To
Intertecconsulting
जनाबे आली,
मैं कोई सिर फिरा नहीं हूँ. सदाक़त को पढ़ कर आप का सिर फिर जाता है. सिर फिरा है आप का अल्लाह और उसका खुद साख्ता रसूल.मैं उसी की बातो का तर्जुमा कर रहा हूँ, और लीक से हट कर उस पर तबसरा. आप बराबर पढ़ते रहे, एक दिन सच्चाई आप के सिर पर चढ़ कर बोलेगी.
To
Truth Way
मोहतरम!
मैं अपनी अक्ल और दिमाग का बेहतर इस्तेमाल कर रहा हूँ, ज़रुरत है आप अपनी आखों पर पड़े अकीदत के परदे को हटाएँ.
मैं मशहूर और मारूफ तर्जुमा निगार अशरफ अली थानवी के क़ुरआनी तर्जुमे को लेकर चल रहा हूँ जिन्होंने मुख्तलिफ़ दीनी किताबें लिखी हैं. मौलाना बुखारी और सही मुस्लिम की मुस्तनद हदीसों का ही हवाला है. हिदोस्तान क्या बर्रे सगीर पर थानवी का क़ुरआनी तर्जुमा ग़ालिब है.
मरने के बाद लाश की परवाह आप जैसे नादानों को होती है. लीजिए फ़िलहाल अबी लहेब का हाल जान लीजिए जो क़ुरआन में एक सूरह की शक्ल में अमर हो गया.
अबू लहब मुहम्मद का रोज़े अव्वल से निगहबान चचा था, यतीम भतीजे के पैदा होते ही अपनी लौंडी को आज़ाद कर दिया था और दूध पिलाने के लिए मुहम्मद के घर नौकरी देदी थी. सर परस्ती का सिसिला उसने सिर्फ बचपन तक ही नहीं, जवानी तक ही नहीं, बल्कि मुहम्मद की दो लड़कियां जवान हो गईं, तब तक कायम रखा और दोनों को बहू बना कर मुहम्मद का बोझ हल्का किया. एहसान फरामोश मुहम्मद की आँखें उससे इस लिए फिर गईं कि अचानक मुहम्मद के एलाने पयंबरी का मुनहरिफ़ होने वाले पहले शख्स अबू लहब थे. फ़तह मक्का के बाद कहते हैं कि उनके घर पर मुन्तकिम मुहम्मद ने इस क़दर पत्थरों की बारिश कराई , भरा परिवार उसी में दफन हो गया और बरसों वह पहड़ी की शक्ल में अबू लहब की अलामत बना रहा.
आप लाशों की बात करते हैं? लाशें तो हमेशा इस्लाम ने रुसवा किया है, तीसरे खलीफा उस्मान गनी की लाश अली जादों के तलवार के नीचे तीन दिन तक सडती रही, बाद में यहूदियों ने उसे अपनी कब्रगाह में जगह दी. उस्मान गनी जिन्हों ने क़ुरआन को मुरत्तब किया, क़ुरआन जो पहले मस्हफे-उस्मानी कहा जाता था. हुसैन की लाश की दुर्गत को आज तक मुसलमान हर साल कन्धों पर ढोते हैं जिसको मुसलमानों ने ही की थी.
अबू जेहल और फ़िरऑन की अज़मतों का बयान फिर कभी. आप मेरे ब्लॉग को पढ़ते रही - - -
मुहम्मद उमर कैरानवी
कहते है - - - मेरे ब्लाग पर आ कभी . . .
