Saturday 7 November 2009

क़ुरआन

एक उम्मी का कलाम


बहुत से लक़बों (उपाधियों) के साथ साथ तथा-कथित पैगम्बर मुहम्मद का एक लक़ब उम्मी भी है जिसके के लफ़्ज़ी मानी होते हैं अनपढ़ और जाहिल. ये लफ्ज़ किसी फर्द को नफ़ी (न्यूनता की परिधि)में ले जाता है मगर बात मुहम्मद की है तो बात कुछ और ही हो जाती है. इस तरह उनके तुफैल में उम्मी शब्द पवित्र और मुक़द्दस हो जाता है. ये इस्लाम का खास्सा है. इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में कई लफ्जों के अस्ल मानी कुछ के कुछ हो गए हैं जिसे आगे आप देखेंगे. मुहम्मद निरे उम्मी थे, मुतलक जाहिल. क़ुरआन उम्मी, अनपढ़ और अकली तौर पर उजड, मुहम्मद का ही कलाम (वचन) है जिसे उनके गढे हुए अल्लाह का कलाम कहा जाता है. इसको कुराने-हकीम कहा जाता है यानी हिकमत से भरी हुई बातें.
क़ुरआन के बड़े बड़े हयूले बनाए गए, बड़ी बड़ी मर्यादाएं रची गईं, ऊंची ऊंची मीनारें कायम की गईं, इसे विज्ञान का का जामा पहनाया गया, तो कहीं पर रहस्यों का दफीना साबित किया गया है. यह कहीं पर अजमतों का निशान बतलाया गया है तो कहीं पर जन्नत की कुंजी है और हर सूरत में नजात (मुक्ति) का रास्ता, निजामे हयात (जीवन विद्या) तो हर अदना पदना मुसलमान इसे कह कर फूले नहीं समाता, गोकि दिनोरात मुस्लमान इन्हीं क़ुरानी आयतों की गुमराही में मुब्तितिला, पस्पाइयों में समाता चला जा रहा है. आम मुसलमान क़ुरआन को अज़ खुद कभी समझने की कोशिश नहीं करता, उसे हमेशा अपनी माँओं के खसम ओलिमा (धर्म गुरु ) ही समझाते हैं.
इस्लाम क्या है? इसकी बरकत क्या है? छोटे से लेकर बड़े तक सारे मुसलमान ही दानिस्ता और गैर दानिस्ता तौर पर इस के झूठे और खोखले फायदे और बरकतों से जुड़े हुए हैं. सच पूछिए तो कुछ मुट्ठी भर अय्यार और बेज़मीर मुसलमानों का सब से बड़ा ज़रीया मुआश (भरण पोषण) इस्लाम है जो कि मेहनत कश इसी तबके के अवाम पर मुनहसर करता है यानी बाकी कौमों से बचने के बाद खुद मुसलमान मुसलमानों का इस्तेह्सल (शोषण) करते हैं. दर अस्ल यही मज़हब फरोशों का तबका, गरीब मुसलामानों का ख़ुद दोहन करता है और दूसरों से भी इस्तेह्साल कराता है. वह इनको इस्लामी जेहालत के दायरे से बहार ही निकलने नहीं देता.
क़ुरआन निजामे हयात नहीं बल्कि मुसलमानों के लिए अज़ाबे है. इसके लिए शर्त है कि मुसलमान अकीदत की टोपी को सर से उतारकर, खुले सर होकर क़ुरआन का मुतालिआ (अध्धयन) करें, और हकीक़त को समझें. क़ुरआन में एक हज़ार खामियां हैं, इसे अकले सलीम को पेश नज़र रख कर समझें और कुछ बुनयादी सवालों पर गौर करें.....
१. यह कायनात अरबों खरबों साल पहले नहीं बल्कि इन हिन्दसों को दोहराते हुए आप की उम्र गुज़र जाए और आखिर में आप कहें कि ये कायनात तब पैदा हुई थी, तब भी सवाल वहीँ का वहीँ कायम रहता है कि उसके पहले क्या था? इतने तवील वक्फे में कोई अल्लाह आज से चौदह सौ साल पहले पैदा हुआ और तेईस साल चार महीने की उम्र पाई (ये मुहम्मद की उम्रे पयाम्बरी है) , उसी में वह किसी यहूदी फ़रिश्ते गिब्रील को पकडा और कुरानी आयतों का सिलसिला उसके कानों में कहना शुरू किया, फिर उसने उन्हें मुहम्मद के कानों में फुसका और मुहम्मद ने लोगों में इसका एलान किया. तैयार हो गई क़ुरआन. उसके बाद अल्लाह ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सर सींग. चौदह सौ साल हो गए हैं उसका कोई अता पता नहीं, नादार कौम मुस्लिम उस हवाई बुत (अल्लाह) के फरेब में आज तक मुब्तिला है और पत्थर तथा मिटटी के बुत परस्तो से जेहाद पर आमादः है..
२. इंसान जब हालात-ए-नीम हैवानी में था तो उसका जेहन डर या ख़ुशी के आलम में किसी अनजानी ताक़त पर आकर आकर कायम हो जाता था जिसने आवाज़ की शक्ल पाई 'हू'. अरब के समाजी ढांचे बतलाते हैं कि नूह के वक़्त तक 'हू' का आलम ही रहा, बाबा इब्राहीम के आते आते 'या हू' तक पहुंचा जिसे अर्वाहे-आसमानी (आकाशीय आत्माएं) की तरहजाना जाता था. मूसा के आते आते यहूदियों ने अपना निजी खुदा बना लिया और नाम रक्खा 'यहवः' ,ये हू, या हू यहवः सुलेमान और दाऊद तक 'इलाह' और 'इलोही' होता गया. अरबियों में खुदा को हिंदुस्तान की तरह मुख्तलिफ देवी देवताओं की तरह 'लात, मनात, उज़ज़ा वगैरह के साथ साथ इलाह, इलाही जैसी गैबी ताक़त को यहूदियों और ईसाइयों की शक्ल और नक़ल में मानते रहे. मुहम्मद ने इसे एक नया और बिदअती नाम दिया और नया खुदा पैदा किया, नाम दिया 'अल्लाह'. 'अल्लाह जल्ले जलालहू' वैसे क़ुरआन ने इसके सौ नाम गढे हैं इसके मगर अस्ल यही जलाली अल्लाह है जो हर वक़्त मुसलमानों के पीछे दोज़ख के अंगार लिए खडा रहता है. गैर मुस्लिमों को तो खैर वह जहन्नम रसीद करना फैसल कर रखा है चाहे उन्हें दावते इसलाम मिली हो या नहीं. हत्ता कि इसलाम से पहले जो मरे वह भी जहन्नुमी चाहे वह मुहम्मद के बाप ही क्यूं न हों. यह बात खुद जाहिल मुहम्मद एक हदीस में इरशाद फरमाते हैं.
जिस अल्लाह को मुहम्मद ने गढा उसने मुहम्मद को अपना प्यरा नबी, अपना रसूल बना कर अपना पैगाम क़ुरआन की शक्ल में अर्श आला से उतार कर ज़मीन पर भेजा कि तुम और तुम्हारे अरबी वरिसैन अर्जे पाक की बीस फी सद इंसानी आबादी को सदियों तक जंगी भट्टियों में झोकते रहो और वह अहमक जिल्लत की ज़िन्दगी को ढोते रहें.
कुरआन, खुद सर मुहम्मद की मंसूबा बंद एक खुराफाती तहरीर है. यह लाल बुझक्कड़ की जेहनी मेयार का एक बेहतर नमूना है, कठ मुल्लई की शुरुआत मुहम्मद के फ़रमूदात से हुईं. कुरआन में तज़ाद (विरोधाभास) की भर है, किसी सूरह में कुरआन कुफ्र का प्रचार करता है तो कहीं पर वहदानियत का. मुहम्मद की जालिम फितरत की तर्जुमानी कुरआन करता है। यही नहीं मुहम्मद की कम इल्मी और नाकबत अनदेशी को भी कुरआन ओढ़ता बिछाता है. इसके तमाम खामियों को मुहम्मद ने बड़ी ढीटाई से निपटाया है कि ' कुछ आयतें मुशतबह मुराद हैं जिनका मतलब अल्लाह ही जानता है.' इतना ही नहीं कुरआन को पढ़ कर सवाब हासिल करने की ज़रुरत है, बनिस्बत समझने के. कुरआन के हफिज़े का दस्तूर मुसलमानों में रायज हो गया, लाखों लोग इस गैर तामीरी काम में लग कर क़ौम को जाम किए हुए हैं.
फिर गुजारिश है कि कुरआनी आयातों का तर्जुमा, उस पर तबसरा आप अकीदे की टोपी उतार के और हक का चश्मा पहेन के पढें, शायद सदाक़त गले उतरे. मैं समझता हूँ कि करोडों की मुस्लिम आबादी, दुन्या के हर खित्ते में बसने वाले यह लोग, इनमे मेरी आवाज़ नक्कार खाने में तूती की आवाज़ भी नहीं होगी मगर सिर्फ आप अगर कुछ समझ लें तो यही मेरी मेहनत का फल होगा।

