सूरह अनआम ६-
(6 The Cattle)
C
''यहाँ तक कि जब यह लोग आप के पास आते हैं तो आप से ख्वाह मख्वाह झ्गढ़ते हैं। यह लोग जो काफ़िर हैं वोह यूं कहते हैं यह तो कुछ भी नहीं सिर्फ बे सनद बातें हैं जो कि पहले से चली आ रही हैं और यह लोग इस से औरों को भी रोकते हैं और खुद भी इस से दूर रहते हैं और यह लोग अपने को ही तबाह करते है और कुछ खबर नहीं रखते.''
''सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२६)
सोचने की बात यह है कि डेढ़ हज़ार साल उस वक़्त के लोग आज के कुंद ज़हनों से ज़्यादः समझदार थे. मूसा और ईसा के प्रचलित किस्से दौर जहालत अंध विशवास के रूप में रायज थे जिसको चंट मुहम्मद ने रसूले-खुदा बन के सच साबित किया मगर बहर हाल झूट का अंजाम बुरा होता है जो आज दुन्या की एक बड़ी आबादी भुगत रही है.
'' और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे तो कहेंगे है कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''
''सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)
आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यकीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.
'' और मेरे पास ये कुरआन बतौर वही (ईश वाणी) भेजा गया है ताकि मैं इस कुरआन के ज़रीए तुम को और जिस जिस को ये कुरआन पहुंचे, इन सब को डराऊं''
''सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(२८)
कुरआन बतौर वही नहीं बज़रीए वही कहें या रसूलल्लाह! कुरआनी अल्लाह अपनी किताब कुरआन में न आगाह करता है न वाकिफ कराता है और न ख़बरदार करता है, बस डराता रहता है. ज़ाहिर है कि वह उम्मी है, उसके पास न तो अल्फाज़ के भंडार हैं, न ज़बान दानी के तौर तरीके. बच्चों को डराया जाता है, बड़ों को धमकाया जाता है, मुहम्मद को इस की तमाज़त नहीं. वह बड़े बूढों, औरत मर्द, गाऊदी और मुफक्किर, सब को अपने बनाए अल्लाह के बागड़ बिल्ले से डराते हैं. मुसलमानों का तकिया कलाम बन गया है ''अल्लाह से डरो'' भला बतलाइए कि क्यूँ ख्वाह मख्वाह अल्लाह से डरें? वह कोई साँप बिच्छू या भेडिया तो नहीं? डरना है तो अपनी बद आमालियों से डरो जिसका कि अंजाम बुरा होता है. आप की बद आमालियाँ वह हैं जो दूसरों को नुकसान पहुंचाएं.
इन कुंद ज़ेहन साहिबे ईमान मुसलामानों को कोई समझाए कि अरबों खरबों बरस से कायम इस कायनात का अगर कोई रचना कार है भी तो वह एक जाहिल जपट मुहम्मद से अपनी सहेलियों की तरह, अपने गम गुसारों की तरह, अपने महबूब की तरह बात करेगा? अगर तुम्हारा यकीन इतना ही कच्चा है तो कोई गम नहीं कि तुम इस नई दुन्या में सफा-ए- हस्ती से मिटा दिए जाओ और जगे हुए इंसानों के लिए जगह खाली करदो कि जो दो वक़्त की रोटी नहीं पा रहे हैं हालांकि वह बेदार हैं और तुम अकीदत की नींद में डूबे हुए गुनाहगार ओलिमा को हलुवा पूरी खिला रहे हो. मगर नहीं रुको मैं इतना और कह दूं कि मुहम्मद ने तो सिर्फ कुरैशियों की हलुवा पूरी को कायम करना चाहा था मगर यह बीमारी तो सारी दुन्या को लग गई? दुन्या को जाने, मैं तो सिर्फ पंद्रह करोर हिदुस्तानी मुसलमानों को जगाना चाहता हूँ. देखो कि ब्रह्माण्ड का रचैता एक धूर्त से कैसे बातें करता है - - -
''हम खूब जानते हैं कि आप को इनके अक़वाल मगमूम करते हैं, सो यह लोग आप को झूटा नहीं कहते, लेकिन यह जालिम अल्लाह ताला की आयातों का इनकार करते हैं''
''सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(३३)
मेरे भोले भाले मुसलमानों क्या यह अय्यारी की बातें तुम्हारे समझ में नहीं आतीं?
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ऐतिहासिक सत्य में क़ुरआन की हक़ीक़त
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Tabari II:53 "When Abraham's mother found that she was in labor she went out to a cave near her house and bore Abraham. She shut the cave up on him and returned home. Later when she went to see how he had done, she found him alive, sucking his thumb. Allah placed Abraham's sustenance in it." Muhammad was abandoned by his mother at birth, so he invented this story to mimic his own childhood.
Tabari II:51 "Abraham had been in the cave for fifteen months when he said to his mother, 'Take me out that I may look around.'" Why bother? After fifteen months of living in a cave, he would have been blind. "So she took him out one evening and he looked about and thought of the creation of the heavens and the earth and said, 'Verily the One who created me and fed me is my Lord - I have no other god but Him.'" Thus, an infant conceived the first pillar of Islam. But alas, the Hadith and Qur'an quickly plummet into spiritual delirium. "He looked out at the sky and saw a star. 'This is my Lord.' He followed it with his eyes until it disappeared. When it set he said, 'I do not like things that set.' Then he saw the moon rising and said, 'This is my Lord.' [Perceptive kid - Allah began his life as a moon deity.] And he followed it until it disappeared. When it set, he said, 'If my Lord did not guide me, I would have gone astray.'" A fifteen-month-old baby converts from paganism to Islam by watching the moon. Sure, why not.
Like so many Islamic Traditions, these were written to provide the context the Qur'an lacks. Let's dive into the 6th surah to hear what Allah has to say: Qur'an 6:74 "When Abraham said to his sire, Azar: 'Why do you take idols for gods? I find you and your people in manifest error.' Thus We showed Abraham the visible and invisible kingdom of the heavens and earth that he might be of those who are sure and believe. So when night overshadowed him, he saw a star. Said he: 'This is my Lord.' When it set, he said: 'I do not love the setting ones.' When he saw the moon rising, he said: 'This is my Lord.' When it set, he said: 'If my Lord had not guided me I would be of the erring people who go astray.'" This is embarrassing. The conversation condemns the message. After Allah personally showed Abe his kingdom so that he might be sure, the Islamic babe turns to the sky, the source of idols, and says, "This is my Lord." What is it about Islam that turns everyone's brains to mush - Allah's included?
Prophet of Doom
मामा का अनुवाद चला रहे हो भाँजे, टीपने से मौका मिले तो सोचना निम्न बातों को सुपर वाइरस क्यूँ कहता हूँ, आओ
ReplyDeletesignature:
विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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