(निशाकार भाई! बचाइए पागल सांड आ गया)
मुहम्मद उमर कैरानवी जैसे बे ज़मीर -- ओलिमाओं की तरह ही लोग होते हैं जो उनकी लिखी उल जुलूल लेखन को अपना ज़रीआ मुआश बनाते हैं. यह दोनों चोर चोर मौसेरे भाई हुवा करते हैं. इनको इस बात की क़तअन फ़िक्र नहीं कि कौम जन्नत में जायगी या जहन्नम में, इन को सिर्फ इस बात कि चिंता रहती है कि कैसे अपने बच्चों का पेट हराम की गलाज़त से भरा जाए, क्यूंकि यह कमाई के हलाल ज़रीओं पर ईमान नहीं रखते. इन के खून में भी कुत्तों और सांडों कि सी खसलत होती है. कौम की बात तो बड़ी बात है . इनको इस बात का एह्साह भी नहीं कि २०% मानव जाती घोर अन्धकार में जी रही है. इनकी बला से, दस लाख इराकी काल के गल में समा गए. हो गए होंगे, इनको आखरत के नाम पर दो जून कि गलाज़त चाहिए. मुहम्मद उमर कैरानवी हर एक के फटे में अपनी सींग डाले रहते है, नहीं देखते की हिदू मुस्लिम दंगा हो जाएगा, अपने गढ़ में महफूज़ जो हैं , मारें साले बे कुसूर, मेहनत कश अवाम - - मगर जब इन सर पर फिरका परस्ती का मलकुल मौत खड़ा हो जाता है तो यह उसका तनासुल तक चाटने को तैयार हो जाते है. आखरी नबी, आखरी अवतार, आखरी निजाम और आखरी किताब कहने वाले यह जाहिल कह नहीं सकते कि इनका आखरी बाप भी इन के पैगम्बर ही थे। कोई समझाए कि इस रचना कालिक संसार में आखरी का मतलब क्या होता है? इनके पैगम्बर के ज़माने में आखरी सवारी ऊँट थी तो यह आज हवाई जहाज़ पर हज करने क्यूं जाते हैं?
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अल्लाह बोलता भी है आइए देखें की मुसलामानों का अल्लाह क्या क्या बोलता है - - -
सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा
Prophet of Doom 4th Surah 'Women'
((पहली किस्त))
"ऐ लोगो! परवर दिगर से डरो जिसने तुमको एक जानदार से पैदा किया और इस जानदार से इस का जोड़ा पैदा किया और इन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैलाईं और क़राबत दारी से भी डरो। बिल यक़ीन अल्लाह ताला सब की इत्तेला रखते हैं।"
सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा आयात (१)
क़ुरआन में मुहम्मद तौरेती विरासत को दोहरा रहे हैं कि आदम की पसली से हव्वा की रचना हुई और वह आदम की जोड़ा हुईं, उन से सुब्ह ओ शाम लड़का लड़की होते रहे और जोड़े बनते गए, इस तरह कराबत दारियां जमीन पर फैलती गईं, वह भी सिर्फ साढ़े छ हज़ार साल पहले जब कि इंसान का वजूद साढ़े छ करोड़ साल पहले तक हो सकने के आसार हम को हमारी साइन्सी मालूमात बतलाती है. लाखों साल की पुरानी इंसानी तवारीख स्कूल के बच्चों को पढाई जा रही हैं और मुस्लिम क़ौम की क़ौम आज भी इस आदम और हव्वा साढ़े छ हज़ार साल पहले की कहानी पर यक़ीन रखती है. अल्लाह कहता है उससे डरो, कराबत दारों से डरो, भला क्यूँ? इस लिए कि अगर डरेंगे नहीं तो इन जेहालत की बातों का मजाक नहीं उडाएँगे? मुहम्मदी अल्लाह कभी जानदार से बेजान को निकलता है, तो कभी बेजान से जानदार को, आदम को मिटटी से बना कर जान डाल दिया तो अभी पिछली सूरह में ईसा गारे की चिडिया बना कर, उसकी दुम उठाकर उस में फूंक मारते है और वह फुर्र से उड़ जाती है. yeh क़ुरआन नहीं बाजी गरी का तमाशा है, मुसलमान तमाशा बने हुए हैं और सारा ज़माना तमाशाई। शर्म तुम को मगर नहीं आती।
