मुहम्मद उम्मी थे अर्थात निक्षर. तबीयतन शायर थे, मगर खुद को इस मैदान में छुपाते रहते , मंसूबा था कि जो शाइरी करूंगा वह आल्लाह का कलाम क़ुरआन होगा . इस बात की गवाही में क़ुरआन में मिलनें वाली तथा कथित काफिरों के मुहम्मद पर किए गए व्यंग '' शायर है ना'' है. शाइरी में होनें वाली कमियों को, चाहे वह विचारों की हों, चाहे व्याकरण की, मुहम्मद अल्लाह के सर थोपते हैं. अर्थ हीन और विरोद्दाभाशी मुहम्मद की कही गई बातें ''मुश्तबाहुल मुराद '' आयतें बन जाती हैं जिसका मतलब अल्लाह बेहतर जानता है. देखें (सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत 6+7) यह तो रहा क़ुरआन के लिए गारे हेरा में बैठ कर मुहम्मद का सोंचा गया पहला पद्य आधारित मिशन ''क़ुरआन''.
दूसरा मिशन मुहम्मद का था गद्य आधारित. इसे वह होश हवास में बोलते थे, खुद को पैगम्बराना दर्जा देते हुए, हांलाकि यह उनकी जेहालत की बातें होतीं जिसे कठबैठी या कठ मुललाई कहा जाय तो ठीक होगा. यही मुहम्मदी ''हदीसें'' कही जाती हैं. क़ुरआन और हदीसों की बहुत सी बातें यकसाँ हैं, ज़ाहिर है एह ही शख्स के विचार हैं, ओलिमा-ए-दीन इसे मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं कि अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है जिस को हुज़ूर (मुहम्मद) ने हदीस फलाँ फलाँ में भी फरमाया है. अहले हदीस का भी एक बड़ा हल्का है जो मुहम्मद कि जेहालत पर कुर्बान होते हैं. शिया कहे जाने वाले मुस्लिम इससे चिढ्हते हैं.
मैं क़ुरआन के साथ साथ हदीसें भी पेश करता रहूँगा
तो लीजिए कुरानी अल्लाह फरमाता है - - -
" अल्लाह काफ़िरों से मुहब्बत नहीं करता"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (32)
क्या काफ़िर अल्लाह के बन्दे नहीं हैं? फिर वह रब्बुल आलमीन कैसे हुवा? क़ुरआन की इन दोगली बातों का मौलानाओं के पास जवाब नहीं है। वह काफ़िरों से मुहब्बत नहीं करता तो काफ़िर भी अल्लाह को लतीफा शाह से ज्यादा नहीं समझते, मुस्लमान इस्लामी ओलिमा से अपनी हजामतें बनवाते रहें और काफ़िरों के आगे हाथ फैलाते रहें.
तीसरी किस्त
अल्लाह कहता है - -
" मोमिनों! किसी गैर मज़हब वालों को अपना राज़दार मत बनाओ। ये लोग तुम्हारी खराबी में किसी क़िस्म की कोताही नहीं करते और अगर तुम अक़्ल रखते हो तो हम ने अपनी आयतें खोल खोल कर सुना दीं। काफ़िरों से कहदो कि गुस्से से मर जाओ, अल्लाह तुम्हारे दिलों से खूब वक़िफ़ है। ऐ मुसलमानों! दो गुना, चार गुना सूद मत खाओ ताकि नजात हासिल हो सके।''
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (33)
क्या यह कम ज़रफी की बातें किसी खुदाए बर हक की हो सकती हैं? क्या जगत का पालन हारा अगर है कोई तो ऐसा गलीज़ दिल ओ दिमाग रखता होगा? अपने बन्दों को कहेगा की मर जाओ, नहीं ये गलाज़त किसी इंसानी दिमाग की है और वह कोई और नहीं मुहम्मद हैं। यह टुच्ची मसलेहत की बातें किसी मर्द बच्चे को ज़ेबा नहीं देतीं अल्लाह तो अल्लाह है. कानो में खुसुर फुसुर कर के ओछी बातें सिखलाने वाला, ज्यादा या कम सूद खाने को मना करने वाला अल्लाह हो ही नहीं सकता.
