सूरह अनआम ६-
(6 The Cattle)
A
ध्यान दें - - -
क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम हो ही नहीं सकता.
कोई अल्लाह अगर है तो अपने बन्दों के क़त्ल-ओ- खून का हुक्म न देगा.
क्या सर्व शक्ति वान, सर्व ज्ञाता, हिकमत वाला अल्लाह मूर्खता पूर्ण और अज्ञानता पूर्ण बकवास करेगा?
क्या इन बेहूदा बातों की तिलावत (पाठ) से कोई सवाब मिल सकता है?
जागो! मुसलमानों जागो!! मुहम्मद के सर पर करोड़ों मासूमों का खून है जो इस्लाम के फरेब में आकर अपनी नस्लों को इस्लाम के हवाले कर चुके हैं. मुहम्मद की ज़िदगी में ही हज़ारों मासूम मारे गए और मुहम्मद के मरते ही दामाद अली और बीवी आयशा के दरमियाँ जंग जमल में दो लाख इंसान बहैसियत मुसलमान मारे गए. स्पेन में सात सौ साल काबिज़ रहने के बाद दस लाख मुसलमान जिंदा नकली इस्लामी दोज़ख में डाल दिए गए, अभी तुम्हारे नज़र के सामने ईराक में दस लाख मुसलमान मारे अफगानिस्तान, पाकिस्तान कश्मीर में लाखों इन्सान इस्लाम के नाम पर मारे जा रहे है.चौदह सौ सालों में हज़ारों इस्लामी जंगें हुईं हैं जिसमें करोड़ों इंसानी जानें गईं. मुस्लमान होने का अंजाम है बेमौत मारो या बेमौत मरो.
क्या अपनी नस्लों का अंजाम यही चाहते हो? एक दिन इस्लाम का जेहादी सवाब मुसलामानों को मारते मारते और मरते मरते ख़त्म कर देगा. वक़्त आ गया है खुल कर मैदान में आओ. ज़मीर फरोश गीदड़ ओलिमा का बाई काट करो, इनके साए से दूर रहो और भोले भाले लोगों को दूर रखो.
अब आइए कुरआनी बकवासों पर जिनको आम मुसलमान नहीं जनता - - -
क़ुरआन ने मुसलामानों में एक वहम '' नाज़िल और नुज़ूल''(अवतीर्ण एवं अवतरित) का डाल दिया है, मिन जानिब अल्लाह आसमान से किसी बात, किसी शय, किसी आफ़त का उतरना नाज़िल होना कहा जाता है. ये सारा का सारा क़ुरआन वहियों(ईश-वाणी) के नुजूल का पुथंना बतलाया जाता है. यानी क़ुरआन का ताअल्लुक़ ज़मीन से नहीं बल्कि यह आसमान से उतरी हुई किताब है. क़ुरआन अपनी ही तरह मूसा रचित तौरेत और दाऊद द्वारा रचे ज़ुबूर के गीतों को ही नहीं बल्कि ईसा के हवारियों (धोबियों) के बाइबिल के बयानों को भी आसमानी साबित करता है, जब कि इन के मानने वाले खुद इन्हें ज़मीनी कहते हैं. आगे की खोज कहती है आसमान ऐसी कोई चीज़ नहीं कि जिसके फर्श और छत हों,ये फ़क़त हद्दे नज़र है. क़ुरआन के सात मंजिला आसमान पर मुख्तलिफ मंजिलों पर मुख्तलिफ दुनिया है, सातवें पर खुद अल्लाह विराजमान है.
हमारी जदीद तरीन तह्क़ीक़ कहती है की ऐसा आसमान एक कल्पना है, तो ऐसा अल्लाह भी मुहम्मद का तसव्वुर ही है. दोज़ख जन्नत सब उनकी साजिश है.