." जिन बच्चों के बाप मर जाएँ तो उनका मॉल उन्हीं तक पहुँचते रहो, अच्छी चीज़ को बुरी चीज़ से मत बदलो और अगर तुम्हें एहतेमाल हो कि यतीम लड़कियों के साथ इंसाफ न कर सकोगे तो औरतों से जो तुहें पसंद हों निकाह कर लो, दो दो, तीन तीन या चार चार, बस कि इंसाफ हर एक के साथ कर सको वर्ना बस एक. और जो लौंडी तुम्हारी मिलकियत में है, वही सही,"
सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा आयात (2-3)
जंग जूई का दौर था, मर्द खून खराबे में मुब्तेला रहा करते थे जिस की वजह से औरतें इफ़रात हुआ करती थीं, बेहतर ही हल था यह कि साहिबे सरवत मर्दों के किफालत में दो दो तीन तीन या चार चार औरतें आ जाया करती थीं, बनिसबत हिन्दू समाज के जहाँ औरतें खैराती मरकजों को, माँ, बहन, बीवी का मक़ाम न पा कर, पंडो को अय्याशी के लिए देदी जाती थीं, जहाँ उनकी ज़ईफी दर्द नाक हो जाया करती थी। उस वक़्त बे निकाही लौडियां मुबशरत के लिए जायज़ हुआ करती थीं, खुद मुहम्मद लौडियां रखते थे। एक लौंडी मारिया से तो इब्राहीम नाम का एक बच्चा भी हुआ था जो ढाई साल का होकर मर गया दूसरी लौंडी ऐमन से मशहूर ए ज़माना ओसामा हुवा जिसकी वल्दियत ज़ैद बिन हरसा (या ज़ैद बिन मुहम्मद) थी . जीती हुई जंगों में गिरफ्तार औरतें लौंडियाँ हुआ करती थीं. इज्तेहाद यानी परिवर्तन इर्तेकई (रचना काल) मराहिल का तकाज़ा है कि आज लौंडियों के साथ मुबशरत हराम हो गया है, अब घर की खादमा को मजाल नहीं की उस पर बुरी नज़र डाली जाए। जब इतना बड़ा बदलाव आ चुका है कि मुहम्मद की हरकतें हराम हो चुकी है तो इर्तेकई तक़ाज़े के तहत बाकी मुआमले में बदलाव क्यूँ नहीं?
निजाम दहर बदले, आसमां बदले, ज़मीं बदले।
कोई बैठा रहे कब तक हयाते बे असर ले के।
अल्लाह यतीम के मॉल खाने को आग से पेट भरने की मिसाल देता है. कबीले में मुखिया के मर जाने के बाद विरासत की तकसीम अपने आप में पेचीदा बतलाई गई है, जो कि आज लागू नहीं हो सकती. क़ुरआन में जो हुक्म अल्लाह देता है वह इतना मुज़बज़ब और गैर वज़ह है कि आज इस की बुन्याद पर कोई क़ानून नहीं बनाया जा सकता. आप सुनते होंगे कि फ़त्वा फ़रोश कैसी कैसी मुताज़ाद गोटियाँ लाते हैं. उनका हर फ़ैसला लाल बुझक्कड़ का फरमान जैसा होता है.
" ये सब एहकम मज़कूरह खुदा वंदी ज़ाबते हैं और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह उसको ऐसी बहिषतों में दाखिल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी। हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे। यह बड़ी कामयाबी है."
सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा आयात (8-13)
यह क़ुरआन की आयत बार बार दोहराई गई है. अहले रीश अपनी दढ़ियाँ इसके तसव्वुर से तर रखते हैं. इस मुहज्ज़ब दुन्या के लिए कुरानी निजाम हयात पर एक नजर डालिए जिसे पढ़ कर शर्म आती है - - " तुम पर हराम की गई हैं तुम्हारी माएँ, और तुम्हारी बेटियाँ और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफियाँ और तुम्हारी खालाएँ और भतीजियाँ और भांजियां और तुम्हारी वह माएँ जिन्हों ने तुम्हें दूध पिलाया है और तुम्हारी वह बहनें जो दूघ पीने की वजह से हैं. तुम्हारी बीवियों की माएँ और तुम्हारी बीवियों की बेटियाँ जो तुम्हारी परवरिश में रहती हों, इन बीवियों से जिन के साथ तुम ने सोहबत की हो और तुम्हारी बीवियों की बेटियाँ या दो सगी बहनें."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (23)
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (23)
ऐसा नहीं था की मुहम्मद से पहले ये सारे रिश्ते रवा और जायज़ हुवा करते थे जैसा की आज मुस्लमान समझ सकते हैं. मगर कुरआन में कानून जेहालत मुरत्तब करने के लिए यह मुहम्मद की अध कचरी कोशिश है. इसे ही ओलिमा मुश्तहिर करके आप को गुमराह किए हुए हैं।
" इस तरह से बीवी न बनाव कि सिर्फ मस्ती निलालना हो - - अलाह्दह होने के बाद आपसी रज़ामंदी से महर अदा करो. लौडियों से निकाह करो तो इनके मालिकों से इजाज़त लेलो. वह न तो एलान्या बदकारी करने वालियां हों, और न खुफ्या आशनाई करने वाली हों. मनकूहा लौंडियाँ अगर बे हयाई का इर्तेकाब करती हैं तो इन पर सज़ा निस्फ़ है, बनिस्बत आम मुस्लमान औरतों के. इस के बाद भी मर्द अगर ज़ब्त ओ सब्र से काम लें तो अल्लाह मेहरबान है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (24-25)
ये सब कबीलाई बातें क्या आज कहीं पाई जाती हैं? लौंडियों और गुलामों का ज़माना गया उसकी बातें एक कौम की इबादत और तिलावत बनी हुई है, इस से शर्म नाक बात और क्या हो सकती है? एक दरमियानी सूरत नज़र आती है कि मुसलमान अज़ खुद नमाज़ों में इन आयतों को बज़ोर आवाज़ रोजाना पढा करें, शायद कभी कुरानी शैतान उनके सामने आकार खडा हो जाए और वह नमाजों पर लाहौल पढना शुरू करदें. बहर हल मुसलमानों को बेदार होना है।
" मर्द हाकिम हैं औरतों पर, इस सबब से कि अल्लाह ने बाज़ों को बअजों पर फजीलत दी है ---- और जो औरतें ऐसी हों कि उनकी बद दिमागी का एहतेमाल हो तो इन को ज़बानी नसीहत करो और इनको लेटने की जगह पर तनहा छोड़ दो और उन को मारो, वह तुम्हारी इताअत शुरू कर दें तो उन को बहाना मत ढूंढो।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (34)
औरतों के साथ सभी धर्मों ने ज्यादतियाँ कीं हैं, बाकियों में औरतों ने नजात पा ली है मगर इस्लाम में आज भी औरत की हालत जैसी की तैसी है. जेहनी एतबार से औरतें मर्दों से कम नहीं हैं, उन्हें अच्छी तालीम ओ तरबीयत की ज़रुरत है. जिस्मानी एतबार से वोह सिंफे नाज़ुक ज़रूर हैं और यही उनकी ताक़त है जो मर्द की कशिश का बाईस बनती है. मर्द की शुजाअत और औरत कि नज़ाक़त, दोनों मिल कर ही कायनात को जुंबिश देते हैं. मखलूक की रौनक इन्हीं दोनों अलामतों पर मुनहसर करती हैं. हाकिम और महकूम कहना इस्लामी बरबरियत है, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
" अल्लाह मुसलमानों को मिल कर रहने की नसीहत देता है, (जैसा कि तमाम मौलाना आम मुसलमानों को दिया करते हैं मगर अंदर ही अंदर उनको आपस में लड़ाए रहते हैं ताकि उन की डेढ़ ईंट की मस्जिद कायम रहे।)अल्लाह खालिके मख्लूक़ अपनी कमज़ोरी बतलाता है कि आदमी कमज़ोर पैदा किया गया है, फिर अपनी खूबियाँ गिनाता है और अपनी गुन गाता है। आयातों में उसका अपना मुँह है, जो मुँह में आता है बोलता चला जाता है. अजीयत पसंद कुरआन उठा कर देख लें."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (27-33)
" खुद साख्ता रसूल का अल्लाह बखीलों को बिलकुल पसंद नहीं करता, इन में हज़ार कीड़े निकालता है, और खर्राचों को बखीलों से ज्यादा ना पसंद करता है। दोनों के बुरे अंजाम से ज़मीन से लेकर आसमान तक के लिए आगाह करता है। बस पसंद करता है तो सिर्फ़ उन शाह खर्चों को जो अल्लाह और उस के रसूल की राह में खर्च करे. कोई मुस्लमान कोई बड़ा खर्च करदे तो मुहम्मद के दिल को धक्का लगता है कि रक़म तो अल्लाह के बाप की थी. उनकी पैरवी मुंबई के सय्यदना कर रहे हैं कि उनकी इजाज़त के बगैर क़ौम अपने बेटे का मूडन तक नहीं कर सकती, गधी क़ौम पहले उनको टेक्स अदा करे. हम ऐसे बोहरों और खोजों जैसों को गधा ही कहते हैं जिनके धर्म गुरू पेरिस मे रह कर उनकी दौलत पर ऐश करते हैं." सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (37-42)