मुसलमानों! जागो कहीं तुम धोके में अल्लाह की बजाए शैतान की इबादत तो नहीं कर रहे हो। कलाम इलाही पर एक मुंसिफाना नज़र डालो, आप को ऐसी तालीम दी जा रही है कि दूसरों की नज़र में हमेशा मशकूक बने रहो . एक हिदू इदारे के कुछ वर्कर आपस में मुझे भांपे बगैर बात कर रहे थे कि मुस्लमान पर कभी विश्वास न करना चाहे वह जलते तवे पर अपने चूतड रख दे, उसकी बात की इस आयात से तस्दीक हो जाती है. अल्लाह ने क़ुरआन में अपनी बातें खोल खोल कर समझाईं हैं, अल्ला मियां! जिसको आज आलिमान दीन ढकते फिर रहे हैं।
सूरह आले इमरान से मुराद है इमरान यानी मरियम के बाप की औलादें - - -
अल्लाह अब सूरह के उन्वान पर आता है इमरान की जोरू जिसका नाम अल्लाह भूल रहा है ( ? ) की गुफ्तुगू अल्लाह से चलती है, वह लड़के की उम्मीद किए बैठी रहती है, हो जाती है लड़की, जिसका नाम वोह मरियम रखती है. उधर बूढा ज़कारिया अल्लाह से एक वारिस की दरख्वास्त करता है जो पूरी हो जाती है, (इस का लड़का बाइबिल के मुताबिक मशहूर नबी योहन हुवा. जिस को कि उस वक़्त के हाकिम शाह हीरोद ने फांसी देदी थी. मुहम्मद को उसकी हवा भी नहीं लगी) इन सूरतों में जिब्रील ईसा की विलादत की बे सुरी तान छेड़ते हैं. बहुत देर तक अल्लाह इस बात को तूल दिए रहता है. इस को मुस्लमान चौदह सौ सालों से कलाम इलाही मान कर ख़त्म क़ुरआन किया करते हैं।
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (34-48)
इसकी सच्चाई हमारी सहायक किताब Prophet of Doom देखें
देखिए की मुहम्मद ईसा से कैसे गारे की चिडिया में, उसकी दुम उठवा कर फूंक मरवाते हैं और वह जानदार होकर फुर्र से उड़ जाती है - -
" बनी इस्राईल की तरफ से भेजेंगे पयम्बर बना कर, वह कहेंगे कि तुम लोगों के पास काफ़ी दलील लेकर आया हूँ, तुम्हारे परवर दिगर की जानिब से। वह ये है कि तुम लोगों के लिए गारे की ऐसी शक्ल बनाता हूँ जैसे परिंदे की होती है, फिर इस के अन्दर फूंक मार देता हूँ जिस से वह परिंदा बन जाता है। और अच्छा कर देता हूँ मादर जाद अंधे और कोढ़ी को और ज़िन्दा कर देता हूँ मुर्दों को अल्लाह के हुक्म से। और मैं तुम को बतला देता हूँ जो कुछ घर से खा आते हो और जो रख आते हो. बिला शुबहा इस में काफ़ी दलील है तुम लोगों के लिए, अगर तुम ईमान लाना चाहो."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (49)
उम्मी मुहम्मद की बस की बात न थी कि किसी वाकिए को नज़्म कर पाते जैसे क़ाबिल तरीन रामायण और महाभारत के रचैताओं ने शाहकार पेश किए हैं। अभी वह इमरान का क़िस्सा भी बतला नहीं सके थे कि ईसा कि पैदाइश पर आ गए। ईसा के बारे में जो जग जाहिर सुन रखी थी उसको अल्लाह की आगाही बना कर अपने कबीलाई लाखैरों को परोस रहे हैं. उम्मियों और जाहिलों की अक्सरियत माहौल पर ग़ालिब हो गई और पेश कुरानी लाल बुझक्कड़ड़ी फलसफे मुल्क का निज़ाम बन गए, जैसा कि आज स्वात घाटी जैसी कई जगहों पर हो रहा है.इस मसअला का हल सिर्फ जगे हुए मुसलमानों को ही हिम्मत के साथ करना होगा, कोई दूसरा इसे हल करने नहीं आएगा. कोई दूसरा अपना फायदा देख कर ही किसी के मसअलe में पड़ता है क्यूँ कि सब के अपने खुद के ही बड़े मसाइल हैं. मुसलामानों! बेदार हो जाओ, इन कुरआनी आयतों को समझो, समझ में आजाएं तो इन्हें अपने सुल्फा कि भूल समझ कर दफ़ना दो और इस से जुड़े हुए ज़रीया मआश को हराम क़रार दे कर समाज को पाक करो.