'' तमाम तारीफें अल्लाह के लिए ही लायक हैं जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया और तारीकियों (अंधकार) और नूर को बनाया, फिर भी काफिर लोग दूसरों को अपना रब क़रार देते हैं.''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१)
उम्मी मुहम्मद ब्रम्हामांड में ज़मीन को हर जगह बार बार एक वचन में लाते हैं और आसमान को बहु वचन (अनुमानित सात) क़ुरआन में अल्लाह के मुंह से कहलाते हैं जब कि आसमान एक है और ज़मीन इसमें करोरों बल्कि बेशुमार हैं. कोई ताक़त इसका रचैता अगर है तो वह क्या मुहम्मद का अल्लाह हो सकता है जो कह रहा है सब तारीफ मेरे लिए हैं और खुद उसको अपनी रचना का ज्ञान नहीं? अंधकार और रौशनी सूरज के गिर्द ज़मीनी गर्दिश के रद्दे अमल से होती है, मुहम्मद से सदयों पहले यूनान के साइंस दानों ने दुन्या को बतला दिया था मगर यह बात मुहम्मदी अल्लाह के कानों तक नहीं पहुंची. काफिर लोगों ने हमेशा हू, याहू, इलह, इलोही, इलाही, रब और ख़ुदा जैसी किसी ताक़त को ईश्वर माना है और अपने देवी देवताओं को उसका माध्यम जैसे आज तक चला आ रहा है. अरबी माध्यम लात, मनात, उज़ज़ा आदि थे, मुहम्मद ज़बरदस्ती उनको उनका अल्लाह साबित करने मेंलगे हुए है.
''और वह ऐसा है जिसने तुम को मिटटी से बनाया, फिर एक वक़्त मुअय्यन किया और दूसरा खास वक़्त मुअय्यन उसी के नजदीक है, फिर भी तुम शक रखते हो.''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२)
मुहम्मद अल्लाह के बारे में बतलाते हैं कि वह ऐसा है और कहते हैं यह अल्लाह का कलाम है, जब कि मुहम्मद खुद साबित कर रहे हैं कि यह कलाम खुद उनका है। इसे ढंग से यूँ कहते - - -
धरा को परमाण यही तुलसी,
जो फरा, सो झरा, जो बरा सो बुताना।
काश कि मुहम्मद एक अदना अरबी शायर ही होते कि उनके सर पर करोरो इंसानी खूनों का अजाब तो न होता.
तीन आयतें ३, ४, ५ ऐसी ही मुहम्मद की जाहिलाना बकवास हैं.
''उन्हों ने देखा नहीं हम उनके पहले कितनी जमाअतों को हलाक कर चुके हैं, जिनको हमने ज़मीन पर ऐसी कूवत दी थी कि तुम को वह कूवत नहीं दिया और हम ने उन पर खूब बारिश बरसाईं हम ने उनके नीचे से नहरें जारी कीं फिर हमने उनको उनके गुनाहों के सबब हलाक कर डाला''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (6)
मुहम्मद का रचा अहमक अल्लाह अपने जाल में आने वाले कैदियों को धमकता है कि तुम अगर मेरे जाल में आ गए तो ठीक है वर्ना मेरे ज़ुल्म का नमूना पेश है, देख लो. उस वक्त के लोगों ने तो खैर खुल कर इन पागल पन की बातों का मजाक उडाया था मगर जिहाद के माले-गनीमत की हांडी में पकते पकते आज ये पक्का ईमान बन गया है. यही अलकायदा और तल्बानियों का ईमान है. ये अपनी मौत खुद मरेंगे मगर आम बे गुनाह मुसलमान अगर वक़्त से पहले न चेते तो गेहूं के साथ घुन की मिसाल बन जायगी.
''और ये लोग कहते हैं कि इनके पास कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं भेजा गया और अगर हम कोई फ़रिश्ता भेज देते तो सारा किस्सा ही ख़त्म हो जाता, फिर इन को ज़रा भी मोहलत न दी जाती.
''सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (8)
यानी फ़रिश्ता न हुवा कोहे तूर पर झलकने वाली इलोही की झलक हुई कि उसके दिखते ही लोग खाक हो जाते. देखें कि एक हदीस में इसके बर अक्स मुहम्मद क्या कहते हैं---
'' मुहम्मद सहबियों की झुरमुट में बैठे थे कि एक शख्स आकर कुछ सवाल पूछता है - - -
१- ईमान क्या है? २-इस्लाम क्या है? ३-एहसान क्या है? और क़यामत कब आएगी? मुहम्मद उसको अपनी जेहनी जेहालत से लबरेज़ बेतुके जवाब देते हैं. उसके जाने के बाद लोगों से पूछते हैं कि जानते हो यह कौन थे? लोगों ने कहा अल्लाह के रसूल ही बेहतर जानते हैं. फ़रमाया जिब्रील अलैहिस्सलाम थे दीन बतलाने आए थे.