निसार 'निसारुल-ईमान'

5 comments:

  1. वाह री ब्लागवाणी कैसे कैसे नालायकों को अपना मेम्‍बर बना रही है, यह नालाक तुझ पे नाज़ करें कम है, यह उनकी नालायक़ी ही तो है जो तेरा लाभ नहीं उठा पा रहे, कैरानवी को मेम्‍बरशिप दे फिर देख तमाशा, यह नया नालायक तो शब्‍द 'गलत' ghalat xgalatx भी लिखना नहीं जानता, किया सोच के इसको दूध पिला रहे हो, कभी अलबेदार से निबटा था मैं अब तो मेरे पास अनुभव भी बढ गया, देख लूंगा तेरे लाखों नालायकों को भी

    6 अल्‍लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
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    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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  2. मोमिन भाई आप ने एक साहसिक कार्य शुरू किया है. कुरान की गलत व्याख्या कर भोले - भले मुसलमानों को कठमुल्लों ने जिस तरह रेवडों की तरह हांक रखा है उसका विरोध और खुलासा जरूरी है. आज तक लोग आगे आने से बचते रहे परन्तु आपने इस कार्य का बीडा उठाया यह सराहनीय है. आप कामयाब हों यही शुभकामना है

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  3. धर्म के बारे मैं आप का पाक साफ नजरिया निश्चित रूप से प्रशंसा के योग्य हैं.....धर्म ग्रंथों मैं जो भी लिखा है...उसमें मानवतावादी नजरिया बहुत जरूरी हैं.....

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  4. sab galat hai..... andhbhak

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