" और मैं इस तौर पर आया हूँ कि तस्दीक करता हूँ इस किताब को जो तुहारे पास इस से पहले थी,यानि तौरेत की. और इस लिए आया हूँ कि तुम लोगों पर कुछ चीजें हलाल कर दूं जो तुम पर हराम कर दी गई थीं और मैं तुम्हारे पास दलील लेकर आया हूँ तुम्हारे परवर दिगर कि जानिब से. हासिल यह कि तुम लोग परवर दिगर से डरो और मेरा कहना मनो"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (50)
मुहम्मद के पास लौट फिर कर वाही बातें आती हैं, नया ज्यादा कुछ कहने को नहीं है. जिन आयातों को मैं छू नहीं रहा हूँ, उनमे कही गई बातें ही दोहराई गई हैं या इनतेहाई दर्जा लगवयात है. यहूदी बहुत ही तौहम परस्त और अपने आप ने बंधे हुए होते हैं जिनके कुछ हराम को मुहम्मद हलाल कर रहे हैं. गैर यहूदी अहले मदीना और अहले मक्का को इस से कोई लेना देना नहीं. मुहम्मद के अल्लाह की सब से बड़ी फ़िक्र की बात यह है कि लोग उस से डरते रहें. बन्दों की निडर होने से उसकी कुर्सी को खतरा क्यूँ है, मुसलमानों के समझ में नहीं आता कि यह खतरा पहले मुहम्मद को था और अब मुल्लों को है.
निसार ''निसार-उल-ईमान''
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मेरे हम नवा
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Returning to the purpose of Islam: Qur'an 3:32 "Say: 'Obey Allah and His Messenger।' If they refuse, remember Allah [third person] does not like unbelieving infidels।" This is the inverse of the Bible। Yahweh loves everyone, including unbelievers.
Then in the "he-is-too-dumb-to-be-god" category we find: Qur'an 3:33 "Allah chose Adam and Nuh (Noah) and the families of Ibrahim (Abraham) and Imran in preference to others." Adam couldn't have been chosen in preference to others as he was the only man. Further, Noah was saved and Abraham was blessed because they chose Yahweh, not the other way around. Sadly for Muslims, the fine line between a stupid god and no god has been crossed.
According to Allah, Imran was Mary's father, and that's a problem. The Bible says Mary's father was Heli in Luke 3:24. Imran isn't a Hebrew name, but Amram is. Numbers 26:59 identifies him as the father of Moses, Aaron, and Miriam. This misunderstanding may be why Allah, in Qur'an 19:28, calls Mary "Miriam, the sister of Aaron." As such she would have been over 1,200 years old when Christ was born. And while that's bad, the verse begins with "remember," yet there was no prior "Imran" revelation. Qur'an 3:35 "Remember, when the wife of Imran prayed: 'Lord, I offer what I carry in my womb in dedication to Your service, accept it, for You are the Hearer, the Knower.' And when she had given birth, she said: 'O my Lord I have delivered but a girl, a female child.' [Remember: girls are worthless in Islam apart from luring boys to their doom.] But Allah knew better what she had delivered: 'The male is not like the female, and I have named her Mariam (Mary).'"