निसार ''निसार-उल-ईमान''
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मेरे हमनवा
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Let's return to the Qur'an to see how Muhammad is using Allah. The 4th surah was named after the women he craved. It opens with yet another version of creation: Qur'an 4:1 "People! Be careful of your Lord, Who created you from a single being and created its mate of the same (kind) and spread from these two, many men and women."
Returning to his favorite Meccan theme, the orphan wants his property returned. Qur'an 4:2 "To orphans restore their property...and devour not their substance (by mixing it up) with your own. For this is a great sin." Muhammad was worried that the Meccans were devouring the assets of the Ka'aba Inc. After all, he had raided their caravans, destroying their only other source of income. And being the world's biggest hypocrite, the prophet never returned the property of the orphans he had created by killing their parents and selling them into slavery.
Since this surah was named "Women," it's only fair that men have more than one. Qur'an 4:3 "If you fear that you shall not be able to deal justly with orphans, marry women of your choice who seem good to you, two or three or four; but if you fear that you shall not be able to do justice (to so many), then only one, or (a slave) that you possess, that will be more suitable. And give the women their dower as a free gift; but if they, of their own good pleasure, remit any part of it to you, eat it with enjoyment, take it with right good cheer and absorb it (in your wealth)." According to Muhammad, it's even okay to beat them until they "remit the dower of their own good pleasure."
Returning to what Muhammad craved: Qur'an 4:10 "Those who unjustly eat up the property of orphans, eat up a Fire into their bodies: They will soon endure a Blazing Fire!"
Next we learn that Allah thinks that men are twice as valuable as women. Qur'an 4:11 "Allah directs you in regard of your Children's (inheritance): to the male, a portion equal to that of two females.... These are settled portions ordained by Allah." Qur'an 4:13 "Those are limits imposed by Allah." In future surahs and Hadiths, Team Islam would call women "half wits," too.
Muhammad was itching for a "submit and obey" verse, so... Qur'an 4:12 "Those who obey Allah and His Messenger will be admitted to Gardens to abide therein and that will be the supreme achievement. But those who disobey Allah and His Messenger and transgress His limits will be admitted to a Fire, to abide therein: And they shall have a humiliating punishment." In other words, if you treat women as equals, you'll burn in hell. Qur'an 4:15 "If any of your women are guilty of lewdness, take the evidence of four witnesses from amongst you against them; if they testify, confine them to houses until death [by starvation] claims them. If two men among you are guilty of lewdness, punish them both. If they repent and improve, leave them alone; for Allah is Oft-Returning."
The following words, coming as they do from the most perverted sexual libertine to have ever claimed prophetic status, are hilarious: Qur'an 4:23 "Prohibited to you are: your mothers, daughters, sisters; father's sisters, mother's sisters; brother's daughters, sister's daughters; foster-mothers (who gave you suck), foster-sisters; your wives' mothers; your step-daughters born of your wives to whom you have gone in, no prohibition if you have not gone in; (those who have been) wives of your sons proceeding from your loins [leaving wives of adopted sons - like his Zayd - fair game]; and two sisters in wedlock at one and the same time, except for what is past; for Allah is Oft-Forgiving. Also (prohibited are) women already married, except slaves who are captives (of war)." Rape is still okay with Rocky.
