Tuesday 10 November 2009

क़ुरआन सूरह फातेहा (१)


ईमान और ईमानदारी की बात


"शुरू करता हूँ मैं अपने ज़मीर की आवाज़, ज़र्फ़ के मेयार, इल्म ए जदीद की गवाही और ईमान ए फितरत के रौशन सदक़त्तों के साथ कि जो कुछ भी मेरी नियत होगी, वास्ते फलाह ए मखलूक और बराए इंसानियत होगी. किसी से लगाव होगा न किसी से बैर और न ही किसी का डर या लिहाज़,"
मैं एक मोमिन हूँ जो ईमान को हक और फितरी तकाजों पर नापता, तोलता और मानता है. बकौल ग़ालिब - - -
वफ़ा दरी बशर्ते उस्तवारी अस्ल ए ईमान है,
मरे बुत खाने में तो काबा में गाडो बर्मन को।


मुस्लिम बहर सूरत इसलाम को तस्लीम किए हुए होता है, चाहे वह बात हक हो या नाहक. इस्लाम इस धरती पर नाजायज़ निजाम है जो मज़हब ए नाकिस तो हो सकता है धर्म नहीं. माले गनीमत के मज़्मूम ज़रीया मुआश ने इसे नई मगर एक गुमराह कुन जहत दे दी है जो कि धीरे धीरे एक बड़ी सूरत बन कर जंगी सनत अख्तियार कर गया है. क़त्ताल, जज़्या और मुस्लमान बन जाने की सूरत में ज़कात की भरपाई, अवाम के साथ ज़ुल्म, ज़्यादती और ना इन्साफी के सिवा इसलाम ने दुन्या और इंसानियत को और कुछ नहीं दिया. इसलाम ने दुन्या पर जो कहर ढाया है, और जो इंसानी खून पिया है, किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. माजी की परदापोशी नहीं की जा सकती. कुरान खुद साख्ता रसूल अल्लाह मुहम्मद की गढ़ी हुई बकवास है जिस को किताब ही शक्ल देकर कलाम ए इलाही बना दिया गया है. यह किताब नफरत, तशद्दुद, बोग्ज़, मारकाट और न इंसाफी सिखलाती है, इंसानों में आपस में निफाक पैदा करती है, जंग जंग और जंग, इंसानी समाज को तो पुर अम्न रहने ही नहीं देती. नई इंसानी क़द्रें हैं कि इसको बर्दाश्त करके भी मुसलमानों को राय दे रही हैं कि वह अज़ खुद क़ुरआनी सफ़हात को फाड़ कर नज्र-ए-खाक करदें, यह उनकी नेक सलाह है, वरना वह चाहें तो खुद मुसलमानों को इन के बुरे अंजाम तक पहुंचा सकते हैं. मुसलमानों ने कालिमा ए नामुराद को पढ़ कर सिर्फ़ अपना आकबत बिगाडा है, दुन्या को दिया क्या है? दुन्या में जो कुछ है इन्हीं माददा परस्त मगरीबी ममालिक की देन है और तमाम साइंस दानों के इल्म की बरकतें हैं, जिनको यह आकबत के सौदागर आलिमान दीन नेहायत बेगैरती के साथ भोग रहे हैं.
अब मैं नादर क़ौम की जुबूं हाली के असबाब पर आता हूँ. इसलाम अरबों की बद तरीन मुआशी बद हाली की हालत में अपनी न मुरादी के साथ वजूद में आया था. डाका ज़नी,शब खून, और लूट पाट अभी तक तारीख इंसानी में जुर्म हुआ करता था, माल ए गनीमत कह कर मुहम्मद ने इसे जायज़ करार दे दिया. मज़हब के नाम पर बेकारों को जंगी लूट की आसान रोज़ी मिल गई, बनू नसीर और खैबर जैसी हजारों बस्तियां इस नई वबा से तबाह- ओ-बर्बाद हुईं. दूसरी तरफ " इस्लामी इल्म-ए-जेहालत" का रूह्जन मुस्लिम हुक्मरानों ने बढाया जिस से एक नया तबका पैदा हुवा जो कि जंगी सऊबतों से बचना चाहता था, वोह इस में लग गया. यह तालीम याफ़्ता मगर बुज़ दिल गिरोह जोर-ए-कलम दिखलाने लगा और वह ला खैरा और जाहिल गिरोह ज़ोर-ए-तलवार. फिर क्या था झूट, दरोग, लग्व, मुबालगा, और अययारी के पुल