Allah is very confused, demonstrating an embarrassing lack of knowledge for the scriptures he claims to have inspired. Yahweh sent Gabriel to talk to Zechariah about his wife Elizabeth having a baby who would preach with the power of the Holy Spirit, like Elijah of old. So as to try to unmuddle the mess, Allah has Zechariah adopting Mary as well as fathering John the Baptist. Qur'an 3:37 "Mariam was given into the care of Zacharyah. Whenever he came to see her in her chamber he found her provided with food, and he asked, 'Where has this come from Mary.' She said, 'From Allah who gives in abundance to whomsoever He will. Zacharyah prayed, 'Bestow on me offspring that is good [i.e., not a girl]. As he stood in the chamber the angels said, 'Allah sends you tidings of Yahya (John) who will confirm a thing from Allah (the creation of Isa (Jesus), the Word of Allah) and be a noble prophet, one who is upright and does good [a Muslim]." In trying to dig himself out, Allah fell deeper into his pit. Magical food for Yahshua's mother doesn't square with Muhammad's mother's misfortune, especially if Muhammad is to be believed over "Jesus." And John proclaimed that Yahshua was from Yahweh, not Allah.
And yet they were so very close. The Arabic name for John identified the name of his God YAHya, as did ZacharYAH's. Even the Arabic word for Jew used throughout the Qur'an is YAHdodi. Biblical names acknowledge Yahweh: YAHshua (Joshua and Jesus), YAHayahu (Isaiah), YirmeYAHu (Jeremiah) YAHezqel (Ezekiel), NehemYAH (Nehemiah), MattihYAHu (Matthew), YAHaqob (Jacob and James). There wasn't an Allah in the batch.
As misguided as this Qur'an account is, it gets worse in a hurry. Qur'an 3:42 "Behold! the angels said: 'Mariam! Allah has chosen you and purified you above the women of all nations and creation (including jinn).'" That's also a problem for Islam. How can Mary be the best if Yahshua is a second-rate "prophet?" In Islam, Adam, Noah, Abraham, Moses, Qusayy, and Muhammad are more important than the Messiah. If Muhammad is numero uno, why wasn't his mom mentioned in the Qur'an?
The answer is simple. Amina, Muhammad's mother, abandoned her son at birth and was a source of rage, not praise. The abuse he suffered as a child gave rise to his religion. And for the "Religion of Submission" to be credible, Yahshua and Mary had to be converted into Muslims... "Mary! submit with obedience to your Lord (Allah). Prostrate yourself, and bow down with those [Muslims] who bow down." In 2 B.C. there were no Muslims with which Mary could have prostrated herself. Gabriel would never have referred to Yahweh using the pagan "Lord." Islam's Black Stone wouldn't come to be named "Allah" for another five hundred years. And why, pray tell, would the Islamic god visit Mary in Israel if Mecca and the Ka'aba were his sacred territory and house? Further, why is there no mention in all of the Qur'an and Hadith of the Messiah visiting Allah at his "House?" After all, the big Mo made the Night's Journey to the Jewish Temple. The answers are: there was no Ka'aba, no Mecca, no Allah, and there were no Muslims back when Yahshua was born. And that makes the primary premise of Islam - that it was the religion of Adam, Noah, Abraham, Moses, David, Solomon, and the Messiah - a bold-faced lie. Islam's premise is as rotten as its prophet, as false as its god.
Next we learn why this impossible - and thus untrue - scenario was revealed only to Muhammad... Qur'an 3:44 "This is part of the tidings of the things unseen, which you have no knowledge and We reveal unto you (O Messenger!) by inspiration. You were not with them when they cast lots with arrows, as to which of them should be charged with the care of Mariam. Nor were you with them when they disputed." Casting arrows was an occult rite performed around the Ka'aba. Abu Muttalib did this very thing to spare the life of Abd-Allah - Muhammad's father - after consulting with sorcerers. Jews never did such a thing - ever. But Islam needs Jesu.' mother saved in similar fashion. Yet ascribing a demonic gambling game designed to elicit the oracle of manmade idols to Mary "the pure, the chosen above all creation" means that Allah is unable to distinguish sorcery from truth. This verse proves that Allah isn't God, no matter how badly he wants to be.
