने उन मुसलमानों पर दिमागी हिपना टिज्म कायम ओ दायम कर दिया है. यह आसमानी किताबों के मुख्तलिफ़ अजज़ा क्या होते हैं किसी दारोग गो आलिम से पूछना होगा की अल्लाह यहाँ पर बे महेल बहकी बहकी बातें क्यूं करता है? अपने प्यारे नबी को तसल्ली देता है कि वह उनके दुश्मनों से जवाब तलब करेगा कि मेरे रसूल की बातें क्यूं नहीं मानीं? और उल्टा उनका मजाक उड़ाया.काश कि मुहम्मद तंग दिल न होते, कुशादा दिल और तालीम याफ़्ता भी होते।



जीम। मोमिन ''निसारुल-ईमान''


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हमारे आलमी गवाह
"I asked the Messenger, 'Who was the first of them।' He replied, 'Adam।' I asked him whether Adam was a prophet sent as a messenger. He replied, 'Yes, Allah created him with His own hand and blew some of His spirit into him. Then He immediately fashioned him in perfect shape.'" So much for fermenting him. (Qur'an 15:26 & Tabari I:261)
The Qur'an follows its revisionist account of Noah's with another fairytale: Qur'an 11:50 "To Ad We sent Hud. He said: 'O my people, serve Allah, you have no ilah (God) other than He. You are nothing but forgers of lies.... Allah will send on you clouds pouring down abundance of rain.'" The legendary Hud is giving the mythical Ad the same speech. And that's a problem. It reveals that Allah lacks imagination, an editor, and a memory. The story of the Ad is repeated eleven times. And elsewhere in the Qur'an, Allah says that the Ad were blown away, not flooded. In surah 15 we read: "So those who were Ad turned insolent unjustly in the land, and said, 'Who is stronger than us.' Did they not see that Allah who created them was far greater in power than they? Yet they refused to believe Our signs so We let loose on them a violent wind for several days of distress to make them taste a most disgraceful punishment here in this world, and far more shameful will be the punishment in hell. They will have no savior."Tabari II:120 "Gabriel picked up their land with his wing and turned it over. He lifted it so high the inhabitants of heaven heard the crowing of roosters and the barking of dogs. He turned them upside down and rained upon them stones of clay." [Qur'an 15:74]The 15th surah says: "Thus did We turn it upside down, and rained down upon them stones of what had been decreed. Surely in this are signs for those who examine. And surely it is on a road that still abides. Most surely there is a sign in this for the believers. The dwellers of the Rock rejected the messengers."Allah is daring us to use his depiction of Sodom as a proof of his divinity. But Sodom wasn't turned upside down, it wasn't stoned with clay, nor was it ever close enough to heaven for the angelic host to hear the roosters. And the roads have long since disappeared. We know that because archeologists have found Sodom, Gomorrah, and the other cities of the plain. And guess what? They are exactly where the Bible said they would be. They were destroyed exactly when the Bible said that they were destroyed. And yes, they were buried exactly how the Bible proclaimed - under brimstone. Once again, the Bible was precisely accurate and the Muhammad/Allah team couldn't even plagiarize it without burying themselves।
Before we dive into the surah I'd like to share a Hadith from Ibn Ishaq to demonstrate how reluctant Muhammad was to discuss the relationship he had formed with his demonic spirit। Ishaq:117 "Three years elapsed from the time that Muhammad concealed his state until Allah commanded him to publish his religion according to information that has reached me. 'Proclaim what you have been ordered and turn away from the polytheists.' [Qur'an 15:94] 'Warn your family, your nearest relations.' [Qur'an 26:214] When these words came down to the Apostle he said, 'Allah has ordered me to warn my family and the task is beyond my strength. When I make my message known to them I will meet with great unpleasantness so I have kept silent. But Gabriel [Lucifer] has told me that if I do not do as ordered my Lord [Satan] will punish me.'" This Hadith is injurious to Islam. The surahs it references (15 and 26) were not among the first fifty revealed, so the timing is impossible. Further, Khadija was the first Muslim and Ali was the third. Muhammad's only other family members were daughters, and in Islam, they don't count. So what "great unpleasantness" was he afraid of? Moreover, imagine a revelation so feeble, the prophet has to be threatened to deliver it. Muslims deserve something better than this.
Prophet of Doom

3 comments:

  1. "उस शहादत की याद आती है जब मुहम्मदका वंश कर्बला में अपने कुकर्मों का परिणाम लिए इस ज़मीन से उठ गया था, वह भी ७२ थे."
    शायद तुम दुनिया के पहले शैतान हो जो बेगुनाह हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों को कुकर्मी कह रहे हो. यह हिम्मत तो यजीद भी नहीं कर पाया था. अगर वह कुकर्मी थे तो उनके छह महीने के बच्चे को क़त्ल करने वाले शायद तुम्हारे जैसे 'मोमिन' थे! लेकिन तुम्हारे गुनाहों से थरथराती कलम ने थोडा सा हक का साथ दिया है उन्हें शहीद कहकर.