( बुखारी-४७)
ये है मुहम्मद का कुरआनी और हदीसी दो विरोधाभासी अवसर वादिता. यह मोह्सिने इंसानियत नहीं थे बल्कि इंसानियत कि जड़ों में मट्ठा डालने वाले नस्ल-ए-इंसानी के बड़े मुजरिम थे.
कुरआन में अल्लाह बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (हंसी-मज़ाक) पसंद नहीं. लोग तमस्खुर उसी शख्स से करते है जो बेवकूफी कि बातें करता है.खुद साख्ता बने अल्लाह के रसूल कुरआन में ऐसी ऐसी बे वज़्न और बेवकूफी की बातें करते हैं कि हंसी आना लाजिम है, इस पर तुर्रा ये कि ये अल्लाह की भेजी हुई आयतं हैं.हर दिन एक एक टुकडा अल्लाह की आयत बन कर नाजिल होता है. इस पर काफिर कहते हैं कि '' क्यूं नहीं तुम्हारा अल्लाह यक मुश्त मुकम्मल किताब आसमान से सीढी लगा कर किसी फ़रिश्ते के मार्फ़त एक बार में ही भेज देता.'' देखिए कि बन्दों के इस माकूल सवाल का नामाकूल अल्लाह का जवाब - - -
'' और वाकई आप (खुद साख्ता पैगम्बर मुहम्मद को अल्लाह भी एह्तरामन आप कहता है. ये कमीनगी आलिमान दीन के क़लम का ज़ोर है) से पहले जो पैगम्बर हुए हैं उन के साथ भी इस्तेह्जा (मज़ाक) किया गया है फिर जिन लोगों न इन के साथ तमस्खुर (मज़ाक) किया उन को एक अजाब न आ घेरा जिसका वह मजाक उड़ा रहे थे''
''सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (10)
निसार ''निसार-उल-ईमान''
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Nothing is more essential to Islam's credibility than Muhammad's version of Abraham. Islam must prove that he was a Muslim, that his God was Allah, and that he worshiped in Mecca. Recognizing this, Muhammad tried desperately to make the case.
We pick up the trail in Tabari's History with something that sounds like Hitler's idea of Arian supremacy. Tabari II:21 "Ham [Africans] begat all those who are black and curly-haired, while Japheth [Turks] begat all those who are full-faced with small eyes, and Shem [Arabs] begat everyone who is handsome of face with beautiful hair. Noah prayed that the hair of Ham's descendants would not grow beyond their ears, and that whenever his descendants met the children of Shem, the latter would enslave them." The slavery theme keeps reappearing because Muhammad used the slave trade to finance the spread of Islam. Turning Noah into a racist to justify such behavior wasn't beneath Islam's prophet - but then again, little was.
We're going to pass by Muhammad's history lesson on the mythical tribes of Ad and Thamud. Their battles with the Almighty seemed important to Muhammad as he dedicated scores of Hadith to them. But I want to focus on the Islamic path to Abraham as it lies at the core of the prophet's deception. Tabari II:50 "Nimrod was Abraham's master and wanted him burned.... The first king who ruled over all the earth was Nimrod. There were four such kings who ruled all the earth: Nimrod, Solomon bin David, Dhu'l-Qarnain, and Nebuchadnezzar - two believers [Muslims] and two infidels." Nimrod only ruled a city-state. Solomon's kingdom only included a portion of the Middle East. Nebuchadnezzar's realm like that of Dhu'l-Qarnain, as Alexander the Great, was large, but neither ruled over the whole earth. As for two of them being Muslims - Muhammad and Allah are again mistaken. There wasn't a Muslim in the batch.
Prophet of Doom
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क्रिकेटर ब्रायन लारा मुसलमान हो गया
ReplyDeleteपिछले कुछ माह से इंटरनेट पर यह मुद्दा जोर पकड़े हुए है। सवालों पर सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या वास्तव में वेस्टइंडीज के महान क्रि केटर ब्रायन लारा मुसलमान हो गए हैं।
खबर यह है कि पाकिस्तानी क्रिकेटर सईद अनवर और पाकिस्तान के पूर्व पॉप स्टार जूनेद जमशेद के हाथों ब्रायन लारा ने इस्लाम कबूल कर लिया है।