While I don't mean to kick a dead camel, Allah is insistent on dying a hundred ugly deaths. Qur'an 3:45 "Behold, the angels said: 'O Mariam! Allah gives you glad tidings of a Word from Him: his name will be the Messiah, Isa (Jesus), the son of Mariam, held in honor in this world and the Hereafter and of those nearest to Allah." By saying that "Jesus" was the "Messiah," Allah fractured his stone. If "Jesus", whose name is actually Yahshua, was the Messiah, he is God and Allah isn't. Oops.
Since the verse is fatal to Islam, let's try another translation. "(And remember) when the angels said: Mary! Lo! Allah gives you glad tidings of a word from him, whose name is Christ Jesus, the Messiah, son of Mary, illustrious in the world and the hereafter." The problem isn't the translation; it's the inspiration. The instant Allah admitted that "Jesus" was the Messiah, Islam was finished - at least for anyone who knows anything about "Allah's. divinely inspired Bible.
Prophet of Doom
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मेरे ब्लाग पे आ तुझे ऐसे सैंकडों सवालों के जवाब मिलेंगे, जहां से यह टीप के ला रहा है, वह मुझे भुगत चुका, और जिस किताब उसने टीपा, उस किताब का भी जवाब मिलेगा इन्शाअल्लाह, तब तक
ReplyDeletesignature:
विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
antimawtar.blogspot.com (Rank-2 Blog) डायरेक्ट लिंक
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
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are waah, aap ne sachmuch kaafi satya kholkar rakh diye hain, ab kairanvi jaison ke mirchen kyon kar n lagengi. ......
ReplyDeletemomin ji, aap bahut achchha kar rahe hain, nishchit roop se isse islam ke anuyayion ko sahi raah dekhne me madad milegi........
aur unhe ghisi piti leek chhhod kar nai rahon par chalne ke liye madad milegi
laksjdf l jdsfljasjdf kljasdfdf
ReplyDeleteTumhe Allah Ne Achha Dimag aur akal di hai
ReplyDeleteiska sahi Knowledge logo ko dene me kharch karo
Rahe HAQ Par Chalo
Ye Gandgi Har kanhi Se mat uthao Kyanki Bhai Mai Nahi chahta ki tumhara bhi hal Firoun, Abu-Jahal, Abu-Lahab Ki Tarah Ho ki unke marne ke bad unki lash ka Kya harsh hua Kabrastan tak le jane wala koi nahi tha ALLAH SE TOUBA KAR LO
YE KIS KITABON SE LAKER AYE HO HAME MALOOM HAI
ZARA APNE AAS PASS DEKHO HAR NISHANIYA JO QURAN ME ALLAH NE BATAI HAI SARI SACH HO RAHI HAI
MERE BHAI ALLAH SE TOUBA KAR LO
ज़िन्दगी में पहली दफ़ा इस हौसले को देखता हूँ तो लगता है कि इस्लाम केवल धर्मभीरुओं का, कठमुल्लों का ही मजहब नहीं है; बल्कि इसमें भी लीक से हटकर चलने वाले हैं...
ReplyDeleteमेरे दोस्त, अगर हर मुसलमान तुम्हारी तरह विवेचना करना सीख ले, सदियों पुरानी मवाद भरी इस्लामी आयतों को सही-ग़लत के चश्मे से देखना शुरु कर दे, तो निस्संदेह यह क़ौम समाज और दुनिया-जहान से कदम से कदम मिलाकर चल सकेगी, तरक्की कर सकेगी और उनकी आँखों में आँखें डालकर बात कर सकेगी, जिन निगाहों में उनके लिये अबतक केवल संदेह व्याप्त था।
सलाम तुम्हारे हौसले को, इस मिशन में हर सच्चा मुसलमान तुम्हारे साथ आये, कुछ राह भटके कैरानवी जैसे लोगों तक तुम्हारी सदा पूरी शिद्दत से पहुँचे, यही कामना है...!