बंधने लगे, जंगों में फ़रिश्ते लड़ने लगे, अल्लाह मुदाखलत करने लगा और जिब्रील अलैहिस सलाम मुहम्मद के हम रकाब हुए. सैकडों साल से इस इल्म जारहय्यियत में दानिश मंदी और फ़ल्सफ़े भरे जा रहे हैं. मुसलमानों के सबसे बड़े मुजरिम यह मरदूद ओलिमा हैं. यह नफ़ी में मुसबत पहलू निकलने में माहिर होते हैं. जाहिल को उम्मी लिख कर उसकी नाकबत अन्देश्यों में, दूर अन्देश्याँ भरते रहते हैं. हमेशा ही इनके मकर और रिया कारियों का बोलबाला रहा है, कई बार इनका सर भी ज़हरीले नागों की तरह कुचला गया है और चीन की तरह ही इन पर पाबन्दी भी लगाई गई है मगर यह कमबख्त होते हैं बड़े सख्त जान. आज इन का उरूज है. हिदोस्तान का जम्हूरी निजाम इनके लिए फलने फूलने के लिए बहुत साज़गार है. इनको परवाह नहीं मुसलमानों की बदहाली की, इनकी बला से, इनको तो मुसलमानों पर इकतेदार चाहिए और माल-ए-मुफ़्त के साथ साथ इज्ज़त मुआबी. इनका एक मुनज्ज़म गिरोह बना हुवा है जो मुस्लिम मुआशरे को चारो तरफ से जकडे हुए है. बहुत बिडला कोई होगा जो इनके जाल से बचा हुवा होगा. जेहाद की लूट ख़त्म हो चुकी है मगर मगर दर पर्दा मदरसे की तालीम मुसलमानों को मुतास्सिर किए हुए है.
यह धूर्त ओलिमा हिंदुस्तान की सियासत में चिल्लाते फिरते हैं की इसलाम अम्न का अलम बरदार है। कोई इन से पूछे की मदरसे में पढाई जाने वाली क़ुरआन और हदीस किया कोई और हैं या वही जिनमें जंग और नफरत की सडांध भरी हुई है? माले गनीमत जो कभी गैर मुस्लिमों से बज़ोर-ए-तलवार मुस्लमान वसूल किया करते थे, अब वह यह कमबख्त हर आलिम मुसलमानों से जज़्या की शक्ल में किसी न किसी हाल में ले रहे हैं. इस से मुसलमानों का दोहरा नुकसान हो रहा है कि इसके लिए उनको इल्म-ए-नव से महरूम रखा जा रहा है, दूसरा माली नुकसान और कभी कभी गोलियों से भुन जाने के बाद जानी नुकसान भी.
मुसलमानों की भलाई इसी में है कि सरकार इस मुस्लिम इशू को ही बंद करे, बहैसियत मुस्लमान कहीं पर कोई रिआयत न हो। अक़ल्लियत का ख्याल ही खाम है, इसे वर्ग विशेष कहना बंद हो. सरकार ने जो स्कूल कालेज खोल रखे हैं, वहां कोई भेद भाव नहीं है, हर बच्चा वहां तालीम हासिल कर सकता है. जो इसको तर्क करके मदरसा जाता है इसकी ज़िम्मेदारी सरकार क्यूं ले? बल्कि ऐसे लोगों पर नजर-ए-तहकीक़ रहे जो इन मदरसों में पढ़ कर तालिबानी राहों पर जाने के लिए अमादा किए जाते हैं. मैं आगाह करता हूँ कि तुम्हारा मज़हब इसलाम मुकम्मल तौर पर गलत है जिस पर सारा ज़माना लानत भेज रहा है. तुम्हारे यह आलिम तुम्हारे मुजरिम हैं. इनको समझने की कोशिश करो. अभी सवेरा है, जग जाओ, जागना बहुत आसन है, बस दिल की आँखें खोलना है. तुम्हें तर्क-ए- इसलाम करके खुदा न खास्ता हिन्दू नहीं बनना है, न क्रिशचन, मामूली से फर्क के साथ एक ठोस मोमिन बनाना है. तुम्हारा नाम, तुहारा कल्चर, तुहारा तमद्दुन, रस्म-ओ-रिवाज, ज़बान कुछ भी नहीं बदलेगा, बस नजात पाओगे इस झूठे अल्लाह से जिसको मुहम्मद ने चौदह सौ साल पहले गढा था. नजात पा जाओगे उस खुद साखता रसूल से और उसकी जेहालत भरे एलान क़ुरआन और हदीस से जो तुम्हारे ऊपर लगे हुए दाग है.