Since Muhammad's harem included countless concubines and sex slaves, this too is laughable. Qur'an 4:27 "Allah likes to turn you, but those lost in the lusts of the flesh wish to turn away - far, far away. Allah does wish to lighten your (difficulties): For man was created weak. Believers, you should not usurp unjustly the wealth of others, except it be a trade by mutual consent, and kill not one another. If any do that in rancor and injustice, soon shall We cast them into the Fire: And easy it is for Allah." This admonition is obviously meant to prevent the growing Muslim horde from turning on itself when infidel targets become harder to find. "Plunder and kill anyone you like, except fellow pirates," the chief hypocrite said.
Some verses later, we are reminded that Muhammad was against people and that his god was mean-spirited. Qur'an 4:41 "We brought from each people a witness, and We brought you (O Muhammad) as a witness against these people! On that day will those who disbelieve and disobey the Messenger desire that the earth were leveled with them in it, but they shall not be able hide from Allah."
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फॉण्ट की जिस समस्या से आप जूझते प्रतीत हो रहे हैं, मैंने भी बहुत दिन झेला। कोडिंग में जा कर सबको Arial Unicode पर सेट कर दें। उसके बाद फॉण्ट की साइज घटाने बढ़ाने पर भी आँखों में चुभन सी नहीं होती।
ReplyDeleteबाकी पढ़ाई तो हो ही रही है। एक बात का ध्यान रखिएगा कि लिखा हुआ सब कुछ जाँचा परखा तथ्य हो। आप के पनघट की डगर बहुत बहुत कठिन है।
बहुत ही तार्किकता से आप चीजों को रख रहे हैं, गोर्की के शब्दों में कहा तो जिनके पैर जमीन के अंदर नहीं धंसे होंगे वो आपकी धुन पर जरूर नाचेंगे.....एक बुलंद कोशिश को हजार बार सलाम...
ReplyDeleteमुझे तो लगता है कि जिस में एक अच्छी बात की पैकिंग में निनानवे गलत बातों को मजहब कहते हैं क्या?
ReplyDeleteghalat ऐसे लिखते हैं, तू तो यह शब्द भी नहीं जानता चला हे इस्लाम धर्म पर उंगली उठाने, टीपू मास्टर है तू बस, हज बारे में हमें कहा गया है जो समर्थ हो वह हज करने जाए अर्थात जो आजकल 80 हजार रूपये खर्च कर सके, साथ ही यह कहा गया इससे उसपर गरीबी नहीं आयेगी, हर साल लाखों हाजी जाते हैं उनमें से किसी एक को देखना वह गरीब हुआ हो,,, जब जो साधन होगा जाऐंगे, रही इस युग में अंतिम कुछ ना होने की बात तो तुझे इस सवाल का जवाब कहीं दे चुका, फिर सुन, बेवकूफ में आखिर में फ होता है, kairanvi में अंतिम शब्द i होता है या नहीं होता, अब भी समय है
ReplyDeletesignature:
विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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मोमिन भाई, मैंने पहले ही कहा कि कैरानवी की बातों पर ध्यान न दें. आप अपने काम में लगे रहे. यह तो ऐसे ही आँय-बाँय करता ही रहता है. बेचारा करे भी तो क्या. दिन भर लिंक चेपता रहता है लेकिन कोई वहां जाता नहीं. किसी तर्क का कोई जवाब भी नहीं है इसके पास. आप लगे रहो हम नियमित रूप से पढ़ रहें हैं..........
ReplyDeleteहज करने ऊंट से जाये भी तो कैसे. अल्लाह मियां ऊँट को तैरना सिखा रहे थे लेकिन वह इसकी तरह गर्दन आसमान में देकर भाग निकला सो तैरना नहीं सीख पाया. इसीलिए कैरानवी को हवाई जहाज से जाना पड़ता है लेकिन उसके लिए भी २०००० सरकार से मांगने पड़ते हैं.