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  2. Islam = Sex+Terrorism

    -इस्लाम अय्याशी (चार निकाह, जन्नत में 72 हूरें) और आतंक (जिहाद) का पाठ पढाता है

    -ये लोग अपनी बहनो को भी नहीं छोडते, उनसे निकाह करके बिस्तर में ले जाते हैं

    -कोई मुसलमान हिन्दू धर्म की प्रशंसा कर दे तो उसे मजहब से निकाल देते हैं

    -हिन्दू धर्म ग्रथों को जलाना, मन्दिरों को तोडना, देवी-देवताओं के अश्लील चित्र बनाना, उनके बारे में अपशब्द बोलना इनकी घृणित मानसिकता का प्रमाण है

    - हिन्दुओं को मिटाने या मुसलमान बनाने पर इनको जन्नत रूपी अय्याशी का अड्डा मिलता है

    -मुसलमान (ना)मर्दों को बुरका बहुत भाता है, क्योंकी बुरके में छिपकर ये "बहुत कुछ" करते हैं

    - मुसलमान फर्जी नामों का बुरका पहनकर भौंकते फिरते रहते हैं

    -कुल मिलाकर इस्लाम (ना)मर्दों का मजहब है

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  3. भारत के विनाश और पतन का कारण केवल ब्राह्मण हैं। मेरे लेखों से यह सच्चाई उजागर होते देखकर जनाब बी. एन. शर्मा परेशान हो गये और किसी मत में विश्वास न रखने के बावजूद वे ब्राह्मणी मायाजाल की रक्षा में कमर कसकर मैदान में कूद गये। उन्होंने इस्लाम के बारे में जो कुछ भी कहा वह केवल इसलिये ताकि लोग इस्लाम के नियमों को मानकर ब्राह्मणी मायाजाल से मुक्त न हो जाएं।
    इस्लाम के युद्धों में कमियां निकालने वालों को डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ का यह लेख देखना चाहिये।
    क्या वेद अहिंसावादी हैं ? - डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ The True Hindu
    नीचे इंद्र और उसके युद्धों का वर्णन करने वाले कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं :

    त्वमेतात्र् जनराज्ञो द्विदशाबंधुना सुश्रवसोपजग्मुषः ,
    षष्टिं सहसा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
    ( ऋग्वेद , 1-53-9 )
    अर्थात हे इंद्र , सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए आए 20 राजाओं और उनके 60,099 अनुचरों को तुमने पराजित कर दिया था ।

    इंद्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः जघान नवतीर्नव ।
    ( ऋग्वेद , 1-84-13 )
    अर्थात अ-प्रतिद्वंदी इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से वृत्र आदि असुरों को 8-10 बार नष्ट किया ।

    अहन् इंद्रो अदहद् अग्निः इंद्रो पुरा दस्यून मध्यन्दिनादभीके ।
    दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्
    ( ऋग्वेद , 4-28-3 )
    अर्थात हे सोम , तुझे पी कर बलवान हुए इंद्र ने दोपहर में ही शत्रुओं को मार डाला था और अग्नि ने भी कितने ही शत्रुओं को जला दिया था । जैसे किसी असुरक्षित स्थान में जाने वाले व्यक्ति को चोर मार डालता है , उसी प्रकार इंद्र ने हज़ारों सेनाओं का वध किया है ।

    अस्वापयद् दभीयते सहस्रा त्रिंशतं हथैः, दासानिमिंद्रो मायया ।
    ( ऋग्वेद , 4-30-21 )
    अर्थात इंद्र ने अपने कृपा पात्र दभीति के लिए अपनी शक्ति से 30 हज़ार राक्षसों को अपने घातक आयुधों से मार डाला ।

    नव यदस्य नवतिं च भोगान् साकं वज्रेण मधवा विवृश्चत्,
    अर्चंतींद्र मरूतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम ।
    ( ऋग्वेद , 5-29-6 )
    अर्थात इंद्र ने वज्र से शंबर के 99 नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया । तब संग्राम भूमि में ही मरूतों ने त्रिष्टुप छंद में इंद्र की स्तुति की । तब जोश में आकर इंद्र ने वज्र से शंबर को पीड़ित किया था ।

    नि गव्यवो दुह्यवश्च पष्टिः शता सुषुपुः षट् सहसा
    षष्टिर्वीरासो अधि षट् दुवोयु विश्वेदिंद्रस्य वीर्या कृतानि
    ( ऋग्वेद , 7-18-14 )
    अर्थात अनु और दुहयु की गौओं को चाहने वाले 66,066 संबंधियों को सेवाभिलाषी सुदास के लिए मारा गया था । ये सब कार्य इंद्र की शूरता के सूचक हैं ।
    वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है । आज तक जहां कहीं यज्ञ होता है , उस के अंत में निम्नलिखित शलोक पढ़ा जाता है ।
    अर्थात अनेक यज्ञ , कठिन तप कर के और अनेक सुपात्रों को दान दे कर ब्राह्मण लोग जिस उच्च गति को प्राप्त करते हैं , अपने जातिधर्म का पालन करते हुए युद्धक्षेत्र में प्राण त्यागने वाले शूरवीर क्षत्रिय उस से भी उच्च गति को प्राप्त होते हैं ।
    http://vedquran.blogspot.com/2010/04/true-hindu.html

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