निसार 'निसारुल-ईमान'



सूरह फातेहा (१)

सब अल्लाह के ही लायक हैं जो मुरब्बी हें हर हर आलम के। (१)
जो बड़े मेहरबान हैं , निहायत रहेम वाले हैं। (२)
जो मालिक हैं रोज़ जज़ा के। (३)
हम सब ही आप की इबादत करते हैं, और आप से ही दरखास्त मदद की करते हैं। (४)
बतला दीजिए हम को रास्ता सीधा । (५)
रास्ता उन लोगों का जिन पर आप ने इनआम फ़रमाया न कि रास्ता उन लोगों का जिन पर आप का गज़ब किया गया । (६)
और न उन लोगों का जो रस्ते में गुम हो गए।
(७)

( पहला पारा जिसमें ७ आयतें हैं)
कहते है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, मगर इन सातों आयतों पर नज़र डालने के बाद यह बात तो साबित हो ही नहीं सकती कि यह कलाम किसी अल्लाह जैसी बड़ी हस्ती ने अपने मुँह से अदा क्या हो। यह तो साफ साफ किसी बन्दा-ऐ-अदना के मुँह से निकली हुई अर्ज़दाश्त है. अल्लाह ख़ुद अपने आप से इस क़िस्म की दुआ मांगे, क्या यह मजाक नहीं है ? या फिर अल्लाह किसी सुपर अल्लाह के सामने गुज़ारिश कर रहा है ? अगर अल्लाह इस बात को फ़रमाता तो वह इस तरह होती -----
"सब तारीफ़ मेरे लायक़ ही हैं, मैं ही पालनहार हूँ हर हर आलम का. १
मैं बड़ा मेहरबान, निहायत रहेम करने वाला हूँ. २
मैं मालिक हूँ रोज़े-जज़ा का..३
तो मेरी ही इबादत करो और मुझ से ही दरखास्त करो मदद की. ४
ऐ बन्दे मैं ही बतलाऊँगा तुझ को सीधा रास्ता . ५
रास्ता उन लोगों का जिन पर हम नें इनआम फ़रमाया .६
न की रास्ता उन लोगों का जिन पर हम ने गज़ब किया और न उन लोगों का जो रस्ते से गुमहुए। 7"
मगर अगर अल्लाह इस तरह से बोलता तो ख़ुद साख्ता रसूल की गोट फँस गई होती और इन्हें पसे परदा अल्लाह बन्ने में मुश्किल पेश आती. बल्कि ये कहना दुरुस्त होगा कि मुहम्मद क़ुरआन को अल्लाह का कलाम ही न बना पाते.क्यूँकी ऐसे बड बोले अल्लाह को मानता कोई न जो खुद अपने मुँह से अपनी तारीफ़ झाड़ रहा हो.
इस सिलसिले में इस्लामीं ओलिमा इस बात को यूँ रफू गरी करते हैं कि क़ुरआन में अल्लाह कभी ख़ुद अपने मुँह से कलाम करता है, कभी बन्दे की ज़बान से. याद रखे कि खुदाए बरतर के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी कि वह अपने बन्दों को वहम में डालता और ख़ुद अपने सामने गिड़गिडाता. उसकी कुदरत तो अपरम्पार होगी अगर वह है.

गौर करें पहली आयत----कहता है ---"सारी तारीफें मुझे ही ज़ेबा देती हैं क्यो कि मैं ही पालन हार हूँ तमाम काएनातों में बसने वालों का."
अल्लाह मियाँ! अपने मुँह मियाँ मिट्ठू ? अच्छी बात नहीं, भले ही आप अल्लाह जल्ले शानाहू हों. प्राणी की परवरिश अगर आप अपनी तारीफ़ करवाने के लिए कर रहे हैं तो बंद करें पालन हारी. वैसे भी आप की दुन्या में लोग दुखी ज्यादा और सुखी कम हैं.
दूसरी आयत पर आइए-----आप न मेहरबान हैं, न रहेम वाले , यह आगे चल कर कुरानी आयतें चीख चीख कर गवाही देंगी, आप बड़े मुन्तक़िम(प्रतिशोधक) ज़रूर हैं और बे कुसुर अवाम का जीना हराम किए रहते हैं.
तीसरी आयत ---यौमे जज़ा (प्रलय दिवस) यहूदियों की कब्र गाह से बर आमद की गई रूहानियत की लाश, जिस को ईसाइयत ने बहुत गहराई में दफ़न कर दिया था, इस्लाम की हाथ लग गई, जिसे मुहम्मद ने अपनी धुरी बनाई. मुसलामानों की जिदगी का मकसद यह ज़मीन नहीं, वह आसमान की तसव्वुराती दुनिया है, जो यौमे-जज़ा के बाद मिलनी है. क़यामत नामा कुरआन पढ़ें. दर अस्ल मुसलमान यहूदियत को जी रहा है.
पाँचवीं आयत में अल्लाह अपने आप से या अपने सुपर अल्लाह से पूछता है कि बतला दीजिए हमको सीधा रास्ता. क्या अल्लाह टेढे रास्ते भी बतलाता है? यकीनन, आगे आप देखेंगे कि कुरानी अल्लाह किस कद्र अपने बन्दों को टेढे रास्तों पर गामज़न कर देता है जिस पर लग कर मुसलमान गुमराह हैं.क़ुरआन का क़ौल है अल्लाह जिस को चाहे गुमराह करे, कूढ़ मग्ज़ मुसलमान कभी इस पर गौर नहीं करता कि यह शैतानी हरकत इस का अल्लाह क्यों करता है? कहीं दाल में कुछ कला है.
छटी आयत में अल्लाह कहता है रास्ता उन लोगों का रास्ता बतलाइए जिन पर आप ने करम फरमाया है. यहाँ इब्तेदा में ही मैं आप को उन हस्तियों का नाम बतला दें जिन पर अल्लाह ने करम फ़रमाया है, आगे काम आएगा क्यूं कि कुरान में सैकडों बार इन को दोहराया गया है. यह नम हैं---इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, लूत, याकूब, यूसुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान, ज़कर्या, मरयम, ईसा अलैहिस्सलामन वगैरह वगैरह. याद रहे यह हज़रात सब पाषण युग के हैं, जब इंसान कपड़े और जूते पहेनना सीख रहा था छटी आयत गौर तलब है कि अल्लाह गज़ब ढाने वाला भी है. अल्लाह और अपने मखलूक पर गज़ब भी ढाए? सब तो उसी के बनाए हुए हैं बगैर उसके हुक्म के पत्ता भी नहीं हिलता, इंसान की मजाल? उसने इंसान को ऐसा क्यूं बनाया की गज़ब ढाने की नौबत आ गई?
सातवीं आयत में भी अल्लाह अपने आप से दुआ गो है कि न उन लोगों का रास्ता न बतलाना `जो रास्ता गुम हुए. रास्ता गुम शुदा के भी चंद नाम हैं---आजार, समूद, आद, फ़िरौन, वगैरह. इन का भी नाम कुरान में बार बार आता है.
कुरआन अपने यहूदी और ईसाई मुरीदों की मालूमाती मदद में रद्दो बदल करके, उम्मी ( निरक्षर और नीम शाएर) मुहम्मद का कलाम है। इस का पता हर खास ओ आम क़ुरआनी विद्वान को मालूम है, मगर वह वह सब के सब धूर्त हैं. क़ुरआन का मिथ्य ही उनकी रोज़ी रोटी है.
यह सूरह फातेहा की सातों आयतें कलाम-इलाही बन्दे के मुंह से अदा हुई हैं। यह सिलसिला बराबर चलता रहेगा, अल्लाह कभी बन्दे के मुंह, से बोलता है, कभी मुहम्मद के मुंह से, तो कभी ख़ुद अपने मुंह से. माहरीन द्ल्लाले कुरआन ओलिमा इस को अल्लाह के गुफ्तुगू का अंदाजे बयान बतलाते हैं, मगर माहरीन ज़बान इंसानी इस को एक उम्मी जाहिल का पुथन्ना करार देते हैं. जिस को मुहम्मद ने वज्दानी कैफियत में गढा है. मुहम्मद को जब तक याद रहता है कि वह अल्लाह की ज़बान से बोल रहे हें तब तक ग्रामर सही रहती है,जब भूल जाते है तो उनकी बात हो जाती है. यह बहुत मुश्किल भी था की पूरी कुरआन अल्लाह के मुंह से बुलवाते.

निसार 'निसारुल-ईमान'
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2 comments:

  1. वाह री ब्लागवाणी कैसे कैसे नालायकों को अपना मेम्‍बर बना रही है, यह नालाक तुझ पे नाज़ करें कम है, यह उनकी नालायक़ी ही तो है जो तेरा लाभ नहीं उठा पा रहे, कैरानवी को मेम्‍बरशिप दे फिर देख तमाशा, यह नया नालायक तो शब्‍दा गलत ghalat xgalatx भी लिखना नहीं जानता, किया सोच के इसको दूध पिला रहे हो, कभी अलबेदार से निबटा था मैं अब तो मेरे पास अनुभव भी बढ गया,

    6 अल्‍लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
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    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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  2. itne bade cyber maulana aur pata nahin kin-kin patra -patrikaon ke sampadak ko ek adna si blagvani ki sadasyta ki jaroorat aan padi. pahle gidgida rahe the, nahin mili to ab patthar fenk rahe ho. allah se kahkar ek agrigator hi kyon nahi chaloo karwa lete......

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